राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत खुरपका मुंहपका रोग नियंत्रण के क्रियान्वयन में कमियां एवं उनका निराकरण

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खुरपका मुंहपका रोग अर्थात एफएमडी और संक्रामक गर्भपात अर्थात ब्रूसेलोसिस जैसी पशुओं की अति खतरनाक बीमारियों का समूल उन्मूलन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का प्रारंभ भारत सरकार द्वारा किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों एवं पशुपालकों को सशक्त बनाना तथा उनकी आमदनी को दोगुना करना है।

एन.ए.डी.सी.पी. के दो मुख्य उद्देश्य हैं

  1. सन 2025 तक इन दोनों बीमारियों का नियंत्रण करना।
  2. सन 2030 तक इन दोनों बीमारियों का देश से उन्मूलन करना है।

विश्व में सबसे अधिक पशुधन लगभग 125 करोड़ से अधिक भारत में पाया जाता है। परंतु पशुओं की उत्पादकता कम होना और खतरनाक पशु रोगों का होना, आर्थिक हानि  का मुख्य कारण है।

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य 500 मिलियन पशुधन का टीकाकरण करना है जिसमें गाय, भैंस, भेड़, बकरी एवं शूकरो का खुरपकामुंहपका रोग के नियंत्रण के लिए टीकाकरण करना है। इसके अतिरिक्त पशुजन्य माल्टा फीवर से बचाव हेतु प्रत्येक वर्ष दुधारू पशुओं के 36 मिलीयन गाय एवं भैंस की मादा बछिया या पड़िया को ब्रूसेलोसिस का टीका लगाया जाना है।

इस कार्यक्रम की 100% वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। जिसमें लगभग 12652 करोड़ रुपए 5 वर्षों के लिए सन 2024 तक खर्च किए जाएंगे।

खुरपका मुंहपका रोग (एफ.एम.डी.)

यह पशुओं का अति संक्रामक विषाणु जनित रोग है, जो गाय, भैंस, भेड़,बकरी, सूकर एवं अन्य फटी खुरी वाले पशुओं में होता है। वयस्क पशुओं में एफएमडी सामान्यतः पशु की मृत्यु नहीं करता है परंतु पशु को बहुत अधिक कमजोर कर देता है जिस कारण से उसका दुग्ध उत्पादन बहुत कम हो जाता है एवं उसकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। जिससे पशुपालक को, काफी आर्थिक हानि होती है। और पशुपालक पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है।

खुरपका मुंहपका रोग

संक्रमित पशु को तेज बुखार मुंह में छाले एवं घाव जो कि उनके थनो और खुरों, के बीच हो जाते हैं, इन छालों के  फूटने के बाद घाव बन जाते हैं और बाद में कीड़े भी पड़ जाते हैं। संक्रमित पशु के उत्सर्जित पदार्थ एवं स्राव जैसे लार एवं उनकी स्वास के द्वारा भी स्वस्थ पशु को संक्रमण हो सकता है। एफएमडी अर्थात खुरपका मुंहपका रोग के आउटब्रेक को नियंत्रित करने के लिए, एवं एफएमडी के संचरण को रोकने के लिए नए पशुओं को पुराने पशुओं में मिलाने से पूर्व क्वारंटाइन करने के बाद टीकाकरण करके पुराने झुंड में मिलाना है। पशु के आवास की नियमित रूप से साफ सफाई एवं विसंक्रमित, किया जाना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इस बीमारी की मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग की जानी है एवं प्रभावी टीकाकरण व्यवस्था का उपयोग करना है।

संक्रामक गर्भपात/ ब्रूसेलोसिस

यह एक जुनोटिक अर्थात पशुजन्य बीमारी है। जो पशुओं से मनुष्यों में माल्टा फीवर नामक बीमारी उत्पन्न करती है। पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अनुसार यह देश के विभिन्न भागों में एंडेमिक की तरह है। ब्रूसेलोसिस द्वारा पशुओं की  गर्भावस्था के अंतिम त्रैमास में गर्भपात होने के कारण नवजात बच्चे पशुधन की संख्या में नहीं जुड़ पाते हैं।

बीमारी को नियंत्रित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ब्रूसेलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम में गाय और भैंस की 4 से 8 माह की मादा पशुओं में 100% टीकाकरण जीवन में केवल एक बार करना है। इसके अतिरिक्त कुछ जगहों पर परीक्षणोंंपरॉंत पॉजिटिव पाए जाने वाले पशुओं की कलिंग करनी है, अर्थात उनको पशु समूह से अलग करना है।

