कृत्रिम गर्भाधान की असफलता के कारण एवं समाधान

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कृत्रिम गर्भाधान गर्भधारण कराने की वह विधि है जिसके द्वारा परीक्षित सॉडों का वीर्य कृत्रिम योनि द्वारा इकट्ठा कर उनकी जांच कर व तनुकरण की सहायता से वीर्य का आयतन बढ़ाकर( शुक्राणुओं की संख्या को सीमित रखते हुए) गर्मी में आई हुई मादा पशु के गर्भाशय ग्रीवा में कृत्रिम विधि से, गर्मी की उचित अवस्था में संचित करने की विधि को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं। भारत में इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग सन 1939 में डॉ संपत कुमारन ने, पैलेश डेयरी फार्म मैसूर में किया परंतु गाय-भैंसों में प्रजनन की दृष्टि से इसका उपयोग 1942 में आईवीआरआई इज्जतनगर बरेली में डॉ पी.भट्टाचार्य ने किया।

कृत्रिम गर्भाधान का उद्देश्य

इस विधि का उद्देश्य कम समय में संतति परीक्षित सॉडों के वीर्य को, अधिक से अधिक मात्रा में उपयोग में लाना है जो कि इस विधि के सिद्धांत पर आधारित है कि कृत्रिम गर्भाधान मे प्रयुक्त एक सॉड , प्राकृतिक विधि से  गर्भाधान में प्रयुक्त  10 सॉड़ के बराबर कार्य करता है।

कृत्रिम गर्भाधान विधि के लाभ

  • कम समय व लागत में, एक उत्तम सांड के वीर्य की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • एक वृद्ध व परीक्षित सॉड़ के, वीर्य को कम समय में अधिकतम उपयोग में लाया जा सकता है।
  • ऐसे सॉड़ जिनमें पौरुषार्थ की कमी हो व वीर्य भी सामान्य नहीं हो, तो उनकी पहले से छंटनी हो जाती है।
  • इस विधि से अनुवांशिकी कि कुछ प्रक्रियाएं जैसे सिलेक्टिव ब्रीडिंग एवं ग्रेडिंग अप, प्रोजेनी टेस्टिंग इत्यादि को प्राकृतिक विधि के अपेक्षाकृत कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।
  • इस विधि के द्वारा असमान्य मिलाप/ इंटरस्पीशीज ब्रीडिंग संभव है।

कृत्रिम गर्भाधान को सफल बनाने हेतु मुख्य चरण

क) सॉडों का चयन।

ख) वीर्य का संग्रह व प्रयोगशाला में उसका रखरखाव।

ग) वीर्य को मादा पशु में संचित करवाना।

घ) उपरोक्त सभी जगह पूर्ण स्वच्छता को बनाए रखना।

अतः यदि उपरोक्त किसी भी स्तर पर कोई कमी रह जाती है तो वो गर्भाधान की असफलता का कारण बनती है। उपरोक्त दिए हुए चरणों में क्या-क्या सावधानियां अपनाएं जिससे कि  कृत्रिम गर्भाधान को सफल बनाया जा सके।

क) सॉडों का चयन

सॉडों के चयन में निम्न सावधानी जरूर अपनाएं:

  • सांड देखने में स्वस्थ व पतली चमड़ी वाला हो।
  • कलिलियों व चर्म रोग की अन्य बीमारियों से मुक्त हो।
  • शरीर पर किसी प्रकार के ऑपरेशन इत्यादि के निशान मौजूद न हो।
  • चारों पैरों को देखने पर कोई दृष्टिगत असमानता न हो।
  • खुरी बढ़ी हुई न हो।
  • सॉड़ को चलवा कर देखने पर कोई लंगड़ाहट न प्रतीत हो।
  • सांड के पिछले पांव को पशु के पीछे खड़े होकर देखने पर पांव हंसिए के आकार के मुड़े हुए नहीं प्रतीत हों।
  • गर्मी में आई मादा को पहचानने की क्षमता रखता हो।
  • वृषण अंडकोष में स्थित हों।
  • अंडकोष की ग्रीवा पर कोई हर्निया न हो।
  • कृत्रिम योनी में वीर्य ठीक प्रकार से दे।
  • वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या व जीवित शुक्राणु एवं शुक्राणुओं की गतिशीलता समुचित मात्रा में उपलब्ध हों।
  • यह उचित होगा, यदि सॉड़ के, वीर्य को फर्टिलिटी के विशेष परीक्षणों से मान्यता प्राप्त हो। इन परीक्षणों में प्रमुख हैं: हाइपो ऑस्मोटिक स्वेलिंग टेस्ट (HOST) एवं जोना फ्री हैमस्टर ओवा पेनिट्रेशन टेस्ट (जोना टेस्ट) ।
  • सांड के कुछ प्रमुख संक्रामक रोग जैसे:- ब्रूसेला, कैंपाइलोबेक्टर, ट्राईकोमोनास, ट्यूबरक्लोसिस, जॉनी डिजीज, आई.बी.आर. इत्यादि से मुक्त हो।
और देखें :  अनुवांशिकी उन्नयन में कृत्रिम गर्भाधान की भूमिका

