वैश्विक महामारी (कोविड -19) के दौरान: एकीकृत कृषि प्रणाली एक वरदान

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भारत में सीमांत एवं लघु किसानो की संख्या लगभग 85 प्रतिशत है एवं इस प्रकार की पारम्परिक खेती जलवायु परिवर्तन व उत्पादन सम्भावनाओ में हास् के कारण लाभहीन होती जा रही है। अतः इन  परिस्थितियों में किसानो की आय सुनिश्चित करने हेतु रोजगार के अवसर प्रदान करना एवं उत्पादकता में वृद्धि करना चिंता का विषय है। साथ ही हमारे देश की लगभग 6.7 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है इसी के साथ साथ देश में बड़ी संख्या में लोगों के आहार  में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की कमी है जो की विभिन्न प्रकार कि स्वास्थ्य समस्याओं  जैसे एनीमिया, प्रोटीन  की कमी, हृदय  रोग, रक्तचाप, मधुमेह आदि रोगो का मुख्य कारण है।

इस परिदृश्य में एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) को किसानो के लिए उम्मीद की किरण के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि यह न सिर्फ किसानो की आय बढ़ाने में अपितु उनके लिए पौष्टिक आहार एवं वर्षभर खेतो पर ही रोज़गार सृजन करने में सहायक प्रणाली है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) अपनाने से वैश्विक आपदाओं (कोविड -19) के समय रोज़गार सृजन के साथ साथ संसाधनो के उचित उपयोग की संभावनाए भी प्रबल होगी। एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) में एक घटक दूसरे घटक से अन्तर्सम्बधित होते है जिसके फलस्वरूप किसान उपलब्ध भूमि, श्रम, पूँजी व प्रबंधन का आवश्यकतानुसार  आवंटन  कर उनका  सुनियोजित रूप से उपयोग  कर सकता  है इस  प्रकार  एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) आधारित  खेती आय में बढ़ोतरी  करने के साथ साथ वैश्विक आपदाओं से निपटने में अहम् भूमिका अदा कर सकती  है  क्योंकि इसमें  अपनाई गयी  पद्धतियां पर्यावरण के प्रति मैत्रीपूर्ण होती है।

एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) आधारित  भूमि उपयोग न सिर्फ किसान के परिवार  को वर्ष भर  रोज़गार प्रदान करने में सक्षम है अपितु कोरोना जैसी आपदाओं  में देश के अन्य  लोगो  का भरण  पोषण  करने में सक्षम  है। इससे किसान की आय में बढ़ोतरी के साथ साथ उनके जीवन स्तर में भी अप्रत्याशित सुधार की संभावनाए है। अतः एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) सीमान्त एवं लघु कृषको की आजीविका के लिए एक बेहतर विकल्प होने के साथ साथ ग्रामीण युवाओ को रोज़गार के अवसर प्रदान कर उन्हें विभिन्न कृषि उद्यमों से जोड़ने में भी अहम् भूमिका निभाने में सक्षम है।  इसके अंतर्गत किसानो की आजीविका एवं रोज़गार सुरक्षा हेतु मुख्य रूप से निम्न लिखित घटको को शामिल कर हमारे संस्थान ने इसका उचित उदहारण प्रस्तुत किया है।

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वैश्विक महामारी (कोविड -19) के दौरान: एकीकृत कृषि प्रणाली एक वरदान

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) के घटक

बकरी पालन

बकरी को गरीब की गाय कहा जाता है क्योंकि बकरी पालन में लागत बहुत कम आती है एवं उत्पादन भी अपेक्षाकृत शीघ्र होता है इसलिए इनके उत्पादों से आमदनी जल्दी प्राप्त होना शुरू हो जाती है। अच्छी नस्ल की बकरी से किसान को औसतन 30-40 हजार रुपए प्रतिवर्ष की कमाई हो सकती है जो कि किसान के जीविकोपार्जन में महत्वपूर्ण योगदान होगा।

मुर्गीपालन

अंडा व मांस उत्पादन हेतु मुर्गीपालन कर किसान वर्षभर लाभ कमा सकता है। तथा उनकी बीट को खाद के रूप में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने हेतु उपयोग में लिया जा सकता है जिससे फ़सलोत्पादन में वृद्धि होगी एवं फसल अवशेष, बचे हुए बकरी चारे एवं अनाज को मुर्गियों के खाद्य के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार एकीकृत कृषि प्रणाली से आय में वृद्धि एवं संसाधनों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है।

