डेयरी पशुओं में सिस्टिक ओवेरियन डिजनरेशन

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सिस्टिक ओवेरियन डिजनरेशन अंडाशय की वह स्थिति है जिसमें अंडाशय पर एक बड़ा सिस्ट या अप्राकृतिक फॉलिकल बन जाता है। जो लगभग 2.5 सेंटीमीटर या बड़े आकार का तरल पदार्थ से भरा हुआ यह सिस्ट कार्पस लुटियम की अनुपस्थिति में 10 दिन या अधिक समय तक रहता है। इसके कारण गाय या भैंस बार-बार अधिक गर्मी में आती है जिसे निंफोमैनिया भी कहते हैं। यह गर्मी बार-बार, अनियमित या लगातार होती है। इस अवस्था में मद चक्र छोटा हो जाता है जिसके कारण पशु गर्भित नहीं हो पाता है और पशुपालक को बहुत आर्थिक नुकसान होता है। सिस्ट दो प्रकार के होते हैं:

फॉलिकुलर सिस्ट

यह पतली दीवार की  एक या एक से अधिक सिस्ट होती है जो एक या दोनों अंडाशय पर पाई जा सकती है। यह सिस्ट गायों में अधिकांश रूप से पाई जाती है। यह दाहिने अंडाशय में 60% एवं बाएं अंडाशय में लगभग 4% होती है।

लुटीयल सिस्ट

ल्युटियल सिस्ट एकल गोल सिस्ट के रूप में होती है और एक ही अंडाशय  पर होता है जिसकी दीवार मोटी होती है। दाहिने अंडाशय में यह बाएं अंडाशय की अपेक्षा अधिक पाई जाती है।

दोनों तरह के सिस्ट अंडछरण नहीं होने पर विकसित होते हैं। प्राय: सिस्ट बायें अंडाशय की तुलना में दाहिने अंडाशय से पर अधिक होते हैं। अधिकांश सिस्ट अधिक दूध देने वाली गायों की प्रजाति में अधिक होते हैं जबकि कम दूध देने वाली प्रजाति में बहुत कम होते हैं। 7 वर्ष की उम्र के पशुओं में सिस्ट होने की संभावना अत्याधिक रहती है। गायों में 1 से 3 वर्ष की उम्र में 14%, 4 से 6 वर्ष की उम्र में 53%, 7 से 9 वर्ष की उम्र में 25% तथा 10 वर्ष की उम्र के ऊपर की उम्र में 6% संभावना रहती है। पहली व दूसरी ब्यात में सिस्ट की संभावना तीसरे से पांचवें या अधिक ब्यात की अपेक्षा अधिक होता है। लुटीयल सिस्ट की तुलना में फॉलिकुलर सिस्ट अधिक होता है। यह अधिकतर 4 से 5 वर्ष की उम्र में ब्याने के पश्चात 2 महीनों में अधिक होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार अधिक एस्ट्रोजन वाला चारा  खाने पर सिस्ट होने के असार अधिक होते हैं अंडाशय पर तीसरी रचना; सिस्टिक कॉरपस लुटियम होती है। जिसमें एक गोलाकार सिस्ट होती है जिसमें पीला द्रव भरा रहता है। यह कार्पस लुटियम सामान्य कार्पस लुटियन से थोड़ा अलग होता है जो हल्का कठोर होता है जिसमें कार्पस लुटियम के अंदर एक गुहा  होती है। नॉर्मल कार्पस लुटियम की तुलना में सिस्टिक कार्पस लुटियम से प्रोजेस्ट्रोन कम स्रावित होता है और यह सिस्ट पशु के मद चक्र को प्रभावित नहीं करता है।

कारण

यह अनुवांशिक व वातावरण दोनों कारणों से होती है। अंडाशय पर सिस्ट होना एक अनुवांशिक बीमारी हो सकती है जो कि एक रिसेसिव जीन के कारण होती है और अधिक दूध देने वाली गायों में अधिक होती है। फॉलिकुलर सिस्ट अधिकतर सर्दियों में होती है। अंडाशय पर सिस्ट हार्मोन प्रणाली में गड़बड़ी के कारण विकसित होती है।

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सिस्ट कैसे बनती है?

