पशु स्वास्थ्य एवं रोगी पशु के लक्षण तथा उनका प्रबन्ध

4.8
(32)

उत्पादन के दृष्टि से पशु स्वास्थ्य का बड़ा महत्व है। एक स्वस्थ पशु से ही अच्छे एवं स्वस्थ बच्चे (बछड़ा-बछिया) एवं अधिक दुग्ध उत्पादन की आशा की जा सकती है। केवल स्वस्थ पशु ही प्रत्येक वर्ष ब्यात दे सकता है। प्रतिवर्ष ब्यात से पशु की उत्पादक आयु बढ़ती है। जिससे पशुपालक को अधिक से अधिक संख्या में बच्चे एवं ब्यात मिलते है। इससे उसके सम्पूर्ण जीवन में अधिक मात्रा में दूध मिलता है और पशुपालक के लिए पशु लाभकारी होता है।

पशुओं में बीमारी होने के मुख्य कारण
पशु के बीमार होने के कारणों में गलत ढंग से पशु का पालन-पोषण करना, पशु प्रबंध में ध्यान न देना, पशु पोषण की कमी (असंतुलित आहार), वातावरण (मौसम) का बदलना, पैदाइशी रोगों का होना (पैत्रिक रोग), दूषित पानी तथा अस्वच्छ एवं संक्रमित आहार का ग्रहण करना, पेट में कीड़ों (कृमि) का होना, जीवाणुआें, विषाणुआें एवं कीटाणुओं का संक्रमण होना, आकस्मिक दुर्घटना का घटित होना आदि प्रमुख है।

रोगी पशु के प्रति पशुपालक का क्या कर्तव्य होना चाइये ?
बीमार पशु की देखभाल निम्नलिखित तरीके से किया जाना आवश्यक होता हैः-

  • रोगी पशु की देख-रेख के लिए उसे सबसे पहले स्वस्थ पशुओं से अलग कर स्वच्छ एवं हवादार स्थान पर रखना चाहिए। शुद्वएवं ताजी हवा के लिए खिड़की एवं रोशनदान खुला रखना चाहिए। रोगी पशु को अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी से बचाया जाना चाहिए तथा अधिक ठण्डी एवं तेज हवाएं रोगी को न लगने पाए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • पशु के पीने के लिए ताजे एवं शुद्वपानी का प्रबंध करना चाहिए।
  • पशुशाला में पानी की उचित निकास व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • पशु के बिछावन पर्याप्त मोटा, स्वच्छ एवं मुलायम होना चाहिए।
  • पशु को बांधने की जगह पर पर्याप्त सफाई का ध्यान दें तथा मक्खी, मच्छर से बचाव हेतु आवश्यक कीटाणुनाशक दवाआें का छिड़काव करते रहना चाहिए।
  • रोगी पशु को डराना अथवा मारना नही चाहिए तथा पशु को उसकी इच्छा के विरूद्व जबरन चारा नही खिलाया जाना चाहिए। पशु को हल्का, पौष्टिक एवं पाचक आहार दिया जाना चाहिए। बरसीम, जई, दूब, घास एवं अन्य हरे चारे तथा जौ का दाना जाना ठीक होता है।
और देखें :  गाय/भैंस की खरीदारी में समझदारी

स्वस्थ एवं रोगी पशु की पहचान कैसे की जा सकती है ?
निम्न तालिका में स्वस्थ पशु तथा रोगी पशु के तुलनात्मक लक्षण दिये जा रहे है।

स्वस्थ पशु

रोगी (बीमार) पशु

  • सदैव सजग व सतर्क रहता है।
  • चमड़ी चमकीली होती है।
  • पीठ को छूने से चमड़ी थरथराती है।
  • सीधी तरह उठता-बैठता है।
  • आंखे चमकीली एवं साफ होती है।
  • श्वांस (सांस) सामान्य गति से चलती है।
  • गोबर व मूत्र का रंग एवं मात्रा सामान्य रहती है।
  • गोबर नरम और दुर्गन्धरहित रहता है।
  • नाक पर पानी की बूंदे जमा होती है।
  • चारा सामान्य रूप से खाता है।
  • जुगाली क्रिया चबा-चबाकर करता हैं।
  • मूत्र सहजता से होता हैं।
  • पानी सदैव की भांति पीता हैं।
  • खुरों का आकार सामान्य होता है।
  • गर्भाशय में कोई खामी नहीं होती है।
  • शरीर पर छुने से तापमान में कोई कमी नहीं पायी जाती है।
  • थन और स्तन सामान्य होते है।
  • पशु अपने शरीर पर मक्खियां नहीं बैठने देता।
  • नाड़ी की गति सामान्य होती है।
  • इतना सतर्क नही होता है, सुस्त रहता है।
  • चमड़ी खुरदरी व बिना चमक की होती है।
  • इतना सतर्क नही होता है, सुस्त रहता है।
  • कोई भी चेतना नही होती।
  • उठने बैठने में कठिनाई होती है।
  • आंख में कीचड़ बहता है।
  • श्वांस लेने में कठिनाई महसूस होती है।
  • गोबर एवं मूत्र का रंग सामान्य नही रहता।
  • गोबर पतला या कड़ा या गाठयुक्त एवं
  • प्रायः दुर्गन्धयुक्त होता है।
  • नाक पर पानी की बूंदे नही होती।
  • चारा कम या बिल्कुल नही खाता।
  • जुगाली कम करता है या बिल्कुल नही   करता।
  • मूत्र कठिनता से या रूक-रूककर होता हैं।
  • पानी कम अथवा नही पीता है।
  • खुरों का आकार बड़ा होता है।
  • गर्भाशय में दोष होता है।
  • छुने पर शरीर का तापमान ज्यादा गरम या ठंडा महसूस होता है।
  • थन और स्तन असामान्य होते है।
  • शरीर पर मक्खियां बैठने पर पशु ध्यान नही देता है।
  • नाड़ी की गति मन्द या तेज चलती है।

