पशुओं की प्रमुख प्रजनन समस्याएं: कारण एवं प्रबंधन

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भारतीय किसानो की आजीविका में पशुपालन का विशेष महत्व है। पशु प्रजनन को पशु पालन व्यवसाय का आधार स्तम्भ कहा गया है। अतः पशु पालकों को प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं एवं उनके समुचित प्रबंधन की जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। आमतौर पर गाय से एक बार बछिया या बछड़ा प्राप्त करना ही उत्तम प्रजनन को इंगित करता है, जिसके लिए पशु का समय पर गर्मी में आना आवश्यक है।

गाय, भैंस हीट अथवा गर्मी में न आये तो क्या करे?

गाय, भैंस के हीट या गर्मी में न आने की तीन स्थितियां हो सकती है:

  • बछिया के वयस्क होने पर।
  • कृत्रिम गर्भाधान करने के बाद गर्मी में न आना।
  • पशु के ब्याने के 60 बाद पशु का गर्मी में न आना।

पशु के वयस्क होने की उम्र उनकी नस्ल पर निर्भर करती है, जैसे की देशी गायों में साहीवाल की बछिया 24-36 महीनो में वयस्क होती है जबकि विदेशी नस्ल की होल्सटीन फ्रीसिएन की बछिया 12-14 महीने में वयस्क होती है। भैंसो में वयस्कता की आयु 36 महीने होती है।

बछियों के हीट में न आने के विभिन्न कारण हो सकते है जिसमे मुख्य रूप से कुपोषण के कारण गर्मी अथवा हीट में न आने की समस्या मुख्या रूप से पायी जाती है। अकुशल प्रबंधन भी पशुओ के गर्मी में समय पर न आने का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।

कई बार हम ज़्यादा पशुओं को कम जगह में इक्कठा करके रखते है जिससे पशु को घूमने-फिरने में तकलीफ होती है तथा दाने, चारे व  पानी की उपलब्धता भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाती है। इसीलिए पशुओं को स्वच्छ एवं हवादार स्थान पर रखना चाहिए। इससे उनकी प्रजनन दर उत्तम होती है। पशुओं को अत्यधिक गर्मी तथा सर्दी से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में पशु आवास में कूलर, फोग्गर अथवा स्प्रिंकलर की व्यवस्था करनी चाहिए।  कभी-कभी कृत्रिम गर्भाधान के बाद भी पशु गर्मी में नहीं आता है। इसके कारणों में सबसे प्रमुख कारण पशु का गाभिन होना है। अन्य कारणों में बच्चेदानी या गर्भाशय में संक्रमण या मवाद बन जाना अथवा डिंबग्रंथि में सिस्ट होने के कारण भी पशु गर्मी में नहीं आता है।  कई ऐसे भी पशु होते है जो गर्मी में तो आते है पर पशुपालकों को इसका पता नहीं चलता है। ये पशु अधिकतर समय साइलेंट या मूक गर्मी के लक्षण दिखाते है।

ब्याने के बाद सामान्यतः पशु को 45 – 60 दिनों में गर्मी में आ जाना चाहिए परन्तु यदि पशु ब्याने के बाद देर से गर्मी में आता है अथवा नहीं आता है तो इससे पशुपालक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है और इसको गंभीरता से लिया जाना चाहिए।  ब्याने के बाद पशु के गर्मी में न आने का प्रमुख कारण अधिक उत्पादन का तनाव होता है। इस समस्या से बचने के लिए पशु को उत्पादन के अनुसार चारा व दाना देना चाहिए।

