भारतीय कृषकों की आय के प्रमुख स्रोत खेती व पशु उत्पाद, मुख्यतः दुग्ध है। अतः पर्याप्त आय हेतु उच्च खेती के साथ रोग मुक्त पशुधन भी आवश्यक है। गोपशुओं की दुग्ध अत्पादकता व अन्ततः कृषक आय प्रभावित होने पर दुग्ध उत्पादकता व अन्ततः कृषक आय प्रभावित होती है। जननशीलता प्रभावित करने का एक प्रमुख कारण है- पुनरावृन्त प्रजनन (रिपीट ब्रीड़ींग)। भारत में यह समस्या 14 से 27 प्रतिशत गाय व 7 से 10 प्रतिशत भैसों को प्रभावित करती है।
पुनरावृन्त प्रजनक ऐसे पशुओं को कहा जाता है जो बिना असामान्य स्राव के साथ सामान्य जननांग, सामान्य साँड अथवा वीर्य द्वारा लगातार 3 बार गर्भित कराने पर भी गर्भ धारण नहीं कर पाते।
पहचान
ऐसे पशु गर्भित कराने के बाद भी 21 दिन के अन्तराल पर मदकाल में आते है (कभी-कभी अन्तराल अधिक भी हो सकता है)।
कारण
पुनरावृन्त प्रजनन (रिपीट ब्रीड़ींग) के मुख्यतः दो कारण हैं।
- असफल निषेचन: निषेचन मार्ग (डिंबवाहिनी) में अवरोध, डिंबक्षरण न होना (डिंबाशय श्लेष्मपुटी आसंजन में) या युग्मक होने पर।
- अल्पकालीन भ्रुण मृत्यु: असमान्य गुणसुत्र, भोज्य अल्पता, उच्च वातावरण तापमान, हाॅर्मोन अंसंतुलन या प्रतिकूल गर्भाशय होने पर।
निषेचन न होने या भ्रूण मृत्यू ऋतु चक्र के 13 वें दिन से पूर्व होने पर मदकाल निश्चित 21 दिन के अन्तराल पर आता है अन्यथा अन्तराल अधिक हो जाता है।
प्रबन्धन व चिकित्सा
- वीर्य की जाँच: पुनरावृन्त प्रजनन (रिपीट ब्रीड़ींग) के प्रबन्धन में सर्वप्रथम यह सुनिश्चित कर लिया जाय कि गर्भाधान में प्रयुक्त वीर्य या नर उच्च जनन क्षमता का हो।
- सही गर्भाधान: कृत्रिम गर्भाधान की सफलता वीर्य व गर्भाधान कराने वाले व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करती है। प्रशिक्षित व्यक्ति (पशुचिकित्सक) द्वारा गर्भाधान कराने पर गर्भधारण दर, अकुशल व्यक्ति की तुलना में अधिक होती है। गर्भधारण के समय पशु का उचित मदकाल में होना आवश्यक है। अतः यदि पशु प्रातः काल मदकाल में आये तो सायंकाल व सायंकाल में आये तो अगले दिन प्रातः गर्भधारण कराना चाहिए। देर या जल्दी करने पर गर्भधारण दर कम हो जाती है।
- असमान्य डिंबक्षरण: गौ वंशीय पशुओं में डिंबक्षरण मदकाल के 10-14 घण्टे पश्चात होता है। उस अवधि में निषेचन योग्य शुक्राणु निषेचन स्थल, डिंबवाहिनी के तुम्बिका नामक भाग तक पहुँच जाते है व निषेचन हो जाता है। परन्तु पुनरावृन्त प्रजनन से ग्रसित पशु में डिंबक्षरण या तो इस अवधि के पश्चात होता ही नहीं। ये पशु पुनः मदकाल में आ जाते है। डिंबक्षरण न होने पर पुटिका बनी रह सकती है व स्थिर पुटी बनने के कारण ऋतुचक्र प्रभावित हो जाता है। डिंबक्षरण देरी से होना या न होने का विभेदी निदान गुदा परीक्षण विधी द्वारा मदकाल के दिन, ऋतु चक्र के 2 व 10-12 दिन पर डिंबाशय परीक्षण किया जा सकता है। यदि सभी परीक्षणों पर पुटिका उपस्थित हो तो डिंबक्षरण नहीं हुआ व यदि प्रथम, द्वितीय परीक्षण पर पुटिका व तृतीय परीक्षण पर उसी स्थान पर पीतपिंड उपस्थित होनें तो डिंबक्षरण देरी से हुआ है। डिंबक्षरण में देरी का एल0 एच0 या एच0 सी0 जी0 1500 आई0 यू0 या जी एन0 आर0 एच0 2.5 मि.ली. मदकाल के दिन या गर्भाधान के समय देकर उपचार किया जा सकता है।
4. अब-चिकित्सीय संक्रमणः कुछ पशुओं के जननांग स्राव में कोई असामान्यता नहीं दिखती लेकिन कभी-कभी स्राव में सफेद परतें दिखाई देती हे। इन पशुओं में सामान्य ऋतुचक्र होता है। अब-चिकित्सीय संक्रमण के कारण गर्भाशय का वातावरण भ्रुण हेतु प्रतिकूल बना रहता है व भ्रूण की अल्पकालिक मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार के संक्रमण की जांच व्हाइट साइड परीक्षण (1 मिली0 जननांग स्राव व 1 मिली0 5 प्रतिशत सोडियम हाइड्राॅक्साड मिलाकर गरम करें) द्वारा की जाती है। पीला रंग संक्रमण दर्शाता है। गर्भाशय संक्रमण विभिन्न एंटीबायोटिक्स, ऐंटीसेप्टीक्स, हाॅरमोन्स व अन्य चिकित्साओं द्वारा दूर किया जा सकता है।
5. अपर्याप्त पींत पिंडः भू्रण का जीवन पींत पिंड़ द्वारा स्रावित प्रोजेस्ट्राॅन पर निर्भर करता है। पींत पिंड में असमान्यता या अपर्याप्तता होने पर गर्भापात होने से पशु पुनरावृन्त प्रजनक (रिपीट ब्रीड़र) हो जाता है।
6. गर्भाधान समय: मदकाल ही पहचान, मुख्यतः अब-मदकालिक गाय-भैंस, में मानवीय त्रुटि होने पर सही समय पर गर्भाधान न होने से पुनरावृन्त प्रजनन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसका उपचार मदकाल का समकालन एवं निश्चित समय पर गर्भाधान द्वारा किया जा सकता है। इसमें पी0 जी0 एफ0 2 अल्फा के दो इन्जैक्शन 11 दिन के अन्तराल पर देते है। पशु अन्तिम इन्जैक्शन के 48-72 घंटे पश्चात् मदकाल में आ जाता है अर्थात् अन्तिम इन्जैक्शन के 72-96 घंटे पश्चात् गर्भाधान करने पर पुनरावृन्त प्रजनन (रिपीट ब्रीड़ींग) की समस्या का उपचार हो सकता है।
पुनरावृन्त प्रजनन (रिपीट ब्रीड़ींग) की समस्या का निदान एवं समुचित इलाज पशु पालन व्यवसाय को लाभकारी बनाने के लिये आवश्यक है क्योंकि लाभकारी पशु पालन व्यवसाय के लिये एक वर्ष में एक बछड़ा /बछिया का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है। किसान इस समस्या के बारे में जानकारी एवं समय पर उपचार करा कर इस समस्या से मुक्ति पा सकता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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