पशुओं में ट्रिपेनोसोमेएसिस/सर्रा के लक्षण, उपचार एवं बचाव

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यह लगभग सभी पशुओं में पाया जाने वाला अति गंभीर संक्रामक रोग है। जो ट्रिपैनोसोमा इवेनसाई नामक प्रोटोजोआ के कारण फैलता है। इस रोग में रोगी को तीव्र बुखार, रक्ताल्पता अर्थात एनीमिया व पशु शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो जाता है।

भारत में यह सभी पालतू एवं जंगली पशुओं में पाया जाता है। जुलाई 2000 में उड़ीसा के नंदनकानन अभयारण्य में इसी जानलेवा रोग से 17 सफेद दुर्लभ बाघों की एक साथ दर्दनाक मौत हुई थी। घोड़ों व कुत्तों में इस रोग के लक्षण अचानक प्रकट होते हैं जिसमें काफी पशुओं की मृत्यु हो जाती है। ऊंटों, व हाथियों में, यह रोग लंबे समय तक रहता है। ऊंटों में लगभग 3 वर्ष तक चलता है जिसके कारण इसे “तिबरसा” रोग भी कहते हैं। गाय भैंसों में यह थोड़ा हल्के प्रकार का होता है परंतु कई बार तेज घातक असर भी इनमें देखा गया है। सर्वप्रथम ब्रिटेन के पशु चिकित्सक जी़. इवांश, ने सन 1880 में इस रोग की खोज की थी और उन्हीं के नाम पर इस प्रोटोजोआ परजीवी का नाम ट्रिपेनोसोमा इवेंसाई पड़ा।

यह बीमारी डांस मक्खियों के काटने से फैलती है क्योंकि मक्खियों में इस रोग के रक्त प्रोटोजोआ पाए जाते हैं जिन्हें टिृपेनोसोमा इवैनसाई के नाम से जानते हैं। भारत में सर्वप्रथम इस प्रोटोजोआ को जी. इवांश, ने सन 1918 मे ऊंटों में, पाया था।

संक्रमण

सर्रा रोग गरम व नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। वर्षा रितु के दौरान व बाद में उमस का वातावरण लगभग अगस्त से सितंबर महीने में रोग का प्रकोप अधिक होता है। जबकि इक्का-दुक्का रोगी तो पूरे वर्ष देखे जाते हैं।

यह रोग टबेनस, स्टोस्टोमोकसिस, एवं हीमोटोपोटा, प्रजाति की मक्खियों द्वारा काटने से फैलता है। हालांकि इन मक्खियों में प्रोटोजोआ के जीवन चक्र की कोई अवस्था पूरी नहीं होती है। यह मक्खियां केवल यांत्रिक रूप से परिजीवियों को एक पशु, से दूसरे पशु तक फैलाती है। मक्खियां अधिकतर काटने या खून चूसने के लिए शीघ्रता से एक से दूसरी जगह कई पशुओं पर बैठती है इसी दौरान वे रोग को संचारित करती हैं। खून/ रक्त चूसते या काटते समय रोगी पशु से परजीवी  को मक्खी की लंबी सूंड या मुंह पर चिपक जाते हैं तथा दूसरे पशु तक पहुंच जाते हैं।

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गाय भैंस में सर्रा  के लक्षण

  • सामान्य हल्के प्रभाव में  पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाता है।
  • हल्का बुखार  रक्ताल्पता लार गिरना व दांत पीसना जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
  • बार-बार गोबर व मूत्र करना।
  • अधिकांश पशुओं में बाद में स्नायुविक लक्षण नजर आते हैं।
  • पैरों में कमजोरी
  • लड़खड़ाना गोल घेरे में चलना एवं निढाल होकर मुंह को पेट की ओर करके बैठना।
  • गाय और भैंस के बछड़ों के लक्षण एक जैसे होते हैं।
  • भैंस के बच्चों में आंखों से गीड़ आने लगते हैं।
  • पेट और गालों के नीचे एडिमा हो जाता है।
  • भैंसों में गर्भपात भी हो सकता है।
  • गाय-भैंसों में तीव्र अवस्था में अचानक प्रकोप होने से तेज बुखार 105 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है पशुओं की आंखें लाल व जीभ में सूजन होती है तथा लगभग 5 दिन में ही अधिक छोटे व कमजोर पशुओं की मृत्यु हो जाती है। मृत्यु से पहले शरीर का तापमान कम हो जाता है।
  • घोड़ों में जब यह अचानक बहुत तेज प्रकोप होता है तो बुखार, पेट व पैरों पर एडिमा होने से घोड़ों की मृत्यु हो जाती है।

दीर्घकालीन बीमारी के लक्षणों में पीलिया, कमजोरी और बुखार आदि शामिल हैं। पशु खाना छोड़ देता है। तेज बुखार आता है और लार बहती है। बुखार कभी कम कभी अधिक होता है। पशु कभी-कभी उगार या जुगाली कर लेता है, सर्रा बीमारी का यह एक विशिष्ट लक्षण है जो हमने अपने अनुभव से देखा है क्योंकि किसी भी, अन्य बीमारी में बुखार होने पर पशु उगार/ जुगाली नहीं करता है। प्रभावित पशु इधर-उधर बेचैनी से घूमता है या गोलाई में चक्कर लगाता है अथवा दीवार में सर मारता है। आंखें लाल हो जाती हैं और आंखों से पानी निकलता है। तत्काल उपचार ना होने पर पशु की मृत्यु  हो सकती है।

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निदान

  1. लक्षणों के आधार पर: बुखार रक्ताल्पता कमजोरी एडिमा
  2. रक्त की जांच: रक्त की स्लाइड में परजीवी की उपस्थिति।

उपचार

  1. नागानोल- 10% घोल अंता सिरा सूची वेध, विधि से पशु चिकित्सक से परामर्श के अनुसार उचित मात्रा में देना चाहिए।
  2. एंट्रीपोल: 10% घोल अंता शिरा सूची वैध विधि से दे सकते हैं।
  3. क्विनापैरामीन सल्फेट/ ट्राईक्विन-एस 4 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार के अनुसार इंजेक्शन से दे सकते हैं।
  4. कुईनापाइरामिन सल्फेट एवं क्लोराइड 3.5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार के अनुसार दे सकते हैं।
  5. डाइमीनाजीन ऐसीचुरेट आठ से 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार के अनुसार गहरे अंत: पेशी सूची वेध विधि से गाय भैंस एवं घोड़ों तथा कुत्तों में दे सकते हैं। परंतु यह औषधि उंटो में कारगर नहीं है।

रोकथाम

  • पशुशाला को साफ सुथरा एवं सूखा रखें। हवा और प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो जिससे मक्खियों का प्रकोप कम होगा।
  • मक्खियों को भगाने के लिए कीटनाशक दवाओं का उपयोग करें या नीम पत्ती का धुआं करें।
  • मेलाथियान  0.5% का स्प्रे कर सकते हैं । समय-समय पर  पशुओं के रक्त की जांच  करानी चाहिए ।
  • जो पशु  सर्रा के लिए धनात्मक पाए गए हैं उन्हें अन्य पशुओं से तुरंत अलग कर तुरंत उपचार कराएं।
  • जिस क्षेत्र में रोग के प्रकोप की संभावना अधिक हो वहां पर हर वर्ष बारिश के दिनों में
  • बचाव के लिए ट्राईक्वीन2.5ग्राम इंजेक्शन का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह पर करें।
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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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