सार
विश्वभर में 70 प्रतिशत से भी अधिक संक्रामक रोग प्राणीरूजा हैं जो पशुओं से मनुष्यों में फैलते हैं और इनकी संख्या और प्रकोप में भी लगातार वृद्धि हो रही है। प्राणीरूजा रोगों के फैलने से न केवल मानवीय जीवन पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव होता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनको नियंत्रित करने के भी भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। प्राणीरूजा रोगों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न संकायों के वैज्ञानिकों को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है जिसे एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को अपनाकर ही पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही जनसाधारण को इस दृष्टिकोण के माध्यम से जागरूक और सचेत कर प्राणीरूजा रोगों पर काबू पाया जा सकता है। निर्याणक रूप से यह कहा जा सकता है कि समन्वित सांझे प्रयास से अपनाये गये एक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से भविष्य के घातक रोगों से लड़ा जा सकता है।
प्रमुख शब्द: प्राणीरूजा रोग, पारिस्थितिकी, पशु-मानव अंतर्संबंध, सहयोग, बहुविषय, एक स्वास्थ्य।
दुनिया भर में प्राणीरूजा रोगों के खतरे के केंद्रों का पता लगाने के लिए, केट ई जोन्स के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक समूह ने 2008 में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर’ में एक शोधपत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होने ने 1940 से 2004 तक विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में उभरती संक्रामक बीमारियों की 335 घटनाओं का विश्लेषण किया। उनके शोध के अनुसार 70 प्रतिशत से भी अधिक उभरती संक्रामक बीमारियां पशु संसर्गजन्य थीं और उन्होंने 1940 से 1980 के दशक में अधिकतम तक पहुंचने की बढ़ती प्रवृत्ति दिखाई। अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार बाद के दशकों यानी 1990-2000 में उभरती संक्रामक बीमारियों की घटनाओं में मामूली गिरावट देखी गई, लेकिन वन्यजीवों से उत्पन्न होने वाली संक्रामक बीमारियों की घटनाओं के अनुपात में अधिक वृद्धि देखी गई (Jones et al. 2008)। संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केन्द्र (सीडीसी) के अनुसार, 60% संक्रामक रोग जूनोसिस हैं और 75% से अधिक नए उभरते संक्रामक रोग जानवरों में उत्पन्न होते हैं (Vidal 2020)।
1990 के दशक से यह स्पष्ट हो गया है कि अधिकांश नये और उभरते आकस्मिक पशु संसर्गजन्य संक्रामक रोग, विशेष रूप से वन्यजीवों में उत्पन्न होते हैं और उद्भव के प्रमुख चालक कारक मानव गतिविधियों से जुड़े होते हैं, जिसमें पारिस्थितिक तंत्र और भूमि उपयोग में परिवर्तन, कृषि गहनता, शहरीकरण और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार इत्यादि शामिल हैं। जोखिम मूल्यांकन और नियंत्रण के लिए प्रत्येक उभरते हुए पशु संसर्गजन्य रोग की पारिस्थितिकी को समझने के लिए, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की समस्याओं को समझते हुए एक सहयोगी और बहु-अनुशासनिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। आधुनिक विकृति विज्ञान के जनक रुडोल्फ विर्चोव ने एक सदी पहले कहा था (CDC 2016):
“पशु और मानव चिकित्सा के बीच कोई विभाजित रेखा नहीं है और न ही होनी चाहिए। वस्तु अलग है, लेकिन प्राप्त अनुभव सभी चिकित्साओं का आधार बनता है”।
हालांकि, मानव और पशु स्वास्थ्य उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के दौरान शैक्षणिक, प्रशासनिक और अनुप्रयोग स्तरों पर अलग-अलग विषयों में विकसित हुए हैं लेकिन पशु संसर्गजन्य रोगों के खिलाफ एक एकीकृत चिकित्सा और पशु चिकित्सा दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाले केल्विन श्वाबे ने 1960 के दशक में ‘वन मेडिसिन’ (Kahn et al. 2008) का सिद्धांत दिया। उनका अद्योलिखित कथन मानव और पशु स्वास्थ्य की समानता पर ध्यान केंद्रित करता है।
‘मानव और पशु चिकित्सा के बीच प्रतिमान में कोई अंतर नहीं है और दोनों चिकित्साओं का एक ही वैज्ञानिक आधार है।’
एक स्वास्थ्य क्या है?
एक स्वास्थ्य की संकल्पना नई नहीं है जिसकी सबसे पहले ‘एक चिकित्सा’ के रूप में, लेकिन फिर ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य’ और अंत में ‘एक स्वास्थ्य’ के रूप में संकल्पना की गई। हालांकि, एक स्वास्थ्य की परिभाषा के लिए कई सुझाव दिये गये लेकिन किसी की भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकल सहमती नहीं है (Mackenzie & Jeggo 2019)। संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केन्द्र (सीडीसी) और एक स्वास्थ्य आयोग द्वारा साझा की जाने वाली सबसे अधिक प्रचलित परिभाषा इस प्रकार है (CDC 2021):
“एक स्वास्थ्य, मनुष्यों, जानवरों, पौधों और उनके साझा वातावरण के बीच अंतर्संबंध को पहचानने के लिए इष्टतम स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर काम करने वाला एक सहयोगी, बहुक्षेत्रीय और बहुविषयक (ट्रांसडिसिप्लिनरी) दृष्टिकोण है।”
वन हेल्थ ग्लोबल नेटवर्क द्वारा सुझाई गई एक परिभाषा के अनुसार: ‘एक स्वास्थ्य यह दर्शाता है कि मनुष्यों, पशुओं और पारिस्थितिक तंत्रों का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है। इसमें पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र अंतराफलक (इंटरफेस) से उत्पन्न संभावित या मौजूदा जोखिमों को दूर करने के लिए एक समन्वित, सहयोगी, बहु-विषयक और क्रॉस-सेक्टरल दृष्टिकोण लागू करना इत्यादि सम्मिलित हैं’ (OHGN 2021)।
शाब्दिक परिभाषा चाहे जो भी हो स्वीडन के ‘एक स्वास्थ्य’ कार्यक्रम के चित्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘एक स्वास्थ्य’ एक ऐसा दृष्टिकोण है जो मनुष्यों, पशुओं और पर्यावरण की भलाई के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर सहयोगात्मक समस्या समाधान को सुनिश्चित करता है’ (OHS 2020)।
एक स्वास्थय का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्राचीन काल में चिकित्सक अक्सर पुजारी होते थे जो मनुष्यों और पशुओं, दोनों की चिकित्सकीय देखभाल किया करते थे (Schwabe 1964)। यदि ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो ‘एक स्वास्थ्य’ प्राचीन एथेंस और रोम में भी प्रचलित था। अमेरिकी पशु चिकित्सक और परजीवी विज्ञानी, केल्विन श्वाबे के अनुसार प्राचीन समय में एथेंस और रोम में मांस का मानवीय सेवन करने से पहले उसका निरीक्षण किया जाता था, और निरीक्षकों द्वारा वर्जित किए गए मांस को तिबर नदी में फेंक दिया जाता था। प्राचीन रोम में सार्वजनिक बूचड़खाने थे जिनमें मांस का नियमित रूप से निरीक्षण किया जाता था लेकिन सरकारी मांस निरीक्षण स्पष्ट रूप से रोमन साम्राज्य के पतन के साथ ही गायब हो गया (Saunders 2000)।
- यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (460 ईसा पूर्व – 370 ईसा पूर्व) ने ‘ऑन एयर, वाटर्स एंड प्लेस’ पुस्तक में मानव रोगों और पर्यावरण के बीच एक कारण संबंध स्थापित करने के लिए पहला व्यवस्थित प्रयास किया गया था। उन्होने इस अवधारणा को बढ़ावा दिया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य स्वच्छ वातावरण पर निर्भर करता है (Jones 1923)।
- 18वीं शताब्दी में, पोप क्लेमेंट-11 ने एक चिकित्सक, डॉ. जियोवानी मारिया लैंसीसी को निर्देश दिया कि वे रिंडरपेस्ट से निपटने के लिए रोग नियंत्रण उपायों को विकसित करें, जो मवेशियों की एक अत्यधिक घातक वायरल बीमारी है और जो उस दौरान मानव खाद्य आपूर्ति को नष्ट कर रही थी। लैंसीसी ने सिफारिश की कि बीमार और संदिग्ध जानवरों को नष्ट कर दिया जाए। लैंसीसी के सिद्धांतों को लागू करने के लिए, फ्रांस के लियोन में विश्व का पहला पशु चिकित्सा स्कूल स्थापित किया गया था (Palmarini 2007)। 19वीं शताब्दी में, रुडोल्फ विर्चोव और विलियम ओस्लर ने इन पार-विषयक (क्रॉस-डिसीप्लीनरी) प्रयासों को जारी रखा।
- विलियम ओस्लर (1849-1919), एमडी, एक कैनेडियन चिकित्सक थे जिन्हें उत्तरी अमेरिका में पशु चिकित्सा विकृति (पैथोलॉजी) का जनक माना जाता है। डॉ. ओस्लर की मानव और पशु चिकित्सा के बीच संबंधों में गहरी रुचि थी। उन्होंने डॉ विरचो सहित कई प्रसिद्ध चिकित्सकों और पशु चिकित्सकों के साथ प्रशिक्षण लिया। उनके पहले प्रकाशनों में से एक शीर्षक था, ‘मनुष्य से जानवरों का संबंध’। 1876 में मैकगिल विश्वविद्यालय के चिकित्सा संकाय में सेवा करते हुए, डॉ ओस्लर ने पास के मॉन्ट्रियल वेटरनरी कॉलेज के मेडिकल छात्रों और पशु चिकित्सा छात्रों को व्याख्यान दिया (Saunders 1987, CDC 2016)।
- 1866 में स्थापित मॉन्ट्रियल वेटरनरी कॉलेज में डा. डंकन मैक एचरन के मैकगिल विश्वविद्यालय के मेडिकल फैकल्टी के साथ घनिष्ठ संबंध थे, जिससे उनके छात्रों को मेडिकल छात्रों के साथ बुनियादी विषयों में समान कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति मिली। आखिरकार, मॉन्ट्रियल पशु चिकित्सा कॉलेज औपचारिक रूप से मैकगिल विश्वविद्यालय से तुलनात्मक चिकित्सा और पशु चिकित्सा विज्ञान के संकाय के रूप में संबद्ध था (Saunders 1987)।
- अपने शैक्षणिक चिकित्सा व्यवसाय की शुरुआत में, रुडोल्फ विर्चोव (1821-1902) ने पशु प्रयोगों में सुअर के मांसपेशीय ऊतकों में त्रिचिनेला स्पाइरालिस के जीवन चक्र और मवेशियों में सिस्टीसरकोसिस और तपेदिक रोग का अध्ययन किया और 1880 में ‘जूनोसिस‘ शब्द दिया। जूनोसिस (प्राणीरूजा) का शाब्दिक अर्थ है कि ऐसे रोग जो पशुओं से मनुष्यों को संक्रमित करते हैं। उनके अध्ययनों ने यूरोप और अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका में पशु चिकित्सकों द्वारा नियमित रूप से मांस निरीक्षण करने में मदद की (Saunders 2000)।
- 1893 में, मानव चिकित्सक डॉ. थियोबाल्ड स्मिथ और और पशु चिकित्सक डॉ. एफ एल किलबोर्न ने मवेशियों में लाल पेशाब रोग का कारण रक्त परजीवी बाबेसिया बाईजेमिना चिचड़ियों से फैलने की खोज की। उनकी इस खोज ने वाल्टर रीड और उनके सहयोगियों द्वारा मनुष्यों में पीत ज्वर (येलो फीवर) के संचरण की खोज के लिए मंच तैयार करने में मदद की (Wilkinson 1992)।
- 1947 में, डा. जेम्स हरलान स्टील (1913-2013) ने रोग नियंत्रण एवं निवारण केंद्र (सीडीसी) में पशु चिकित्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाग की स्थापना की। वह पहले पशु चिकित्सक थे, जिन्होंने 1971 में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा कमीशन कोर में सहायक सर्जन जनरल की उपाधि प्राप्त की। अमेरिकी पशु चिकित्सक डॉ. स्टील ने प्राणीरूजा रोगों की महामारी विज्ञान में जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझा और उन्होंने माना कि अच्छे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा पशु स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। इस प्रभाग ने रेबीज, ब्रुसेलोसिस, साल्मोनेलोसिस, क्यू फीवर, गोजातीय तपेदिक और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी बीमारियों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीडीसी में इस डिवीजन के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका और विश्वभर के अन्य देशों में पशु चिकित्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य के सिद्धांतों को पेश किया (Schultz 2014)।
- डॉ केल्विन श्वाबे (1927-2006) कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस में पशु चिकित्सा महामारी विज्ञानी और परजीवी विज्ञानी थे। 1964 में उन्होंने एक मोनोग्राफ प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने प्रस्तावित किया कि पशु चिकित्सा और मानव स्वास्थ्य पेशेवर पशु संसर्गजन्य रोगों से निपटने के लिए सहयोगी हैं। अपनी पाठ्यपुस्तक, ‘वेटरनरी मेडिसिन एंड ह्यूमन हेल्थ’ में, उन्होने ‘वन मेडिसिन’ शब्द दिया। यह शब्द मानव और पशु चिकित्सा के बीच समानता और मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करने वाली बीमारियों को प्रभावी ढंग से ठीक करने, रोकने और नियंत्रित करने के लिए सहयोग की आवश्यकता पर जोर देता है (CDC 2016)।
- 1996 का नोबेल पुरस्कार विजेता, मानव चिकित्सक डॉ. रॉल्फ जिन्करनागेल और पशु चिकित्सक डॉ. पीटर सी डोहर्टी, ने पता लगाया कि कैसे प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य कोशिकाओं को वायरस से संक्रमित कोशिकाओं से अलग करती है। मानव चिकित्सा और पशु चिकित्सा एक साथ, प्रजातियों में नई वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि उत्पन्न कर सकते हैं, जो कि आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है (Kahn 2008)।
- 1996 में सीडीसी, अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन और अमेरिकी कृषि विभाग के बीच सहयोग से ‘राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी सिस्टम’ की स्थापना की गई थी (NASEM 2017)।
- 1999 में, सोसाइटी फॉर ट्रॉपिकल वेटरनरी मेडिसिन और वाइल्डलाइफ डिजीज एसोसिएशन द्वारा ‘वैश्विक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना’ बैनर के तहत थीम्ड सम्मेलनों की एक श्रृंखला आयोजित की गई थी। इन सम्मेलनों के दूसरे, पिलानस्बर्ग, दक्षिण अफ्रीका में 2001 में आयोजित किया, रोग नियंत्रण, संरक्षण, सतत खाद्य उत्पादन और उभरते रोगों से संबंधित इंटरफ़ेस घरेलू पशु/वन्य जीवन पर मुद्दों को संबोधित किया (Gibbs 2014)।
