भारत में पशुधन विकास हेतु सरकारी योजनाएं
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है, जिसकी 60-80 प्रतिशत आबादी किसी न किसी क्षमता में खेतों >>>
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है, जिसकी 60-80 प्रतिशत आबादी किसी न किसी क्षमता में खेतों >>>
भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अधिक लम्बे समय तक रहती है तथा तापमान 45 से 47 ℃ तक पहुँच जाता है जिसके कारण पशु तनाव की स्थिति में रहते हैं। >>>
भारत गांवों में बसता है। यहाँ कृषि भूमि की अपेक्षा गायों का ज्यादा समानता पूर्वक >>>
प्रस्तावना विभिन्न पशुओ के फार्म से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग विभिन्न उत्पादो को बनाने >>>
दुग्ध ज्वर एक मेटाबोलिक (उपापचयी) रोग है जिसे अंग्रेजी में मिल्क फीवर रोग कहा जाता है, जो गाय या भैंस में ब्याहने से दो दिन पहले से लेकर तीन दिन बाद तक होता है। परन्तु कुछ पशुओं में यह रोग ब्याने के पश्चात 15 दिन तक भी हो सकता है। मिल्क फीवर पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। मिल्क फीवर ज्यादातर अधिक दूध देने वाली गाय या भैंस में होता है परन्तु यह रोग भेड़ बकरियों की दुधारू नस्लों में भी हो सकता है। >>>
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि एवं पशु पालन भारतीय अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व रखते हैं, सकल धरेलु कृषि उत्पाद में पशुपालन का 30 प्रतिशत योगदान सराहनीय है, जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। >>>
खुरपका-मुँहपका एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है, जो पशुओं के विभिन्न प्रकार जैसे गाय, भैंस, भेड़, बकरी और शूकर में फैलता है। यह रोग पशुओं के संक्रमण दर तक पहुंच सकता है और बछड़ों में 20% तक मृत्यु की दर हो सकती है। >>>
हमारा भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ खेती तथा पशुपालन का अटूट रिश्ता है। देश के किसानों के लिए कृषि के साथ साथ पशुपालन अत्यधिक महत्वपूर्ण व्यवसाय है जिससे वे एक अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। >>>
वे रोग जो बैक्टीरिया, वाइरस तथा प्रोटोजोआ द्वारा फैलते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। छूत से फैलने वाले सभी रोग संक्रामक रोग होते है। प्रमुख संक्रामक रोग निम्न है: खुरपका मुंहपका रोग- यह एक >>>
लंपी स्किन रोग गायों और भैंसों का एक वेक्टर-जनित चेचक रोग है और त्वचा पर गांठों की उपस्थिति लंपी स्किन रोग की विशेषता है। यह रोग कई भारतीय राज्यों जैसे राजस्थान, असम, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, >>>
प्रदेश में घोड़े और खच्चरों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, स्थिति यह है की अब राज्य में मात्र बत्तीस हज़ार घोड़े और खच्चर ही बचे है। अगर इसके संरक्षण और संवर्धन के प्रति गंभीरता से कदम नहीं उठाया गया तो यह प्रजाति प्रदेश से विलुप्त हो जाएगी। >>>
सामान्यतः गाभिन पशुओं में ब्याने के 3-6 घंटे के अंदर जेर स्वतः बाहर निकल आती है, परन्तु यदि ब्याने के 8-12 घंटे के बाद भी जेर नहीं निकला तो उस स्थिति को जेर के रुकने की स्थिति कहा जाता है। जेर की रुकने की समस्या का डेयरी पशु के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। >>>
जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग, पशुओ की उत्पादक क्षमता को प्रभावित करता है। गर्मी से होने वाले तनाव (हीट स्ट्रेस) को कम करने के लिए पशु अपनी उपापचय क्रिया को बदलते हुए, खाने का सेवन कम कर देते हैं, जिससे पशुओ का वजन कम होने लगता है। >>>
पारम्परिक रूप से पशु पालन में डेयरी व्यवसाय कृषि की द्वितीयक स्वरूप के परे एक संगठित उद्योग के स्वरूप को प्राप्त है। आज किसान दुग्ध व्यवसाय को व्यापार व आर्थिक उन्नति का आधार बनाया है। इस कारण से आज >>>