पशुओं में बांझपन के कारण एवं निवारण

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बांझ एक ऐसे मादा पशु को कहा जाता है जो बच्चा देने में असमर्थ हो। कोई भी मादा पशु जब परिपक्वता को प्राप्त करती है तो मादा के जनन अंगों से डिंब निकलने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इसके दौरान मादा पशु गर्मी के लक्षणों को प्रकट करती है तथा नर को अपनी ओर आकर्षित करती है। स्वस्थ डिंब और शुक्राणुओं के सफल निषेचन से गर्भधारण होता है, तथा एक निश्चित गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने पर एक बच्चे का जन्म होता है।

किसी गाय या भैंस की प्रजनन क्षमता का आकलन उसके दो बयॉतों के बीच के समय से लगाया जा सकता है। उत्तम प्रजनन क्षमता के लिए दो बयॉतों के बीच कम से कम 13 या 14 महीने का अंतर होना चाहिए। जब यह अंतराल बढ़ जाता है तो बांझपन की समस्या उत्पन्न होती है। यह बांझपन दो प्रकार का हो सकता है।

  1. स्थाई बांझपन:  इसका उपचार संभव नहीं है व ऐसा पशु अपने जीवन में कभी भी बच्चा देने में असमर्थ होता है।
  2. अस्थाई बांझपन: ऐसे बांझपन में, पशु कुछ समय तक बांझ बने रहते हैं व समुचित उपचार करने पर बांझपन दूर किया जा सकता है इसे वैज्ञानिक भाषा में अस्थाई बांझपन या अनु उर्वरता कहा जाता है।

पशुओं में बांझपन कई कारणों से हो सकता है जिनमें से कुछ निम्न है:

  1. मादा पशु के जनन अंगों मैं आई कमी के कारण।
  2. जनन अंगों में आए उपार्जित विकारों के कारण उत्पन्न बांझपन।
  3. जनन अंगों में आए विकृतिजनक (Pathological abnormalities) कारणों से।
  4. हार्मोन की कमी या असंतुलन के कारण।
  5. पशु प्रबंधन में आई कमी के कारण।

मादा जनन अंगों में आई कमी के कारण उत्पन्न हुए बांझपन के उदाहरण है जैसे:

  • मादा जनन अंगों में अंडाशयों की अनुपस्थिति होना या फिर
  • अंडाशयों का अल्प विकसित होना या फिर
  • जननांगों में उभयलिंगता काफी पाया जाना। इसे फ्रीमार्टिन के नाम से भी जाना जाता है।

इन तीनों व्यवस्थाओं के द्वारा उत्पन्न हुआ बांझपन आजीवन बना रहता है तथा इसके लिए कोई उपचार संभव नहीं है। अतः ऐसे पशु की छटनी करना ही उत्तम उपाय है।

बांझपन के दूसरे प्रमुख कारण अर्थात मादा जनन अंगों में आए उपार्जित विकार से उत्पन्न बांझपन के उदाहरण हैं जैसे:

  • अंडाशयों का बरसा नामक झिल्ली से चिपक जाना, इसे ओवरोबरसल एडहिसन के नाम से भी जाना जाता है।
  • गर्भाशय का उदर या आंतों की  झिल्लियों के साथ चिपक जाना।

इस प्रकार से उत्पन्न बांझपन अक्सर एक बार के ब्याहे पशु में देखने को मिलता है तथा इससे उत्पन्न बांझपन भी आजीवन बना रहता है। इस श्रेणी के अंतर्गत आए बांझपन से, हम अपने पशुओं को कुछ बातों का ध्यान यदि रखें तो बांझपन के शिकार होने से बचाया जा सकता है। इनमें प्रमुख हैं:

  • कभी भी किसी अकुशल व्यक्ति से गर्भाशय की जांच न करवाएं।
  • अंडाशय पर सिस्ट या मस्से को कभी भी जबरदस्ती न निकलवाए।
  • कष्टदायक प्रसव होने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें व उन्हीं से सुलझवॉए।
  • गर्भाशय शोथ नामक बीमारी होने पर समुचित एवं पूर्ण उपचार कराएं।
  • उदर के हिस्से में करवाए गए किसी भी ऑपरेशन के पश्चात पूर्ण उपचार कराएं।
  • प्रसव के पश्चात मादा पशु के आसपास स्वच्छता रखें।
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बांझपन के तीसरे प्रमुख कारण अर्थात जननांगों में आए विकृति जनक कारणों से उत्पन्न बांझपन के उदाहरण निम्नवत है:

