उन्नतशील पशुपालन हेतु कुछ मुख्य दिशा निर्देश

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पशुओं में अनु उर्वरता के कारण एवं निवारण

  1. संतुलित पशु आहार पोषक तत्वों की कमी से अनु उर्वरता होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
  2. छुट्टा सांडो के द्वारा प्राकृतिक गर्भाधान कराने से मादा पशुओं में जननांगों का संक्रमण होने की संभावना बनी रहती है जो आगे चलकर अनुउर्वरता/बांझपन का कारण बन सकता है।
  3. अप्रशिक्षित कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता द्वारा गर्भाधान करने के कारण भी अनुउर्वरता/बांझपन की समस्या हो सकती है।
  4. अनु उर्वरता/बांझपन की जानकारी होने पर तत्काल अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से ही उपचार करवाएं।
  5. इसके लिए अपने निकट के पशु चिकित्सालय से संपर्क करें।
  6. उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद द्वारा राज्य पशु प्रजनन नीति तथा पशु प्रजनन तकनीकों के प्रचार प्रसार हेतु अनुउर्वरता/बांझपन निवारण शिविरों के माध्यम से एवं पशुपालन विभाग द्वारा बहुउद्देशीय पशु चिकित्सा शिविरों के माध्यम से दुधारू पशुओं की प्रजनन संबंधी समस्याओं के निवारण के निदान अर्थात पहचान हेतु अनु उर्वरता निवारण शिविरों का आयोजन किया जाता है तथा ग्रामीण क्षेत्र में पशु प्रजनन एवं स्वास्थ्य प्रबंधन के विषय पर जागरूकता हेतु पशुपालक गोष्टीकी जाती है।

कृत्रिम गर्भाधान अपनाना क्यों आवश्यक है?

  1. उच्च गुणवत्ता वाले सांडो का वीर्य कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के गर्भाशय में गर्मी की उचित अवस्था मैं मादा के जनन अंगों मैं उचित स्थान पर यंत्र की सहायता से पहुंचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है।
  2. कृत्रिम गर्भाधान विधि से सामान्य उत्पादन वाले पशुओं से भी उच्च कोटि के बछड़े/बछिया, पड़वा/पडिया प्राप्त किए जा सकते हैं।
  3. कृत्रिम गर्भाधान विधि से मादा पशुओं में प्रजनन संबंधी बीमारियों से बचाव एवं बीमारियों का निदान होता है।
  4. कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा दूरस्थ एवं विदेशी क्षेत्रों में स्थित सांडो के वीर्य से मादा पशु को गर्वित कराया जा सकता है।
  5. कृत्रिम गर्भाधान विधि से पशुओं के नस्ल सुधार में अभूतपूर्व आवश्यक सफलता प्राप्त होती है।
  6. गर्मी में आए हुए मादा पशु को गर्वित कराने हेतु सांडो को तलाश नहीं करना पड़ता और यह सुविधा 24 घंटे उपलब्ध हो सकती है।
  7. कृत्रिम गर्भाधान विधि अपनाने पर उत्पन्न बछिया /पडिया का दुग्ध उत्पादन बढ़ने से पशुपालक की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार आता है।
और देखें :  डेयरी पशुओं में गर्भ की शीघ्र पहचान का महत्व एवं उसकी विधियां

विभिन्न पशुओं में गर्भ काल की अवधि
गाय में 280 दिन भैंस में 310 दिन बकरी में 150 से 155दिन भेड़ में 145 दिन शूकर में 114 दिन, घोड़ी में 341 दिन एवं गधी में 365 दिन गर्व काल की अवधि होती है।

गाय एवं भैंसों की संतति की उचित देखभाल‌
दुग्ध व्यवसाय के लिए यह अति आवश्यक है की अति उत्तम नस्ल के पशुओं का उपयोग डेयरी व्यवसाय हेतु किया जाए जिससे कि जितना दुग्ध है उसका उत्पादन काफी हद तक बढे, क्योंकि हमारे प्रदेश में पशु केवल 700 से 1000 लीटर प्रति बयांत दूध देते हैं तथा जो संकर नस्ल के पशु हैं उनसे दुग्ध उत्पादन तीन से चार गुना अधिक प्राप्त होता है। अतः यह अति आवश्यक है कि नवजात बछड़ो, बछियों, पड़वा, पडियों को असमय मृत्यु से बचाया जाए और उनकी बढ़वार व देखभाल सुचारू रूप से की जाए।

