दुधारू पशुओं में ऋतुचक्र की समस्या: निदान एवं उपचार

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हमारे देश की 60 से 70% आबादी कृषि एवं इनके सहायक उद्योगों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुडी हुई हैं। पशु पालन कृषि का एक अभिन्न अंग है एवं यह किसानों की रीढ़ की हड्डी  है। अगर किसान पशु पालन को कृषि के साथ -साथ एक इकाई के रूप में रखता है तो वह अति विषम परिस्थितियो का भी सामना कर सकता है। पशु पालक अपने पशुओं की प्रजनन क्षमता पर पूरी तरह से निर्भर रहता है। हर एक पशु पालक की यही सोच रहती है कि उसका पशु व्यस्क होते ही ऋतु चक्र में आ जाये, गर्भाधान उपरांत 8-9 महीने तक दूध की प्राप्ति होती रहे एवं वयाने के बाद 70-90 दिन के अन्दर यह पुनः ग्याविन हो जाये। इस चक्र की कोई भी कडी के टूटने पर पशु पालक को अत्यधिक आर्थिक नुकसान सहना पड़ता है।

पशु का ऋतु चक्र में न आना

इस समस्या के मुख्य कारण निम्नलिखित है-

  • आनुवांशिक
  • पशु आहार एवं पशु पोषण की कमी
  • अन्य विविध कारक
    1. रोगों के कारण अत्यधिक् दुर्बलता
    2. सिस्टिक अंडाशय
    3. अंडाशय पर रक्त का जमाव
    4. अंडाशय पर फोड़े होना
    5. हार्मोनल असंतुलन
    6. गर्भधारण
    7. गर्भाशय में मवाद का जमा होना
    8. ममिफाइड फीटस
    9. प्रजनन उपरांत एनइस्ट्रस
    10. मौन या कमजोर ऋतुचक्र

अनुवांशिक

इस तरह के पशुओं में प्रायः गर्भाशय अविकसित होता है या फेलोपियन ट्यूब सिकुड़ा हुआ होता है या योनी द्वार बंद होता है । जब  भैसों के जुड़वाँ बच्चे पैदा होते हैं और इनमे से एक नर एवं दूसरा मादा होता है तो नर के हारमोन के कारण मादा नपुंसक हो जाती  है। ऐसे बछड़ों के जननांग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, इन्हें फ्री मार्टिन कहते हैं। ऐसे बच्चों को समूह से अलग कर देना चाहिए। अगर अंडाशय अविकसित है तो पशु के व्यस्क होने पर गुदा द्वार से अंडाशय के परीक्षण उपरांत यह पाया जाता कि यह छोटी और चिकनी है ऐसे पशुओं का समस्त इलाज करने पर भी यह ऋतु चक्र में नहीं आते। कभी कभी त्वचा अंडाशय पर भूल वश प्रत्यारोपित हो जाती है इसे डर्मोइड सिस्ट कहते है। डर्मोइड सिस्ट में अंडाशय पत्थर की तरह सख़्त हो जाता है, ऐसे भैसों को तत्काल समूह से बाहर कर देना चाहिए।

पशु आहार एवं पशु पोषण की कमी

गर्भाधान विलासिता का पर्याय है। हर जीव की यह चाहत होती है कि इस धरती पर उसका अंश चिरकाल तक बना रहे। इस चाहतवश वह प्रजनन की प्रक्रिया को अपनाता है। समग्र पोषण प्रजनन का महत्वपूर्ण स्तम्भ है। सुसुप्त अंडाशय समतल होता है, इसे क्रियावान बनाने हेतु पशु को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व दिया जाता है। सबसे पहले इस अवस्था में पशुओं को अन्तः एवं बाहरी परजीवी से मुक्त किया जाता है। जिसके लिए कोई भी परजीवी रोधी दवाई का उपयोग किया जा सकता है। ततपश्चात रक्त की जाँच की जाती है, कि कहीं पशु रक्त परजीवी से ग्रस्त  तो नहीं है।  बाह्य परजीवी के लिए बुटोक्स/पौर ओन/साईपरर्मेथ्रिन /अमितराज़  का लेप लगाया जा सकता है। इन औषधियों के लेपन उपरांत पशु पलक को ध्यान देना चाहिए कि पशु इन औषधियों को चाट न ले , हो सके तो पशुपालक पशुओं के मुँह में सूती जाली लगा कर रख सकते हैं। प्रायः देखा गया है कि आहार में खनिज (फॉस्फोरस, कोबाल्ट, जिंक,  सेलिनियम), विटामिन (A, E, D3), प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट आदि तत्व की कमी होती है, इन सभी कमियों के कारण पशु ऋतु चक्र में नहीं आता है। उपरोक्त खनिज, विटामिन्स प्रोटीन की कमी को  मिनरल मिक्सर (अग्रिमिन फोर्ट, सुपर मिन, न्यूट्रीमिल्क, मिनोटास, मिनिमिक्स, न्यूट्रीगोल्ड) द्वारा पूर्ण किया जा सकता है।  400 किलो ग्राम के पशुओं को इनमे से कोई भी मिनरल मिक्सचर, लगभग 60 से 80 ग्राम (डेढ़ से दो मुट्ठी) प्रतिदिन खिलाना चाहिए। इसके साथ -साथ गौ शाला में खनिज मिक्सर की ईट को भी लटकाया जाना चाहिए जिससे कि पशु उसे चाटते रहें।