कार्यक्रम की आवश्यकता

उपरोक्त दोनों ही बीमारियों का दूध और अन्य पशुधन उत्पादों के व्यापार पर प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि कोई गाय या भैंस एफएमडी से संक्रमित हो जाती है तो वह दूध देना लगभग बंद कर सकती है और यह रोग 4 से 6 महीने तक रह सकता है। इसके प्रभाव से किसान को काफी आर्थिक नुकसान हो सकता है। केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम को किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।

और देखें :  पशुओं में होनें वाले संक्रामक रोगों से बचाव

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में खामियां

  1. टैगिंग, टीकाकरण, फीडिंग के लिए समर्पित तकनीकी कार्मिकों की नियुक्ति ना होना। राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित वैक्सीनेटर एवं सहायकों का मानदेय कम होना। प्रायोगिक प्रशिक्षण का समुचित ना होने से टैगिंग एवं वैक्सीनेशन मैं समस्या एवं पशुपालकों को टैगिंग एवं टीकाकरण हेतु कन्विस करने की क्षमता का अभाव।
  2. टैगिंग के लिए किसानों की अनिवार्य सहमति प्राप्त करने के लिए कानूनी प्राविधान का न होना। पशुपालकों द्वारा टैगिंग न करवाने की स्थिति में किसी प्रभावी दिशा निर्देश का न होना।
  3. टैगिंग का व्यावहारिक रूप न होने के कारण अन्य विकल्पों पर विचार करके लागू करना जैसे टैगिंग के लिए एडवांस तकनीक वाले RFID माइक्रोचिप  का उपयोग ना होना जिससे कि पशुपालकों द्वारा वर्तमान में प्रयोग किए जाने वाले यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड युक्त टैग को पशुओं में लगवाने के बाद पशुपालकों द्वारा काट कर निकाल दिया जाता है । टैगिंग के दौरान कुछ पशुओं में कान पक जा रहे हैं जिससे कि अन्य  पशुपालकों के द्वारा अपने पशुओं में टैगिंग करवाने से मना किया जा रहा है । कान पकने की स्थिति में पशुओं के समुचित उपचार की व्यवस्था की भी कमी है।
  4. इनाफ पोर्टल पर डाटा एंट्री के लिए डाटा एंट्री ऑपरेटर एवं स्मार्टफोन एवं डाटा बैलेंस के लिए कोई प्रावधान ना होने से ऑनलाइन एंट्री में विषम समस्या। टैगिंग और पशु आधार के लिए ऑनलाइन फीडिंग कार्य को विकास एवं पंचायतीराज विभाग की योजनाओं से न जोड़ना। पशुधन पहचान सम्बन्धी अभिलेखों का रखरखाव ग्राम पंचायत सचिवालय एवं नगरीय निकाय कार्यालय में न किया जाना, जैसा कि म्युनिसिपालिटी एक्ट और पंचायतीराज एक्ट में प्राविधान भी है। भूमि प्रबंधन, पशुपालन का दायित्व मूलतः पंचायतीराज विभाग के अंतर्गत शामिल किया गया है। मानव आधार बनाने हेतु जिस प्रकार से आधार सेवा केंद्र खोले गए हैं, उन्हीं केंद्रों से पशु आधार योजना/ पशुओं के लिए यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड युक्त टैग को न जोड़ा जाना।
