दुधारू पशुओं में बाई-पास वसा आहार तकनीक एवं उससे लाभ

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दुधारू पशुओं के उचित पोषण के लिए हमें संतुलित आहार के साथ-साथ आहार की उपलब्धता बढ़ाने की कुछ नई तकनीक जैसे बाई-पास वसा एवं बाई-पास प्रोटीन तकनीक का उपयोग कर हम दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। जैसा कि हम जानते है कि वसा ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत होता है। दुधारू पशुओं के आहार में अधिक मात्रा में वसा देने पर दुग्ध उत्पादन की मात्रा बढ़ती है और पशु अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की ऊर्जा की पूर्ति के लिए किसी अन्य स्रोत पर निर्भर नही रहता है। दुधारू नस्ल के पशुओं में, वसा को ऊर्जा के रूप में देने पर, दूध की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ पशुओं के व्याने के तुरन्त बाद दूध देने की प्राथमिक अवस्था में शारीरिक भार में कमी अथवा कीटोसिस जैसे रोग की सम्भावना कम हो जाती है। पशुओं को वाई पास वसा (उपचारित वसा) देने से पशुओं को अत्याधिक वसा देने की हानियों से लगभग 5 प्रतिशत तक बचा जा सकता है तथा पशुओं के रूमेन पर कोई बुरा असर नही पड़ता है और साथ ही साथ दूध में कान्जूगेटेड लीनोलीइक अम्ल की मात्रा भी बढ़ जाती है। जो कि मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण होती है। पशुओं को बाई-पास वसा खिलाने से पशुओं के द्वारा उत्पन्न होने वाली मिथेन गैस का उत्पादन भी कम हो जाता है।

पशुओं को उपचारित वसा या बाई-पास वसा देने का मुख्य उद्देश्य एक तो अत्याधिक दुग्ध उत्पादन का तथा दूसरा पशुओं को प्रजनन सम्बन्धी रोगों से बचाये रखना है। पशु बच्चा देने के उपरान्त समय से गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करता है और जननांगो पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

बाई-पास वसा के सिद्धान्त

बाई-पास वसा का सिद्धान्त मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करता है

  1. रूमेन का पी.एच.
    सामान्य रूप में रूमेन का पी.एच. 6.8-7.2 होता है। इस पी.एच. पर वसीय अम्ल अघुलनशील होते हैं। केवल कैल्सियम मिश्रित वसीय अम्ल, अम्लीय पी.एच. पर घुलनशील होते है तथा रूमेन को बाई-पास कर देते है।
  1. वसीय अम्लो का मेलटिंग प्वाइन्ट (तापांक)
    स्वतंत्र रूप से पाये जाने वाले वसीय अम्लों का मेलिटंग प्वाइन्ट 500C होता है जबकि रूमेन का तापक्रम सामान्य रूप से 390C होता है। जिसके कारण वसीय अम्ल ठोस अवस्था में रहते है तथा रूमेन बाई-पास कर जाते है।
और देखें :  डेयरी पशुओं को किट-पतंगों और मच्छरों से बचाव के लिए तकनीक

वसा के श्रोत

दुघारू पशुओं को दिये जाने वाले वसा का श्रोत निम्नलिखित है

  1. कार्न-10% वसा और 81% असंतृप्त वसा
  2. मीट और बोन मील- 10% वसा और 52% असंतृप्त वसा
  3. कैनोला बीज- 20% वसा और 95% असंतृप्त वसा
  4. काटन सीड- 20% वसा और 71% प्रतिशत असंतृप्त वसा
  5. सोयाबीन-19% वसा और 85% असंतृप्त वसा
  6. टैलो/ग्रीज- 100% वसा और 52% असंतृप्त वसा