  • अंडाशय में ट्यूमर का पाया जाना।
  • अंडवाहिनी के रास्ते का बंद होना या फिर उनके रास्ते का चिपका होना या फिर उसमें मवाद या पानी का भरा होना।
  • बच्चेदानी में ट्यूमर का होना।
  • गर्भाशय में मवाद अथवा सूजन का होना।
  • योनि द्वार का विकृतिपूर्ण होना।

अंडाशय, एवं गर्भाशय अर्थात बच्चेदानी के ट्यूमर का पता चलने पर भी उपचार संभव नहीं है व पशु की छंटनी करना ही उचित उपाय है। इसी प्रकार से अंडवाहिनी के रास्ते के अवरुद्ध हो जाने पर या फिर उसमें मवाद या पानी रुपी शराब के जमा हो जाने पर पशु की छंटनी करना ही उचित उपाय है।

यदि गर्भाशय में सूजन या मवाद का पता चलता है तो प्रतिजैविक औषधियों का समुचित प्रयोग करने पर बांझपन से छुटकारा मिल सकता है।

योनि द्वार के विकृति पूर्ण होने पर जिसकी पहचान पशु के द्वारा योनि से झाग के रूप में निकलता हुआ सराव से हो सकती है का उपचार एक सरल शल्यचिकित्सा के द्वारा ठीक किया जा सकता है व बॉझपन से छुटकारा दिलाया जा सकता है।

बांझपन के चौथे कारण प्रजनन हार्मोन में कमी या हार्मोन में असंतुलन के कारण उत्पन्न बांझपन के निम्नलिखित उदाहरण है जैसे:

  • मादा पशु का गर्मी में न आना।
  • मादा पशु में ऋतु चक्र का ठीक से प्रदर्शित न हो पाना।
  • अंडाशयों से डिंब का न निकल पाना।
  • डिंब का देरी से निकलना।
  • अंडाशय पर सिस्ट का होना।

इन कारणों से उत्पन्न बांझपन अस्थाई होता है तथा यदि कुछ आवश्यक बातों का अनुसरण करें तो इस प्रकार के बांझपन से बचा जा सकता है। पशु को गर्मी में लाने के लिए सुनिश्चित करें कि:

  • पशु को संतुलित आहार  दें।
  • खनिज लवणों को चारे में पूर्ण करने के लिए मिनरल मिक्सचर का प्रयोग करें।
  • प्रत्येक पशु को प्रतिदिन खड़िया एवं मोटा नमक 50-50 ग्राम की मात्रा में अवश्य उपलब्ध करवाएं।
  • दूध देने वाले पशु व हाल के ब्याहे पशु, को पूर्ण संतुलित आहार दें जिससे कि वे हमेशा पॉजिटिव एनर्जी बैलेंस में बने रहें।
  • अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें और उनकी सलाह से आयोडीन टेंपोनिंग अथवा हारमोंस का प्रयोग करें।

ऐसे पशु को जो अपनी गर्मी को ठीक से प्रदर्शित न कर पा रहे हो अर्थात गूंगे उठते हो, उनकी गर्मी को पहचानने के लिए नजदीकी नजर रखें, व उन्हें गर्मी में देखने के लिए सुबह, दोपहर व शाम कम से कम 3 बार नजदीक से देखें, व करीब आधे से एक घंटा तक उन पर समुचित नजर रखें। गूंगे उठने वाले पशु की शिकायत होने पर पशु चिकित्सक से संपर्क करें व उनकी देखरेख में उचित हार्मोन के उपयोग से उन्हें गर्मी में ठीक रूप से लाया जा सकता है।

यदि पशु में डिंब न निकल पाने की शिकायत हो या फिर डिंब देरी से निकलता हो तो ऐसे पशु के लिए निम्न उपाय करें:

  • एचसीजी नामक हार्मोन का प्रयोग कर बांझपन से निजात पा सकते हैं।
  • डिंब देर से निकलने पर कृत्रिम गर्भाधान से पशु को गर्वित करवाएं व कृत्रिम गर्भाधान को 12 घंटे के अंतराल पर तीन बार अवश्य करवाएं।
  • अंडाशय, पर सिस्ट के कारण उत्पन्न हुए बांझपन के लिए पशु चिकित्सक की सलाह लें व उपचार हेतु निम्न हार्मोन का प्रयोग कर सकते हैं:
और देखें :  डेयरी क्षेत्र 8 करोड़ से अधिक डेयरी किसानों की आजीविका का स्रोत– श्री गिरिराज सिंह