- 29 सितंबर, 2004 को, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने न्यूयॉर्क शहर में रॉकफेलर विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी के लिए मानव और पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक समूह को एक साथ लाने का कार्य किया। ‘वैश्विक दुनिया में स्वास्थ्य के लिए अंतःविषय सेतु का निर्माण’ शीर्षक वाली इस संगोष्ठी में भाग लेने वालों ने मनुष्यों, घरेलू पशुओं और वन्यजीवों के बीच रोगों के गमनागमन पर चर्चा की। मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिए संगोष्ठी ने 12 सिद्धान्त निर्धारित किये। इन सिद्धान्तों, जिन्हें ‘मैनहट्टन प्रिंसीपल्स एक्सटर्नल आइकन’ के रूप में जाना जाता है, ने बीमारी को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय, अंतःविषय दृष्टिकोण का आह्वान किया और ‘एक स्वास्थ्य, एक विश्व’ अवधारणा का आधार बनाया (CDC 2016)।
- 25 जून, 2007 को, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन हाउस ऑफ डेलीगेट्स ने “एक स्वास्थ्य” प्रस्ताव को मंजूरी दी, जो मानव और पशु चिकित्सा के बीच साझेदारी को बढ़ावा देता है। अमेरिकन वेटरनरी मेडिकल एसोसिएशन ने 3 जुलाई 2007 में प्रसिद्ध पशु चिकित्सकों, मानव चिकित्सकों और संबद्ध स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की एक टास्क फोर्स की स्थापना की। इसे ‘एक स्वास्थ्य’ अवधारणा को लागू करने के लिए रणनीति विकसित करने का प्रभार सौंपा गया (Kahn et al. 2008)।
- दिसंबर 4-6, 2007, एवियन और महामारी इन्फ्लुएंजा पर अंतर्राष्ट्रीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 111 देशों और 29 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने नई दिल्ली, भारत में संगोष्ठी की। इस संगोष्ठी के दौरान, सरकारों को महामारी की तैयारी और मानव सुरक्षा के लिए मानव और पशु स्वास्थ्य प्रणालियों के बीच संबंध बनाकर एक स्वास्थ्य अवधारणा को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया (CDC 2016)। इस सम्मेलन की सिफारिशों की प्रतिक्रिया में वर्ष 2008 में खाद्य और कृषि संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, विश्व बैंक और यूनाइटेड नेशन्स सिस्टम फार इन्फ्लुएंजा कॉऑर्डिनेशन इत्यादि संगठन पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र इंटरफेस पर संक्रामक रोगों के जोखिम को कम करने के लिए एक रणनीतिक ढांचा – ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य में योगदान’ नामक एक दस्तावेज विकसित करने के लिए एक साथ आए। यह 2000 के दशक की शुरुआत में अत्यधिक रोगजनक एच5एन1 एवियन इन्फ्लूएंजा प्रतिक्रिया से सीखे गए अध्ययनों पर बनाया गया था और पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र इंटरफेस में उभरते संक्रामक रोगों के लिए एक स्वास्थ्य अवधारणा को लागू करने के लिए एक रणनीति प्रस्तुत की (CDC 2016)।
- 25-26 अक्टूबर, 2008 में 120 से अधिक देशों और 26 अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने मिस्र के शर्म-अल-शेख में एवियन और महामारी इन्फ्लुएंजा पर अंतर्राष्ट्रीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भाग लिया। इस बैठक के दौरान, ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य में योगदान – पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र इंटरफेस में संक्रामक रोगों के जोखिम को कम करने के लिए एक रणनीतिक ढांचा’ को आधिकारिक तौर पर जारी किया गया। ढांचे के आधार पर, प्रतिभागियों ने एवियन इन्फ्लूएंजा और अन्य संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए एक नई रणनीति का समर्थन किया, जो उन क्षेत्रों में संक्रामक रोग नियंत्रण पर केंद्रित है जहां जानवरों, मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्र मिलते हैं (CDC 2016)।
- मार्च 16-19, 2009 में कनाडा की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी ने विन्निपेग, मैनिटोबा में ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य’ कार्यक्रम की मेजबानी की जिसमें 23 राष्ट्रों के विशेषज्ञों ने भाग लिया। यह तकनीकी गोष्ठी ‘एक विश्व, एक स्वास्थ्य’ रणनीति पर चर्चा करने के लिए आयोजित की गई थी, जिसे पहली बार शर्म अल-शेख में एवियन और महामारी इन्फ्लुएंजा पर 2008 के अंतर्राष्ट्रीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जारी किया गया था। बैठक के दौरान, उन कार्यों के लिए प्रमुख सिफारिशें सामने आईं कि कोई भी राष्ट्र ‘एक स्वास्थ्य’ के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए अपना सकते हैं (CDC 2016)।
- 2009 में, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट ने इमर्जिंग पैंडेमिक थ्रेट प्रोग्राम शुरू किया। कार्यक्रम का उद्देश्य पशु मूल के रोगों के उद्भव को रोकने के लिए एक समन्वित, व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रयास सुनिश्चित करना है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकते हैं। इमर्जिंग पैंडेमिक थ्रेट प्रोग्राम पशु और मानव स्वास्थ्य क्षेत्रों से विशेषज्ञता प्राप्त करता है ताकि प्रारंभिक रोग का पता लगाने, प्रयोगशाला-आधारित रोग निदान, त्वरित रोग प्रक्रिया और रोकथाम, और जोखिम में कमी के लिए क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर ‘एक स्वास्थ्य’ क्षमता का निर्माण किया जा सके।
- 2009 में, सीडीसी में ‘एक स्वास्थ्य’ कार्यालय की स्थापना की गई (CDC 2016)।
- ‘एक स्वास्थ्य’ के व्यापक कार्यान्वयन की सिफारिश करने वाली अप्रैल 19-21, 2010, हनोई घोषणा को सर्वसम्मति से अपनाया गया (CDC 2016)।
- 14-16 फरवरी, 2011, मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में पहली अंतर्राष्ट्रीय ‘एक स्वास्थ्य’ कांग्रेस आयोजित की गई (CDC 2016)।
- 15-17 नवंबर, 2011 को मेक्सिको सिटी में आयोजित एक उच्च स्तरीय तकनीकी गोष्ठी में तीन प्राथमिकता वाले एक स्वास्थ्य विषयों – रेबीज, इन्फ्लूएंजा और रोगाणुरोधी प्रतिरोध को उजागर करके विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को संबोधित किया (CDC 2016)।
- फरवरी 19-22, 2012, स्विट्जरलैंड के दावोस में पहला एक स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। शिखर सम्मेलन ने एक स्वास्थ्य अवधारणा को खाद्य सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वास्थ्य खतरों का प्रबंधन करने के तरीके के रूप में प्रस्तुत किया (CDC 2016)।
- 2012 में, हृदय रोग विशेषज्ञ बारबरा नैटरसन-होरोविट्ज, और एक विज्ञान पत्रकार, कैथरीन बोवर्स ने पशु और मानव स्वास्थ्य के बीच समानता के मामले के अध्ययन पर प्रकाश डालने वाली ‘जूबिक्विटी’ पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में अंतःविषय अनुसंधान पहल के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की गई जूबिक्विटी सम्मेलन श्रृंखला भी प्रस्तुत की है।
