गाय एवं भैंस पालन वर्तमान परिदृश्य में रोजगार का अच्छा साधन है। दूध तथा दूध से बनने वाले सामानों की मांग कभी घटती नहीं है। हमेशा बाजार में इन सभी चीजों की मांग बनी रहती है। गो /भैंस पालन में रोजगार करने से पहले दुधारू गाय भैंस का चयन की जानकारी आवश्यक है। चयन करने के पहले इन बिंदुओं पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
- गाय /भैंस का नस्ल
- गाय /भैंस का उम्र
- शरीर की बनावट स्वास्थ्य टीकाकरण इत्यादि की स्थिति
गाय /भैंस का नस्ल
पशुओं के नस्ल के संबंध में जानकारी आवश्यक है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि जिस क्षेत्र में पशु को पालना है वह उस स्थान के लिए अनुकूल है या नहीं। सामान्य तौर पर उत्तरी पूर्वी भारत में ऐसे नस्ल की आवश्यकता होती है जो गर्म एवं आद्रता को सहन कर सके एवं इसके उत्पादकता पर कम से कम असर पड़े। सामान्य तौर पर उतरी भारत में इन नस्लों के गाय भैंस का पालन किया जा सकता है जिसकी उत्पादकता अच्छी है।
गायों की नस्ल
- साहिवाल: इस नस्ल की गायों का बदन भरा हुआ, चमड़ी ढीली, सींग एवं पर छोटा, माथा चौड़ा, माथे पर सफेद धब्बा, आंखों के चारों ओर सफेद घेरा, नाभि लंबी लटकी हुई, थन एवं छीमी बड़ी एवं लंबी , गर्दन पर चमड़ी लटकी हुई होती है। इसकी दूध देने की क्षमता 2200 से 3200 लीटर प्रति बियान (330 दिनों में) होती है।
- रेड सिंधी: मध्यम आकार, गहरा लाल रंग ,चमड़ी पतली, कान की नीचे की ओर लटकी हुई, सींग के पास मोटा एवं बाहर से मुड़कर ऊपर जाता हुआ मुठिया सींग, गर्दन पर चमड़ी लटकी रहती है। पैर एवं पूंछ लंबी होती है। थन मध्यम और छीमी छोटी होती है। इस नस्ल की दूध देने की क्षमता 2000 से 2500 लीटर प्रति बियान होती है।
- गिर: पीलापन लिए हुए लाल /काला / भूरा चमड़ी ढीली , सिर बड़ा और आगे की ओर झुका, मुंह पतली एवं लंबी, कान लंबी और नाक तक झूलता हुआ, सींग पीछे की ओर मुड़ते हुए ऊपर, ललाट ऊंचा एवं विकसित गीर नस्ल की पहचान है। दूध देने की क्षमता 1500 से 2000 लीटर प्रति बियान सामान्यतः होती है।
- थारपारकर: रंग सफेद- भूरा, पीठ पर भूरी लकीर, शरीर मजबूत, पैर लंबा, सीधा सिर मध्यम, कपाल चौड़ा और चिपटा, कान लंबा, मोटा आधा झुका हुआ, नाभि खुली हुई, सींग बाहर की ओर मुड़ी और आगे की ओर उठे हुए होते हैं। थन मध्यम आकार की होती है एवं दूध देने की क्षमता 2000 से 2200 लीटर प्रति बयान होती है।
- हरियाण: शरीर गठीला, मध्यम आकार, सफेद-भूरा रंग, चमड़ी पतली, रोया (बाल) छोटा, मुंह लंबा-पतला, माथे के पास उभरा हुआ, पूंछ पतली एवं छोटी ही हरियाणा नस्ल की पहचान है। थन मध्यम आकार तथा आगे वाली छीमी लंबी एवं पीछे वाली छीमी छोटी होती है। दूध देने की क्षमता करीब 2000 लीटर प्रति बियान होती है। इसके बछड़े भी मिहनती एवं काम करने से जल्द थकते नहीं हैं।
- विदेशी क्रॉस ब्रीड नस्ल: करनाल में विकसित दो क्रॉस ब्रेड नस्ल जैसे करनस्विस एवं करनफ्रिज नस्ल भारत के प्रत्येक जगह के लिए उपयुक्त है।
