पशुओं की बीमारियाँ

फूटराट/ खुर पकना/ इनफेक्शियस पोडोडर्मेटाइटिस के कारण लक्षण एवं उपचार

यह पशुओं के खुरों का संक्रामक रोग है जिसमें खुरों के बीच में सूजन, घाव बन जाना तथा कुछ भाग मृत हो जाता है। यह लक्षण खुर के थोड़ा ऊपर वाले कोरोनरी भाग, व पीछे भी दिखाई पड़ते हैं। सामान्य भाषा में इसे खुर पकना कहते हैं। >>>

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पशुओं में क्षयरोग (ट्यूबरक्लोसिस) एवं जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं बचाव

क्षय रोग अर्थात तपेदिक या टी0बी0/ ट्यूबरकुलोसिस दीर्घकालिक संक्रामक रोग है। पशुओं में यह रोग माइकोबैक्टेरियम बोविस तथा मनुष्यों में माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु से होता है। >>>

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रेबीज (Rabies) एक जानलेवा रोग: कारण, लक्षण, बचाव एवं रोकथाम

रेबीज़ (Rabies)- इसे जलांतक (Hydrophobia) जलभीति और हड़किया रोग के नाम से भी जानते हैं। यह एक ऐसा विषाणुजनित रोग है जिसमें मुख्यतः चमगादड़,  कुत्ते या बंदर के काटने से, उसकी लार के द्वारा विषाणु  मानव/ काटे जाने वाले पशु के मष्तिष्क तंतु कुप्रभावित करते हैं और मष्तिष्कशोथ (Encephalitis) की स्थिति पैदा हो जाती है। >>>

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लम्पी स्किन डिजीज (LSD)- गांठदार त्वचा रोग

लम्पी स्किन डिजीज Lumpy Skin Disease (LSD) या गांठदार त्वचा रोग (एलएसडी) एक संक्रामक रोग है जो पॉक्सविरिडी के कारण होता है, जिसे नीथलिंग वायरस के रूप में भी जाना जाता है। यह जानवरों के बीच सीधे संपर्क द्वारा, आर्थ्रोपोड वैक्टर (मक्खियों, मच्छरों, जूं) के माध्यम से फैलता है। इस बीमारी के कारण पशुपालन उद्योग को दूध की पैदावार में कमी, गायों और सांडों के बीच प्रजनन क्षमता में कमी, गर्भपात, क्षतिग्रस्त त्वचा और खाल, वजन में कमी या वृद्धि और असामयिक मृत्यु होती है। >>>

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गायों-भैंसों में योनि बाहर निकलने की समस्या एवं घरेलु उपचार

मादा गायों एवं भैंसों में योनि का शरीर से बाहर निकलना, पशुओं के लिये तो बहुत ही कष्टदायी होता है जबकि पशुपालकों को भी अपने पशु के इलाज के लिए बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर इस समस्या को शरीर दिखाना, पीछा निकालना, फूल दिखाना, गात दिखाना इत्यादि कहा जाता है लेकिन शाब्दिक रूप से इस समस्या को योनि भ्रंश कहते हैं। >>>

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पशुधन के प्रति अमानवीय व्यवहार, क्रूरता तथा संगरोध हेतु सुरक्षा अधिनियम एवं कानून

कई बार ऐसा होता है कि पशुपालक, पशु की मौलिक आवश्यकता एवं क्षमता को नज़र अंदाज़ करके लगातार उसका उपयोग उत्पादन लेने एवं खेती संबंधी कार्य करने में लगा रहता है। पशु के प्रति ऐसा व्यवहार करने से पशु के उत्पादन एवं उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके कारण पशु बीमार रहने लगता है और अंतत: पशु की मृत्यु हो जाती है। >>>

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पशुओं में गर्भपातः कारण एवं निवारण

मृत अथवा 24 घंटे से कम समय तक जीवित भ्रूण का गर्भकाल पूर्ण होने के पूर्व गर्भाशय से बाहर निकलना गर्भपात कहलाता है। गर्भपात गर्भकाल के किसी भी समय विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है। यद्यपि भैंसों मे गर्भपात की औसत (2-3 प्रतिशत) गायों (4.72 प्रतिशत) की अपेक्षा कम पाई गयी है, पर यह भैंसों में प्रजननहीनता का एक प्रमुख कारण हो सकता है तथा पशुपालकों के आर्थिक पक्ष पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। >>>

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कोविड-19 के संक्रमण काल के अंतर्गत, पशुपालकों हेतु कोविड-19 से बचाव हेतु महत्वपूर्ण दिशा निर्देश/ सलाह

पशु आवास गृह में आगंतुकों के आवागमन को प्रतिबंधित करें। पशुशाला में कर्मचारियों की संख्या कम रखें। पशुपालकों को पशु आवास गृह में जाने से पूर्व मुंह पर मास्क पहनना चाहिए। >>>

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पशुओं के सामान्य रोग एवं उनका प्राथमिक उपचार

बुखार- लक्षण: मुंह,नथुने,शरीर,कान  ठंडा साथ में नाक से गर्म हवा निकलती है। थूथन शुष्क होता है। अधिक ताप बढ़ जाने पर पशु हॉफने लगता है।  >>>

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असामान्य या कठिन प्रसव (डिस्टोकिया) के कारण एवं उसका उपचार

ब्याने के समय मां स्वयं बच्चे को बाहर नहीं निकाल पाए और बच्चा बीच में ही फंस जाए तो इसे कठिन प्रसव (Dystocia) कहते हैं। ब्याने की तीन अवस्थाएं होती हैं >>>

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पालतू पशुओं में मुख्य विषाक्तताओं के कारण एवं निवारण

जब किसी स्वस्थ पशु की आकस्मिक मृत्यु होती है तो उसमें विषाक्तता का संदेह उत्पन्न होता है। यह विषाक्तता कोई जहरीला रसायन खाने से अथवा चारे के साथ जहरीले पौधे खाने से होता है। पशुपालकों को मुख्य विषाक्तताओं की जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे अपने पशुओं का इनसे बचाव कर सकें। >>>

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कुत्तों में बबेसियोसिस रोग के कारण, लक्षण एवं उपचार

कुत्तों में बबेसियोसिस, रोग किलनी बुखार के नाम से भी प्रसिद्ध है, जो कुत्तों के रक्त के लाल रक्त कणों में रक्त प्रोटोजोआ की उपस्थिति के कारण होता है। >>>

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पशुओं में होने वाले दुग्ध ज्वर के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

दुग्ध ज्वर एक चपापचई रोग है जो गाय भैंस में ब्याने के 2 से 3 दिनों के अंदर ही होता है परंतु ब्याने के पूर्व या अधिकतम उत्पादन के समय भी हो सकता है। पशु के रक्त में और मांसपेशियों में कैल्शियम की भारी कमी इसका मुख्य कारण होता है। शरीर में रक्त का प्रवाह काफी कम व धीमा हो जाता है अंत में पशु काफी सुस्त होकर लगभग बेहोशी की अवस्था में चला जाता है। >>>

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गाय की चेचक/ माता/ गो मसूरी, कारण, लक्षण एवं बचाव

इस बीमारी को वैक्सीनिया या वेरीओला भी कहते हैं। यह एक घातक, संक्रामक  एवं छूत का रोग है। यह प्रायः  दूध देने वाली  गायों  एवं भैंसों में अधिक पाया जाता है इस रोग में शरीर की त्वचा पर विशेष प्रकार के फफोले उत्पन्न हो जाते हैं और थन तथा अयन पर दाने निकल आते हैं जो बाद में फूटकर घाव बन जाते हैं। >>>