रोगी पशु की देखभाल कैसे की जाती है ?
रोगी पशु की चिकित्सा में उनकी उचित देखभाल व रख-रखाव का विशेष महत्व होता है। बिना उचित रख-रखाव व देखभाल के औषधि भी कारगर नही होती है। पशु के सही प्रकार के रख-रखाव एंव पौष्टिक चारा देने से उनमें रोग रोधक क्षमता का विकास होता है और पशु स्वस्थ रहता है। पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए पशुपालकों को निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

और देखें :  राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) का उद्देश्य, पशुपालकों की आमदनी दोगुना करना

सफाई एवं विश्राम व्यवस्था
पशु के रहने के स्थान, बिछावन, स्वच्छ हवा एवं गन्दे पानी की निकासी तथा सूर्य के प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो। बीमार पशु के पूरा विश्राम दे तथा उसके शरीर पर खरहरा करें, जिससे गन्दगी निकल सके।

समुचित आहार (चारा व दाना )
बीमार पशु को चारा-दाना कम मात्रा में तथा कई किस्तों में दें। पेट खराब होने पर पतला आहार दे। आहार का तापक्रम भी पशु के तापमान से मिलता-जुलता हो। रोगी पशु को बुखार में ज्यादा प्रोटीन युक्त आहार न दे।

रोगी पशुओं का आदर्श आहार क्या होता है ?
भूसी का दलिया:
गेहूं की भूसी को उबालने के पश्चात ठण्डा करके इसमें उचित मात्रा में नमक व शीरा मिलाकर पशु को दिया जा सकता है।
अलसी व भूसी का दलिया: लगभग 1 किलोग्राम अलसी को  लगभग 2.5 (ढाई) लीटर पानी में अच्छी तरह उबालकर व ठण्डा करके उसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर पशु को देना चाहिए।
जई का आटा: 1 किलोग्राम जई के आटे को लगभग 1 लिटर पानी में 10 मिनट तक उबालकर धीमी आंच में पकाकर इस दूध अथवा पानी मिलाकर पतला करके उसमें पर्याप्त मात्रा में नमक मिलाकर पशु को दिया जाता है। जई के आटे को पानी में सानकर इसमें उबलता पानी पर्याप्त मात्रा में मिलाकर, जब ठण्डा हो जाय तो उसे भी पशु को खिलाया जा सकता है।
उबले जौ:  1 किलोग्राम जौ को लगभग 5 लीटर पानी में उबालकर उसमें भूसी मिलाकर पशु को खिलाया जा सकता है।
जौ का पानी: जौ को पानी में लगभग 2 घण्टे उबालकर तथा छानकर जौ का पानी तैयार किया जाता है, यह पानी सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है। इसके अतिरिक्त रोगी पशु को हरी बरसीम व रिजका का चारा तथा लाही या चावल का मांड आदि भी दिया जा सकता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

और देखें :  डेयरी उद्योग को आर्थिक नुकसान में थनैला का योगदान: जाँच वं प्रबंधन

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 4.8 ⭐ (32 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

  • डॉ. जोरावर सिंह ज्याणी

    जालोर जिले की चितलवाना तहसील के लालजी की डूंगरी गांव से सम्बन्ध रखने वाले डॉ जोरावर सिंह ज्याणी वर्तमान में राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर के पशुधन उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी विभाग में टीचिंग एसोसिएट के रूप में सेवाएं दे रहे है। इन्होने विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक के साथ पशुधन उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी विभाग से 2020 में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। इन्होने 6 से अधिक कॉन्फ्रेंस एवं 38 राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में भाग लिया तथा 4 प्रोफेशनल सोसाइटीज की आजीवन सदस्यता है। इनके द्वारा 8 रिसर्च पेपर, 28 सार पेपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में तथा 21 प्रसिद्ध वैज्ञानिक आलेख विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं लिखे जा चुके है। विभिन्न सहशैक्षेणिक गतिविधियों में कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मान प्राप्त कर चुके है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*