  5. वैक्सीनेटर एवं सहायकों को समय से मानदेय न मिलने के कारण कार्य में रुचि नहीं लेना।
  6. प्रभावी टीकाकरण के लिए कोल्ड चैन महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसके लिए वैक्सीन वायल मॉनिटर का उपयोग अनिवार्य किया जाय, तथा प्रत्येक पशु चिकित्सालय पर फ्रिज और विद्युत आपूर्ति व्यवस्था का अनिवार्य रूप से न होना साथ ही समुचित सॉलिड आइस पैक की उपलब्धता का सुनिश्चित न होना। टीका सप्लाई कम्पनी को टीका की वायल के साथ नीडल और सिरिंज सप्लाई किये जाने का टेंडर न दिया जाना। जिससे इंट्रा मस्कुलर रूट से दी जाने वाली वैक्सीन के लिए सबक्यूटेनियस नीडल की, आपूर्ति का होना, जैसा कि पहले भी कई बार हो चुका है, जिससे फील्ड स्टाफ को निजी खर्च से इंट्रा मस्कुलर नीडल खरीदने को बाध्य होना पड़ता रहा है।
  7. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) में सभी पशु रोगों के टीकाकरण को सम्मिलित न किया जाना। एफएमडी, एचएस एवं बीक्यू का संयुक्त टीका का प्रयोग न होना जिससे कि विभाग को तीन बार टीकाकरण कराना पड़ता है, जिससे कि विभाग को टीकाकरण पर 3 गुना अधिक खर्च करना पड़ता है। यदि संयुक्त वैक्सीन का प्रयोग होगा तो एक बार के खर्चे में 3 बीमारियों के लिए टीकाकरण संभव हो सकेगा जैसा कि हरियाणा में प्रयोग हो रहा है, इसी प्रकार पूरे देश में उपरोक्त , संयुक्त टीके का प्रयोग किया जाए।
  8. वैक्सीनेशन एवं टैगिंग की मॉनिटरिंग के लिए पर्याप्त स्टाफ का अभाव होना । राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) के दौरान चिकित्सकों एवं स्टाफ की ड्यूटी अन्य विभागीय या गैर विभागीय कार्यों में फुल टाइम लगाया जाना जिससे कि टीकाकरण कार्यक्रम के संचालन पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  9. त्रुटिपूर्ण पशुगणना के गलत आंकड़ों के आधार पर टीकाकरण टैगिंग का लक्ष्य आवंटित किया जाना। जिससे कि लक्ष्यों की पूर्ति असंभव होती है।
  10. एक घण्टे में केवल 12 टीका, टैगिंग और फीडिंग सम्भव है, इस सत्यता के साथ प्रतिदिन प्रति टीम टीकाकरण के लक्ष्यों को आवंटित न किया जाना।
  11. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) के अंतर्गत सन्नद्ध कार्मिकों का मानदेय का बहुत ही कम होना जैसे वैक्सीनेटर हेतु 3 रुपए एवं सहायक हेतु 2 रुपए 50 पैसे है। उपरोक्त मानदेय पर कोई भी समर्पित कार्यकर्ता कार्य करने को तैयार नहीं है और अगर तैयार भी होता है तो वह कार्यक्रम के बीच में ही टीकाकरण छोड़कर चला जाता है।वैक्सीनेटर एवं सहायक का कार्यक्रम के बीच छोड़कर जाने पर अन्य विकल्प का न होना।
  12. वैक्सीनेटर एवं सहायक की संख्या के आधार पर पर्याप्त मात्रा में टैग एप्लीकेटर की उपलब्धता न होना।
और देखें :  पशुओं में 'सिस्टायटिस रोग'