ख) वीर्य संग्रह व प्रयोगशाला में उसका रखरखाव

  • इसके अंतर्गत निम्न सावधानियों का ध्यान रखें:
  • कृत्रिम योनि बनाते समय उसके सभी अवयव ठीक प्रकार से लगे हुए हो।
  • योनि में प्रयुक्त होने वाले पानी का तापक्रम 45 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच हो।
  • योनि में हवा का दबाव ठीक हो।
  • कृत्रिम योनी से कहीं भी पानी का रिसाव न हो रहा हो।
  • कृत्रिम योनि के सभी अवयव साफ हो व जीवाणु हनन की क्रिया से गुजरे हुए हो।
  • प्रयोगशाला में वीर्य के संपर्क में आने वाले समस्त कांच के सामान स्वच्छ हो और जीवाणु हनन की प्रक्रिया से गुजरे हो।
  • प्रयोगशाला में वीर्य के परीक्षणों के समय किसी भी दशा में वीर्य का पानी से संपर्क न हो।
  • वीर्य को तनुकारक से मिलाने पर संपूर्ण सावधानी बरतें। तनुकारक को वीर्य में धीरे-धीरे मिलाएं जिससे डाइल्यूशन शॉक से बचा जा सके।
  • यदि वीर्य को अतिहिमीकृत करना हो तो अतिहिमीकृत करने की समस्त प्रक्रिया में सावधानी बरतें।
  • अतिहिमीकृत अथवा तरल वीर्य को गर्भाधान करने से पूर्व शुक्राणुओं की जीवित संख्या व शुक्राणुओं की गति का अॉकलन अवश्य करें।
  • अतिहिमीकृत कर रखे हुए वीर्य को तरल नत्रजन सिलेंडर में गैस की मात्रा समुचित मात्रा में अवश्य बनाए रखें।
  • यदि तरल वीर्य को गर्भाधान में प्रयुक्त कर रहे हो तो अधिकतम इस प्रकार के वीर्य का प्रयोग 48 घंटे में कर ले व वीर्य को फ्रिज में 4 से 5 डिग्री सेल्सियस पर रखें।
  • तरल वीर्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए वायल में कम से कम खाली जगह छोड़ें, जिससे कि उसे ट्रांसपोर्टेशन शॉक से बचाया जा सके।
  • वीर्य को इकट्ठा कर व तनुकरण के पश्चात 12 घंटे के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करें।
  • तरल वीर्य को स्थानांतरित करते समय वायल को वाटर प्रूफ जैकेट में रखें व फिर इसे थरमस में रखकर उसके चारों तरफ बर्फ डालकर ही स्थानांतरित करें जिससे अंदर का तापमान 8 से 10 डिग्री सेल्सियस बना रहे।
  • वायल में रखा वीर्य कभी भी बर्फ के पिघले हुए पानी के संपर्क में ना आए।