फॉलिकुलर सिस्ट के लिए एचसीजी अथवा जीएनआरएच हार्मोन का प्रयोग कर सकते हैं।
लुटीयल सिस्ट के लिए, प्रोस्टाग्लैंडिन नामक हार्मोन का उपयोग कर सकते हैं। या फिर एचसीजी/जीएनआरएच एवं प्रोस्टाग्लैंडिन, हार्मोन के संयुक्त प्रयोग से बांझपन को दूर किया जा सकता है।

बांझपन के पांचवें कारण अर्थात पशु प्रबंध में आई कमी के कारण उत्पन्न हुआ बांझपन अस्थाई बांझपन/ अनुउर्वरता का  प्रमुख कारण बन सकता है, इस श्रेणी से उत्पन्न बांझपन के कुछ उदाहरण निम्नवत है:-

  • पशु को कुपोषण की अवस्था में रखना।
  • पशु के ऋतु चक्र के बारे में अनभिज्ञता का होना व गर्मी के सही लक्षणों के बारे में भी अनभिज्ञ होना।
  • सही समय पर अपने पशु को गर्भित न करवाना।

यदि पशु को कुपोषित रखा जाएगा तो मादा पशु को, प्यूबर्टी में आने के लिए अधिक समय लगेगा साथ ही साथ परिपक्वता पर उनका शारीरिक वजन कम होगा और ऐसा पशु जब अपने प्रथम गर्भधारण को प्राप्त करेगा तो उसे प्रसव के समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

अतः पशुपालक कुपोषण के इस गंभीर परिणाम को समझे एवं अपने सभी पशुओं को उनकी आवश्यकता अनुसार संतुलित आहार दें। ध्यान रहे कि संतुलित आहार की मात्रा बछियों, गर्भित पशुओं, हाल ही में ब्याहे पशुओं एवं दूध दे रहे पशुओं में भिन्न होगी।

पशुपालक यदि पशु के ऋतु चक्र के बारे में अनभिज्ञ रहे या फिर गर्मी के लक्षणों को पहचानने में गलती करता है तो वह बेवजह अपने पशु को बांझ बनाए रखता है। अतः पशुपालक को ध्यान रहे कि:

  • गाय एवं भैंस के  ऋतुचक्र की अवधि 20 से 21 दिन की होती है व गर्मी को प्रदर्शित करने के बाद पुन: 20 से 21 दिन बाद, दोबारा गर्मी की पुनरावृत्ति होती है यदि पुनरावृत्ति नहीं होती है तो 40 से 45 दिन बाद उसे ज्ञाभन होने के लिए जांच करवाएं यदि वह गर्भित न निकले तो उसका सम्यक जांचोपरांत समुचित उपचार कराएं।
  • गर्मी के लक्षणों को सही से पहचानना अत्यंत आवश्यक है। सही गर्मी पर एक मादा पशु नर सांड के सामने स्थिर खड़ी रहती है। यदि वह स्राव कर रही है तो जब स्राव की मात्रा कम हो जाए व  स्राव एक तार के रूप में योनि से लटकता हुआ प्रतीत हो तो यह समय गर्भाधान के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
  • यदि गर्भाधान सही समय पर नहीं होगा तो अंडाणु और शुक्राणु का सफल निषेचन नहीं हो पाएगा व पशु बांझ बना रहेगा। अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि पशु को उसकी ढलती हुई गर्मी अर्थात गर्मी के लक्षण प्रकट होने से लगभग 15 से 18 घंटे बाद में गर्भित करवाएं। यहां यह भी सुनिश्चित करें कि गर्भाधान करने वाला व्यक्ति कुशल हो, वीर्य में शुक्राणु की संख्या निश्चित हो एवं शुक्राणु जीवित हो इत्यादि।
  • गर्मी के लक्षणों को ठीक से पहचानने के लिए पशु को छोटे समूहों में रखें।
  • कम स्थान पर कभी भी अधिक पशुओं के समूह को न बांधें।
  • पशुओं के बांधने की जगह पर काई या फिसलन नहीं होनी चाहिए।
और देखें :  जनवरी माह में पशुपालन कार्यों का विवरण

इन बातों के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करें कि ब्याने के बाद मादा पशु के जननांगों की निश्चित अंतराल पर समुचित जांच करवाएं, जिससे कि उसके जननांगों के सिकुड़ने की गति का पता चले, ब्याने के लगभग 20 दिन बाद गर्मी में आए। ऐसा न होने पर उचित उपचार कराएं। ब्याने के उपरांत 20 दिन की पहली गर्मी को छोड़कर दूसरी गर्मी 40 या 45 दिन पर जांच उपरांत कृत्रिम गर्भाधान कराएं।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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