लम्पी स्किन डिजीज Lumpy Skin Disease (LSD) या गांठदार त्वचा रोग (एलएसडी) एक संक्रामक रोग है जो पॉक्सविरिडी के कारण होता है, जिसे नीथलिंग वायरस के रूप में भी जाना जाता है। यह जानवरों के बीच सीधे संपर्क द्वारा, आर्थ्रोपोड वैक्टर (मक्खियों, मच्छरों, जूं) के माध्यम से फैलता है। इस बीमारी के कारण पशुपालन उद्योग को दूध की पैदावार में कमी, गायों और सांडों के बीच प्रजनन क्षमता में कमी, गर्भपात, क्षतिग्रस्त त्वचा और खाल, वजन में कमी या वृद्धि और असामयिक मृत्यु होती है।
यह रोग पहली बार 1929 में जाम्बिया में हुआ और कई अफ्रीकी देशों में यह रोग फैला। 2012 के बाद से ये बीमारी यूरोप, रूस और कजाकिस्तान के माध्यम से तेजी से फैल रहा है। इस रोग के फैलने की आशंका (Morbidity) 10-20% के बीच तथा मृत्यु दर (Mortality) 1-5% के बीच है। एलएसडी का प्रकोप 50 किमी के दायरे तक हो सकता है। संक्रमण गर्म और आद्र मौसम में तेजी से फैलता है और सर्दियों के मौसम में कम हो जाता है। सभी आयु वर्ग के जानवर संवेदनशील होते हैं। बछड़े को मां से संक्रमण हो सकता है। देशी नस्ल के पशुओं की तुलना में क्रॉस ब्रीड नस्ल के पशु अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनकी त्वचा पतली होती है। दुधारू गायों तथा कम उम्र के बछड़ों में रोग के लक्षण अधिक गंभीर होते हैं।
लम्पी स्किन डिजीज का आर्थिक महत्व
त्वचा की स्थायी क्षति, संक्रामक और पुरानी बीमारी, दुधारू पशुओं में दूध के उत्पादन में कमी, गंभीर शारीरिक कमजोरी, गर्भपात, प्रभावित मादा जानवरों में लंबे समय तक बांझपन, प्रभावित बछड़ों में खराब विकास, तथा अन्य रोगों जैसे निमोनिया, पेरिटोनिटिस, थनैला, बैलों में अपंगता, लंगड़ापन की अधिक संभावना हो जाती है। साथ ही पशुधन उत्पादों के निर्यात में प्रतिबंधों के कारण किसानों के साथ-साथ पुरे देश को भी गंभीर आर्थिक नुकसान होता है।
भारत में एलएसडी का प्रकोप
एलएसडी की बीमारी ने भारत में पहली बार 12 अगस्त 2019 को ओडिशा राज्य में दस्तक दी इसके पश्चात एलएसडी बीमारी के मामले झारखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में भी मिले। इस वर्ष के शुरुवात से ही तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है, और एलएसडी रोग का फैलाव पशुपालकों में चिंता का विषय बन गया है।
लम्पी स्किन डिजीज की बीमारी कैसे फैलती है
यह रोग काटने वाली मक्खियों (Stomyxes spp), मच्छरों (Culex spp, Anopheles spp, Aedes spp), जूं (Rhipicephalus spp, Ambemomma spp), सीधे संपर्क में आने, दूषित दाने और पानी से फैलता है। संक्रमित पशु 2 से 5 सप्ताह तक बिना लक्षण दिखाए भी रह सकते हैं, और पशु में बाद में बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। यह बीमारी पशुओं से मनुष्यों में संक्रमित नहीं होती है यानि ज़ूनोटिक रोग नहीं है।
लम्पी स्किन डिजीज बीमारी के लक्षण
- उच्च शरीर का तापमान (106 डिग्री F), भूख की कमी।
- पूरे शरीर में गांठ, गांठो का आकार 2-5 सेमी होता है, गांठे मुख्य रूप से चेहरे, गर्दन, थूथन, नासिका, जननांग, आंख की पलकों, गर्दन, थन, पेट और पूंछ में पायी जाती हैं। गांठे गोल उभरी हुई होती हैं।
- रोग का कोर्स पूरा होने के उपरांत गांठे छोटी हो जाती है और कई गांठे झड़ जाती है और शरीर पर अल्सर जैसे घाव बना देती हैं। इन घावों में इन्फेक्शन से मवाद पद जाता है, और मक्खियों के कारण कीड़े भी पड़ सकते हैं।
- मुंह में गांठें विकसित हो जाती हैं, जिससे बहुत अधिक लार, भूख में कमी आ जाती है। नाक से स्राव और फेफड़े की गांठे में बैक्टीरिया संक्रमण के कारण पशु को निमोनिया भी हो सकता हैं।
- पैरों में सूजन आ जाने से पशुओं में लंगड़ापन आ जाता है, और अगर टेंडन क्षतिग्रस्त हो जाय तो लंगड़ापन स्थायी हो सकता है। नर पशुओं में काम करने की क्षमता में कमी।
- गांठदार त्वचा रोग से प्रभावित गर्भवती पशुओं में गर्भपात हो जाता है, दुधारू पशुओं में दूध के उत्पादन में कमी, लंबे समय तक बांझपन, प्रभावित बैल अस्थायी बांझ हो जाते है।
लम्पी स्किन डिजीज का इलाज
एलएसडी एक विषाणु (virus) जनित रोग है इसलिए अभी तक इसका कोई विशिष्ट उपचार संभव नहीं है। परन्तु लक्षणों को कम करने तथा पशु को दर्द और खुजली से आराम देने के लिए शीघ्र पशुचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। दर्द और सूजन निवारक दवाएं, खुजली कम करने हेतु Antihistaminic दवाएं, मल्टीविटामिन, लीवर टॉनिक, और घावों में इन्फेक्शन से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं तथा घावों की साफ़ सफाई ताकि उनमे कीड़े न पड़े बहुत महत्वपूर्ण है।
नियंत्रण उपाय
- गंभीर रूप से प्रभावित पशुओं को अलग करना तथा जिस फार्म में बीमारी आ गयी हो उसको संगरोध (quarantine) करना।
- बीमारी फ़ैलाने वाले मक्खियों, मच्छरों, जूं का उन्मूलन।
- प्रभावित क्षेत्रों से अप्रभावित क्षेत्रों में पशु की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबन्ध।
- प्रभावित क्षेत्रों में मवेशी मेले, शो और पशुधन बाजार जैसे गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
- बीमारीग्रस्त पशु की मृत्यु होने पर उसके शव खुला न छोड़कर गाढ़ देना चाहिए और पूरे प्रक्षेत्र को कीटाणुनाशक दवाओं से साफ़ कर देना चाहिए।
- स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण सबसे प्रभावी नियंत्रण उपाय है, लाइव होमोजेनस वैक्सीन जिसमें नीथलिंग जैसा स्ट्रेन वैक्सीन है। वर्यतमान में यह टीका भारत में उपलब्ध नहीं है।
- भारत में बकरी पॉक्स वैक्सीन (लाइव एटेन्यूसड वायरस वैक्सीन) का उपयोग बीमारी के नियंत्रण के लिए किया जा सकता है, 1 ml s/c परन्तु केवल स्वस्थ पशुओं में ही दिया जा सकता है।
- प्रभावित या संदिग्ध जानवर के उपचार के बाद सुई बदलें।
- पशु की अच्छी देखभाल।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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