- 2016 में, एक स्वास्थ्य आयोग, एक स्वास्थ्य मंच और वन हेल्थ इनिशिएटिव टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘एक स्वास्थ्य दिवस’ को प्रतिवर्ष 3 नवंबर मनाने पर निर्णय किया (WVA 2016)।
- खाद्य और कृषि संगठन विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर काम करता है, इन तीनों को त्रिपक्षीय संगठनों के रूप में संदर्भित किया जाता है। 2019 में इन त्रिपक्षीय संगठनों ने एक स्वास्थ्य ढांचे के अंतर्गत प्राणीरूजा रोगों के लिए ‘त्रिपक्षीय जूनोटिक गाइड’ प्रकाशित की। इस गाइड में मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर अन्य स्वास्थ्य खतरों के लिए उपयोग किए जाने के लिए पर्याप्त लचीलापन है; उदाहरण के लिए, खाद्य सुरक्षा और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (WHO 2019)।
- 2020 में संपूर्ण विश्व में कोविड-19 महामारी फैली होने के कारण छटी एक स्वास्थ्य कांग्रेस का आयोजन एक स्वास्थ्य मंच द्वारा 30 अक्टूबर से 3 नवंबर 2020 के बीच ऑनलाइन आयोजित किया गया (Duane et al. 2021)।
एक स्वास्थ्य- पर्यायवाची और सीमांकन
अतीत में ‘एक चिकित्सा’ (वन मेडिसिन), ‘तुलनात्मक चिकित्सा’ (कम्पेरेटिव मेडिसिन), ‘अनुवादकीय चिकित्सा’ (ट्रांसलेशनल मेडिसिन), ‘जीव व्यापकता’ (जुबिक्विटी) और ‘विकासवादी चिकित्सा’ (इवोलूशनरी मेडिसिन) को एक स्वास्थ्य का पर्यायवाची कहा गया है (Lerner & Berg 2015)।
- ‘एक चिकित्सा’, हालांकि विशेष रूप से तो नहीं लेकिन मुख्यतः संक्रामक या पशु संसर्गजन्य रोगों के संबंध में उपयोग की जाती है, निश्चित रूप से अन्य स्वास्थ्य पहलू भी हैं जो मानवों और अन्य पशुओं की प्रजातियों में समान हैं।
- कई स्थितियों में, पशुओं को मानव रोगों के लिए मॉडल के रूप में उपयोग किया जाता है, और कुछ मामलों में कुछ बीमारियों या संलक्षण रोगों (सिंड्रोम) के बारे में ज्ञान भी पशुओं की कुछ प्रजातियों में वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस घटनाक्रम को आमतौर पर ‘तुलनात्मक चिकित्सा’ के रूप में जाना जाता है।
- एक स्वास्थ्य के संदर्भ में कभी-कभी ‘अनुवादकीय चिकित्सा’ का उपयोग भी किया जाता है। इस शब्द का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि कैसे बुनियादी वैज्ञानिक विषयों में अलग-अलग ज्ञान को नए या उच्च उपचारों, प्रक्रियाओं, नैदानिक उपकरणों या व्यक्तियों और जनसंख्या के लिए अनुवाद किया जाता है।
- जीव सर्वव्यापी हैं, जो मनुष्यों और पशुओं में एक तरह ही उत्पन्न होते हैं और एक जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न करते हैं। इसलिए ‘जीव व्यापकता’ दृष्टिकोण भी प्रचलन में आया है। इसका उद्देश्य चिकित्सा के लिए एक प्रजाति-विस्तारित (स्पीसिज-स्पानिंग) दृष्टिकोण को लागू करना है, इसमें न केवल संक्रामक रोग, या स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कैंसर या चपापचयी रोग बल्कि मानसिक रोग भी शामिल हैं जिसमें व्यवहार संबंधी समस्याओं से लेकर व्यसन (बुरी आदतें) या अवसाद (डिप्रेशन) भी शामिल हैं। फिर भी एक उद्देश्य, मानव और पशु चिकित्सा और जीव विज्ञान को एक अंतःविषय (इंटरडिसिप्लीनरी) दृष्टिकोण में एकीकृत करना है।
- ‘विकासवादी चिकित्सा’ जीव विज्ञान के क्षेत्र से स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण की चर्चा को समझाने और योगदान देने वाला एक नितिगत तंत्र है। नैटरसन-होरोविट्ज और बोवर्स के अनुसार, विकासवादी चिकित्सा का उपयोग यह समझाने के लिए किया जाता है कि कुछ बीमारियों की वंशावली समान है और लंबे समय से अस्तित्व में है (उदाहरण के लिए, कैंसर, जो डायनासोर में भी पाया जाता था, अभी भी मनुष्यों और पशुओं में पाया जाता है)। हालांकि, अन्य मामलों में विकासवादी चिकित्सा, विशुद्ध मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से मानवों और मानव स्वास्थ्य और रोगों पर अत्यधिक केंद्रित प्रतीत होती है।
इन सभी अवधारणाओं की अपनी एक सीमित सीमा है लेकिन ‘एक स्वास्थ्य’ व्यापक दृष्टिकोण है। अतः इन सभी अवधारणाओं के लिए ‘एक स्वास्थ्य’ को एक व्यापक शब्द के रूप में उपयोग किया जा सकता है। पशुओं से मनुष्यों में होने वाले संक्रमणों में से 2003 में सार्स के बाद मर्स और 2019 में उत्पन्न और 2020 में विश्वभर में फैली कोविड-19 महामारी के कारण ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण ने बल पकड़ा है।
एक स्वास्थ्य के संबंध में मैनहट्टन सिद्धांत
स्वास्थ्य और समाज की भलाई के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ‘एक चिकित्सा’ की परिकल्पना को व्यावहारिक कार्यान्वयन और विभिन्न समायोजनों में सावधानीपूर्वक सत्यापन के माध्यम से ‘वन वर्ल्ड – वन हेल्थ’ (एक विश्व – एक स्वास्थ्य) तक बढ़ा दिया गया है। ‘एक विश्व – एक स्वास्थ्य’ वाक्य का उपयोग सर्वप्रथम 2003-04 में किया गया। ‘एक स्वास्थ्य’ शब्द 2003 में सार्स रोग का उद्भव तत्पश्चात् अत्यधिक संक्रामक एवियन इन्फ्लूएंजा एच5एन1 के प्रसार से जुड़ा था और सितबंर 2004 में वन्यजीव संरक्षण समिति की एक बैठक में सामरिक ‘मैनहट्टन सिद्धांतों’ के रूप में ज्ञात रणनीतिक लक्ष्यों की श्रृंखला प्राप्ति से जुड़ा है। मैनहट्टन सिद्धांत स्पष्ट रूप से मानव और पशु स्वास्थ्य के बीच की कड़ी और खाद्य आपूर्ति और अर्थव्यवस्था के लिए बीमारियों के खतरों को दर्शाते हैं। वन्यजीव संरक्षण समिति द्वारा सुझाए गये 12 मैनहट्टन सिद्धांत इस प्रकार हैं (Cook et al. 2004):
- मानव, घरेलू पशु और वन्यजीव स्वास्थ्य और मानव के लिए खतरनाक बीमारी, उनकी खाद्य आपूर्ति और अर्थव्यवस्था, और स्वस्थ वातावरण और कामकाजी पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने के लिए आवश्यक जैव विविधता के बीच आवश्यक कड़ी को पहचानें, जिसकी हम सभी को आवश्यकता है।
- यह स्वीकार करें कि भूमि और जल के उपयोग से संबंधित निर्णयों का स्वास्थ्य पर वास्तविक प्रभाव पड़ता है। पारिस्थितिक तंत्र के लचीलेपन में परिवर्तन और रोग के उद्भव और प्रसार के स्वरूप में बदलाव तब प्रकट होता है जब हम इस संबंध को पहचानने में विफल होते हैं।
- वैश्विक रोग रोकथाम, चौकसी, निगरानी, नियंत्रण और शमन के एक अनिवार्य घटक के रूप में वन्यजीव स्वास्थ्य विज्ञान को शामिल करें।
- यह स्वीकार करें कि मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम संरक्षण प्रयासों में बहुत योगदान दे सकते हैं।
- प्रजातियों के बीच जटिल अंतर्संबंधों को पूरा ध्यान में रखते हुए उभरती और फिर से उभरने वाली बीमारियों की रोकथाम, निगरानी, नियंत्रण और शमन के लिए अनुकूलक, समग्र और दूरंदेशी दृष्टिकोण तैयार करें।
- संक्रामक रोग खतरों के समाधान विकसित करते समय जैव विविधता संरक्षण के दृष्टिकोण और मानव आवश्यकताओं (घरेलू पशु स्वास्थ्य से संबंधित सहित) को पूरी तरह से एकीकृत करने के अवसरों की तलाश करें।
- वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए बल्कि रोग संचरण, पार-प्रजाति संचरण, और नव रोगजनक-मेजबान संबंधों के विकास के जोखिम को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जीवित वन्यजीवन और बुशमीट व्यापार की मांग को कम करना और श्रेष्ठतापूर्वक विनियमित करना। सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और संरक्षण पर प्रभाव के संदर्भ में इस विश्वव्यापी व्यापार की लागत बहुत अधिक है, और वैश्विक समुदाय को इस व्यापार को वैश्विक सामाजिक आर्थिक सुरक्षा के लिए वास्तविक खतरे के रूप में संबोधित करना चाहिए।
- रोग नियंत्रण के लिए स्वतंत्र रूप से वन्यजीव प्रजातियों की सामूहिक शिकार (हत्या) को उन स्थितियों तक सीमित करें जहां एक बहु-विषयक, अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहमति है कि एक वन्यजीव आबादी मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, या वन्यजीव स्वास्थ्य के लिए अधिक व्यापक रूप से एक तत्काल, महत्वपूर्ण खतरा है।
- मनुष्यों, घरेलू पशुओं और वन्यजीवों के लिए उभरती और पुनर्जागृत बीमारी के खतरों की गंभीर प्रकृति के अनुरूप वैश्विक मानव और पशु स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाना। भाषा बाधाओं को ध्यान में रखकर तैयार वैश्विक मानव और पशु स्वास्थ्य निगरानी, स्पष्ट और समय पर सूचना के साझाकरण की भूमिका सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों, सार्वजनिक और पशु स्वास्थ्य संस्थानों, वैक्सीन/दवा निर्माताओं, और अन्य हितधारकों के मध्य सामंजस्य में सुधार कर सकती है।
- वैश्विक स्वास्थ्य और जैव विविधता संरक्षण की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकारों, स्थानीय लोगों और निजी और सार्वजनिक (अर्थात गैर-लाभकारी) क्षेत्रों के बीच सहयोगात्मक संबंध बनाएं।
- वैश्विक वन्यजीव स्वास्थ्य निगरानी नेटवर्क के लिए पर्याप्त संसाधन और समर्थन प्रदान करें जो बीमारी के खतरों के उद्भव और पुनरुत्थान के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के अंग के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि-पशु स्वास्थ्य समुदायों के साथ रोग की जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं।
- एक स्वस्थ ग्रह की संभावनाओं को श्रेष्ठ बनाने में सफलता के लिए स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र अखंडता के बीच संबंधों को बेहतर ढंग से समझना चाहिए जिसके लिए विश्व जनसमुदाय को शिक्षित करने और जागरूकता बढ़ाने और पहचान बढ़ाने वाली नीति प्रक्रिया में निवेश करना चाहिए।
रोग नियंत्रित करने के लिए समझने की दिशा में ये महत्वपूर्ण कदम है, और अंततः पशु संसर्गजन्य रोग संचरण को रोकते हैं, जिससे पशुओं और मनुष्यों दोनों के स्वास्थ्य और जीवन में सुधार होगा। चिकित्सा, पशु चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य विद्यालयों को ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए और अपने छात्रों को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए (Kahn et al. 2008)।
एक स्वास्थ्य के मुद्दे
- प्राणीरूजा रोग: ऐसे रोग और संक्रमण जो कशेरूकी पशुओं (पालतू एवं वन्य जीवों) और मनुष्यों के बीच संचरित होते हैं को प्राणीरूजा रोग कहा जाता है (WHO 1967)। मनुष्यों में हर 3 में से 2 संक्रामक रोग पशुओं से उत्पन्न होते हैं। विश्व में लगभग 150 प्राणीरूजा रोग मौजूद हैं, और, जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में खोजा गया है, 1415 ज्ञात मानव रोगजनकों में से लगभग 60 प्रतिशत जानवरों से उत्पन्न होते हैं (NVL 2019) जबकि 75% नए, उभरते और फिर से उभरने वाली बीमारियां प्राणीरूजा हैं (Viljoen 2020)। विश्वभर में, यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 260 करोड़ लोग प्राणीरूजा रोगों से पीड़ित होते हैं और लगभग 27 लाख लोग प्रतिवर्ष इन रोगों से मर जाते हैं (Viljoen 2020)।
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बहुत ही महत्वपूर्ण जनस्वास्थ्य समस्या होने के साथ-साथ यह महत्वपूर्ण पर्यावरणीय स्वास्थ्य की समस्या भी है जिसे आमतौर पर एंटीबायोटिक प्रतिरोध कहा जाता है। और वास्तव में, अब हम जानते हैं कि हमारी कई मानवीय गतिविधियों और अभियांत्रिक पद्दतियां, एंटीबायोटिक प्रतिरोध के स्तर को बढ़ाने में योगदान कर रही हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध सूक्ष्मजीवों के जीवन की शुरुआत के बाद से ही मौजूद है जिसका स्तर मानवीय गतिविधियों के साथ समृद्ध हुआ है। रोगाणुओं में अपनी विशेषताओं को साझा करने के लिए जीन को साझा करने की क्षमता है और जैसा कि जो रोगाणु प्रतिरोधी होते हैं वे समृद्ध होते हैं, उन्होंने अपने प्रतिरोधी जीन को भी अत्यधिक साझा किया है। और अंततः इस कारण हमारे पर्यावरण और चिकित्सालयों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध का स्तर बढ़ रहा है (Singh 2013)।
- खाद्य सुरक्षा: वर्ष 2050 तक वैश्विक मानव आबादी 7 अरब लोगों तक होने की संभावना है (United Nations 2017)। विकासशील देशों में आमदनी में वृद्धि जारी है और रहने की स्थिति में सुधार हुआ है, मांस, डेयरी और विशेष फसलों जैसे ताजे फल, सूखे मेवे और सब्जियों की मांग में वृद्धि हुई है। इसी तरह, विकसित देशों में उपभोक्ताओं ने विशेष उत्पादों के लिए प्राथमिकताएं विकसित की हैं जिन्हें जैविक, निष्पक्ष-व्यापार या स्थानीय रूप से उगाए जाने के रूप में विपणन किया जाता है। भोजन की बढ़ती मांग ने पहले से ही प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किया है जिसके परिणाम स्वरूप मिट्टी का कटाव, जैव विविध परिदृश्यों का नुकसान और दुनिया भर में पर्यावरण का प्रदूषण खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ खाद्य उत्पादन में नई चुनौतियां पेश कर रहा है। बहु-विषयक टीमों को इकट्ठा करके इन समस्याओं को हल करने के लिए एक समग्र और व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो पहुंच से दूर अर्थात दूरदराज की जनता और शिक्षा में शामिल करने के लिए काम करना चाहिए जो उपभोक्ताओं को पशु स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्व और जटिलता को समझने और टिकाऊ खाद्य उत्पादन में सुविधा प्रदान करेगा (Garcia et al. 2020)।
- संवाहक जनित रोग: वह रोग जो रक्त-पोषक संधिपाद, जैसे मच्छरों, चिचड़ियों, पिस्सूओं इत्यादि द्वारा मनुष्यों और अन्य जानवरों में संचरित संक्रमण के परिणाम स्वरूप होते हैं। संवाहक जनित रोगों के उदाहरणों में डेंगू फीवर, वेस्ट नाइल वायरस, लाइम रोग, ट्रिपेनोसोमियासिस और मलेरिया शामिल हैं।
