गाभिन पशु का पोषण एवं प्रबंधन

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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का विशेष महत्व है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का योगदान सराहनीय है जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था मे पशुपालन के योगदान को भी निसंदेह प्रभावित किया है। गाय-भैंस पालन में बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है, खास कर गर्भावस्था में खास खयाल रखना होता है, थोड़ी सी लापरवाही से बहुत नुकसान हो सकता है। गर्भधारण से भैंस के ब्याने तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। भैंस में गर्भकाल 310-315 दिन तक का होताहै। गर्भावस्था के अंतिम ३ माह में विशेष देखरेख एवं उचित पोषण रखने से प्रजनन सम्बंधित समस्यायों को कम किया जा सकता है साथ ही साथ दुग्ध उत्पादन भी बढाया जा सकता है l गर्भधारण की पहली पहचान पशु  में मदचक्र का बन्द होना है परन्तु कुछ पशुओ  में शान्त मद होने के कारण सगर्भता का पता ठीक प्रकार से नहीं लग पाता। अत: गर्भाधान के 21 वें दिन के आसपास पशुओ को दोबारा मद में न आना गर्भधारण का संकेत मात्रा है, विश्वसनीय प्रमाण नहीं। अत: किसान भाइयों को चाहिए कि गर्भाधानके दो महीने बाद डाक्टर द्वारा गर्भ जाँच अवश्य करवायें।

गाभिन पशुओ की देखभाल में तीन प्रमुख बातें मुख्य है:

  1. पोषण प्रबन्धन
  2. आवास प्रबन्धन
  3. सामान्य प्रबन्धन

पोषण प्रबन्धन

गाभिन पशुओ की देखभाल का प्रमुख तथ्य यह है कि पशु को अपने जीवन निर्वाह व दूध देने के अतिरिक्त बच्चे के विकास के लिए भी पोषक तत्वों और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में बच्चे की सबसे अधिक विकास होता है, जिसकी पूर्ति के लिए पशु को आठवें, नवें और दसवें महीने में अधिक पोषक आहार देने  की आवश्यकता होती है।

गर्भावस्था के दौरान पशुओं को जो आहार दें, उसमें भरपूर मात्रा में पोषण हो। तीन महीने के बाद बच्चे का कंकालतंत्र  तैयार होने लगता है। उस समय गाय दूध देने की अवस्था में भी होती है इसलिए उनमें कैल्शियम की कमी न होने दें। उन्हें पशु आहार के साथ कैल्शियम की पूरी मात्रा दें। कई ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है कि जिन पशुपालक के पास बहुत सारे गाय-भैंस होते हैं वो ऑक्सीटोसीन इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं और जल्दी-जल्दी दूध निकालते हैं। ये इंजेक्शन गाभिन पशुओं के लिए काफी हानिकारक होता है। इस पर प्रतिबंध के बावजूद कुछ पशुपालक इसका प्रयोग करते हैं। अंतिम तीन महीनो में ही पशु अगले ब्यांत में अच्छा दूध देने के लिये अपना वजन बढ़ाते है तथा पिछले ब्यांत में हुई पोषक तत्वों की कमी को भी पूरा करते है। यदि इस समय अगर पोषण में कुछ कमी रह जाये तो निम्नलिखित परेशानियाँ हो सकती हैं।

  • बछड़ा कमजोर या मृत पैदा हों सकता है।
  • ज्यादा दूध देने वाले पशुओ में प्रसव उपरांत दुग्ध ज्वर भी हो सकता है।
  • पशु फूल दिखा सकती है।
  • जेर का देर से गिरना या रूक भी सकती है।
  • बच्चेदानी में संक्रमण भी हों सकता है तथा ब्यांत का दूध उत्पादन भी काफी घट सकता है।
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गर्भावस्था के समय पशुओ को संतुलित एवं सुपाच्य चारा खिलाना चाहिए। दाने में 40-50 ग्राम खनिज मिश्रण एवम ३० ग्राम लवण अवश्य मिलाना चाहिए।

गर्भावस्था में पशुओं का आहार का एक उदाहरण:

  • हरा चारा – २५ से ३५ कि.ग्रा.
  • सूखा चारा – ५ कि.ग्रा.
  • संतुलित पशु आहार – ३ कि.ग्रा.
  • खली – १ कि.ग्रा.
  • खनिज मिश्रण – ५० ग्राम
  • नमक – ३० ग्राम