- करनस्विस: ब्राउन स्विस (विदेशी नस्ल) एवं साहिवाल (देशी नस्ल)के मेल से करनस्विस की उत्पत्ति हुई है जिसकी दूध देने की क्षमता 3500 से 4500 लीटर प्रति बियान होती है। इसकी बाछी 28 से 30 महीने में गाय बन जाती है एवं बिसुखने का समय भी कम होता है।
- करनफ्रिज: हलस्टिन् फ्रीजियन (विदेशी नस्ल) एवं साहिवाल (देशी नस्ल) के मेल से इस ब्रीड की उत्पत्ति की गई है दूध देने की क्षमता करीब 3500 से 4500 लीटर प्रति बियान होती है।
इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय नस्ल की गायों को विदेशी नस्लों यथा जर्सी, फ्रीजियन एवं अन्य विदेशी नस्ल के साथ मेल करा कर भी क्रॉस ब्रीड की गायों को पाला जा सकता है।
भैंसों की नस्ल
भैंसों की नस्ल – भैंसों की अच्छी नस्ल ज्यादातर भारतीय ही हैं। इनके दूध में वसा की मात्रा ज्यादा होती है। भैंसों की प्रमुख नस्लों की विवरण इस प्रकार है
- मुर्रा: उत्तरी एवं पूर्वी भारत की प्रमुख नस्ल है इसका कपाल चौड़ा उभरा हुआ सींग छोटा, चपटा, पीछे की ओर मुड़ा हुआ सर्पिल आकार का होता है। इसका कान चौकन्ना, पतला, पैर छोटा- पतला, मजबूत, खुर काला, पूंछ लंबा एवं झूलन आधी सफेद, पीठ सीधा, कुल्हा चौड़ा, थन विकसित दोनों जांघ एवं नाभि तक होता है। दूध देने की क्षमता सामान्यतः 1500 से 2000 लीटर प्रति बियान होती है। दूध में मक्खन 7% तक होती है।
- नीली: रंग काला परंतु सिर एवं पैर के अंतिम सिरे पर सफेद, सिर्फ चौड़ा, सींग छोटा कुंडली की तरह, ललाट अल्पविकसित पूंछ लंबी झूलन बड़ी जमीन तक लटकी हुई होती है। दूध देने की क्षमता सामान्यतः 1500 से 2900 लीटर प्रति बियान होती है।
- सुरती (गुजराती): शरीर काला से भूरा, भों (आंख के ऊपर) सफेद घुटना पर बाल, सींग हसिया की तरह समानांतर पीछे की ओर, मुंह लंबा, कपाल गोलाई, मुंह लंबी, पूंछ लंबी-पतली, झूलन सफेद होती है। दूध देने की क्षमता सामान्यता 1700 से 2000 लीटर प्रति बियान एवं मक्खन 11% तक होती है।
नस्लों का चयन वातावरण के अनुसार की जा सकती है यह सभी नस्ल भारतीय वातावरण में पाली जा सकती है।
गाय भैंस की उम्र
कोई भी डेयरी फार्म की सफलता का प्रथम सोपान गाय/भैंस की सही खरीदारी पर निर्भर करता है। गायों/भैंसों की खरीदारी की सही उम्र उसके प्रथम या द्वितीय बियान में करनी चाहिए ताकि उसे अधिक समय के लिए अपने खटाल में रखकर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सके। गाय-भैंसों का सही उम्र उसके दांत को देखकर ही बता जा सकता है। प्रथम बियान में गायों का उम्र 28 से 36 माह एवं भैंसों की उम्र 32 से 40 माह होती है। दांत की गिनती निचले जबड़े के सामने की 8 दांतो को देखकर की जाती है जो बचपन के दातों के टूटने पर आती है। प्रायः ये दांत अधिक सफेद एवं आकार में बड़े एवं लंबे होते हैं। सर्वप्रथम बीच के दो दांत फिर उसके दोनों तरफ एक एक दांत किनारे की ओर बदलते एवं बड़े दिखाई देते हैं जिससे गायों/ भैंसों का उम्र पता चलता है।
