ब्याने के बाद हीमोग्लोबिनुरिया/ लाल पानी/ लहूमूतना एक खतरनाक बीमारी

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स्वस्थ व अधिक दूध देने वाली गायों एवं भैंसों मे हिमोग्लोबिनुरिया एक प्रमुख रोग है जिसे हाइपोफॉसफेटीमिया भी कहते हैं। यह एक उपापचयी रोग है जिसमें रक्त का हीमोग्लोबिन अधिक टूट जाने व नष्ट होने से वह गुर्दे के रास्ते से मूत्र में आ जाता है। हीमोग्लोबिन के अधिक मात्रा के नुकसान से रक्ताल्पता हो जाती है। प्रायः यह दुधारू गायों एवं भैंसों के बच्चा देने के बाद 2 से 4 सप्ताह के दौरान हो सकता है। भारत में यह रोग भैसों में अधिक पाया जाता है, जिसे आम भाषा में “लहू मूतना” कहते हैं। इस रोग में ब्याने के बाद यकायक हिमोग्लोबिन की अत्याधिक कमी से समय पर उचित उपचार नहीं मिलने के कारण अधिकतर भैंसों की मृत्यु हो जाती है।

कारण

ब्याने के बाद हिमोग्लोबिनुरिया शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी के कारण होता है तथा फास्फोरस की कमी निम्न कारणों से होती है:

  1. बंदगोभी, शलजम, अल्फाल्फा जैसे आहार को अधिक खिलाने से। परंतु पशु के आहार में ऐसा भाग विदेशों में ही अधिक दिया जाता है। इसलिए प्राय: भारतीय परिस्थितियों में हीमोग्लोबिनुरिया का यह कारण कम होता है।
  2. जिस क्षेत्र की मिट्टी में फास्फोरस की कमी होती है वहां के चारे में भी इसकी कमी होगी और अंततः पशु के शरीर में भी कमी होगी। भारत में पशुओं में हिमोग्लोबिनुरिया का यही प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त बार-बार अकाल पड़ने से भी चारे में फास्फोरस की कमी हो जाती है।
  3. ब्याने के बाद कोलोस्ट्रम अर्थात खीस व दूध के साथ काफी मात्रा में फास्फोरस बाहर निकल जाता है जिससे शरीर में फास्फोरस की कमी हो जाती है।
  4. रक्त में लाल रुधिर कणिकाओं के साथ हीमोग्लोबिन होता है तथा लाल रुधिर कणिकाओं की उपरी झिल्ली फास्फोलिपिड की बनी होती है। रक्त में फास्फोरस की कमी से लाल रुधिर कणिकाएं टूटने लगती हैं और इसमें मौजूद हिमोग्लोबिन स्वतंत्र होकर रक्त संचरण के जरिए गुर्दे के रास्ते मूत्र के साथ बाहर निकलता है।
  5. बंदगोभी, शलजम जैसे खाद्य वस्तुओं से विशेष प्रकार के टॉक्सिंस निकलते हैं जो रक्त कणिकाओं को नष्ट करते हैं और हिमोग्लोबिन स्वतंत्र होकर बाहर निकल जाता है।
  6. नाइट्रेट विषाक्तता में भी लाल रक्त कणिकाओं के टूटने से हिमोग्लोबिनुरिया होता है।
  7. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि फास्फोरस के अतिरिक्त कॉपर की कमी से भी लाल रक्त कणिकाएं टूटती हैं तथा हीमोग्लोबिनुरिया होता है लेकिन यह पूरी तरह मान्य नहीं है क्योंकि कई बार हीमोग्लोबिनुरिया रोगी के रक्त में कापर सामान्य, मात्रा में पाया जाता है।

