गाय एवं भैंस में ऋतु चक्र/ मदकाल के लक्षणों, की समुचित जानकारी द्वारा सफल गर्भाधान

4.6
(20)
डेरी व्यवसाय में सफल प्रजनन व्यवस्था का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। पशुशाला में उपस्थित वयस्क पशुओं में से अधिकाधिक संख्या  समयानुसार गर्भित होकर सामान्य एवं, स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है तभी दुग्ध उत्पादन का क्रम निरंतर चल सकता है तथा पशुपालक डेयरी व्यवसाय से नियमित आमदनी प्राप्त कर सकता है। वर्तमान परिवेश में दुधारू पशुओं अर्थात गाय और भैंस में प्रजनन संबंधित समस्याएं बढ़ती जा रही हैं जो पशुपालकों के लिए एक विकराल समस्या का रूप धारण कर रही है। क्योंकि पशुओं में प्रजनन क्षमता की कमी से उनके दुग्ध उत्पादन पर प्रत्यक्ष असर पड़ता है। इसके कारण पशुपालकों को बहुत अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ती है अतः यह नितांत आवश्यक है कि पशुपालकों को पशु प्रजनन के संबंध में अत्याधिक जानकारी हो ताकि वे स्वयं अपने स्तर पर इन समस्याओं से बचाव व समाधान कर सकें। प्रत्येक पशुपालक को पशुओं में मदकाल, या गर्मी में आने के सामान्य लक्षणों से परिचित होना नितांत आवश्यक है ताकि वह अपने पशुओं को समय पर गर्भित करवा सकें।
मादा पशुओ में मदकाल के मुख्य लक्षण
  1. गर्मी / मदकाल में गाय या भैंस का जोर-जोर से रंभाना, अर्थात चिल्लाना।
  2. मद काल में आया पशु दूसरे पशुओं पर चढ़ता है या चढ़ने की कोशिश करता है। गर्मी के दौरान गाय होमोसेक्सुअल व्यवहार दर्शाती हैं। जो गाय, गर्मी में होती है उसके ऊपर दूसरी गाय चढ़ती है तथा  गर्मी वाली गाय दूसरी गाय पर चढ़ती है। यह ठीक वैसे ही होता है जैसे एक सांड गर्भाधान के लिए गाय पर चढ़ता है। गर्मी वाली गाय के योनि द्वार को दूसरी गायें, सूंघती हैं।
  3. दुधारू पशु मदकाल के समय दूध कम देता है।
  4. इस अवस्था में पशु अपेक्षाकृत अधिक उत्तेजित रहता है तथा बार-बार पूंछ हिलाता है व अक्सर पूंछ को कुछ ऊपर उठा कर रखता है।
  5. पशु चारा खाना कम कर देता है।
  6. पशु बार-बार मूत्र त्याग करता है।गर्मी की अवस्था में पशु का योनि द्वार सूजा  हुआ या उठा हुआ मिलेगा।
  7. पशु “डोंका” करता है इस स्थिति में पशु के थन दूध उतरने की स्थिति जैसे लगते हैं परंतु इनमें दोहन पर दूध नहीं निकलता है।
  8. योनि से पारदर्शक कांच जैसा  चमकदार, हल्का सफेद रंग का लेस दार सराव निकलता है, जोकि पशु की पूंछ या पिछले हिस्से पर लगा हुआ देखा जा सकता है। गर्मी की विभिन्न अवस्थाओं में म्यूकस डिस्चार्ज की प्रकृति बदलती रहती है जिससे गर्मी का पता लगाने में आसानी रहती है। प्राय: गर्मी की शुरुआत, व गर्मी के बीच के समय में म्यूकस डिस्चार्ज दिखाई देता है परंतु गर्मी के आखिरी समय में डिस्चार्ज बहुत ही कम पशुओं में दिखाई देता है। गर्मी की शुरुआत में  गर्भाशय ग्रीवा की ग्रंथियों से म्यूकस निकलता है। प्रारंभ में यह पतला होता है तथा गर्मी की अवधि बढ़ने के साथ गाढ़ा व रस्सी की तरह , लटकने वाला  तथा बदबू रहित होता है। म्यूकस को माइक्रोस्कोप से देखने पर फरन की तरह दिखाई देता है। स्वस्थ पशु में यह म्यूकस असेप्टिक होता है तथा शुक्राणु को गर्भाशय व इससे आगे फैलोपियन ट्यूब तक ले जाने में मदद करता है।
