पशुओं के नवजात बच्चों का प्रबंधन

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गर्भाशय में बच्चा पूरी तरह से मां पर निर्भर रहता है और मां से ही संपूर्ण पोषण मिलता है लेकिन जन्म के बाद खुले वातावरण में आने के बाद उसकी आवश्यकता, अधिक हो जाती है। जन्म के समय गर्भनाल के टूट जाने से मां व बच्चे का जुड़ाव भी टूट जाता है जिसके जरिए वह ऑक्सीजन व पोषण प्राप्त करता था। कुछ नवजात बच्चों में तो जन्म के बाद फेफड़े पूरी तरह से काम नहीं कर पाते हैं और सांस लेने में दिक्कत आती है। ऐसा अधिकतर कठिन प्रसव के बाद होता है। कठिन प्रसव के समय, बच्चे के अधिक समय तक फंसे रहने से ऐसी समस्या अधिक होती है ऐसे में कृत्रिम श्वास देना चाहिए।

  1. जन्म के बाद नवजात बच्चे सामान्य पोषण करने  के लिए, जन्म के तत्काल बाद बछड़े बछिया की नाक और उसका मुंह साफ करें। बच्चे को साफ घास या बोरी पर ढलान में रखें  ताकि सिर नीचे रहे।
  2. यदि सांस लेने में तकलीफ हो तो नवजात बछड़े बछिया की पसलियों को दबाकर धीरे-धीरे मालिश करें जिससे उसे सांस लेने में आसानी रहे। इसके लिए जीभ को पकड़कर आगे पीछे हिला कर भी सहायता कर सकते हैं  इसके उपरांत भी यदि हालत गंभीर हो तो अंत:शिरा सूची वेध विधि से, एड्रीनलीन या कोरामिन इंजेक्शन लगाएं। जब ब्याने के समय बच्चा बाहर निकालने में दिक्कत आती है और अधिक समय तक योनि मार्ग या गर्भाशय में, फंसा रहता है तो इससे प्लेसेंटा को रक्त सप्लाई में मुश्किल होती है और ऐसे बछड़ों को जन्म के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है और कुछ बच्चे तो मर भी जाते हैं। यदि 2 से 3 मिनट में स्वयं सांस लेना शुरू नहीं करता है तो बच्चे के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। यदि प्रसव सामान्य होता है तो जन्म के बाद 30 सेकंड में नवजात बच्चा स्वत: ही सांस लेना, शुरू कर देता है कभी-कभी सिर तथा गर्दन तक का भाग बाहर आ जाता है और फिर बाकी भाग आने में देरी होती है तो पूरी तरह बाहर आने से पहले ही स्वसन शुरू हो जाता है। नवजात बछड़े की जन्म के तुरंत बाद बछड़ा सबसे पहले एक गहरी सांस लेता है जिससे काफी हवा अंदर जाती है और फेफड़े सक्रिय होते हैं। जब बछड़ा पहली सांस ले लेवे तो, पसलियों के स्थान पर 5 से 10 बार हथेलियों से दबाए  ताकि फेफड़ों में आवश्यकतानुसार हवा चली जाए  और फेफड़े काम करना शुरू कर दें। बच्चे के जिंदा रहने की संभावना तभी ज्यादा रहती हैं जब वह जल्दी से जल्दी खुद ही स्वसन शुरू कर दें। जो भी नवजात पैदा हो उसके नाक का रास्ता साफ करें और नाक में से म्यूकस या जेर का कोई भाग हो तो साफ करें। इसके लिए एक सिरिंज से नाक में जमा तरल या म्यूकस खींच कर रास्ता साफ करें ताकि शीघ्र सामान्य श्वसन शुरू हो सके। यदि हो सके तो पिछले पैरों को पकड़कर कुछ क्षण के लिए ऊंचा कर ले या पिछले भाग को ऊंचा उठा ले ताकि नाक में जमा म्यूकस बाहर आ सके। ऐसा कहा जाता है कि नवजात बछड़े की स्वास्थ्य देखभाल जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है। अर्थात गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण व रखरखाव से बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान खास तौर से आखरी 3 महीनों में गाय या भैंस को पौष्टिक आहार देना चाहिए। एक स्वस्थ और अच्छे वजन के बच्चे को जन्म के बाद कम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जबकि कमजोर बच्चे अधिक रोग ग्रस्त होते हैं तथा अधिक मृत्यु दर होती है।
