जनवरी
जई, बरसीम एवं रिजका मैं आवश्यकता के अनुरूप सिंचाई करते रहना चाहिए। चारे के लिए बोई गई बरसीम एवं जई में यदि बीज लेना हो तो जई को प्रथम कटाई के बाद एवं वरसीम को तीसरी कटाई के बाद कटाई बंद कर देना चाहिए। बीज लेने वाले जई के खेत में खरपतवार नियंत्रण हेतु आइसोप्रोटयरान एवं 2-4 डी रसायन क्रमशः ०.75 किलोग्राम सक्रिय तत्व/ प्रति हेक्टेयर एवं ०.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई से 25-30 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए। अगर तू बबूल को बोया हो तो इस महीने में उसकी टहनियो की कटाई कर चारा प्राप्त कर चाहिए।
फरवरी
बरसीम जई के हरे चारे की अधिकता होने पर “हे” बना लेना चाहिए,। खेत सिंचाई नाली या मेडो पर, बहु वर्षीय घासो जैसे बाजरा, शंकर नेपियर, गिनी, सिटेऱिया आदि की रोपाई कर लेना चाहिए। बहु वर्षीय घासो की रोपाई के पहले खेत में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद मिला दें उसके बाद रोपाई के समय ६०:३०: ३० किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश प्रति हेक्टेयर दें।
मार्च
मार्च में सिंचित क्षेत्र में लोबिया मक्का एवं चरी की बुवाई करें एवं सिंचाई 8 से 10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। मार्च के प्रथम सप्ताह में बीज उत्पादन हेतु बरसीम की अंतिम कटाई करनी चाहिए। सिंचित क्षेत्र में 4 फसलों की कटाई 40 से 50 दिन पर करना चाहिए। सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर इस माह में भी बहु वर्षीय धातु घासो, जैसे बाजरा नेपियर शंकर गिनी घास की खेती हेतु नई रोपाई की जा सकती है। हरे चारे की अधिकता होने पर साइलेज बना कर रख लेना चाहिए।
अप्रैल
जायद मौसम में चारा फसलों की बुवाई के लिए खेत की दो से तीन जुताई करें एवं खेत की जुताई के समय 15 से 20 टन/ हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलाएं। सिंचित क्षेत्रों में मक्का बाजरा ज्वार की बुवाई करें। इनमें कौन सा बीज दर 50 से 60 10 से 12 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा बीज को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से कवकनाशी से उपचारित करें। किसान भाई प्रायः चारा फसलों की बुवाई छिड़काव विधि से करते हैं परंतु बुवाई 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए। बुवाई के समय ज्वार बाजरा और मक्का में नत्रजन फास्फोरस एवं पोटाश को क्रमस: 60:40:40,50:30:30 एवं 100:30:30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बीज के लिए छोड़ी गई बरसीम में निकाई कर लेनी चाहिए। सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर बहू वर्षीय घासो जैसे बाजरा नेपियर शंकर एवं गिनी घास आदमी सिंचाई करते रहना चाहिए।
मई
सिंचित क्षेत्रों में जायद में बोई गई चारा फसलों की प्रथम कटाई 60 से 65 दिन की अवस्था पर करें तत्पश्चात अन्य कटाई 40 से 45 दिन पर करें एवं प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। चारा फसलों एवं बहु वर्षीय धातु ,घासो में सिंचाई 10 से 12 दिन के अंतराल पर करते रहे। सिंचाई की सुविधा होने पर हरी खाद बनाने के लिए सनई एवं ढैचा की बुवाई करना चाहिए और उसको 40 से 45 दिन के बाद लगभग 50% पुष्पन अवस्था में खेत में पलट देना चाहिए। बहु वर्षीय घासो को प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई देकर 30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। बीज के लिए छोड़ी गई बरसीम को पकने की अवस्था पर कटाई मड़ाई एवं बीजों की सफाई कर सुरक्षित एवं नमी रहित स्थान पर भंडारण कर लेना चाहिए।
जून
खरीद चारा फसलों की बुवाई के लिए सर्वप्रथम खेत की 2-3 जुताई करके उसमें 15 से 20 तक प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें। खरीफ की चारा फसलों जैसे मक्का ज्वार लोबिया बाजरा ग्वार आदि की बुवाई जून के तृतीय सप्ताह में कर लेना चाहिए जिनका क्रमस: बीज दर 40 से 50 किलोग्राम 30 से 40 किलोग्राम 35 से 40 किलोग्राम 10 से 12 किलोग्राम एवं 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मानसून आने पर बहु वर्षीय घासो जैसे बाजरा, नेपियर शंकर गिनी घास सिटेरिया की रोपाई शुरू करनी चाहिए। फसलों की बुवाई 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए। बहु वर्षीय घासो की रोपाई के पहले खेत में 15 से 20 टन साड़ी गोबर की खाद मिला दें उसके बाद रोपाई के समय 60: 30: 30: किलोग्राम नत्रजन: फास्फोरस: पोटास प्रति हेक्टेयर दे। सिंचित क्षेत्रों में गिनी, बाजरा, नेपियर शंकर, सिटेरिया आदि बहू वर्षीय घासो की कटाई 30 से 35 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए। रबी में बोई गई चारा फसलों का बीज प्रसंस्करण करके सुरक्षित एवं नमी रहित स्थान पर भंडारण करना चाहिए।
