नर प्रजनन कोशिका (शुक्राणु) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के जननांगो मे प्रत्यारोपित करना कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है। इस तकनीक में वीर्य का कृत्रिम योनी अथवा अन्य तकनीक से संकलन करके प्रयोग मे लाने के समय तक उचित ढंग से सुरक्षित रखकर उसकी गुणवन्ता का परीक्षण के उपरान्त, वैसा ही या तनुकृत करके, ऋतुमयी मादा के गर्भाशय ग्रीवा एंव गर्भाशय मे कृत्रिम तरीके से प्रत्यारोपित किया जाता है।
सफल कृत्रिम गर्भाधान के लिए मादा में ऋतु/गर्मी के लक्ष्णों का उचित समय पर पहचान होना अतिआवश्यक है। पशु के बड़े समूहों के लिए या बड़ी डेयरीयों में इस कार्य हेतु एक व्यक्ति (जो इस कार्य में पारंगत हो) को अलग से यह जिम्मेदारी दी जा सकती है। उचित समय पर ऋतुमयी मादा को पहचानना एवं कुशल कृत्रिम गर्भाधान से उत्तम प्रजनन दर एवं आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। कृत्रिम गर्भाधान के लिये पशुओं में गर्मी के लक्षणों की जानकारी होना आवश्यक है। गाय/ भैंस में गर्मी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं।
- बार-बार रंभाना।
- पुंछ उठाना।
- बार-बार पेशाब करना।
- प्रजनन अंगों में सूजन एवं अधिक रक्त प्रवाह के कारण लाल होना।
- पशु का बेचैन होना।
- दूसरे जानवरों पर चढ़ना।
- प्रजनन अंगों से पारदर्शी, गाढें चिपचिपे द्रव्य का निकलना।
- गर्मी में आने के 10-12 घण्टे के बाद पशु का साँड़ या अन्य पशु को अपने ऊपर चढ़ने देना।
कृत्रिम गर्भाधान से लाभ
- कृत्रिम गर्भाधान प्रजनन कार्य की एक ऐसी पद्धती है जिसके द्वारा पशुओ मे नस्ल सुधार की दिशा मे अपेक्षाकृत शीघ्र परिणाम प्राप्त किये जा सकते है। कृत्रिम गर्भाधान का सबसे बड़ा लाभ उच्च कोटी के साडों द्वारा अधिक संख्या मे उत्तम सन्तति करना है। प्राकृतिक समागम से एक सांड से एक वर्ष में अधिकतम 100 वत्स प्राप्त किए जा सकते हैं। जबकी उतने ही समय मे कृत्रिम गर्भाधान की विधि से 2000 वत्स तक प्राप्त किए जा सकते है। इस प्रकार की विधि अधिक लाभदायक ही नही अपितु उच्च कोटि के सांडो की कमी की समस्या का समाधान भी है।
- कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा सांडो से होने वाले संक्रामक जननेन्द्रिय रोगों के फैलाव को रोका जा सकता हैं।
- उच्च कोटी के सांड जो विभिन्न शारीरिक व्याधीयो या चोटो से पीड़ित होने के कारण प्रजनन कार्य मे उपयोग मे नही लिये जा सकते इस विधी द्वारा प्रजनन हेतु उपयोग मे लाया जा सकता है।
- अच्छी नस्ल के सांडो का वीर्य एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजकर प्रजनन के कार्य मे लाया जा सकता है। यह काफी सस्ता पडता है।
- गरीब किसान जो अच्छा/उच्च कोटी का सांड नही खरीद सकता, है यह तकनीक से उच्च कोटि के हिमीकृत वीर्य का क्रय करके कृत्रिम गर्भाधान के लिये उपयोग कर लाभान्वित हो सकता है।
कृत्रिम गर्भाधान के कुछ अवगुण/हानियाँ जो अच्छे प्रबंधन के द्वारा दूर किए जा सकती है वे इस प्रकार है:
- मादा पशु के मदकाल/ऋतुकाल की पहचान के लिए काफी ज्ञान, परिश्रम एवं समय की आवश्यकता होती है।
- कृत्रिम गर्भाधान की सफलता एंव विफलता इस बात पर निर्भर करती है की वह कितनी निपुणता से किया गया है।
- प्राकृतिक प्रजनन के मुकाबले कृत्रिम गर्भाधान मे अधिक तकनीकी ज्ञान एवं प्रबंधन क्षमता का उपयोग होता है।
- कृत्रिम गर्भाधान मे अगर स्वच्छता का विशेष महत्व है जरा सी भी चूक/त्रुटी होने पर मादा को जननेद्रिय रोग होने की पूरी संभावना रहती है।
- इस विधि के लिए हमें कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियो की आवश्यकता होती है।
कृत्रिम गर्भाधान से उत्तम जनन क्षमता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित बातों का विषेष ध्यान रखना आवश्यक है:
- सावधानीपूर्वक कार्य करे, अत्यधिक बल का प्रयोग न करे।
- गर्भाधान की प्रक्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है, प्रथम चरण में वीर्यवाहक नलिका (केथेटर) को गर्भाशय ग्रीवा तक लाया जाता है एवं द्वितीय चरण में गर्भाशय ग्रीवा को वीर्यवाहक नलिका के ऊपर लाया जाता हैं।
- वीर्य का कुछ भाग गर्भाशय एवं बाकी भाग गर्भाशय ग्रीवा में जमा करें।
- पूर्ण प्रक्रिया के दौरान संयम बरते एवं अपना समय लेते हुए कार्य पूर्ण करें।
- गर्भाधान सही समय पर अर्थात ए.एम.पी.एम नियम अनुसार करे।
कुशलतापूर्वक एवं सही समय पर किया गया गर्भाधान न सिर्फ उच्च प्रजनन दर प्रदान करता है अपितु पशुपालकों को सांड के पालन पोषण में होने वाले खर्च से निजात दिलाकर आर्थिक लाभ भी पहुँचाता है।
1 Trackback / Pingback