- दीर्घकालिक रोग: पुरानी बीमारियों को आमतौर पर उन स्थितियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो एक वर्ष या उससे अधिक समय तक चलती हैं और उन्हें निरंतर चिकित्सा की आवश्यकता होती है या दैनिक जीवन या दोनों की गतिविधियों को सीमित करती हैं। हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियां मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारण हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य: विश्वभर में मानसिक स्वास्थ्य विकार बढ़ रहे हैं। लैंसेट द्वारा 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्तमान में 1 अरब लोग प्रतिकूल मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं (Frankish et al. 2018)। पशु विशेष रूप से पालतू जानवर अपने मालिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं लेकिन ये पशु प्राणीरूजा संक्रमण भी फैला कर सकते हैं।
- व्यावसायिक स्वास्थ्य: अधिकांश विकासशील राष्ट्रों में खाद्य प्रसंस्करण परिस्थितियों में व्यावसायिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जोखिम से संबंधित लगातार चुनौतियां देखने को मिल रही हैं (Odetokun et al. 2020) जिनका सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। लेप्टोस्पायरोसिस और साल्मोनेलोसिस कृषि श्रमिकों, पशु चिकित्सकों, डेयरी किसानों, पशुधन संचालकों, मलमार्ग श्रमिकों और अन्य लोगों के महत्वपूर्ण व्यावसायिक जूनोसिस हैं जो भारत सहित विश्व के कई देशों में स्थानिक हैं। व्यावसायिक सुरक्षा व्यावसायियों को कार्यस्थल में जैव खतरों के बारे में जानकारी की कमी के कारण प्राणीरूजा रोगों द्वारा उत्पन्न जोखिमों के जोखिम मूल्यांकन में हमेशा कमी का सामना करना पड़ता है (Pinto et al. 2021)।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण का दायरा
कुछ लोग गलत समझते और सोचते हैं कि एक स्वास्थ्य सब कुछ के बारे में है। लेकिन वास्तविकता यह है कि एक स्वास्थ्य विचार और कार्यान्वयन की आवश्यकता इतने सारे क्षेत्रों में है कि यह सिर्फ ‘सब कुछ’ के बारे में लगता है। यहां कुछ ऐसे क्षेत्र दिए गए हैं, जिन्हें पशु, पर्यावरण, मानव, पौधे और पृथ्वी ग्रह स्वास्थ्य के अटूट अंतर्संबंध के कारण शिक्षा, सरकार, उद्योग, नीति और अनुसंधान के सभी स्तरों पर तत्काल एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आवश्यकता है (OHC 2021)।
- कृषि उत्पादन और भूमि उपयोग
- पर्यावरण एजेंट और दूषित पदार्थों का पता लगाने और प्रतिक्रिया के लिए प्रहरी के रूप में पशु
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध शमन
- जैव विविधता / संरक्षण चिकित्सा
- जलवायु परिवर्तन और जानवरों, पारिस्थितिक तंत्र और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर जलवायु के प्रभाव
- स्वास्थ्य व्यवसायों के बीच अंतर्संबंध के लिए नैदानिक चिकित्सा की आवश्यकता
- संचार और उसे आगे बढ़ाना
- तुलनात्मक चिकित्सा – लोगों और जानवरों में कैंसर, मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों की समानता
- आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया
- रोग निगरानी, रोकथाम और प्रतिक्रिया, दोनों संक्रामक (प्राणीरूजा) और दीर्घकालिक बीमारियां
- अर्थशास्त्र / जटिल प्रणाली, नागरिक समाज
- पर्यावरणीय सेहत
- खाद्य सुरक्षा
- वैश्विक व्यापार, वाणिज्य और सुरक्षा
- मानव-पशु बंधन
- प्राकृतिक संसाधन संरक्षण
- व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम
- पौधे / मृदा स्वास्थ्य
- एक स्वास्थ्य पेशेवरों की अगली पीढ़ी की व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण
- सार्वजनिक नीति और विनियमन
- अनुसंधान, दोनों बुनियादी और अनुवाद संबंधी
- जल सुरक्षा
- जानवरों, मनुष्यों, पारिस्थितिक तंत्र और पृथ्वी ग्रह का कल्याण
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाने से शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और स्थापित नीति में अधिक अंतःविषय कार्यक्रम होंगें जिससे किसी भी रोग का पता लगाने, निदान, शिक्षा और अनुसंधान से संबंधित अधिक जानकारी साझा की जा सकती है। ऐसा करने से संक्रामक और दीर्घकालिक दोनों तरह की बीमारियों की अधिक रोकथाम के लिए नए उपचारों और दृष्टिकोणों का विकास होने की संभावना में बढ़ोतरी होगी।
मानव और पशु स्वास्थ्य प्रदाताओं को आपसी सहयोग की आवश्यकता
लगभग 50 प्रतिशत से अधिक परिवारों में पालतू पशु पाले जाते हैं और ऐसे परिवारों को पशुओं से होने वाले रोगों का खतरा हमेशा बना रहता है लेकिन मानव और पशु स्वास्थ्य प्रदाताओं के आपसी सहयोग से इन रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- पशु संसर्गजन्य संक्रमण: पशुओं के संपर्क से पशु संसर्गजन्य संक्रामक रोगों का खतरा हो सकता है, और यह जोखिम तब और अधिक बढ़ जाता है जब परिवार में शिशु, बुजुर्ग या शारीरिक रूप से कमजोर रोग प्रतिरक्षा वाले व्यक्ति भी होते हैं। पशु चिकित्सक पशु संसर्गजन्य रोगों के संबंध में विशेषज्ञता का एक स्रोत हैं; जो पशुओं में रोग नियंत्रण रोगी के संक्रामक रोगजनकों के संपर्क को सीमित करने में मदद कर सकते हैं।
- पशुओं से एलर्जी: यदि किसी परिवार के सदस्यों में पशुओं से एलर्जी हो रही है, तो पशु चिकित्सक के परामर्श से पालतू पशुओं में इससे छुटकारा पाने के विकल्पों की पहचान करने में मदद मिल सकती है।
- मानव-पशु बंधन: मनुष्य के पशुओं के साथ गहरे बंधन हैं, जिसका चिकित्सकीय मूल्य और चिकित्सा देखभाल पर सकारात्मक प्रभाव निहितार्थ हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति विशेष यह समझता है कि आचरण में परिवर्तन करने से पशुओं को भी लाभ होगा तो वह अपने व्यवहार को स्वयं और पशुओं की बेहतरी के लिए बदल सकते हैं।
- प्रहरी के रूप में पशु: कुत्ते को तो सभी प्रहरी के रूप में जानते ही हैं लेकिन यह भी सर्वविधित है कि प्राकृतिक आपदा के आने से पहले पशुओं के व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आता है जिसे समझ कर मनुष्य अपने आपको बचा सकते हैं। इसी प्रकार ‘कोयले की खादान में केनरी चिड़िया’ की तरह, जानवर मनुष्यों के समक्ष पर्यावरण में एक जहरीले या संक्रामक खतरे के संपर्क में आने के लक्षण दिखा सकते हैं, जो पर्यावरणीय जोखिम की ‘प्रारंभिक चेतावनी’ प्रदान करते हैं। ऐसी जानकारी साझा करने के लिए मानव स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं और पशु चिकित्सकों के बीच संचार आवश्यक है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के लाभ
- आनुपातिक और समयबद्ध तरीके से प्रतिक्रिया करने के लिए स्वास्थ्य समस्या के उभरने और फिर से उभरने की बेहतर समझ।
- कम उपयोग किए गए संसाधनों के उपयोग में सुधार और तालमेल बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और कौशल का संयुक्त उपयोग संभव है।
