खनिज लवण मुर्गियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते है। यह शरीर निर्माण के साथ-साथ मुर्गियों के वृद्धि, विकास एवं उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। खनिज एवं विटामिन्स की कमी से शारीरिक विकास कम हो जाता है तथा मुर्गियों की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है इसके साथ-साथ खनिज लवणों की कमी से विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। जो कि निम्नलिखित है-
1. मुर्गियों के द्वारा अण्डोें का फोड़ना
मुर्गियों में पाया जाने वाल यह एक महत्वपूर्ण दोष होता है। इसमें मुर्गियां या तो अपने अण्डों को अथवा दूसरी मुर्गियों के अण्डों को तोड़ती रहती हैं। कैल्श्यिम की कमी हाने पर मुर्गियां इस प्रकार के दोष से ग्रसित होती है।
उपचार
इससे प्रभावित मुर्गियों को कैल्श्यिम की आधा से एक टिकिया सुबह-शाम देना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को ओस्टोकैल्श्यिम सीरप की आधे से एक चाय चम्मच मात्रा को दिन में 2-3 बार देना चाहिए मुर्गियों को दाने के साथ-साथ कैल्श्यिम युक्त खनिज मिश्रण जैसे-कोन्सीमिन, चीलेटेड ऐग्रीमिन फोर्ट, डासमिन, वेस्टमिन गोल्ड इत्यादि में से किसी एक की 25-30 ग्राम मात्रा को 10 किलोग्राम दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को दाने में सीतुहा, शीप इत्यादि के चूर्ण को देने से लाभ मिलता है। मुर्गियों की इस बुरी आदत को छुड़ाने के लिए प्लास्टिक या चीनी मिटटी से बने अण्डे को मुर्गियों के सामने रखना चाहिए और चोच मारने पर चोट लगने के कारण मुर्गियां इस आदत को धीरे-धीरे छोड़ देगीं।
2. कच्चेे अण्डों का निकलना
खनिज तत्व कैल्श्यिम से प्रभावित मुर्गियां पिलपिले एंव मुलायम अण्डे देने लगती है। अण्डों का छिलका पतला एवं लचीला हो जाता है और उनका कोई मूल्य नहीं मिलता है जिसके कारण मुर्गी पालक को अण्डों के रूप में आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।
रोग का कारण
यह मुख्य रूप से अण्डे देने वाले मुर्गियों में कैल्श्यिम की कमी के कारण होता है। इसकी कमी के कारण अण्डों का ऊपरी भाग पतला होकर पिलपिला हो जाता है।
रोग की चिकित्सा
प्रभावित मुर्गियों की कैल्श्यिम की 1/2-1 टिकिया दिन में दो बार देना चाहिए। ओस्टोकैल्शियम सीरप की 1/2-1 चाय चम्मच की मात्रा दिन में दो बार देना चाहिए। मुर्गियों के दानों में कैल्श्यिम युक्त खनिज मिश्रण जैसे कोन्सीमिन टोटाविट स्ट्रोंग डोसमिन, वेस्टमीन गोल्ड इत्यादि की 25-30 ग्राम मात्रा प्रति 10 किलोग्राम दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों का वेटकाल बी12, काॅन्सीटोन की 20-100 मिलीलीटर मात्रा पीने के पानी के साथ प्रति 10 मुर्गियों को देना चाहिए। मुगिर्याें को काल-डी रूबरा की 0.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति पक्षी को प्रतिदिन देना लाभदायक होता है।
3. मुर्गियों के द्वारा पंख का नोचना या राक्षसपना
यह मुर्गियों में होने वाली एक बुरी आदत है। इस बुरी आदत से ग्रसित मुर्गियां कभी-कभी दूसरी मुर्गियों के पंखों को, घुटने को, गुदा को तथा अन्य दूसरे भागों को नोचने का काम करती है। जिसके कारण मुर्गियां घायल हो जाती है। इस बुरी आदत से ग्रसित मुर्गियां साथ रहने वाली अन्य दूसरी मुर्गियों को इससे प्रभावित कर देती है।
कारण
इसका प्रमुख कारण प्रबन्धन में अव्यवस्था है। यह मुख्य रूप से मुर्गियों को द्वारा अधिक संख्या में होने पर, खाने एवं पानी पीने के लिए बर्तनों की उचित व्यवस्था न होने पर होता है। मुर्गियों को उचित राशन नहीं मिलने पर तथा पोषक तत्वों की कमी होने पर तथा प्रकाश की उचित व्यवस्था न होने पर मुर्गियों में यह बुरी आदत आ जाती है।