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम की सफलता हेतु मुख्य सुझाव

  1. टैगिंग, टीकाकरण, फीडिंग के लिए समर्पित तकनीकी कार्मिकों की आउटसोर्सिंग से नियुक्ति की जाय।
  2. टैगिंग के लिए किसानों की सहमति प्राप्त करने के लिए कानूनी प्राविधान बनाये जाएं, और उनका पालन सुनिश्चित कराया जाए।
  3. टैगिंग के लिए एडवांस तकनीक वाले RFID माइक्रोचिप  का उपयोग किया जाय, जो सुरक्षित हैं साथ ही इनको काटा या निकाला नहीं जा सकेगा। ये ऑनलाइन जीपीएस से जुड़े भी रहेंगे, जिससे तस्करी या चोरी होने पर तुरन्त स्थान पता लग जायेगा, इससे FIR तथा पुलिस थानों तक दौड़भाग खत्म हो जाएगी, दुधारू पशुओं की चोरी, तस्करी के मामलों का तेजी से निपटारा होने से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की बचत होगी।
  4. टैगिंग और पशु आधार के लिए ऑनलाइन फीडिंग कार्य को विकास एवं पंचायतीराज विभाग की योजनाओं से जोड़ना अनिवार्य किया जाय। पशुधन पहचान सम्बन्धी अभिलेखों का रखरखाव ग्राम पंचायत सचिवालय एवं नगरीय निकाय कार्यालय में किया जाय, जैसा कि म्युनिसिपालिटी एक्ट और पंचायतीराज एक्ट में प्राविधान भी है। भूमि प्रबंधन, पशुपालन का दायित्व मूलतः पंचायतीराज विभाग के अंतर्गत शामिल किया गया है। मानव आधार बनाने हेतु जिस प्रकार से आधार सेवा केंद्र खोले गए हैं, उन्हीं केंद्रों से पशु आधार योजना/ पशुओं के लिए यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड युक्त टैग को जोड़ दिया जाय, जिससे बेरोजगार युवाओं को अतिरिक्त आय भी होगी।
  5. प्रभावी टीकाकरण के लिए कोल्ड चैन महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसके लिए वैक्सीन वायल मॉनिटर का उपयोग अनिवार्य किया जाय, तथा प्रत्येक पशु चिकित्सालय पर फ्रिज और विद्युत आपूर्ति अनिवार्य किया जाय, साथ ही सॉलिड आइस पैक की उपलब्धता सुनिश्चित की जाय। टीका सप्लाई कम्पनी को टीका की वायल के साथ नीडल और सिरिंज सप्लाई किये जाने का टेंडर दिया जाय। जिससे इंट्रा मस्कुलर रूट से दी जाने वाली वैक्सीन के लिए सबक्यूटेनियस नीडल की , आपूर्ति बंद हो सके, जैसा कि पहले भी कई बार हो चुका है, जिससे फील्ड स्टाफ को निजी खर्च से इंट्रा मस्कुलर नीडल खरीदने को बाध्य होना पड़ता रहा है।
  6. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) में सभी पशु रोगों के टीकाकरण को सम्मिलित किया जाना सुनिश्चित किया जाय, जिससे टीकाकरण का रोस्टर बनाया जा सके और गला घोटू अर्थात एचएस होने के मौसम में खुर पका मुंह पका बीमारी /FMD टीकाकरण न कराया जाय, जैसा कि 2020 में , उत्तर प्रदेश में हो चुका है। जब अगस्त में गलाघोटू/HS टीकाकरण होना था, तब विभाग द्वारा खुर पका मुंहपका रोग अर्थात एफएमडी टीकाकरण कराया जा रहा था। राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम हेतु एफ.एम.डी एच.एस एवं बीक्यू का संयुक्त टीका प्रयोग में लिया जाए जिससे कि बहुत कम खर्च में तीनों प्रकार के टीकाकरण एक साथ हो सकते हैं। संयुक्त टीका का प्रयोग पशुपालन विभाग हरियाणा द्वारा किया जा रहा है जिसके परिणाम भी अपेक्षित मिल रहे हैं। अतः यह आवश्यक है कि संपूर्ण देश में उपरोक्त संयुक्त टीके का प्रयोग किया जाए।
  7. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) के दौरान चिकित्सकों एवं स्टाफ की ड्यूटी किसी अन्य विभागीय या गैर विभागीय कार्यों में पूर्णकालिक न लगाई जाय, ये सुनिश्चित किया जाय। विभागीय वाहनों का टीकाकरण के दौरान प्रशासन द्वारा अधिग्रहण न किया जाए।
  8. त्रुटिपूर्ण पशुगणना के गलत आंकड़ों के आधार पर टीकाकरण टैगिंग का लक्ष्य न आवंटित किया जाय, अन्यथा फ़र्ज़ी सूचनाओं की बाढ़ आ जायेगी, जिसको कभी भी ठीक किया जाना संभव नहीं हो सकेगा।
  9. एक घण्टे में केवल 12 टीका, टैगिंग और फीडिंग सम्भव है, इस सत्यता के साथ प्रतिदिन प्रति टीम टीकाकरण के लक्ष्यों को आवंटित किया जाय, इसी आलोक में कार्ययोजना बनाई जाए, जिससे शुचितापूर्वक टीकाकरण कार्य सम्पादित किया जा सके।
  10. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NADCP) के अंतर्गत सन्नद्ध कार्मिकों का मानदेय मनरेगा मानदेय से कम किसी भी हालत में न होने पाए, साथ ही नगरीय क्षेत्रों में इस मानदेय को उस क्षेत्र के अनुसार बढ़ाया जाए। कम से कम 300 रु से 400 रु प्रतिदिन प्रति व्यक्ति की दर से मानदेय दिया जाय। अथवा वैक्सीनेटर को ₹ 9 प्रति टीका एवं सहायक को ₹7 प्रति टीका का भुगतान किया जाए।
  11. वैक्सीनेटर एवं सहायक की संख्या के आधार पर पर्याप्त टैग एप्लीकेटर उपलब्ध कराए जाएं।
  12. राष्ट्रीय पशु रोग उन्मूलन कार्यक्रम शुरू होने से 15 दिन पहले ही कार्यक्रम में उपयोग की जा रही वैक्सीन की गुणवत्ता की जाँच रिपोर्ट आ जानी चाहिए। उन्ही वैक्सीन का प्रयोग किया जाना चाहिए जिनकी रिपोर्ट सही है, ताकि मानकों को पूरा न करने वाली वैक्सीन को पशुओं में लगने से रोका जा सके।
और देखें :  रेबीज (Rabies) एक जानलेवा रोग: कारण, लक्षण, बचाव एवं रोकथाम

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