वह गाय जो बार-बार गर्मी में आती है प्रारंभ में उसकी पीयूष ग्रंथि में गड़बड़ी होती है। जिससे लुटेनाइजिंग हॉरमोन के कम मात्रा में अथवा श्रावित ना होने से अंडाशय पर विकसित फोलिकल से अंडा बहार नहीं आ पाता है और फोलिकल का आकार बढ़ते बढ़ते सिस्ट का रूप ले लेता है।

लक्षण

गाय जिसके अंडाशय में फॉलिकुलर सिस्ट होता है वह निमफोमेंनिक लक्षणों को दर्शाती है। ये पशु बार बार दूसरे पशुओं पर चढ़ते हैं तथा दुसरे पशुओं के चढ़ने पर शांत अवस्था में खड़े रहते हैं। योनि की मांसपेशियां बहुत ढीली पड़ जाती हैं जिससे योनि में पीछे का भाग बाहर भी आ जाता है। गर्भाशय ढीला तथा अकार में बड़ा हो जाता है। योनी भ्रंश की समस्या भी इन पशुओं में पाई जाती है। इस तरह की बीमारी की लंबी अवस्था में पूछ का कुछ भाग ऊपर उठा रहता है जिसे स्टेरलिटी हमप कहते हैं। ऐसे पशु सामान्य अंतराल से पहले ही अर्थात जल्दी जल्दी गर्मी पर आते है। ऐसे पशुओं में मद काल बढ़ जाता है अर्थात गर्मी के लक्षण 4-5 या अधिक दिनों तक दिखाई देते है। ऐसे पशुओं में गर्भाधानं करने पर वे ग्याभन नहीं रुकते हैं। गाय जिसके अंडाशय में लुटिअल सिस्ट होता है वे गाय गर्मी या मद में नहीं आती है। ऐसी गायों पर बैल या एनी गायों के चढ़ने पर यह हट जाती है। अमादकता की इस स्थिति में गर्भाशय का आकार भी छोटा हो जाता है। ऐसे पशु जिनमे लुटिअल सिस्ट अधिक दिनों तक बना रहता है, तो गाय का वजन बढ़ जाता है गर्दन मोटी हो जाती है। इस कारण पशुपालक को कभी कभी यह भ्रम हो जाता है कि उसकी गाय गर्भित हो गई है। पशु जिनमे लुटिअल सिस्ट अधिक दिनों तक बना रहता है वो कभी कभी दूसरे पशुओं के ऊपर चढते है पर दुसरे पशुओं को अपने ऊपर चढने नहीं देते ही।

निदान

पहचान

  • लक्षणों के आधार पर।
  • गुदा परीक्षण द्वारा (11 दिन के अंतराल के बाद दो बार अंडाशय को महसूस करने पर समान अंडाशय पर उसी स्थान पर वही  सिस्ट महसूस होती है)।
  • सिस्ट की प्रकृति के आधार पर।

प्राथमिक उपचार

सिस्टिक ओवेरियन डीजनरेशन में उपचार का उद्देश्य नया अंडक्षरण करना होता है ताकि लियूटीएल टिशु सिकुड़ कर बंद हो जाए और सामान्य मद चक्र वापस शुरू हो। ऐसा माना जाता है कि उन मामलों में उपचार अधिक प्रभावी रहता है जिनमें एक ही सिस्ट होती है। उपचार का तरीका सिस्ट की प्रकृति के अनुसार अलग अलग होता है।

किसी भी स्थिति में (फोलिकुलर अथवा लुटिअल सिस्ट) अंगुलियों से दबाकर सिस्ट को नहीं फोड़ा जाना चाहिए। इससे थोड़ा रक्तस्राव हो सकता है और घाव भरने के क्रम में अंडाशय आस पास की संरचनाओं से चिपक सकता है। इस दशा में भविष्य में अंडक्षरण होने पर भी अंडा अन्द्वाहिनी में नहीं पहुँच पाता है जिससे पशु ग्याभन नहीं हो पाता है। अतः सिस्ट को हाथ से फोड़ने की बजाए हार्मोन चिकित्सा के माध्यम से उपचार करना उचित रहता है।