उपचार
सबसे पहले प्रभावित मुर्गियों को अलग रखना चाहिए तथा नमक खिलाना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को सोडियम क्लोराइड की आधी टिकिया सुबह-शाम देने से यह आदत छूट जाती है। मुर्गियों के राशन में नमक की मात्रा बढ़ा देना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को चोंच को काटकर थोड़ा मोटा कर देना चाहिए। मुर्गियों को इस बुरी आदत से बचाऐ रखने के लिए उचित पोषण एवं प्रबन्ध है। मुर्गियों को काल-डी रूबरा की 10 मिलीलीटर मात्रा प्रति 100 चूजों को, 20 मिलीलीटर मात्रा ब्रायलरों को तथा 50 मिलीलीटर मात्रा को प्रति 100 मुर्गियों में दिन में दो बार देने से लाभ मिलता है।
4. मुर्गियों में टेढ़ी टांगें या पेरोसिस का होना
यह मुर्गियों में विटामिन बी-12 या मैग्नीज की कमी से हाने वाली बीमारी होती है यह रोग मुख्य रूप से तीन से चार महीने की उम्र की मुर्गियों में होता है रोग से प्रभावित मुर्गियों की टांगें टेढ़ी हो जाती है जिसकके कारण वह लगड़ान लगती है। पैरों में सूजन आ जाती है तथा चलने में दर्द होता है।
उपचार
प्रभावित मुर्गियों को विटामिन्स-ए, कोन्सीमीन, टोटाविट स्ट्रांग या वेस्टमीन गोल्ड की 25 ग्राम मात्रा प्रति 18 किलो दाने के साथ मिलाकर देना चाहिए।
5. मुर्गियों में विटामिन्स की कमी से होने वाले रोग
मुर्गियों में विटामिन्स की कमी के कारण होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित है।
विटामिन ए की कमी से हाने वाले रोग या मुर्गियों में हाने वाला न्यूट्रिशनल राऊप
विटामिन A की कमी के कारण मुर्गियों को रतौंधी रोग हो जाता है। प्रभावित मुर्गियों को आंख से दिखायी नहीं पड़ता है तथा आंखों में माड़ा पड़ जाता है और आंखे सफेद हो जाती है। इस विटामिन की कमी के कारण मुर्गियां सर्दी तथा जुकाम से ग्रसित हो जाती है, आँख तथा नाक से पानी बहता रहता है तथा आँख एवं नाक में सूजन आने लगती है। विटामिन A की कमी से ग्रसित छोटी मुर्गियों को चक्कर आने लगते है तथा गिर पड़ती है। इससे ग्रसित मुर्गियों को भूख कम लगती है। प्रभावित मुर्गियों का शारीरिक विकास रूक जाता है।
विटामिन A की कमी से ग्रसित अण्डे देने वाली मुर्गियों के अण्डा उत्पादन में गिरावट आ जाती है। मुर्गियों के गुर्दा एवं मूत्र नलिकाओं में यूरिक एसिड जमा हो जाता है। विटामिन A की अधिक कमी होने पर मुर्गियों की मृत्यु हो जाती है।
उपचार
- इसकी कमी से प्रभावित मुर्गियों के दाने में बिटाब्लेण्ड ए-डी-3 मिलाकर देना चाहिए अथवा बिटाब्लेण्ड लिक्वीड पानी में मिलाकर देना चाहिए।
- विटामिन A की अत्याधिक कमी से प्रभावित मुर्गियों को प्रोपलीन फोर्ट, एरोविट या विटामिन A की सूई की 1/2 से 1 लाख यूनिट मांस में सप्ताह में दो बार लगाना चाहिए।
- इसकी कमी से प्रभावित मुर्गियों को हरी साग सब्जियां अधिक मात्रा देना चाहिए तथा साथ ही साथ मछली के तेल की 2-4 बूंद मात्रा सुबह शाम पिलाते रहना चाहिए।
- प्रभावित मुर्गियों को कन्सीविट या कान्सीटोन की 10 मिलीलीटर मात्रा प्रति 1000 मुर्गियों को पानी के साथ सुबह-शाम 7 दिनों तक पिलाना चाहिए।
- विटामिक्स एस की 25 ग्राम मात्रा को प्रति 10 किलो दाने में मिलकार देते रहना चाहिए।
- विटामिन A की कमी से ग्रसित मुर्गियों को विटामिन ष्एष् की 10 मिलीलीटर मात्रा अण्डे देने वाली मुर्गियों को, 10 मिलीलीटर मात्रा ग्रोवर को तथा 2 मिलीलीटर मात्रा चूजों को पीने के पानी के साथ 10 दिनों तक देना चाहिए।