  9. योनि द्वार की झिल्ली लाल या गुलाबी रंग की दिखाई पड़ती है।
  10. गर्मी की अवस्था में मादा पशु सांड को स्वीकारती है अर्थात सांड के ऊपर चढ़ने पर शांत खड़ी रहती है।
  11. पशु के शारीरिक तापमान में कुछ वृद्धि हो जाती है।
  12. जब स्वस्थ पशु गर्मी में नहीं होता है तो गर्भाशय चिकना नरम लचीला और सामान्य टोन होती है। गर्मी के दौरान रक्त संचार बढ़ने तथा एस्ट्रोजन के असर के कारण टोन बढ़ जाती है। गर्मी के बढ़ने के साथ ही सभी जननांगों में रक्त संचार बढ़ जाता है और टोन बढ़ जाती है। इस दौरान गर्भाशय श्रंग को पल्पेट करने पर, थोड़ा कड़क होने से गर्मी का एहसास होता है। इसी की जांच करने पर हम कहते हैं  गर्भाशय में टोन है। गर्मी की मध्य अवस्था में गर्भाशय में टोन सबसे अधिक होती है। गर्मी के दौरान अंडाशय का आकार भी बढ़ जाता है तथा अंडाे पर विकसित हो रहे ग्राफियन फॉलिकल भी मौजूद रहते हैं।
पशुपालकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यह जरूरी नहीं है कि सभी पशु मदकाल के समय उपरोक्त दिए गए सभी लक्षणों को प्रकट करें। विशेषता भैंसों में गूंगी मदावस्था या साइलेंट हीट विशेष रुप से गर्मियों के महीने में अक्सर पाई जाती है। ऐसी भैंस अन्य पशुओं के समान चिल्लाती/ रंभाती नहीं है। लगभग 80% भैंसे शाम 6:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे की अवधि में मद में आती हैं। इनमें से लगभग 70% भैंसे रात्रि के 12:00 बजे से सुबह 4:00 के मध्य गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करती हैं। अक्सर पशुपालक इस गर्मी को नहीं पहचान पाते और भैंसे गर्भित होने से वंचित रह जाती हैं। ऐसी भैंसों की मदावस्था, की जांच के लिए एक नपुंसक भैंसा अर्थात टीजर बुल का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए गर्मी की रातों में समस्त ऐसी भैंसों को खुले बाड़े में रखकर भैंसा या सांड जिसकी अगली दोनों टांगों और गर्दन के नीचे तेल में घुला हुआ गेरू लगा हो छोड़ देना चाहिए। इससे यह लाभ होगा कि जो पशु गर्मी में होंगे उस पर भैंसा गर्भाधान हेतु चढ़ेगा और उक्त भैंस पर गेरू का रंग लग जाएगा यह इस बात का प्रमाण होगा कि वह भैंस गर्मी में है। जब यह निश्चित हो जाए कि अमुक भैंस गर्मी में है तो यथा समय प्राकृतिक अथवा कृतिम  विधि द्वारा उस पशु का गर्भाधान कराएं।
और देखें :  भैसों में सफ़ेद दाग (ल्यूकोडर्मा)

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

और देखें :  बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में कृत्रिम गर्भाधान प्रशिक्षण का समापन

औसत रेटिंग 4.6 ⭐ (20 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

और देखें :  डेयरी व्यवसाय का महत्त्व

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

1 Trackback / Pingback

  1. epashupalan: Animal Husbandry, Livestock News, Livestock information, eपशुपालन समाचार, पशुपालन की जानकारी

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*