  • पशुओं को संतुलित आहार में 3-4 किलो प्रति 10 किलो उत्पादन पर तथा इससे अधिक प्रति 3 किलो पर 1 किलो अतिरिक्त दाना देना चाहिए।
  • हर 6 महीने पर कृमनाशक दवा जैसे अल्बेंडाजोल, फेनबेन्डाज़ोले आदि देना चाहिए।
  • पशुओं को गर्मी में लाने के लिए उनके शरीर में ऊर्जा की पूर्ती के लिए गुड़, तेल, तिल, मेथी व गुड़ का मिश्रण इत्यादि देना फायदेमंद होता है।
  • पशुओं को विटामिन्स तथा फॉस्फोरस के इंजेक्शन भी लगवाए जा सकते है।
  • कुछ आयुर्वेदिक चीज़े जैसे जायफल, अश्वगंधा आदि भी देना फायदेमंद होता है।
  • पशुओं को गर्मी में लाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाएं जैसे जेनोवा , प्रजना आदि भी बाजार में उपलब्ध है जो कि सस्ती एवं उपयोगी है।
  • गर्मियों में पशुओं को दिन में दो बार नहलाने व पशुशाला में फोग्गर अथवा मिस्टफैैन लगवाने से वातावरण में तापमान कम रहता है तथा पशुओं में ऋतुचक्र सही रहता है।
  • भैंसो के लिए तालाब कि व्यवस्था भी ज़रूरी होती है।
  • पशुचिकित्सक कि सलाह पर होर्मोनेस आदि टीके भी दी फायदेमंद साबित होता है।
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पशुओं में गर्भ धारण न होने (रिपीट ब्रीडिंग) की समस्या
यह एक गंभीर समस्या है जो की पशुपालकों को बहुत परेशान करती है। यदि गाय या भैंस समय पर गर्मी (हीट) में आने पर दो से तीन बार या इससे अधिक बार सांड से प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भादान कराने पर भी गाभिन नहीं होती है तो उस स्थिति को रिपीट ब्रीडिंग कहते है। यदि ऐसी स्थिति काफी पशुओं में हो रही है तो इसका कारण सांड, वीर्य या पशुओं को दिया जाने वाला आहार हो सकता है। इसका परीक्षण पशुचिकित्सक द्वारा अवश्य करवाना चाहिए।  परन्तु यदि यह 1-2 पशुओं में है तो इसके अन्य कारण भी हो सकते है जैसे की बच्चेदानी का संक्रमणए डिंबग्रंथि में सिस्ट, मौसम में अत्यधिक गर्मी, तनाव आदि। भोजन में ऊर्जा की कमी तथा अत्यधिक प्रोटीन से भी रिपीट ब्रीडिंग जैसी समस्या की उत्पत्ति होती है। पशुओं में प्रोटीन को अत्यधिक मात्रा में देने से उनके शरीर में ठन्छ तथा फ्री अमोनिया बढ़ जाता है जो की रिपीट ब्रीडिंग का कारण हो सकता है। पशुओं में बाईपास प्रोटीन खिलाने से यह समस्या उत्पन्न नहीं होती है और प्रोटीन का पोषण भी मिलता है।

  • विदेशी नस्लों के पशुओं में हीट का समय लगभग 2-3 दिन का होता है। यदि जल्दी गर्भाधान किया गया तो ओवुलेशन के समय तक सारे स्पर्म मर जाते है तथा गर्भा धारण नहीं होता। ऐसे पशु में दो से तीन बार रोज़ गर्भाधान करवाना चाहिए।
  • पशु को पर्याप्त मात्रा में भोजन तथा हरा चारा देने चाहिए, खनिज व लवण का भी प्रयोग अचे से करना चाहिए।
  • तेज धुप और गर्मी से पशुओं का बचाव करना चाहिए।
  • पशु का स्राव यदि साफ़ न हो तो पशुचिकित्सक से इलाज करवाना आवश्यक होता है।
  • गर्भाधान के 13 दिनों के बाद 50-100 ग्राम अलसी का तेल अथवा मछली का तेल अथवा दोनों का मिश्रण चार से पांच दिनों तक पिलाना गर्भ धारण करने में सहायक साबित होता है।
और देखें :  कीटोसिस दुधारू पशुओं का एक चपापचई रोग

गर्भाधान का समय
इसका भी पशु पालन में विशेष महत्व है। सही समय पर गर्भाधान न कराने से पशु में गर्भ न ठहरने की समस्या हो सकती है। इसलिए पशु पलकों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की यदि पशु सुबह गर्मी में आया तो शाम को या पशु यदि शाम को गर्मी में आये तो अगले दिन की सुबह गर्भाधान अवश्य करवा लेना चाहिए।

