परिचय
पशु पालन, भारतीय कृषि का एक अभिन्न अंग है, जो गरीब, भूमि हीन, सीमांत और छोटे किसानो की अर्थव्यवस्था के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाल ही में प्रकाशित भुखमरी सूचकांक यानी ग्लोबल हन्गर इनडेक्स 2020 के अनुसार भारत 107 देशों में 94वे पायदान पर रहा है, इसके मुताबित 14 प्रतिशत जनसंख्या अल्प पोषित और बच्चों में स्टंनिंग रेट 37.4 रही है। ऐंसे में दूध, अण्डा एवं मांस के जरिये प्रोटीन का एक अच्छा स्त्रोत प्रदान किया जा सकता है। इससे न केवल उनको उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन प्राप्त होगा अपितु आर्थिक सहायता में भी सुधार होगा। पशुओं की उत्पादकता में सुधार करना प्रमुख चुनौतियों में से एक है। जिसमें परजीवी संक्रमण महत्वपूर्ण है। आम तौर पर पशुओं में अंतः परजीवी संक्रमण बहुताई होता है, परंतु जानकारी के अभाव एवं सामान्य बीमारियों की तरह लक्षण न दिखाई देने से पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। उचित भरण पोषण या पौष्टिक आहार खिलाने के बावजूद दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी एवं कार्यशील पशुओं में कार्यक्षमता में कमी आने लगती है। इसके अलावा पशु सुस्त, दुर्बल, कमजोर, रक्तहीन, आँखों से कीचड़, मिट्टी खाना, कब्ज के बाद दस्त आना पशु के शरीर की चमक में कमी एवं बाल खुरदुरे हो जाना आदि लक्षण भी दिखाई पड़ते है। ऐंसे में पशु पालकों को परजीवी संक्रमण से संबंधित जानकारी रखना बहुत आवश्यक हो जाता है। जिससे अपने पशुओं को उचित समय पर डीवार्मिंग या कृमिनाशक दवाई दे सकें।
डीवार्मिंग क्या होती है
कृमिनाशक या एन्थलमेंटिक्स दवाओं का एक समूह जो आंतो के कृमि को मारती है तथा ऐंसी दवाओं को रोगनिरोधी उपयोग में लाने की प्रक्रिया को डीवार्मिंग कहते है। पशु की उम्र और वजन के हिसाब से डीवार्मिंग करवाना चाहिए।
डीवार्मिंग (कृमिरोधन) कराने की प्रक्रिया
वैसे तो डीवार्मिंग हमेशा गोबर की जांच कराने के उपरांत ही करना चाहिए। परंतु जांच की सुविधा उपलब्ध न होने पर नीचे दिये गये स्ड्यूल अनुसार पशुओं की डीवार्मिंग करवाई जा सकती है। बछड़े के जन्म के 15वें दिन व 45वें दिन और फिर 01 वर्ष तक हर 03 माह में और जब पशु 01 वर्ष का होने के बाद साल में 01 बार वर्षा ऋतु के मध्य या अंत में कृमिनाशक देना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर वर्षा ऋतु के बाद में दोबारा कृमिनाशक दी जा सकती है। वर्षा ऋतु परजीवियों के पनपने के लिए उचित समय होता है क्योंकि इस समय इनकी विभिन्न अवस्थाओं जैसे अण्डे एवं लार्वा के लिए उपयुक्त तापमान नमी, आद्रता व आक्सीजन होती है, जो बाद में हरी घास, दूषित पानी के माध्यम से पशु की आहार नालिका व अंगों में पहुंचकर रोग उत्पन्न करते है। गर्भधारी पशुओं को डीवार्मिंग दो बार करवाना चाहिए, प्रसव के 07-14 दिन पहले और प्रसव के 6 सप्ताह बाद।
डीवार्मिंग हेतु प्रमुख दवाईयां
पिपराजिन 200-300 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीर भार, एल्बेन्डाजोल 05-10 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीर भार, फेनबेन्डाजोल 7 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीर भार, लिवामिजोल 7.5 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीर भार, आईवरमेक्टिन 0.2 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शरीर भार।
डीवार्मिंग हेतु घरेलू सलाह
- नीम एवं तुलसी के पत्ते खिलाने से कृमियों की संख्या में कमी आती है।
- पलास के बीज का चूर्ण बनाकर गुड़ के साथ मिलाकर खिलाने से कृमि की संख्या में कमी आती है।
- अनार के छिलकों को सुखाकर इसके चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर खिलाने से भी पेट के कृमियों की संख्या में कमी आती है।
- कच्चे आम की गुठली का चूर्ण देने से भी कृमियों की संख्या में कमी आती है।
- लौंग, लहसुन, काली मिर्च, अजवायन का चूर्ण बनाकर गुड़ के साथ मिलाकर खिलाने से पेट के कृमियों की संख्या में कमी आती है।
डीवार्मिंग के संबंध में सुझाव
- पशु के बाड़े को साफ-सुथरा रखना चाहिए।
- पानी हमेशा शुद्ध एवं ताजा ही देना चाहिए।
- दूषित चारा दाना कभी नहीं देना चाहिए।
- पशु चिकित्सक की सलाह से ही दवाओं का सेवन करवाना चाहिए।
- पशुओं का टीकाकरण करवाने से पहले कृमिनाशक दवाई देना जरूरी होता है।
- एक ही प्रकार की कृमिनाशक दवाई का प्रयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
- गाभिन अवस्था में पशुओं को कृमिनाशक दवाई पशु चिकित्सक की सलाह से ही देना चाहिए।
- पशुओं के गोबर की जाँच करवाते रहना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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