यह मुख्य रूप से गाय व सूअरों अब तो एवं कुत्तों में जीवाणु जनित रोग है इसके अतिरिक्त मनुष्यों में भी पाया जाने वाला संक्रामक रोग है। जंगली पशु तथा भेड़ इससे बहुत कम प्रभावित होते हैं। इसमें मुख्य रूप से जबड़े व सिर की हड्डियां ओस्टियोमाइलाइटिस के कारण बढ़ जाती हैं। कभी-कभी यह शरीर के अन्य भागों में भी फैलता है जैसे मुंह, ग्रासनली, लिंफ नोड, लार ग्रंथियां, त्वचा, ह्रदय,जीभ व अन्य सॉफ्ट टिशु भी प्रभावित हो सकते हैं।
कारण: एक्टीनोमायकॉसिस बोविस जीवाणु
यह मुख्य रूप से 2 से 5 वर्ष के पशुओं में अधिक होता है। सामान्य रूप से यह जीवाणु पशुओं के मुंह और स्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं। मुंह में मोटा सख्त चारा चबाने से यह अंदर घावों के द्वारा गहरे चले जाते हैं। अंत में जबड़े व सिर की हड्डी में पहुंचकर सूजन व मवाद उत्पन्न करते हैं। इससे पशु को आहार चबाने में कठिनाई होती है। इस प्रकार आहार नाल के अगले भागों तक पर्याप्त मात्रा में आवश्यक पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते हैं।
लक्षण: रोग के लक्षण बहुत बाद में प्रकट होते हैं। संक्रमण होने के 6 से 18 माह बाद ही जबड़े में कठोर सूजन उत्पन्न होती है। प्रारंभ में सूजन में दर्द नहीं होता है। जबड़े की हड्डी अंदर से सड़ जाने से मवाद बन जाती है तथा एक फिस्टुला बन कर जबड़े की त्वचा से सल्फर के दानों जैसी मवाद बाहर निकलती है। इसी अवस्था में मुंह के अंदर दांत भी ढीले पड़ जाते हैं या कुछ टूट कर गिर भी सकते हैं। मुंह से बदबू आती है। जबड़े में सूजन, मवाद, दांत ढीले होना या टूट जाने से पशुओं को चारा दाना चबाने में कठिनाई होती है। पशु भूखा रहता है तथा लार अधिक गिरती है। इसी अवस्था में कान व गर्दन के आसपास भी कठोर फोड़े या मवाद के घाव बन सकते हैं। नाक के मार्ग में भी सूजन हो जाने से सांस लेने में कष्ट होता है। घोड़ों में फिशचुलस बिदर तथा पोल इविल हो जाता है जिसमे गर्दन के ऊपर मवाद बन जाती है।
निदान: लक्षणों के आधार पर जबड़े की हड्डियों में धीरे-धीरे कठोर सूजन बढ़ना और बाद में वहां से सल्फर के दानों जैसी मवाद निकलना और ग्राम पॉजिटिव फिलामेंट्स तथा रोड के रूप में मिलना इस रोग की पुष्टि करता है। मवाद मैं जीवाणु, की जांच द्वारा इस रोग का एक्टिनोबाकिलोसिस एवं बोटरिओमाइकोसिस से डिफरेंशियल डायग्नोसिस करना चाहिए।
उपचार
- यदि रोग की शुरुआत में ही उपचार किया जाए तो इस बीमारी पर जीत हासिल की जा सकती है वरना हड्डी की सूजन बड़ी होने पर कोई प्रभावी उपचार नहीं है। क्योंकि ज्यादा समय होने पर अंदर के संक्रमण को पूरी तरह समाप्त करना असंभव हो जाता है।
- रोग की शुरूआत में जब सूजन बहुत कम हो तब आयोडीन और सल्फर देकर रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त स्स्ट्रिपटोमाइसिन या स्ट्रिपटो पेनिसिलिन 5 ग्राम का इंजेक्शन कम से 3से 5 दिन के लिए देना चाहिए।
- पोटेशियम या सोडियम आयोडेट 15 से 30 ग्राम 200 से 300 मिलीलीटर आसुत जल में घोलकर अंतः सिरा सूची वेध, द्वारा देना चाहिए ।
- यदि सूजन छोटी है तो प्रारंभ में ऑपरेशन द्वारा भी निकाला जा सकता है।
- बाद की अवस्था में जब सूजन बड़ी हो एवं फिस्टुला के रास्ते मवाद बाहर आ रही हो तो ऐसी स्थिति में फोड़े को अंदर से क्यूरेटर द्वारा अच्छी तरह साफ करके टिंचर आयोडीन का गाज दबाना चाहिए।
- पूरे उपचार के बावजूद पशु पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाता है। इसलिए इस रोग की रोकथाम के उपायों पर अधिक बल देना आवश्यक है।
रोकथाम/ नियंत्रण
- इस रोग से बचाव हेतु अभी तक कोई वैक्सीन विकसित नहीं हुआ है।
- पशुशाला एवं आसपास के वातावरण में सफाई रखें।
- मुंह में घाव पैदा करने वाला सख्त चारा पशु को नहीं खिलाए।
- रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
नोट: जीवाणु जन्य, रोगों के निदान बचाव तथा चिकित्सा हेतु नजदीकी पशु चिकित्सा अधिकारी से परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक है।
संदर्भ: वेटनरी प्रीवेंटिव मेडिसिन द्वारा अमलेद्रु चक्रवर्ती
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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