- ऐसे क्षेत्र जहाँ संसाधन दुर्लभ हैं अर्थात बहुत विशिष्ट परिस्थितियों में भी स्वास्थ्य वितरण की सामान्यीकृत प्रणालियाँ विकसित की जा सकती हैं।
- पशुओं और मनुष्यों के बीच संचरित संक्रामक रोगों का उन्नत निदान और रोकथाम।
- पर्यावरणीय स्वास्थ्य खतरों का शीघ्र पता लगाना।
- मानव और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ सहयोग और मनुष्यों, पशुओं और पर्यावरण के बीच संबंधों को पहचानने के व्यापक निहितार्थों के माध्यम से इस व्यापक दृष्टिकोण का अर्थ है कि एक स्वास्थ्य समाधन से स्वास्थ्य, संरक्षण और विकास को लाभ होगा।
- एक ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाने से मनुष्यों और पशुओं के लिए अच्छा स्वास्थ्य और समाज को वित्तीय बचत उन क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ सहयोग से प्राप्त होगी जो अलग-अलग काम करने पर प्राप्त नहीं की जा सकतीं।
अब, ‘एक स्वास्थ्य’ अवधारणात्मक सोच प्रणालीगत दृष्टिकोण की ओर विकसित हुई है जो स्वास्थ्य को सामाजिक-पारिस्थितिकी प्रणालियों के परिणाम के रूप में माना जाने लगा है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण लागू करने में चुनौतियां
हालाँकि, एक स्वास्थ्य की ‘मुख्यधारा’ में एक बड़ा अधूरा एजेंडा है जिसके लिए मानव और पशु स्वास्थ्य के बीच सहयोग और संचार में वृद्धि की आवश्यकता है। एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को लागू करने में निम्नलिखित बाधाएं हैं:
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को लागू करने के लिए कानूनी ढांचे का अभाव
- विभिन्न सरकारी और निजी एजेंसियों के बीच सही समन्वय की कमी
- मानव एवं पशु चिकित्सा संस्थानों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान में कमी
- पशुओं को दी जाने वाली खाद्य सामग्री में उनके स्वास्थ्य के प्रति जवाबदेही की कमी
- खाद्य श्रृंखला में शामिल करते समय पशुओं के मांस के वितरण में असावधानी
- पशु रोगों की उचित निगरानी का अभाव
- देश में पशु चिकित्सकों की कमी
- धन की कमी
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, हमें प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों – विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य और कृषि संगठन और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन से मजबूत अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की तत्काल आवश्यकता है। पशु-मानव-पारिस्थितिकी तंत्र अंतराफलक पर स्वास्थ्य जोखिमों को दूर करने के लिए जिम्मेदारियों को साझा करने और वैश्विक गतिविधियों के समन्वय के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य और कृषि संगठन और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक त्रिपक्षीय समझौते पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए गए हैं (FAO‐OIE‐WHO 2010)। भारत सहित अन्य सभी राष्ट्रों को प्रणालीगत और संस्थागत बाधाओं से निपटने की जरूरत है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के लिए आवश्यक है आपसी सहयोग
- शिक्षा में सहयोग: 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विशेष रूप से चिकित्सा और पशु चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में काफी सहयोग था, लेकिन आज केवल सीमित सहयोगात्मक प्रयास ही हैं। इस समस्या का एक हिस्सा इस तथ्य से पैदा हो सकता है कि मेडिकल स्कूल आमतौर पर पशु संसर्गजन्य रोगजनकों की पारिस्थितिकी पर जोर नहीं देते हैं, जैसा कि पशु चिकित्सा के स्कूलों में किया जाता है (Kahn et al. 2008)। ग्रांट और ओल्सन (1999) के अनुसार मानव चिकित्सकों और पशु चिकित्सकों के पास कुछ संक्रामक कारकों और पशुओं की प्रजातियों द्वारा उत्पन्न जोखिमों के बारे में काफी भिन्न विचार हैं और पशु संसर्गजन्य रोगों के मुद्दों के बारे में बहुत कम संवाद होते हैं; इसके अतिरिक्त, मानव चिकित्सकों का मानना है कि पशु चिकित्सकों को रोग शिक्षा सहित पशु संसर्गजन्य रोग की रोकथाम के कई पहलुओं में शामिल होना चाहिए (Grant & Olsen 1999)। ऐसे सभी मुद्दों को आमतौर पर संबोधित नहीं किया जाता है। पशुपालकों या उनके साथ काम करने का जोखिम प्रतिरक्षात्मक सक्षम (इम्मयूनो कम्पीटेंट) लोगों की तुलना में दीर्घकालिक निम्न प्रतिरक्षित (इम्मयूनो सुप्प्रेसड) व्यक्तियों के लिए काफी अधिक है। यदि मानव चिकित्सक और पशु चिकित्सक अपने रोगियों/पशुपालकों को अपने पशुओं के पशु संसर्गजन्य रोगों के जोखिमों के बारे में जागरूक करें तो सभी के लिए महत्वपूर्ण सुधार प्राप्त किये जा सकते हैं। मानव चिकित्सा और पशु चिकित्सा विद्यालयों में छात्रों को यह जानने का अवसर प्रदान करना चाहिए कि पशु और मानव स्वास्थ्य एक दूसरे पर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं।
- तुलनात्मक चिकित्सा अनुसंधान में सहयोग: तुलनात्मक चिकित्सा, अध्ययन का एक ऐसा क्षेत्र है जो ‘एक चिकित्सा’ की अवधारणा का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें संक्रामक रोगों और उनके रोगजनन में मेजबान और रोगजनक कारक का पारस्परिक अध्ययन शामिल है, जो कि पशु संसर्गजन्य रोगजनकों को समझने के लिए महत्वपूर्ण भी है।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की दिशा में भारत सरकार के कदम
भारत में तपेदिक, मलेरिया, जापानी इंसेफेलाइटिस, चिकनगुनिया, डेंगू, मेनिंजोकोकल मेनिन्जाइटिस जैसी संचारी रोगों का एक बड़ा भार है और वे अक्सर बड़े प्रकोपों के परिणाम स्वरूप उच्च मृत्यु दर और रुग्णता पैदा करते हैं। 2003 में सार्स और एवियन इन्फ्लूएंजा और 2009 में महामारी इन्फ्लूएंजा जैसे अंतरराष्ट्रीय चिंता के रोग विश्व स्तर पर फैल गए और भारत को भी प्रभावित किया। अभी तक सभी पहचाने गये संक्रामक रोगों में से 61 प्रतिशत प्राणीरूजा हैं और उभरते रोगों से जुड़े लगभग 75 प्रतिशत रोगजनक प्राणीरूजा हैं (Planning Commission 2011)।
- हालांकि, 1950 के दशक के दौरान एक स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं था फिर भी ‘एक स्वास्थ्य’ मॉडल का एक प्रचलित उदाहरण 1957 में कर्नाटक के शिमोगा जिले के क्यासूनूर जंगलों में मानवों सहित बंदरों को प्रभावित करने वाली मंकी फीवर या मंकी रोग, जिसे ‘क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज’ कहते हैं, खोजी गई। बंदरों से चिचड़ियों के माध्यम से मनुष्यों में फैलने वाली विषाणुजनित बीमारी से निपटने में पशुपालन विभाग सहित कई विभागों ने अहम् भूमिका निभाई (GOK, 2020)। भारत में बीमारी को नियंत्रित करने के इस प्रयास को यदि ‘एक स्वास्थ्य’ का उदाहरण दिया जाये तो गलत नहीं होगा।