बीच के दो स्थाई दांत गायों में 24 से 26 महीना एवं भैंसों में 28 से 30 महीना में होती है। बीच के 4 दांत गायों में 30 से 36 महीना एवं भैंसों में 40 से 42 महीनों के दौरान होती है। बीच का 6 दांत गाय में 40 से 42 महीना एवं भैंसों में 50 से 52 माह में आती है। चौथा जोड़ी यानि 8 दांत गाय में 44 से 48 माह में एवं भैंसों में 60 से 72 माह में आती है।
गाय के प्रथम बियान दो से चार दांत एवं द्वितीय बियान 4 से 6 दांत के बीच समान्यतः होती है जबकि भैंसों में प्रथम बियान के समय चार दांत एवं द्वितीय बियान के समय 6 दांत होते हैं।
शरीर की बनावट स्वास्थ्य टीकाकरण की स्थिति
दूध देने की क्षमता जानने के लिए गायों एवं भैंसों के निम्न बातों की ओर ध्यान देना जरूरी है
- गायों को सामने ऊपर एवं बगल से देखें सभी ओर गाय थोड़ी सी कोनी दिखनी चाहिए यानी गाय का अगला हिस्सा पतला एवं पिछला हिस्सा चौड़ा होना चाहिए।
- गाय भैंस की चमड़ी पतली होनी चाहिए प्रजनन अंग के नीचे की जगह ज्यादा चौड़ी उभरी हुई तथा चमकीली होनी चाहिए।
- थन के आगे की ओर शिरा (vein) ज्यादा उभरी हुई मोटी एवं टेढ़ी-मेढ़ी होनी चाहिए। यह जितनी उभरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी होगी उतनी ही गाय/ भैंस दुधारू होगी।
- गाय/ भैंस के दूध दुहने के उपरांत थन पूरी तरह सिकुड़ जाना चाहिए।
- गाय/भैंस की छीमी की दूरी और आकार बराबर होनी चाहिए एवं धार दुहने के दौरान मोटी एवं एक समान होनी चाहिए।
- शरीर के अनुपात में गाय के पैर सिर एवं शरीर के बाल छोटे होने चाहिए।
- गाय/ भैंस की आंखों में चमक जल्दी-जल्दी खाने की क्षमता एवं बैठने पर पागुर करते रहना स्वस्थ होने निशानी होती है।
- भैंस के शरीर पर कोई घाव ना हो अतः खरीद करने के समय भैंस को धूलवा कर अवश्य देखें।
- गाय भैंस को कम से कम 3 बार लगातार दूध दूध कर ही दूध की क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
- गाय भैंस के साथ बच्चा बाछी/ पाड़ी हो तो उसका भी अलग फायदा है परंतु बच्चा उसी गाय भैंस का है उसका पता अवश्य लगा ले गाय को लेकर आगे चलें यदि बच्चा भी साथ चलने लगे या बच्चे को लेकर आगे चले तो गाय/ भैंस साथ चलने लगे तो बच्चा उसी गाय/ भैंस की पहचान हो जाती है।
- सामान्य तौर पर जान-पहचान वालों से ही गाय भैंस खरीदें चुकी व्यापारी हमेशा ठगने का प्रयास करते हैं। व्यापारी से यदि गाय भैंस लेना ही पड़े तो तुरंत सौदा पक्का ना करें पहले गाय/भैंस को दुहने में समय लें ताकि ऑक्सीटॉसिन देकर दुहने का प्रयास यदि व्यापारी करे तो उसका प्रभाव खत्म हो जाए और लगातार तीन बार सुबह शाम जुड़ने के उपरांत ही पैसा दें ताकि दूध देने की क्षमता का पूरी तरह अंदाज लग जाए।
- इसके अतिरिक्त गाय भैंस के टीकाकरण कार्ड को अवश्य देखें जिसमें टीकाकरण सही समय पर हुई है या नहीं इसकी जानकारी हो जाए साथ ही बीमा एवं लोन संबंधी जानकारी पशुपालक/व्यापारी से अवश्य ले लें।
गाय भैंस लेने के उपरांत 14 से 21 दिनों तक अन्य गायों/भैंसों से अलग रखें। स्थिति/स्वास्थ्य सामान्य होने पर ही अन्य गायों भैंसों के साथ रखें।
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