पशुओ में जेर रुकने की समस्या
सामान्यतः गाय या भैंस में ब्याने के 4.6 घंटे के अंदर जेर स्वतः बाहर निकल जाती है, परन्तु ब्याने के 8-12 घंटे के बाद भी अगर जेर नहीं निकली तो उस स्थिति को जेर का रुकना अथवा रिटेंशन ऑफ़ प्लेसेंटा कहा जाता है। यह पशुओं में होने वाली आम प्रजनन समस्या है तथा इसके होने पर तुरंत पशु चिकित्सक को संपर्क करना चाहिए।

जेर अटकने के बहुत सारे कारण है जिनमे गर्भपात व विभिन्न संक्रमिक रोग जैसे ब्रूसीलोसिस, कम्प्य्लोबक्टेरिओसिस आदि प्रमुख है। अतिरिक्त पोषक तत्वों के असंतुलन से, समय से पहले प्रसव तथा कष्टमय प्रसव के कारण भी यह समस्या हो सकती है।

इसके लक्षणों मे मुख्यतः जेर का घुटने तक लटका रहना है। पशु की योनि मार्ग से बदबूदार स्राव निकलता रहता है व बुखार हो सकता है। दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है व पशु की भूख में भी कमी आ जाती है।

इस समस्या का समय पर उपचार न होने पर पशुपालकों को आर्थिक हानि ए गर्भाशय में संक्रमण तथा प्रसव के उपरांत हीट में आने में देरी हो जाती हैए तथा बार-बार गाभिन करवाने पर भी गर्भ नही ठहरता है। इसलिए इस परिस्थति में सावधानी रखते हुए पशुचिकित्सक से अवश्य मदद लेनी चाहिए।

पशुपालक जेर अटकने पर कई बार उसे जोर लगाकर खींच कर निकलने का प्रयास करते है या लटकी हुई जेर को किसी वजनदार चीज़ से बाँध देते है जो बिलकुल नहीं करना चाहिए। इससे गर्भाशय की आतंरिक नाजुक परत को बहुत नुक्सान पहुँचता है और गर्भाशय में सूजन तथा संक्रमण हो सकता है। यदि पशु का जेर अटका है तो 8-12 घंटे बाद ही उसे पशुचिकित्सक से निकलवाना चाहिए क्यूंकि वह एक ख़ास वैज्ञानिक विधि से इस कार्य को करने के सक्षम होते है। 4-5 घन्टे बाद की कच्ची जेर को खींच कर निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्यूंकि अपरिपक्व जेर को निकालने से ढेर सारा खून निकल सकता है तथा गर्भाशय चोटिल हो सकता है। जेर निकलने के बाद गर्भाशय में 3-4 दिन तक एंटीबायोटिक एवं निटोफोरजोने एवं यूरिया की गोलियां रखनी चाहिए तथा एंटीबायोटिक के टीके लगाने चाहिए। यदि जेर हाथ से नहीं निकलवाना हो तो बहुत सारी आयुर्वेदिक दवाईयॉ जैसे एक्सपरए रेप्लेंट इत्यादि भी बाजार में उपलब्ध है जो गाय या भैंस में 100 ml दिन में दो बार पिलाने से जेर को निकालने में मदद करते है।

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जेर न अटके इसके लिए ब्याने से 1 माह पूर्व से दाने के साथ 100-150 ml सरसों का तेल रोज देना चाहिए तथा ब्याने के तुरंत बाद 0.5-1 किलो गुड़ व गेहूँ का दलिया देना चाहिए। कैल्शियम का जेल देने से भी फायदा होता है। गर्भावस्था के आखिरी माह में पशु को सेलेनियम और विटामिन-E का टीका लगवाना व हल्का व्यायाम करवाना प्रसव में मदद करता है।

उपरोक्त प्रजनन सम्बन्धी व्याधियों का रोकथाम के कारगर उपाय तथा उनके समुचित प्रबंधन से पशुपालन व्यवसाय में अधिक हानियों से बचाया जा सकता है तथा पशुपालकों की आय में वृद्धि की जा सकती है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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