वर्मीकम्पोस्ट

किसान अपने खेत पर गोबर व कचरे को केचुओं की सहायता से सड़ा कर अच्छी गुणवत्ता का वर्मीकम्पोस्ट तैयार कर सकता है जिसके उपयोग से वर्षभर में वह अपने खेत पर 50 प्रतिशत तक रासायनिक खाद की मात्रा कम कर सकता है। वर्मीकम्पोस्ट मिट्टी कि गुणवत्ता को बढ़ाने के साथ-साथपैदावार बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा जिससे किसान की आय में भी वृद्धि हो सकेगी।

फसल उत्पादन

कृषि वैज्ञानिकों के मतानुसार एवं विभिन्न शोध आंकड़ों से स्पष्ट है कि एकल उत्पाद प्रणाली की बजाय खेती का विविधिकरण बेहतर होता है जिससे फ़सलोत्पादन में स्थायित्व के साथ-साथ बेरोज़गारी में कमी तथा कृषि मज़दूरो के शहरों की तरफ पलायन में भी कमी आती है। इसके अलावा यह पर्यावरण प्रदूषण एवं गरीबी की समस्या से निजात पाने में मददगार कृषि प्रणाली साबित होगी। कृषि विविधीकरण के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निम्न कार्य किये जा सकते है जिससे सीमांत एवं छोटे कृषकों की फ़सलोत्पादन लागत में कमी होगी जिसके फलस्वरूप लाभ का अनुपात बढ़ेगा।

  • प्रक्षेत्र तथा पशु अवशिष्ट पदार्थो का पुनर्चक्रण कर उनका कृषि उत्पादन में उपयोग।
  • प्रक्षेत्र तथा पशु अवशिष्ट पदार्थो के भूमि में पुनर्चक्रण द्वारा पोषक तत्वों के कमी की संभावना कम होगी एवं मृदा गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
  • प्रक्षेत्र तथा पशु अवशिष्ट एवं उर्वरक तत्वों का साथ-साथ प्रयोग उनकी उपयोग क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
  • फसलचक्र तथा फसलों का चयन वैज्ञानिक आधार पर करना चाहिए।
  • ऐसे कृषि उध्यमों का चयन करना चाहिए जो कि एक दूसरे के पूरक हो ताकि एक घटक के अवशिष्ट पदार्थों को दूसरे घटक के लिए इनपुट के रूप में प्रयोग किया जा सके।
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अजोला

अज़ोला का बकरी आहार में उपयोग  कर, बकरी आहार की लागत को कम किया जा सकता है। हरे अज़ोला को भूसे के साथ मिलाकर वृद्धि करते बच्चो तथा व्यस्क बकरियों को खिलाया जा सकता है। अज़ोला को 50-100 ग्राम/दिन वृद्धि करते बच्चो को तथा 100-200 ग्राम/दिन व्यस्क बकरियों को खिलाया जा सकता है। इसका उत्पादन बहुत ही किफायती है एवं यह अन्य पशुओ के लिए भी पोषक एवं पूरक आहार है इसके उपयोग से निम्न दुग्ध उत्पादन क्षमता वाले पशुओ में 10 लीटर प्रति पशु प्रति माह का सुधार भी देखा गया है। अजोला को मुर्गी दाने के विकल्प के रूप में उपयोग कर मुर्गी आहार पर खर्च को कम किया जा सकता है।

एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) के लाभ

वैश्विक महामारी (कोविड -19) के दौरान: एकीकृत कृषि प्रणाली एक वरदान

एकीकृत कृषि प्रणाली आधारित खेती अपनाकर प्रति इकाई क्षेत्र से प्रति इकाई समय में अधिक उपज प्राप्त होती है जिससे किसानों की आय में वृद्धि संभव है और वह हर वैश्विक आपदा से निपटने में सक्षम हो सकता है। वर्तमान में हमारे संस्थान में एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) के अंतर्गत- बकरी पालन, मुर्गी पालन, अजोला उत्पादन, केचुआ खाद, चारा एवं सब्जी उत्पादन घटको का प्रयोग कर उत्तम आय अर्जित की जा रही है। यह मॉडल केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में आने वाले सभी आगंतुकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

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