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वे पशु जो मद चक्र में गर्मी के लक्षण प्रकट नहीं करते हैं उनमें लुटीयल सिस्ट हो सकता है। लुटीयल सिस्ट की दशा में प्रोस्टाग्लैंडइन (PGF2 अल्फा) द्वारा उपचार किया जाता है। PGF2 अल्फा / क्लोप्रोस्टेनोल सोडियम  को 500 माइक्रोग्राम की मात्र में इंजेक्शन के रूप में देते है। इससे लुटिअल सिस्ट ख़त्म हो जाती है एवं पशु में पुनः मद चक्र शुरू हो जाता है तथा पशु 72 घंटे में गर्मी में आ जाता है और इस दशा में गर्भाधान कराया जा सकता है। यदि पशु गर्मी में नहीं आता है तो 11 दिन पर पुनः  PGF2 अल्फा लगाना लाभकारी होता है।

चूंकि एलएच (एक हर्मोन) की कमी के कारण अंडक्षरण नहीं होता है जिसके कारण फोलिकुलर सिस्ट विकसित हो जाता है इसलिए एलएच एवं जीएनआरएच हार्मोन द्वारा चिकित्सा की जाती है। एल एच (लुटेनाइजिंग हॉरमोन) 1500 से 3000 यूनिट इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है जिससे फोलिकुलर सिस्ट बदलकर कार्पस लुटिअम बन जाता है। और परिणाम स्वरुप 4 से 11 दिन में प्लाज्मा प्रोजेस्ट्रोन का स्तर बढ़ जाता है और पशु में सामान्य मद चक्र शुरू होने के आसार हो जाते है। इससे अंडाशय की सक्रियता भी सामान्य हो जाती है। जीएनआरएच 20 माइक्रोग्राम अर्थात 5ml का प्रयोग करने से भी अंडक्षरण होता है तथा कार्पस लुटियम बनता है जिससे सामान्य मद चक्र शुरू हो जाता है।

कभी कभी जब फोलिकुलर और लुटिअल सिस्ट में अंतर पहचान में नहीं आता है वहां उपचार हेतु एलएच/जीएनआरएच एवं PGF2 अल्फा का संयुक्त प्रयोग करने पर आशातीत सफलता प्राप्त होने के असार होते है। पहला इंजेक्शन- एलएच अथवा जीएनआरएच (उपरलिखित मात्रा के अनुसार) का लगाया जाता है और इसके 7 से 11 दिनों के पश्चात् PGF2  (उपरलिखित मात्रा के अनुसार) का उपयोग किया जाता है।

यदि फॉलिकुलर सिस्ट है तो पहले एलएच अथवा जीएनआरएच हार्मोन दें इससे फॉलिकुलर सिस्ट सिकुड़ जाएगा और कार्पस लुटियम विकसित होगा। इसके 7 से 11 पश्चात PGF2 अल्फा लगाने से कार्पस लुटियम ख़त्म होगा और पशु लगभग 72 घंटों में गर्मी में आ जाएगा अर्थात PGF2 अल्फा लगाने के 72 से 96 घंटे में गर्भाधान करा देना चाहिए।

मादा पशुओं में होने वाले सिस्ट की वैज्ञानिक जानकारी ना केवल पशुपालको बल्कि पशु चिकित्सकों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है. उपर्युक्त लेख में लिखी बातों को ध्यान में रखकर मादा पशुओं में होने वाली बांझपन/अनुउर्वर्ता की समस्या से काफी हद तक निजात पाई जा सकती है जिससे पशुपालको को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है। पशुपालकों से यह अनुरोध है की स्वयं उपचार ना करके उपरोक्त जानकारी के अनुसार किसी योग्य एवं पंजीकृत पशुचिकित्सक के द्वारा सलाह ले एवं उपचार कराएं।

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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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