विटामिन बी2 या राइबोफ्लेविन की कमी से होने वाले रोग
रोग के लक्षण
विटामिन बी2 की कमी से ग्रसित मुर्गियों के पंख झड़ने लगते हैं भूख् कम हो जाती है। मुर्गियां, अत्याधिक कमजोर हो जाती है। प्रभावित मुुर्गियों की त्वचा खुरदरी हो जाती है तथा पैरों के जोड़ों में सूजन आ जाती है। राइबोफ्लेविन की कमी से प्रभावित मुर्गियों के पंजे टेढ़ें हो जाते है जिसे कल्र्ड टो के नाम से जाना जाता है। पैरों में लकवा हो जाता है जिसके कारण पैर टेढ़े हो जाते है तथा पैरालिसिस से ग्रसित हो जाते हैं। इसकी कमी से प्रभावित चूजों को वृद्धि रूक जाती है। विटामिन बी2 की कमी लगातार बने रहने से मुर्गिया चलने फिरने में असमर्थ हो जाती हैं तथा एक जगह पड़ी रहती हैं तथा अन्त में भूख एवं पानी की कमी के कारण मुर्गियों की मृत्यु हो जाती है।
रोग का उपचार
विटामिन बी2 की कमी से प्रभावित मुर्गियों का विटामिन बी-काम्पलेक्स की 1/2 से 1 चम्मच मात्रा प्रत्येक मुर्गियों को देना चाहिए इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को विसोल-बी की 15-20 मिलीलीटर मात्रा प्रति 100 मुर्गियों को पानी के साथ देना चाहिए। साथ ही साथ कान्सीमिन की 25 ग्राम मात्रा को 10 किलो दाने के साथ देते रहना चाहिए।
विटामिन डी कमी से होने वाले रोग
विटामिन D की कमी होने पर मुर्गियों का विकास रूक जाता है चूजों की वृद्धि दर में गिरावटर आ जाती है। प्रभावति मुर्गियों से निकलने वाल अण्डों के छिलके पतले होने लगते हैं। अण्डो के उत्पादन में भारी गिरावट आ जाते है। मुर्गियों की हडिडयां टेढ़ी हो जाती है तथा छोटी रहती है इसकी कमी से प्रभावित मुर्गियों के पंख बहुत देर से निकलते है। विटामिन-डी मुर्गियों के शरीर के विकास में सहायक होतेे हेैं।
उपचार
सामान्य रूप मे विटामिन D धूप से मिलता है अतः धूप का उचित प्रबन्ध करना चाहिए इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को टी.एम. फोर्ट, विटामिक्स, कान्सीटोन, कान्सीमिन वीटासेप्ट इत्यादि दवाइयां देने से लाभ मिलता है।
विटामिन E की कमी से होने वाले रोग या क्रेजी चिक रोग
यह मुख्य रूप से 2-3 माह के चूजों को अधिक प्रभावित करता है विटामिन ई की कमी के कारण चूजों में उन्माद हो जाता है जिसे उन्मात चूजे (क्रेजी चिक) कहते हेैं। इसकी कमी से ग्रसित चूजों इधर उधर भागने दौड़ने लगते है तथा लड़खड़ा कर चलते रहते है और अन्त में गिर पड़ते है और आंख बन्द कर बैठे रहते है और 24 घंटों के अन्दर इनकी मृत्यु हो जाती है।
उपचार
इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को विटासेप्ट की 0.25 से 0.5 मिलीलीटर मात्रा की सूई मांस में सप्ताह में एक बार देना चाहिए। प्रभावित चूजों को पोलकाॅन की एक ग्राम मात्रा को 10 किलोग्राम दाने में मिलाकर खिलाने से लाभ मिलता है। प्रभावित मुर्गियों को कोन्सीटोन लिक्विड पिलाने से भी लाभ मिलता है।
विटामिन K की कमी से हाने वाले रोग
इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को कट-फट जाने पर खून के थक्का बनाने की शक्ति क्षीण हो जाती है जिसके कारण खून बहता रहता है।
उपचार
प्रभावित मुर्गियों को पोलकाॅन की 1 ग्राम मात्रा को 10 Kg दाने में मिलाकर देते रहना चाहिए इसकी कमी से ग्रसित मुर्गियों को कैपिलिन ओरल की एक टिकिया प्रतिदिन खिलानें से लाभ मिलता है। खून बहते रहने की अवस्था में क्रोमोस्टेट, स्टाइपलन, या रेवीसी इत्यादि में से किसी एक की 1 मिलीलीटर मात्रा को मांस में सूई लगाना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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