ग) वीर्य को मादा पशु में संचित करवाना

  • कृत्रिम गर्भाधान, करने वाले व्यक्ति को मादा जनन अंगों का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
  • गर्भाधान करने वाले व्यक्ति का कुशल होना एवं जननांग विशेषकर अंडाशय की अवस्थाओं को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए।
  • मादा पशु सही रूप से गर्मी में हो व ढलती हुई गर्मी में गर्भाधान के लिए प्रस्तुत हुई हो।
  • मादा पशु की पिछली दो गर्मियों के बीच का अंतराल प्रस्तुत गर्मी से मेल खाता हुआ हो।
  • ऐसी मादा जो पिछली तीन गर्मियों से गर्भधारण  न कर पा रही हो या उसके जनन अंग सामान्य हो उन्हें 12-12 घंटे के अंतराल पर गर्मी खत्म होने के 36 घंटे तक गर्भाधान करें।
  • उपरोक्त (नंबर 5) वाले पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान करने के बाद मादा के क्लाइटोरिस को, 30 सेकंड तक मसलने पर गर्भाधान में सफलता मिल सकती है।
  • गर्भाधान में प्रयुक्त तरल या हिमिकृत वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या, जीवित शुक्राणुओं की संख्या, शुक्राणुओं की गतिशीलता व वीर्य की मात्रा भी निर्धारित मानकों को पूर्ण करती हो।
  • अति हिमीकृत वीर्य को तरल वीर्य में बदलने के लिए गरम पानी के तापक्रम का विशेष ध्यान रखें। साधारणत: यह क्रिया 37 डिग्री सेल्सियस के पानी में 45 सेकंड से 1 मिनट तक रखने में पूर्ण हो जाती है।
  • अतिहीमीकृत परिवर्तित तरल वीर्य(Thawed Semen)की स्ट्रा को पानी से सोख्ता कागज की मदद से पोंछना कभी न भूलें। यह स्ट्रा पर लगे पानी को रोकने में मदद करेगा जिससे कि स्ट्रा को काटते समय पानी की बूंद वीर्य के संपर्क में ना आए।
  • स्ट्रा को एआई गन में रखने से पहले प्रयोगशाला सील्ड सिरे से ही काटे।
  • अतिहिमीकृत परिवर्तित, तरल वीर्य को शीघ्र से शीघ्र उपयोग में लाएं।
  • कृत्रिम गर्भाधान कभी भी खुले स्थान पर न करें जहां कि सूर्य की सीधी किरणें एआई गन पर पड़ रही हों।
  • कृत्रिम गर्भाधान करने के बाद ए आई गन को अवश्य जांच ले जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि वीर्य का संचय कर दिया गया है।
  • ऐसे पशु जिनमें गर्भाशय ग्रीवा असामान्य ( किंकड) प्रतीत हो रहे हो उन्हें प्राकृतिक विधि से गर्भित कराएं।
और देखें :  कोविड-19 महामारी के समय में डेरी पशुओं के सामान्य प्रबंधन हेतु महत्वपूर्ण सलाह

घ) गर्भाधान की प्रक्रिया मे स्वच्छता व जीवाणुहननता का संपूर्ण ध्यान रखना

  • वीर्य संग्रह करने का स्थान स्वच्छ व मक्खियों इत्यादि से मुक्त हो।
  • कृत्रिम योनि के सभी अवयव जीवाणुहननता की प्रक्रिया से गुजरे हों।
  • संग्रह के कार्य में उपयोग में आने वाले पॉलिथीन, प्लास्टिक, रबर व कृत्रिम योनि का बाहरी खोल, रबर , एवं इनर लैटेकस लाइनर इत्यादि को ऑटोक्लेव की सहायता से 10 पौंड के दबाव में 20 मिनट तक रखने पर जीवाणु हनन का कार्य पूर्ण हो जाता है।
  • ऑटोक्लेव करने के बाद वस्तुओं का हॉट एयर ओवन में 50 से 60 डिग्री सेल्सियस पर सुखाना चाहिए।
  • बफर बिलयन (बिना अंडे का तनुकारक) और वैसलीन को 15 पाउंड दबाव पर 15 मिनट तक रखने पर जीवाणु हनन का कार्य पूर्ण होता है।
  • कांच व स्टील के सामानों को हॉट एयर ओवन मैं 180 से 200 डिग्री सेल्सियस पर 1 घंटे तक रखने पर जीवाणु हनन किया जा सकता है।
  • वीर्य की, प्रयोगशाला में देखरेख, लैमिनार फ्लो के सामने बैठकर करनी चाहिए।
  • यह भी आवश्यक है कि प्रयोगशाला को पराबैंगनी किरणों से जीवाणु हनन के, कार्य में लाएं।
और देखें :  दुधारू पशुओं का प्रजनन प्रबंध डेयरी व्यवसाय की सफलता का मूल मंत्र

अतः यदि उपरोक्त सुझाई गई बातों को हम ध्यान में रखें व, प्रयोग मैं लाएं तो काफी हद तक हम कृत्रिम गर्भाधान की असफलताओं को रोकने में कामयाब हो सकते हैं।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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