  3. पैदा होने के तुरंत बाद  बछड़े के नाक और मुंह साफ करें  फिर बछड़े बछिया के पूरे शरीर को अच्छी तरह सूखी तोलिया से साफ करें। इससे बछड़े में रक्त का संचार होता है और स्फूर्ति आती है।
  4. मुंह में दो उंगलियां डालें और उन्हें उसकी जीभ पर रखे जिससे म्यूकस बाहर आ सके।
  5. जन्म के बाद  गर्भनाल यदि अपने आप नहीं टूटती है  तो  गर्भनाल को 2 इंच की दूरी पर धागे के साथ बांध दे। बची हुई नाल को साफ कैंची या नई ब्लेड से काटकर उस पर टिंक्चर आयोडीन लगाएं जिससे कि नाल में संक्रमण को रोका जा सके। किसी भी प्रजाति में  जन्म के समय  खिंचाव से गरभनाल टूट जाती है, और लगभग  2 इंच भाग लटका रहता है । यदि गर्भनाल नहीं टूटती है तो नई ब्लेड या चाकू या कैंची से काट लें और एंटीसेप्टिक लोशन या ट्यूब सप्ताह भर तक प्रतिदिन लगाएं । घोड़ी के नवजात में  ऐसा करने पर  टिटनेस एंटी टॉकसाइड इंजेक्शन अवश्य लगवाएं। सर्दी गर्मी से बच्चे का बचाव करें।
  6. जन्म के समय आधे घंटे के भीतर नवजात  पशु को खींस पिलाएं। खींस की मात्रा बच्चे के वजन के एक बटे 10 भाग के बराबर होनी चाहिए। बच्चे को प्रतिदिन मां का पहला दूध या खीस हर 6 घंटे बाद पिलाएं ।  खीस, मैं  इम्यूनोग्लोबुलीन अधिक मात्रा में होते हैं  जो की बच्चे में रोग प्रतिरोधक  क्षमता  विकसित करते हैं । इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन ए भी अधिक मात्रा में होता है जोकि बछड़े की वृद्धि के लिए जरूरी है। जिसके कारण बछड़े का पहला गोबर अर्थात मूकोनियम भी आसानी से बाहर निकल जाता है। यदि गाय का कोलोस्ट्रम नहीं निकल रहा है तो दूसरी गाय या भैंस का फ्रोजन कोलोस्ट्रम दें। यदि यह भी नहीं प्राप्त हो तो निम्न फार्मूले के अनुसार बच्चे का पोषण करें।
    दूध 1 लीटर, एक अंडे का योक भाग,अरंडी का तेल आधा चम्मच या लिक्विड पैराफिन एवं टेरामाइसिन  पाउडर आधा ग्राम, आपस में मिश्रित कर बच्चे को पिलाएं।
  7. जन्म के तुरंत बाद मां अपने नवजात बछड़े को पूरी तरह से अपनी खुरदरी जीभ से चाटती है जिससे नवजात की त्वचा का रक्त संचार तेज होता है। गाय बच्चे को चाट कर बछड़े की त्वचा पर चिपका सारा म्यूकस साफ कर देती है और बछड़ा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता है और मां के थन को ढूंढता है।
  8. बछड़ा बछिया के उचित विकास हेतु उन्हें कम से कम 2 माह की उम्र तक दूध पिलाना चाहिए।
  9. 21 वे दिन तक कृर्मीनाशक दवा अवश्य  दे  दे। उसके उपरांत 6 से 8 माह तक महीने में एक बार पेट के कीड़े की दवा अवश्य दें।
  10. बछड़ा या बछिया जैसे ही 1 महीने का हो जाए उसे कोमल घास और 100 ग्राम शिशु आहार प्रतिदिन देना चाहिए। 4 महीने की आयु होने पर और चिकित्सक से संपर्क करके आवश्यक टीके लगवाएं। नवजात बछड़े  बछियों को सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए।
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नवजात बछड़े एवं बछियों को खीस पिलाने से लाभ।