जुलाई
जिन क्षेत्रों में बहु वर्षीय घासों की रोपाई किन्ही कारणों से ना हो सकी हो इस माह में रोपाई कर ले। बहु वर्षीय घासों की रोपाई के पहले खेत में 15 से 20 तक सडी गोबर की खाद मिला दे उसके बाद रोपाई के समय 60:30.30 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश प्रति हेक्टेयर दे। मेडो और मुख्य फसलों में उगी हुई घासों को काटकर पशुओं को खिलाना चाहिए।
अगस्त
खरीफ की बोई गई चारा फसल ज्वार बाजरा, मक्का एवं लोबिया इतिहास की प्रथम कटाई 60 से 65 दिन पर करनी चाहिए। बहु कटाई वाली ज्वार, बाजरा, आदि की प्रजातियों में 30 से 40 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। परंतु छिड़काव के समय मिट्टी में उचित नमी का रहना अति आवश्यक होता है,। भारतीय भाषाओं की रोपाई यदि किसी कारणवश जुलाई माह में ना हुई हो तो इस माह के प्रथम सप्ताह में ही पूर्ण कर लेना चाहिए। मक्का ज्वार बाजरा की उपलब्धता ज्यादा अधिक मात्रा में हो तो कटाई करके उसकी छुट्टी काट कर साइलेज बना देना चाहिए। जुलाई माह में बोई गई ज्वार की फसल को हरे चारे के लिए काटने से पूर्व सिंचाई करना आवश्यक है जिससे एचसीएन विषाक्तता, से पशुओं को नुकसान ना हो। कच्ची अपरिपक्व अवस्था अर्थात 30 से 35 दिन पहले मे चरी की फसल को पशुओं को न खिलाएं।
सितंबर
जुलाई के द्वितीय सप्ताह एवं अगस्त के प्रथम सप्ताह में चारे के लिए वही गई चारा फसलों की अन्य कटाइयां 40 से 45 दिन की अवस्था पर करनी चाहिए। बीज एवं चारा लेने के लिए बोई गई फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, लोबिया, मक्का, ग्वार में पत्तों पर लाल या भूरे रंग के धब्बे दिखाई दे दो डाईथेन -एम 45 का 0.25% धोलका छिड़काव करना चाहिए। ज्वार व लोबिया में बीज की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए रूम में अगर नमी ना हो तो हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
अक्टूबर
बरसीम की बुवाई सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर करनी चाहिए। रबी की बुवाई से पहले खेत की दो से तीन जुताई करके मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी कर ले। बरसीम की बुवाई छोटी-छोटी क्यारियां तैयार कर उनमें करनी चाहिए। बरसीम के बीज को राइजोबियम कल्चर एवं थीरम 0.25% से उपचारित करना चाहिए। क्यारियों में पानी भरकर उसके बाद बीज का छिड़काव करना चाहिए जिसके लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बरसीम की बुवाई के समय 20 अनुपात 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन एवं फास्फोरस दे। सिंचाई हेतु जल सीमित मात्रा में हो तो बरसीम के स्थान पर जई की बुवाई, 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर से कर सकते हैं। जेई में 80- 40 -40 प्रति हेक्टेयर की दर से नत्रजन- फास्फोरस एवं पोटाश देना लाभदायक होता है एवं बीज को ट्राइकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करके बोना चाहिए अगर सिंचाई के स्रोत है तो रिजका सेनजी शलजम एवं चाइनीस कैब्बेज इत्यादि की भी चारे हेतु बुवाई कर सकते हैं। बीज वाली लोबिया फसल की फलियां तोडते रहना चाहिए क्योंकि सभी फलियां एक साथ कभी नहीं सकती।
नवंबर
चारा फसलों की बुवाई इस माह तक पूरी कर लेनी चाहिए। चारा उत्पादन हेतु बरसीम एवं रिजका, मैं 10% सरसों या चाइनीस कैब्बेज मिला लेना चाहिए जिससे प्रथम कटाई में चारा अधिक मात्रा में प्राप्त हो सके। समयानुसार चारा फसलों की सिंचाई व निराई गुड़ाई आदि करते रहे। बहु वर्षीय घासो की कटाई कर ले। इसके बाद यह तो सुषुप्त अवस्था में हो जाती हैं। तापमान बढ़ने पर अगर सिंचाई का साधन है तो सिंचाई करने पर फरवरी से मार्च तक चारा आसानी से प्राप्त हो सकता है।
दिसंबर
रवि में मक्का की फसल की बुवाई के बाद आवश्यकता अनुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। बरसीम एवं जई, मैं समयानुसार सिंचाई करते रहना आवश्यक है। बरसीम की पहली कटाई 40 से 45 दिन बाद एवं जल की पहली कटाई 40 से 45 दिन बाद कर लेनी चाहिए। अन्य कटाइयां, बरसीम में 25 से 30 दिन एवं जई में 40 से 45 दिन पर करें एवं प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलोग्राम नत्रजन का छिड़काव करें। जई में बुवाई के 20 से 25 दिन बाद 20 किलोग्राम नत्रजन का छिड़कना अत्यंत लाभकारी होता है।
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