बाई-पास वसा बनाने की विधि

  1. कवचीकरण (इनकैपसूलेशन) विधि: यह एक पुराना तरीका है। इसमें केसीन को फार्मलेडहाइ्ड से उपचारित करते है तथा वसा को केसीन प्रोटीन इनकैपसूलेट करती है इसमें मेथाइलीन ब्रिज का निर्माण होता है जो वसा को रूमेन में तथा अवोमेजम के अम्लीय पी.एच. में घुलनशील होने से रोकती है। फार्मलेडहाइ्ड उपचारित वसा खिलाने से गायों और भेड़ों के ऊतको में बहुअसंतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा बढ़ जाती है तथा दुधारू गायों के दूध में भी असंतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा बढ़ जाती है।
  1. द्विस्तरीय क्षरण विधि: यह विधि मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त होती है
  • सोपोनीफिकेशन (साबुनीकरण)
  • प्रेसीपिटेशन (जमना)
    इसमें सबसे पहले वसा को सोडियम हाइड्राक्साइड से उपचारित करते हैं। जिससे स्वतन्त्र वसीय अम्ल का सोडियम लवण बन जाता है। उसके बाद यह सोप (साबुन) उबलते हुए पानी एवं कैल्सियम क्लोराइड के संतृप्त विलयन में घुलनशील होता है। जिससे एक कैल्शियम आयन दो सोडियम आयन को विस्थापित करता है और वसीय अम्ल का कैल्सियम लवण बन जाता है। जिसको प्रेसीपिटेट कर अलग कर लिया जाता है और वसीय अम्ल का बना हुआ कैल्सियम लवण रोमन्थी पशुओं के राशन में उपयोग में लाया जाता है। वसीय अम्ल का बना हुआ कैल्सियम लवण पानी तथा रूमेन में अघुलनशील होता है लेकिन अम्लीय पी.एच. में टूट जाता है और घुलनशील हो जाता है।
  1. डायरेक्ट फ्युजन विधि द्वारा
    इसमें वसीय अम्ल अथवा वसा को कैल्सियम हाडड्राक्साइड के साथ गरम किया जाता है। जिसमें बाई-पास वसा बन जाती है। यह निम्न तरीके से किया जा सकता है
  • इसमें वसीय अम्ल या आयल श्रोत्रों में पानी मिलाकर अच्छी तरह से हिलाया जाता है।उसके बाद कैल्सियम आक्साइड डाल दिया जाता है जिससे वसीय अम्ल का 20% साबुनीकरण होकर अर्द्धठोस अवस्था में ग्रीसी उत्पाद प्राप्त होता है।
  • कैल्सियम हाइड्राक्साइड को वसा में डाल देते है उसके बाद कैल्सियम हाइड्राक्साइड युक्त वसा को 4 किग्रा/से.मी.2 के दबाव पर 1/2 घंटे के लिए आटोक्लेव में रखते है। इसमें लगभग 30% वसा का साबुनीकरण हो जाता है।
  • वसा के स्रोत्रों को कैल्सियम हाइड्राक्साइड के साथ मिलाकर उसको 1600C पर तीन घंटे के लिए गरम करते है। इसके बाद एक कड़ा उत्पाद प्राप्त होता है। जिसको तोड़कर पाउडर के रूप में लाते है और 85% वसीय अम्ल का साबुनीकरण प्राप्त करते है।
और देखें :  नेजल सिस्टोसोमोसिस रोग- एक परिचय

इस प्रकार बाई-पास वसा को खिलाकर अधिक वसा खिलाने की हानियों से बचा जा सकता है तथा साथ ही साथ दूध में कान्जूगेट लीनोलीइक अम्ल की मात्रा बढ़ने से यह दूध मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। बाई-पास वसा खिलाकर दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादकता को बढा़ने के साथ-साथ जननांगो को स्वस्थ बनाये रखा जा सकता है और पशुओं के रूमेन में उत्पन्न होने वाली मिथेन गर्म के उत्पादन को कम कर आने वाले समय मे अधिकतम दुग्ध उत्पादन के चुनौतियांे का सामना किया जा सकता है।

दुधारू पशुओं को आवश्यकता से 5 प्रतिशत अधिक अनुउपचारित वसा खिलाने से हानियां:

  1. पशुओं को खिलाये जाने वाले आहार के तन्तुओं पर वसा की परत जम जाती है। जिसके कारण उनका अच्छी तरह से माइक्रोव (सूक्ष्म जीवों) द्वारा पाचन नहीं हो पाता है।
  2. अधिक वसा खिलाने से पशुओं के रूमेन के लाभकारी सूक्ष्म जीवों के लिए नुकसानदायक होता है।
  3. पशुओं के शरीर में सूक्ष्म जीवों द्वारा होने वाली क्रियाऐं प्रभावित होती है।
  4. पशुओं को भूख नही लगती है तथा चारा लेना कम कर देता है या धीरे-धीरे बन्द कर देता है।
  5. पशुओं के द्वारा उत्पादित होने वाले दूध में वसा की मात्रा एवं रूप प्रभावित हो जाता है।
और देखें :  गौ पशुओं में लंपी स्किन डिजीज: लक्षण एवं रोकथाम

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