जन्म के पश्चात बच्चे की गर्भनाल को नई ब्लेड से कम से कम 1 सेंटीमीटर दूरी पर काट दिया जाए तथा उस पर टिंक्चर आयोडीन या बीटाडीन का घोल लगा दिया जाए। इसके बाद बच्चों को गुनगुने पानी मैं साफ कपड़े को भिगोकर पोंछना चाहिए तथा एंटीसेप्टिक घोल का प्रयोग करना चाहिए।

नवजात संततियों का रखरखाव

  1. बच्चों को उनकी मां के पास छोड़ देना चाहिए जिससे उनकी मां उन्हें चाट सके तथा धीरे-धीरे बच्चों को खड़े होने पर सहारा भी देती हैं।
  2. जब बच्चा खड़ा हो जाए अब उसे मां का गाढ़ा दूध अर्थात खीश अर्थात कोलोस्ट्रम पिलाना चाहिए। यह दूध बच्चे के शरीर के भार का एक बटे 10 भाग पिलाया जाना अति आवश्यक है जो उसके भविष्य के विकास के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है, जिससे बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।
  3. 1 सप्ताह के अंदर ही बच्चों को पेट के कीड़े की दवा पशु चिकित्सक की सलाह से अवश्य ही दें। तत्पश्चात 6 माह तक प्रत्येक माह पेट के कीड़ों की दवा पशु चिकित्सक की तलाश है अवश्य दें।
  4. शरीर पर बाहय परजीवी होने पर परजीवी नाशक दवा का उपयोग पशुचिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।
  5. नवजात बच्चों को अधिक सर्दी, अधिक गर्मी से विशेष रुप से बचाएं।
और देखें :  दुधारू पशुओं में इस्ट्रस सिंक्रोनाइजेशन की उपयोगिता एवं विधियां

संतुलित पशु आहार

  1. पशुओं के संपूर्ण आहार में चारा व अनाज का वितरण सम्मिलित होता है जो भली-भांति मिश्रित करने के बाद ही पशु को देना चाहिए।
  2. पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन इत्यादि पशु को अवश्य प्राप्त हो सके। इनके आहार में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध फसलों के अवशेष जैसे भूसा एवं पराली/पुआल आदि, कृषि आधारित उद्योगों के सह उत्पाद जैसे खली चोकर चूनी, सीरा आदि का प्रयोग किया जाता है। भूसे और पुआल को यूरिया द्वारा उपचारित करके उसकी पौष्टिकता,प्रोटीन की मात्रा एवं पाचकता को बढ़ाया जा सकता है।
  3. पशुओं की वृद्धि एवं अनु उर्वरता निवारण में खनिज मिश्रण एवं विटामिंस का अत्यंत महत्त्व होता है जिन्हें हरे चारे एवं खनिज लवण मिश्रण के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।

सहजन एक संपूर्ण पशु आहार
बाजार में उपलब्ध पशु आहार प्रमुख रूप से आई एस आई 1 व आई एस आई 2 में वर्गीकृत किए गए हैं जिनमें पशुओं हेतु सभी पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इसी प्रकार वैज्ञानिक शोध द्वारा सहजन को एक संपूर्ण पशु आहार के रूप में मान्यता दी गई है जो ग्रामीण स्तर पर सर्व सुलभ व सर्वोत्तम हो सकता है तथा यह आई एस आई के समान ही पौष्टिक है। पौष्टिकता के साथ-साथ इसमें पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। इसमें अन्य स्रोतों के सापेक्ष पोषक तत्वों का अनुपात निम्न प्रकार है़।

  1. इसकी पत्तियों में प्रोटीन की मात्रा अंडे के समान होती है।
  2. इसकी पत्तियों में लौह तत्व की मात्रा पालक से अधिक होती है।
  3. इसकी पत्तियों में कैल्शियम की मात्रा दूध से अधिक होती है।
और देखें :  पशुपालन एवं डेयरी विभाग हरियाणा द्वारा संचालित पशुपालक हितैषी योजनाएं

सहजन/मोरिंगा ओलीफेरा मैं ड्राई मैटर पर आधारित नमी प्रतिशत अधिकतम 11% होता है। क्रूड प्रोटीन न्यूनतम 25. 81% तथा क्रूड् फैट न्यूनतम 6. 60 % होता है। क्रूड फाइबर अधिकतम 16.46% होता है।

संदर्भ:

  1. उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद द्वारा प्रकाशित पशुपालक संदर्शिका

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