और देखें :  शुष्क व पारगर्भित मादाओं का प्रबन्धन

आइटम

पशु का वजन
250-300kg

400 kg

चारा

4 kg

4-6 kg

दाना

1-1.25 kg

2 kg

ग्याविन पशु   (दाना )

1-1.25 kg  अतरिक्त

2 kg अतरिक्त

दुधारू पशु   (दाना)

1 kg /2.5 लीटर

1 kg / 2 लीटर

     स्त्रोत: (जी .सी .बेनर्जी)       

अन्य विविध कारक

  1. रोगों के कारण अत्यधिक दुर्बलता
    कई घातक बीमरी जैसे टी.बी., जोहन्स डिजीज  शरीर को दुर्बल बना देता है ऐसे पशुओं को समूह से तुरंत हटा देना चाहिए अगर पशु लम्पी जाव, टी आर पी, वुडेन टंग इत्यादि से ग्रसित है तो किसी पशु चिकित्सक से उसकी जाँच और उचित उपचार करवाना चाहिए। हालाँकि ऐसे पशुओं को समूह से हटाना ही सबसे सटीक तरीका है।
  2. सिस्टिक अंडाशय
    अगर अन्डाशय के ऊपर लयूटीअल सिस्ट है तो वह  पशु को ऋतु चक्र में नहीं आने देता है। ऐसे पशुओं का परीक्षण किसी पशु चिकित्सक से करवाएं । तथा उनसे यथाउचित उपचार करवाएं।
  3. अंडाशय पर रक्त का जमाव
     यह नीम हकीमो द्वारा की गई त्रुटी है। अल्पज्ञान के कारण वो अंडाशय को अत्यधिक प्रहस्तन करते है, जिससे कि अंडाशय लहुलुहान हो जाता है और उस पर  रक्त का थक्का जम जाता है। यदि दोनों अंडाशय पर रक्त के थक्के का जमाव हो गया हो तो ऐसे पशुओं को ठीक करना मुश्किल हो जाता है।
  4. अंडाशय पर फोड़े होना
    कभी कभी अंडाशय पर फोडे पड़ जाते हैं और इसमें मवाद भर जाता है ऐसे पशु भी ऋतुचक्र में नहीं आते हैं। ऐसे अंडाशय के उपचार के लिए पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिये। बहुत ही अच्छे विशेषज्ञ अल्ट्रासाउंड गाइडेड मवाद एस्पिरेशन कर इलाज कर सकते है अन्यथा ऐसे पशु को समूह से बाहर कर देना चाहिए।
  5. हार्मोनल असंतुलन
    हार्मोन के असंतुलन के कारण प्रायः पशु  ऋतु चक्र में नहीं आते है। ऐसे पशुओ को पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए जो कि इसका सही आकलन कर उपचार कर सकें।
  6. गर्भधारण
    अगर पशु ग्याभिन है और हमें इसका पता नहीं है, तो हम यह सोच कर  परेशान रहते हैं कि हमारा पशु ऋतुचक्र में नहीं आ रहा है, अपितु उक्त पशु ग्याभिन  होता है । इस तरह की घटना उन पशुओं  में देखी जाती है, जिस समह के नर और मादा पशुओं को एक साथ चराया जाता है ।ऐसे पशु की पशु चिकित्सक से जाँच करवानी चाहिए जो कि जाँच के उपरांत उसके ग्याभिन होने की सूचना एवं देखभाल संबंधी सलाह पशुपालक को दे सके।
  7. गर्भाशय में मवाद का जमा होना (पायोमेट्रा)
    अमूमन यह देखा गया है कि गर्भाशय में मवाद इकठ्ठा हो जाती है और  गर्भाशय द्वार बंद हो जाता है। गर्भाशय में  मवाद दिन प्रतिदिन बढता चला जाता है, और ऐसा प्रतीत होता है कि पशु ग्याभिन हो गया है। ऐसे पशु के अंडाशय पर कार्पस लयूटीयम होता है जो शरीर में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन बनाता है। जिसके कारण यह अवस्था धीरे धीरे विकसित होती जाती है और पशु ऋतु चक्र में नहीं आता है। गर्भाशय में मवाद संक्रमित  कृत्रिम गर्भाधान गन या फिर अन्य संक्रमण के कारण हो सकता है। ऐसे पशु जो ऋतु चक्र में नहीं आ रहा है, उन्हें