  1. नवजात बछड़े /बछियों में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत कम होती है। भैंस के बच्चे में यह क्षमता और भी कम होती है।
  2. खींस पिलाना मां से ऐसी रोग प्रतिरोधक क्षमता बच्चे में पहुंचाने का प्राकृतिक तरीका है। खीस नवजात पशु को प्रकृति द्वारा दिया गया एक अमूल्य उपहार है। इसमें, इम्यूनोग्लोबुलीन के अतिरिक्त अन्य पोषक तत्व होते हैं जैसे दूध से 4 से 5 गुना प्रोटीन 10 गुना विटामिन ए और प्रचुर खनिज तत्व।
  3. यह हल्का दस्तावर होता है जिससे आंतों का गंदा मल साफ, हो जाता है ।
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नवजात बच्चों के रोग

नवजात बछड़े में सूंणी का पकना, काफ डिप्थीरिया सफेद दस्त, तथा अफारा आदि होने की संभावना रहती है इसलिए इससे बचाव की सावधानियां रखें।

नवजात बच्चों की मृत्यु के कारण

  1. अधिकांश बच्चों की मौत पाचन तंत्र की समस्या के कारण होती है तथा इससे कम मृत्यु श्वसन समस्या के कारण होती हैं। जन्म के बाद बछड़ों की मौत का प्रमुख कारण यह होता है की पशुपालक बछड़े को कोलोस्ट्रम नहीं पिलाते हैं तथा गर्भनाल का पूरा ध्यान नहीं रखते हैं। इसके अतिरिक्त पेट में अंतः परजीवियों के कारण भी काफी संख्या में बछड़े, बछियों की मौत हो जाती है।
  2. कोलोस्ट्रम दूध या अन्य, आहार आवश्यकता से अधिक नहीं पिलाएं इससे भी दस्त हो सकते हैं जोकि निर्जलीकरण का कारण बनते हैं। आहार के बर्तनों व आस-पास की पूरी सफाई रखें। पानी 3 से 5 दिन बाद पिलाया जा सकता है। महीने भर बाद नर्म मुलायम हरा चारा व अन्य आहार भी भी साथ में दिया जा सकता है।
  3. २१ दिन या १ महीने की उम्र पर पेट के कीड़े मारने की दवा अवश्य दें। पेट में कीड़ों के कारण दस्त होते हैं और बच्चे की वृद्धि नहीं होती है तथा ज्यादा कीड़ों के कारण बच्चों की मृत्यु भी हो सकती है।
  4. बछड़े को खांसी जुकाम निमोनिया दस्त बुखार आदि होने पर योग्य पशु चिकित्सक से तुरंत उपचार कराएं हल्की सी लापरवाही से बच्चे की जान भी जा सकती है।
  5. 3 दिन के बाद दिन में 4 बार अलग से दूध पिलाएं। 2 सप्ताह बाद पूर्ण दूध की मात्रा कम करके उसके स्थान पर वसा रहित दूध पिलाएं। यह मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं।
  6. ई. कोलाई सेप्टीसीमिया होने पर एक-दो दिन का बछड़ा मर जाता है। ई.कोलाई के कारण दस्त होने पर बदबू अधिक आती है पीली सफेद, दस्त के कारण एक-दो दिन में ही बछड़े की हालत नाजुक हो जाती है। ऐसी स्थिति में मां का दूध नहीं पीने दे तथा पशु चिकित्सक के निर्देशन में नॉरमल सलाइन एवं प्रतिजैविक औषधि दें।
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संदर्भ:

  1. टेक्स्ट बुक ऑफ एनिमल हसबेंडरी द्वारा जी सी बनर्जी
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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