गौ माता मातृशक्ति की साक्षात प्रतिमा है। जिस दिन विश्व में गायें नहीं रहेंगी उस दिन विश्व मातृशक्ति से विमुक्त हो जाएगा और उस दशा में कोई भी प्राणी नहीं बचेगा। प्राचीन युग में भारत में जो विबुध- विस्मयकारी वैभव विद्यमान होने की विशद चर्चा पुराने इतिहास में मिलती है उस वैभव का मूलाधार गाएें ही थी। (साभार: कल्याण, गोसेवा अंक(1) वर्ष 69 पृष्ठ संख्या 27)
जनसामान्य के मन में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि अगर गाय दूध उत्पादन नहीं कर रही है तब हम इसे क्यों पाले? लेकिन विश्वास कीजिए, अगर गाय दूध उत्पादन नहीं भी कर रही है तब भी वह हमें और हमारे समाज को एवं वातावरण को इतना कुछ प्रदान करती हैं जो कि अनमोल अर्थात अमूल्य होता है। इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ग्रामीण गोबर धन योजना की शुरुआत वर्ष 2018 से की है। इसके अतिरिक्त गाय के विभिन्न उप – उत्पादों का निर्माण जैसे कि औषधीय उत्पाद, सौंदर्य उत्पाद, ईधन, गोबर गैस, खाद, बैल शक्ति आदि का उत्पादन कर गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस प्रकार से कोई भी निराश्रित गोवंश रोड एवं गलियों में घूमता हुआ नहीं दिखाई देगा। बड़े हाईवे पर निराश्रित गोवंश के बैठने से आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं जिसमें गोवंश सहित मनुष्य को भी दुर्घटनाग्रस्त होना पड़ता है । निराश्रित गोवंश के समुचित प्रबंधन द्वारा उपरोक्त घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है। अनुउत्पादक गोवंश से प्राप्त उप-उत्पादों के विकास एवं उपयोग को बढ़ाना अति आवश्यक है जिससे कि यह गोवंश आर्थिक रूप से जन सामान्य को बोझ ना लगे।
ग्रामीण गोबर धन योजना
इस योजना में गोबर से अनेक उत्पाद जैसे कि गोबर गैस, जैविक खाद, केंचुआ खाद, जीवामृत, गोबर के गमले, गोबर के कंडे, गणेश जी की मूर्ति आदि बनाकर ग्रामीण जीवन में सामाजिक उन्नति, उन्नत खेती, पर्यावरण सुरक्षा एवं महिला शक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु कार्यक्रम तैयार किया गया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्वच्छ ग्रहणी, स्वच्छ ग्राम, स्वच्छ प्रदेश से स्वच्छ भारत का निर्माण करना है। गोबर से उत्पादित बायोगैस ईंधन ऊर्जा के उत्पादन से बिजली की बचत होगी ग्रहणी को धुआं रहित ईधन मिलेगा इससे पेट्रोलियम गैस/ एलपीजी की बचत होगी जिससे कि विदेशी मुद्रा की बचत होगी एवं किसान के साथ-साथ देश समृद्ध बनेगा।
भारतवर्ष में उपलब्ध गौशालाओं का समुचित विकास आज की महती आवश्यकता है । इससे गौशालाओं पर शुद्ध नस्ल की गाय उपलब्ध होंगी एवं आमदनी का जरिया भी उपलब्ध होगा।
औषधीय उत्पादों का निर्माण
जैसे कि गोमूत्रअर्क, गोमूत्र आधारित मधुमेह चूर्ण, कब्ज चूर्ण, पेट,अस्थमा, यकृत हेतु घनवटी, दंतमंजन, जोड़ों के दर्द निवारण हेतु तेल का निर्माण आदि के अतिरिक्त कीटनासी, रोगनाशी, घरों की सफाई हेतु प्रयोग में लाए जा रहे रसायनों, साबुन, गोनाइल आदि बनाने की भी इकाई स्थापित की जा सकती है। गोमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, सोडियम, पोटेशियम, और यूरिया होता है और कुछ परीक्षणों में यह पाया गया है की जिस कृषि भूमि में गोमूत्र एवं गोबर डाला जाता है उस भूमि में उपस्थित जीवाणु सक्रिय होकर फसलों की उत्पादकता को बढ़ाकर उनको नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणुओं पर अंकुश लगा देते हैं। इन गौशालाओं पर गोमूत्र से बनने वाले निम्न उत्पादों की इकाई स्थापित कर लाभ कमाया जा सकता है। गौशालाओं पर गोमूत्र अर्क बनाने की इकाई की स्थापना की जा सकती है।
पूजा सामग्री निर्माण
देसी गाय के मूत्र एवं गोबर का उपयोग करके हवन सामग्री, धूपबत्ती, पंचगव्य आदि का निर्माण देश की कई गौशालाओं पर किया जा रहा है यह आमदनी का एक सशक्त माध्यम है।
ईंधन निर्माण एवं गोबर गैस ऊर्जा
गोबर से बने उपले या कंडो का उपयोग सदियों से ईधन के रूप में हो रहा है आजकल ऑनलाइन भी गोबर से बने उपले/कंडों की खरीदारी हो रही है एवं यह आमदनी का एक जरिया बन सकता है। गोबर गैस प्लांट का निर्माण भी किया जा सकता है एवं इससे उत्पन्न गैस का प्रयोग गौशाला हेतु खाना पकाने एवं रोशनी आदि के लिए किया जा सकता है जिससे गौशाला पर बिजली की बचत होगी उदाहरण श्री माताजी गौशाला बरसाना मथुरा। इसके अतिरिक्त अगर गौशाला पर गायों की संख्या अधिक हो तो अधिक मात्रा में गैस का निर्माण कर उन्हें बेचकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है।
जैविक खाद का निर्माण
गौशाला पर उपलब्ध अपशिष्टो का प्रयोग करके जैविक खाद एवं केंचुआ खाद का निर्माण करके अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। कुछ गौशालाओं पर सींग गोबर एवं मिट्टी का प्रयोग करके सींग खाद का निर्माण किया जा रहा है एवं उचित आमदनी प्राप्त की जा रही है।
बैल शक्ति का उपयोग
भारतवर्ष कृषि प्रधान देश है एवं यहां खेत जोत का आकार ट्रैक्टर से जुताई के अनुकूल नहीं है अत: खेत की जुताई बैलों से ही करना उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त बैल शक्ति आधारित ट्रैक्टर बैल शक्ति आधारित जनरेटर/ बैटरी चार्जर आदि का भी निर्माण किया जा सकता है। बैल शक्ति आधारित रहट का प्रयोग सिंचाई के लिए सुदूर गांवों में प्रयोग किया जा सकता है हालांकि इसमें समय अधिक लगता है लेकिन डीजल आदि की बचत होती है।
गायों के संबंध में महात्मा गांधी जी का यह कथन आज भी सार्वभौमिक एवं प्रासंगिक है-“मैं गाय को संपन्नता और सौभाग्य की जननी मानता हूं। गाय से उत्पन्न होने वाले विभिन्न पदार्थों का उपयोग हमें समझना चाहिए और, समाज के अन्य व्यक्तियों को भी समझाना चाहिए। अगर मेरे हाथ में शक्ति आ जाए तो मैं सबसे पहले देश में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाऊंगा।
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