- पशुधन स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत, केंद्र प्रायोजित योजना ‘पशु रोग नियंत्रण के लिए राज्य को सहायता (एसकैड)’ वर्ष 2003-04 के दौरान भारत सरकार और राज्य के बीच फंडिंग पैटर्न 75: 25 के साथ शुरू की गई। प्रारंभ में इस योजना के अंतर्गत, मुंह-खुर पका रोग (एफएमडी), लँगड़िया (ब्लैक क्वार्टर), गलगोटू (एचएस), एंटरोटॉक्सिमिया, रानीखेत रोग, मारेक्स बीमारी और पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेन्ट्स (पीपीआर) इत्यादि रोगों का टीकाकरण, निगरानी और पूर्वानुमान करने के लिए शामिल किये गये थे (GOHP 2006)।
- दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, भारत में पशु संसर्गजन्य रोगों के सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व के लिए 2006 में जूनोसिज पर एक राष्ट्रीय स्थायी समिति का गठन किया गया था (Planning Commission 2011)।
- अगस्त 2010 में लागू ‘पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण’ योजना के अंतर्गत टीकाकरण के माध्यम से पशुधन और कुक्कुटों के आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण और पशु संसर्गजन्य रोगों का नियंत्रण, मौजूदा राज्य पशु चिकित्सा जैविक उत्पादन इकाइयों और राज्य रोग निदान प्रयोगशालाओं को मजबूत करना, कार्यशालाओं / सेमिनारों के आयोजन और पशु चिकित्सकों और सहायक पशु चिकित्सा कर्मियों के प्रशिक्षण के लिए इत्यादि भी शामिल किये गये (GOI)।
- 6 जुलाई, 2010 को नागपुर, भारत में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (नागपुर चैप्टर) के सहयोग से नेशनल एसोसिएशन ऑफ वेलफेयर ऑफ एनिमल्स एंड रिसर्च द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में चिकित्सा और पशु चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने नागपुर में राष्ट्रीय जूनोसिस संस्थान स्थापित करने की अवधारणा की कल्पना की। एक लंबे अंतराल के बाद मार्च 2019 में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने नागपुर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के तहत एक केंद्र ‘सेंटर फॉर वन हेल्थ’ स्थापित करने की घोषणा की (TOI 2019, ICMR 2019, Chaudhari et al. 2021)।
- भारत में वर्ष 2010-11 में राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली (एनएडीआरएस) पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग द्वारा कार्यान्वित किया गया (ADRI 2014)।
- भारत में नेशनल वन हेल्थ सिम्पोजियम का आयोजन पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) द्वारा नई दिल्ली में 26 नवंबर, 2013 को मैसी यूनिवर्सिटी, न्यूजीलैंड के सहयोग से किया जिसमें भारत में जूनोसिस के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा तंत्र जैसे कि जूनोसिस पर राष्ट्रीय स्थायी समिति, जूनोसिस पर राज्य समितियाँ, एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम और एनएडीआरएस पर चर्चा हुई (OHN)।
- पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने 2015 से पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिए कई योजनाएं शुरू की।
- 2018 में निपाह वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए केरल सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक स्वास्थ्य आधारित ‘केरल मॉडल’ का किया सफल प्रयोग किया (Chattu et al. 2018)।
- नेशनल एनिमल डिजिज कंट्रोल प्रोग्राम के तहत, मुँह-खुर रोग और ब्रुसेलोसिस रोगों के नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने 13343 करोड़ रूपये की विशेष राशि पांच वर्षों (2019-20 से 2023-24) के लिए मंजूर की (DADH)।
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2019 में नेशनल मिशन ऑन बायोडायवर्सिटी एंड ह्यूमन वेल-बींग शुरू किया गया। जुलाई 2018 में भारतीय संरक्षण जीवविज्ञानी और पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों द्वारा ‘बायोडायवर्सिटी कोलेबोरेटिव’ का गठन किया गया। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने औपचारिक रूप से मार्च 2019 में ‘राष्ट्रीय जैव विविधता मिशन’ शुरू करने की घोषणा की। सितंबर 2019 में, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने जैव विविधता और मानव कल्याण पर राष्ट्रीय मिशन के लिए कार्यक्रम विकसित करने के लिए जैव विविधता सहयोगी को अनुदान प्रदान किया (Bawa et al. 2020)।
एक स्वास्थ्य के लिए भविष्य की रणनीति
- भारत सहित अन्य सभी राष्ट्रों को एक स्वास्थ्य सिद्धांत के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए और इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए निवेश करना चाहिए।
- एक स्थायी रोग नियंत्रण प्रणाली विकसित करने के लिए ‘एक स्वास्थ्य अनुसंधान’ को बढ़ावा देने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
- एक स्वास्थ्य अवधारणा को लागू करने के लिए एक उचित संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
- राजनीतिक, वित्तीय और प्रशानिक जवाबदेही के संदर्भ में नवाचार, अनुकूलन और लचीलेपन को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।
- पशु स्वस्थ्य और रोग निगरानी प्रणाली, जैसे – पशु उत्पादकता और स्वास्थ के लिए समेकित सूचना नेटवर्क एवं राष्ट्रीय पशु रोग रिपोर्टिंग प्रणाली भी होनी चाहिए।
सारांश
बीते कुछ दशकों में प्राणीरूजा रोगों का प्रकोप और खतरा बढ़ा है। माना जाता है कि अकेले स्तनधारियों और पक्षियों में लगभग 1.67 मिलियन अनदेखे प्रकार के वायरस होते हैं (Carroll et al. 2018) जो एक ऐसी संख्या है जिसने विश्वभर के वैज्ञानिकों को हमारी प्रजाति में अगली महामारी के कारण के लिए पृथ्वी के वन्यजीवों का सर्वेक्षण करने के लिए प्रेरित किया है। जीवाणु, कवक और परजीवी भी जानवरों से लोगों में जा सकते हैं, लेकिन ये रोगजनक आमतौर पर मेजबानों को संक्रमित किए बिना प्रजनन कर सकते हैं, और कई वायरस प्रजातियों को पार करने के लिए बेहतर रूप से सुसज्जित हैं।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण रोग नियंत्रण में इंटरडिसिप्लीनरी दृष्टिकोण की सुविधा देता है ताकि इस मॉडल के माध्यम से उभरते हुए या मौजूदा जूनोटिक रोगों को नियंत्रित किया सके। इस मॉडल के अंतर्गत श्रेष्ठ सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों को पाने के लिए एक साथ कई सेक्टर मिलकर कोशिश और संवाद करते हैं। यह ऐसा समन्वित मॉडल है जिसमें पर्यावरण, पशु स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य का सामूहिक रूप से संरक्षण संभव है। विश्व में खासतौर से घनी आबादी वाले भारत जैसे राष्ट्रों में प्राणीरूजा बीमारियां होने का खतरा अधिक है इसलिए ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण को समय की मांग के अनुसार अपनाना जरूरी है।
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