लक्षण

  1. ब्याने के बाद 2 से 4 माह के दौरान अचानक मूत्र का रंग लाल हो जाता है।
  2. कम भूख लगना काफी सुस्त निढाल सा हो जाना कमजोरी एवं जुगाली बंद होना।
  3. हिमोग्लोबिनुरिया अर्थात मूत्र में हीमोग्लोबिन आने से मूत्र का रंग हल्का भूरा या लाल हो जाता है।
  4. हल्का भूरा मूत्र का मतलब हल्का हीमोग्लोबिनुरिया परंतु गहरा लाल या काफी रंग का मूत्र गंभीर हिमोग्लोबिनुरिया को इंगित करता है।
  5. दूध में अचानक भारी गिरावट। हालांकि कुछ पशु लाल मूत्र आने के बाद भी 1 दिन तक सामान्य रूप से खाते भी हैं और दूध भी देते हैं। दूध हल्का पीला या लाल हो सकता है।
  6. शरीर का तापमान लगभग सामान्य रहता है लेकिन कम या बढ़ भी सकता है।
  7. शरीर में अचानक पानी की भारी कमी हो जाती है जिसे निर्जलीकरण/ डिहाइड्रेशन कहते हैं।
  8. म्यूकस मेंब्रेन – हिमोग्लोबिन के अधिक नुकसान से रक्ताल्पता से म्यूकस मेंब्रेन हल्की पीली या मटमैली सफेद हो जाती है,। बाद में पीलिया हो जाता है।
  9. सांस की गति – एनीमिक इनॉक्सिया – हीमोग्लोबिन की कमी से शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है इसलिए सांस तेज हो जाती है। हृदय गति भी काफी तेज हो जाती है तथा तेज आवाज सुनाई देती है।
  10. निर्जलीकरण व कब्ज के कारण गोबर कम मात्रा में व मींगनी के रूप में आता है।
  11. शरीर के आखरी छोर जैसे कान, पूछ, पैर, थन ठंडे पड़ जाते हैं। कभी-कभी इनका गैंग्रीन हो जाने से इन अंगों के आखिरी छोर उखड़ जाते हैं।
  12. पूंछ आधार से ऊपर उठी हुई रहती है।
  13. पशु की मृत्यु एनोक्सिक एनोक्सिया के कारण 3 से 5 दिन में हो जाती है। कुछ पशुओं में इससे पहले भी मृत्यु हो सकती है। हल्के हिमोग्लोबिनुरिया में जो इस से बच जाते हैं उनमें एसीटोनीमियां व  पाईका रोग हो जाता है तथा पशु 2 से 3 सप्ताह में वापस सामान्य हो जाते हैं।
  14. रक्त में सामान्य फास्फोरस का स्तर 4 से 6 मिलीग्राम प्रति 100ml होता है जबकि गंभीर हिमोग्लोबिनुरिया में यह घटकर 0.5 से 1.5 मिलीग्राम प्रति 100 एम एल हो जाता है।
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निदान

  1. इतिहास- गर्भावस्था या ब्याने के बाद हिमोग्लोबिनुरिया  होता है। हिमोग्लोबिनुरिया, रक्ताल्पता, पीलिया एवं निर्जलीकरण के लक्षण पाए जाते हैं।
  2. रक्त में फास्फोरस के स्तर को मालूम कर फास्फोरस थेरेपी का रिस्पांस देखने से।
  3. हिमोग्लोबिनुरिया को लैपटोस्पायरोसिस, बबेसियोसिस, अनाप्लास्मोसिस तथा बेसिलेरी हिमोग्लोबिनुरिया से तुलना कर सही निदान करना चाहिए।
  4. फील्ड की स्थिति में दुधारू पशुओं में लाल रंग का मूत्र देखते ही निदान में अक्सर गलती होती है। यानी बबेसियोसिस, ब्याने के बाद हीमोग्लोबिनुरिया अनाप्लास्मोसिस आदि में अक्सर भ्रम हो जाता है और पशु को सही समय पर सही उपचार नहीं मिलने से मृत्यु हो जाती है। हिमोग्लोबिनुरिया या लाल पेशाब कई रोगों में होता है इसलिए खास लक्षणों के आधार पर ही निदान करें।

बबेसियोसिस

पशु के शरीर पर कलीली अर्थात टिक्स का होना अचानक तेज बुखार, पीलिया गर्भपात, हिमोग्लोबिनुरिया। रक्त की स्लाइड में बबेसिया पैरासाइट की मौजूदगी रोग का कोर्स 2 से 3 सप्ताह। डीमीनाजीन एसीटुरेट से पशु ठीक हो जाता है, क्योंकि यह रोग एक रक्त परजीवी बबेसिया के कारण होता है।

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ब्याने के बाद हिमोग्लोबिनुरिया

यह रोग अक्सर पशु के ब्याने के 2 से 4 सप्ताह में रोग होता है। पशु को बुखार नहीं होता है। दूध में भारी कमी, गंभीर निर्जलीकरण तथा रक्ताल्पता। फास्फोरस उपचार से पशु ठीक हो जाता है क्योंकि यह फास्फोरस की कमी के कारण होता है।

