- पशुओं का शीत अथवा ठंड से समुचित बचाव करें। जैसा कि पिछले अंक में दिसंबर मे पशुपालन कार्यों का विवरण नामक लेख में दिया गया है।
- 3 माह पूर्व कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराए। जो पशु गर्भित नहीं है उन पशुओं की सम्यक जांच उपरांत समुचित उपचार कराएं आगे पशुपालक को आर्थिक नुकसान ना हो।
- उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें खासतौर से उन्हें सर्दी से बचाएं।
- दुहान से पहले, एवं बाद मैं अयन एवं थनों को1:1000 पोटेशियम परमैंगनेट के घोल, से अच्छी तरह साफ कर ले। दुहान के पश्चात कभी भी बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए। दूध निकालने के पश्चात पशु को पशु आहार एवं दिया जाए जिससे की पशु कम से कम आधे घंटे तक जमीन या फर्श पर न बैठे। इससे थनों में होने वाले संक्रमण से काफी हद तक बचाव हो सकता है और पशु को थनैला होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।
- नवजात बच्चों को खीस अवश्य पिलाएं एवं ठंड से बचाएं।
- बच्चों को अंतः परजीवी नाशक औषधि पान अवश्य कराएं।
- पशुओं को ताजा या गुनगुना पानी पिलाएं।
- बकरी व भेड़ों को अधिक दाना न खिलाकर अन्य चारा दें।
- दुधारू पशुओं को गुड़ खिलाएं।
- दुहान के पश्चात थन पर नारियल का तेल लगाएं।
- पशुशाला को समुचित स्वच्छ व सूखा रखें।
- कमजोर रोगी पशुओं को बोरी की झूल बना कर ढके। सर्दी से बचने के लिए रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास फूस के छप्पर के नीचे बांध कर रखें।
- दुधारू पशु को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापमान सामान्य रखने में सहायता मिलती है।
- पशुओं को बाहरी परजीवी से बचाने के लिए पशुशाला में फर्श एवं दीवार आदि सभी स्थानों पर 1% मेलाथियान को घोलकर छिड़काव या स्प्रे कर सफाई करें।
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