 आवास प्रबन्धन  

  • गाभिन पशुओ को गर्भ के  अंतिम दो  महीने के बाद अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • बाड़ा ऐसा होना चाहिए जो वातावरण की खराब परिस्थितियों जैसे अत्याधिक सर्दी, गर्मी और बरसात से पशु को बचा सके और साथ में हवादार भी हो।
  • पशुओ का बाड़ा उबड़-खाबड़ तथा फिसलन वाला नहीं होना चाहिए।
  • बाडे़ में कच्चा फर्श/रेत अवश्य हो एवं सीलन नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ पीने के पानी का प्रबन्ध भी होना चाहिए।

पशुओ में प्रसव से पूर्व के लक्षण

  • प्रसव के 2-3 दिन पहले पशु कुछ सुस्त हो जाता है और दूसरे पशुओं से अलग रहने लगता हैं।
  • पशु आहार लेना कम कर देता हैं।
  • प्रसव से पहले उसके पेट की मांसपेशियों सिकुड़ने या बढ़ने लगती हैं और पशु को पीड़ा शुरु हो जाती है।
  • योनिद्वार में सूजन आ जाती है और योनि से कुछ लसलसा पदार्थ आने लगता है।
  • पशु का अयन सख्त हो जाता है, पशु के कूल्हे की हड्डी वाले हिस्से के पास 2-3 इंच का गड्ढा पड़ जाता है।
  • पशु बार-बार पेशाब करता है।

सामान्य प्रबन्धन 

  • जहां तक हो सके प्रसव के समय पशु के आसपास किसी प्रकार का शोर नहीं होने देना चाहिए और न ही पशु के पास अनावश्यक किसी को जाने दीजिए।
  • अगर दुधारू हो तो ब्याने के दो महीने पहले उसका दूध सुखा देना बहुत जरूरी होता है। ऐसा न करने पर अगले ब्यांत का उत्पादन काफी घट सकता है तथा पशु कमजोर हों जाता है।
  • गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पशुओ का लंबी दुरी के परिवहन को रेल या ट्रक से टालना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे लम्बी दूरी तक पैदल भी नहीं चलाना चाहिए।
  • पशु को उबड़ खाबड़ जगह व गहरे तालाब में भी नहीं ले जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे दानी में बल पड़ सकता है। लेकिन इस अवस्था में प्रतिदिन हल्का व्यायाम पशु के लिए लाभदायक होता है। गाभिन पशु  को ऐसे पशुओं से दूर रखना चाहिए जिनका गर्भपात हुआ हो जिससे संक्रमण फैलने से बचा जा सकता है।
  • पशु के गर्भधारण की तिथि व उसके अनुसार प्रसव की अनुमानित तिथि को घर के कैलेण्डर या डायरी में प्रमुखता से लिख कर रखें गाय में गर्भावस्था लगभग २८२ दिन भैंस में यह ३१० की  होती है इसके अनुसार किसान भाई पशु के ब्याने के समय का पूर्वानुमान लगाकर पशु का ध्यान रख सकता हैl
  • जल थैली दिखने के एक घंटे बाद तक यदि बच्चा बाहर न आए तो बच्चे को निकलने में पशु की सहायता के लिए अनुभवी और योग्य पशु चिकित्सक की मदद लें।
  • प्रसव के बाद जेर गिरने का पूरा ध्यान रखिये और जब तक यह गिर न जाये भैंस को खाने को कुछ मत दीजिए। सामान्यतः जेर निष्कासन में 6 से 8 घंटे का समय लगता हैं जेर न गिरने पर पशु चिकित्सक की सहायता लीजिए।
  • बच्चे के बाहर आ जाने पर उसे माँ द्वारा चाटने दीजिए ताकि वह सूख जाये।आवश्यकता हो तो बच्चे को साफ ओर नरम तौलिए या कपडे़ से रगड़ कर पोंछ दीजिए ताकि उसके शरीर पर लगा सारा श्लेष्मा साफ हो जाये ओर उसका रक्त संचार भी अच्छा हो जाये l
  • गाभिन पशु को उचित मात्रा में सूर्य की रोशनी एवं शुद्ध वायु मिल सके इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। सूर्य की रोशनी से पशु  के शरीर में विटामिन डी 3 बनता है जो कैल्शियम के उपापचयन  में सहायक है जिससे पशु को बयाने के उपरांत दुग्ध ज्वर से बचाया जा सकता है। गर्भावस्था के अंतिम माह में पशु विटामिन ई व सिलेनियम का टिका प्रसव उपरांत होने वाली कठिनाईयों जैसे की जेर का न गिरना इत्यादि में लाभदायक होता है। कुछ किसान भाई भैंस को कैल्शियम की दवा पिलाते है जोकि काफी महँगी होती है इसकी जगह प्रतिदिन या सप्ताह में तीन से चार बार पानी के साथ 5 से 10 ग्राम चूना मिलाकर दिया जा सकता है।
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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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