बेसिलरी हिमोग्लोबिनुरिया

अचानक तेज बुखार, पेट दर्द, दूध का रंग सामान्य, गंभीर हीमोग्लोबिनुरिया 2 से 4 दिन मैं अधिकतर पशुओं की मृत्यु हो जाती है। रक्त की जांच में क्लॉस्ट्रीडियम हिमॉलिटिकम जीवाणु मौजूद होते हैं क्योंकि यह एक जीवाणु जनित रोग है।

एनाप्लास्मोसिस

यह एक रिकेट्सिया परजीवी रोग है जो एनाप्लाज्मा मार्जिनेल के कारण होता है, यह लाल रक्त कणिकाओं पर हमला करते हैं। यह गर्मी के दिनों में प्राय: वयस्क पशुओं में अधिक होता है। रक्ताल्पता और पीलिया तो होता है परंतु हीमोग्लोबिनुरिया नहीं होता है। रक्त की जांच में ऐनाप्लाज्मा की उपस्थिति दिखाई देती है।

थिलेरियोसिस

इसके लक्षण एनाप्लास्मोसिस जैसे ही होते हैं जैसे एनीमिया परंतु हिमोग्लोबिनुरिया नहीं होता है। फीमर व स्कैपुला के पास, की लिंफ ग्रंथियों मैं भारी सूजन होती है। अक्सर कम उम्र के पशुओं में यह रोग अधिक होता है।

लेप्टोसपाइसिरोसिस

सभी उम्र के पशु रोग ग्रस्त हो सकते हैं। अचानक तेज बुखार, रक्ताल्पता, हीमोग्लोबिनुरिया कम मात्रा में व लाल रंग का दूध आना, गर्भपात, रक्त व मूत्र में लैपटॉस्पायरा जीवाणु की उपस्थिति समय पर उचित उपचार न मिलने की दशा में पशु की 1 से 2 दिन में मृत्यु हो जाती है।

उपचार

  • समय से सही निदान करके शीघ्र ही उचित उपचार देना चाहिए अन्यथा देरी होने पर हीमोग्लोबिन की काफी मात्रा की कमी तथा रक्ताल्पता से पशु को मौत से बचाना मुश्किल हो जाता है। मात्र 12 घंटे की देरी से ही गंभीर अवस्था हो जाती है।
  • ब्लड ट्रांसफ्यूजन यदि संभव हो सके तो एक औसत 450 किलोग्राम वजन की  गाय -भैंस को लगभग 5 लीटर तक ब्लड ट्रांसफ्यूजन करें।
  • सोडियम एसिड फास्फेट ब्याने के बाद होने वाला हीमोग्लोबिनुरिया फास्फोरस की कमी के कारण ही होता है इसलिए इसमें फास्फोरस थेरेपी से उपचार सफल होता है। पहले दिन 80 ग्राम सोडियम फास्फेट इंजेक्शन या पाउडर को 400 एमएल आसुत जल अथवा नॉरमल सलाइन मैं घोलकर धीमी गति से इंट्रावेनस दें तथा इतनी ही मात्रा सबक्यूटेनियस विधि से दें। हर 12 घंटे बाद इतनी ही मात्रा में सोडियम एसिड फास्फेट सबकुटेनियस दें। यदि संभव हो तो 3 दिन तक मुंह से भी सोडियम एसिड फास्फेट खिलाए। कैल्शियम और फास्फोरस की पूर्ति के लिए आहार में बोनमील 120 ग्राम दिन में दो बार या अन्य स्रोत से 5 दिन तक दें।
  • इंजेक्शन टोनोफास्फेन फास्फोरस की कमी दूर करने के लिए भी दे सकते हैं। मात्रा 10 से 15 एम एल इंट्रा मस्कुलर प्रतिदिन 3 से 5 दिन तक।
  • कॉपर, कोबाल्ट व आयरन युक्त इंजेक्शन या सीरप दें जो वापस हिमोग्लोबिन की पूर्ति कर सकें।
  • लिवर एक्सट्रैक्ट इंजेक्शन या पाउडर के रूप में दें।
  • ब्याने के बाद हिमोग्लोबिनुरिया के साथ अक्सर एसीटोनीमियां /कीटोसिस भी हो जाता है, इसके लिए समुचित उपचार करें।
और देखें :  पशु स्वास्थ्य एवं रोगी पशु के लक्षण तथा उनका प्रबन्ध

संदर्भ

  1. टेक्स्ट बुक ऑफ क्लीनिकल वेटरनरी मेडिसिन द्वारा अमलेंदु चक्रवर्ती
  2. द मर्क वेटनरी मैनुअल 11वां संस्करण
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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