मादा पशुओं में गर्भकाल के सातवें से नौवें महीने में प्रायः योनि का कुछ भाग उलटकर बाहर आ जाता है। कभी-कभी मादा पशु के अत्यधिक जोर लगाने के कारण प्रसव के बाद भी यह स्थिति दिखाई पड़ती है।
कारण: इसके प्रमुख कारण निम्न हैं:
- गर्भकाल में मादा पशु का अत्यधिक दुर्बल होना
- मादा पशुओं में कैल्शियम की कमी
- उदर का अत्यधिक भरा होना
- योनि के लिगामेन्टस के कमजोर हो जाने के कारण तथा
- गर्भावस्था में पीछे की ओर अधिक ढालू तथा फर्श नीचा होना
अगर यह स्थिति प्रसव के बाद पायी जाती है तो इसका कारण जेर का अधिक देर तक रुकना, योनि में प्रसव के समय जख्म का होना तथा गर्भाशय में होने वाला अनियमित संकुचन है।
उपचार: सर्वप्रथम मादा पशु में 2 प्रतिशत जाइलोकेन का ऐपीडयरल ऐनेस्थीसिया का इंजेक्शन लागाना चाहिए। इसके बाद बाहर निकले हुए भाग को जीवनुनाशक घोल से साफ कर उस पर एंटीसेप्टिक लोशन अथवा मरहम लगाना चाहिए। इसके बाद हाथ से धीरे-धीरे ढकेल कर बन्द मुट्ठी की सहायता से उसे अन्दर बैठा देना चाहिए। प्रभावित मादा पशु को दर्द निवारक तथा एन्टीबायोटिक का पूरा कोर्स देना चाहिए। मादा पशु के अत्याधिक जोर लगाने पर सिक्विील की 3-5 मिलीलीटर मात्रा मांस मे देना लाभदायक होता है। प्रभावित मादा पशु को कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट तथा डेक्सट्रोज शिरा में चढ़ाना लाभदायक होता है।
बचाव: प्रसव से पूर्व गर्भावस्था में इसकी रोकथाम की जा सकती है। योनि में किसी प्रकार की चोट अथवा खरोच लगने पर उसे कीटाणुनाशक घोल से साफकर मलहम लगाना चाहिए। पशु के बैठने के स्थान को पीछे की तरफ कुछ ऊॅचा तथा आगे की तरफ कुछ नीचा रखना चाहिए। प्रभावित पशु को थोड़ा-थोड़ा चारा कई बार में खिलाना चाहिए जिससे पशु का पेट गर्भ पर दबाव न डाले।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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