पशु चिकित्सक द्वारा जाँच करवानी चाहिए, जो गर्भाशय की जाँच कर यह जानकारी देंगे कि उसमे बच्चा है या मवाद। अगर गर्भाशय में मवाद है तो वह गुथे हुए आटे की तरह महसूस होगा और अगर बच्चा है तो उसका विकसित अंग हाथों में महसूस होगा। जाँच के दोरान गर्भाशय में यदि मवाद पाया जाता है तो ऐसी अवस्था में प्रोस्टाग्लैंडीन का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसे १५ दिन के बाद एवं तत्पश्चात १२ दिन बाद पुनः दोहराया जाता है। इसके साथ-साथ गर्भाशय में ल्युगोल आयोडीन डालना चाहिए और पशु को विटामिन E एवं सेलेनियम का इंजेक्शन भी लगाना चाहिए।
  8. ममिफाइड फीटस
    अगर गर्भाशय में पल रहे नवजात की मृत्यु हो जाती है और उसके सारे तरल गर्भाशय द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तो ऐसी अवस्था को ममिफाइड फीटस कहते हैं। इस अवस्था में पशु का गर्भ काल बढ जाता है और पशु पालक को इसकी जानकारी नहीं होती है । इस अवस्था में पशु पालक को पशु चिकित्सक से अपने पशु की जाँच करानी चाहिए जो कि एस्ट्रोजन, ऑक्सीटोसिन एवं कैल्सियम बोरो-ग्लुकोनेट एवं प्रोस्टाग्लैंडीन के इंजेक्शन से उपचार कर ममिफाइड फीटस को बाहर निकालेंगे। इस प्रक्रिया में ६-७ दिन का समय लगता है। इस उपचार में पशु चिकित्सक को ध्यान रखना चाहिए कि गर्भाशय घुमा हुआ न हो अन्यथा फीटस को शल्य क्रिया द्वारा बाहर निकाला जाना चाहिए।
  9. प्रजनन उपरांत एनइस्ट्रस
    प्रजनन उपरांत पशु का गर्भाशय कुछ दिनों तक सिकुड़ कर अपने पूर्ववत स्थिति में आता है इस काल में अंडाशय सुशुप्त अवस्था में रहता है। यह काल लगभग दो से ढाई महीने तक चलता है तदुपरांत अंडाशय फिर से प्रस्फुटित होता है और उसमे अंडाणु का विकास होना शुरू होता है। इस प्रक्रिया के कारण पशु इस समय ऋतुचक्र में नहीं आता है।
  10. मौन या कमजोर ऋतुचक्र
    यह प्रायः भैसों में देखने को मिलता है, साथ ही कुछ कारणों से दुर्बल गायों में भी यह समस्या होती है। ऐसे पशुओं को एक चौथाई से तीन चौथाई अतिरिक्त भोजन खिलाना चाहिए और पशु पालक को अपने पशु पर अतिरिक्त ध्यान देना चाहिए। ऐसे पशुओ को एक से डेढ़ किलोग्राम अंकुरित अनाज (चना, मूंग ) एक से डेढ़ महीने तक खिलाना चाहिए एवं पशु की जाँच पशु चिकित्सक से करवानी चाहिये। अगर गर्भाशय में कार्पस लूटियम है तो पशु का उचित उपचार करवाना चाहिए।
और देखें :  उन्नतशील पशुपालन हेतु कुछ मुख्य दिशा निर्देश

उपरोक्त वर्णित विवेचनाओं से यह पता लगता है कि पशु के सही समय में ऋतुचक्र में आने के लिए पशु पालक को कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान रखना है, जैसे कि पशु खरीदते वक़्त पशु के अनुवांशिक रिकॉर्ड एवं उसकी क्षमता के बारे में गहन अध्ययन करें, पशुओं की उचित देखभाल, प्रबंधन एवं खान-पान का विशेष रूप से ध्यान रखें एवं समय-समय पर पशु चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

और देखें :  गाय की चेचक/ माता/ गो मसूरी, कारण, लक्षण एवं बचाव

The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately.

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