गाय एवं भैंस के नवजात बच्चों की मृत्यु के मुख्य कारण:

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अधिकांश नवजात बच्चों की मृत्यु पाचन तंत्र की समस्याओं के कारण होती है तथा इससे कम श्वसन तंत्र की समस्याओं के कारण होती हैं। जन्म के बाद नवजात बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण पशुपालक द्वारा बच्चे को कोलोस्ट्रम न पिलाना तथा नाभिनाल का पूरा ध्यान नहीं रखना। इसके अतिरिक्त पेट में कीड़ों के कारण भी अधिक संख्या में बच्चों की मृत्यु हो जाती है।

  • कोलोस्ट्रम, दूध अथवा अन्य आहार आवश्यकता से अधिक नहीं खिलाएं, पिलाएं इससे भी दस्त हो सकते हैं। आहार के बर्तनों और आसपास मैं संपूर्ण स्वच्छता का ध्यान रखें। 3 से 5 दिन के पश्चात पानी भी उपलब्ध कराया जा सकता है। एक महीने बाद नर्म मुलायम हरा चारा एवं अन्य आहार भी साथ में दिया जा सकता है।
  • 15 दिन की उम्र पर पेट के कीड़े मारने की औषधि अवश्य दें। पेट में कीड़ों के कारण दस्त भी होती है और बच्चे की सामान्य वृद्धि नहीं हो पाती है तथा अधिक संख्या में कीड़ों के कारण नवजात बच्चों की मृत्यु भी हो जाती है। क्रमी नाशक औषधि प्रथम बार 15 दिन पर तत्पश्चात प्रत्येक महीने कम से कम 6 माह तक अवश्य  दें।

 

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ई .कोलाई के संक्रमण से सेप्टीसीमिया होने पर एक-दो दिन का बच्चा मर जाता है। इस रोग को सफेद दस्त, काफ स्कार एवं कोलीबेसिलोसिस के नाम से भी जाना जाता है। यह नवजात पशुओं में पाया जाने वाला जीवाणु जनित रोग है जिसमें नवजात पशु निढाल होकर बैठ जाता है तथा तेज, पतले, उजले पीले रंग का दस्त होता है। यह रोग गाय भैंस घोड़ों व सूअर के नवजात पशुओं में अधिक होता है। इस रोग के कारण अधिकांश बच्चों की मृत्यु हो जाती है। यह रोग प्राया 1 से 20 दिन की उम्र के नवजात बच्चों में अधिक होता है।

  • ई .कोलाई के कारण बदबूदार दस्त होती है जो कि पीली या सफेद हो सकती है जिसके कारण एक-दो दिन में बच्चे की हालत अत्यंत गंभीर हो जाती है।
  • यदि बच्चा एक से अधिक दिन का हो तो यह रोग मुख्यता ई कोलाई के के. 99 नामक इसट्रेन  द्वारा होता है।

यदि बच्चा 7 से 14 दिन का हो तो यह रोग रोटावायरस से होता है। इसके अतिरिक्त इस उम्र में यह रोग जीवाणु एवं प्रोटोजोआ जैसे कोक्सीडिया, क्रिप्टोस्पोरीडियम द्वारा भी हो सकता है।

  • नवजात पशु को जन्म के बाद खीस का न मिलना, विटामिन ए की कमी, आहार की कमी, तेज ठंड एवं रखरखाव में कमी आदि कारणों से भी हो सकता है।
  • इस रोग के जीवाणु दूषित मिट्टी, पानी एवं चारे आदि से आहारनली के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। इसके अतिरिक्त गर्भपात हुए भ्रूण, जननांगों से स्रावित पदार्थ आदि से भी यह रोग हो सकता है। जीवाणु आहार नाल में पहुंचकर अपने विषाक्त पदार्थों से पशु की आहार नाल एवं अंगों की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाते हैं और यह आंतों में सूजन भी उत्पन्न करते हैं।
  • इस रोग के लक्षणों में बछड़े का शरीर ठंडा हो जाता है। बच्चा निढाल सी अवस्था में रहता है। बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं और सुस्त रहते है। सफेद पीले रंग का दस्त होता है। बार बार दस्त होने से बच्चे की पूंछ व पिछले पैर गोबर में लिपटे रहते हैं। बार बार दस्त से पेट दर्द होता है और कमर मुड़ जाती है। यदि समय पर उपचार न हो तो 3 से 8 दिनों में बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
  • रोग की पहचान लक्षण व गोबर की जांच के आधार पर की जाती है।
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उपचार एवं रोकथाम हेतु पशु चिकित्सक से संपर्क करें। बछड़े को पहले दिन कोई आहार ना दें केवल मां का दूध थनों से पिए तो पीने दे। गाय भैंस के ब्याने के स्थान पर सफाई रखें। बहुत सारे बच्चे एक जगह ना रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चा कम से कम 5 दिन तक खींस अवश्य पिए। रोगी बछड़े के गोबर से आसपास का चारा दूषित होने से बचाएं। रोग ग्रसित बच्चे को अन्य बच्चों से अलग रखें।

  •  ऐसी स्थिति में मां का दूध नहीं पीने दे तथा पशु चिकित्सक की सलाह पर फ्लूइड थेरेपी एवं प्रतिजैविक औषधिया दें।
  • बछड़े को खांसी जुकाम न्यूमोनिया दस्त बुखार आदि होने पर योग्य पशुचिकित्सक से तत्काल उपचार कराएं। थोड़ी सी भी लापरवाही से बच्चे की जान भी जा सकती है।
  • 3 दिन के पश्चात दिन में 4 बार अलग से दूध पिलाएं। 2 सप्ताह के पश्चात पूर्ण दूध की मात्रा कम करके उससे के स्थान पर सप्रेता दूध पिलाएं। यह मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं।
  •  नवजात बच्चों में नाभि नाल का पकना, डिप्थीरिया, उजला दस्त तथा अफारा होने की संभावनाएं रहती हैं इसलिए इससे बचाव की सावधानियां अवश्य रखें।
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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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