पशुपालन कृषि का एक अभिन्न अंग होने के साथ-साथ लघु एवं सीमांत किसानों की आय का प्रमुख स्रोत है जोकि उनके सामाजिक एवं आर्थिक आस्तित्व का आधार हैं। परन्तु पशुओं में प्रसव के उपरांत होने वाली कुछ समस्याए जैसे- जेर का अटकना, गर्भाशय भ्रंश, गर्भाशय ग्रीवा-योनि भ्रंश, अत्यधिक रक्त स्राव, बच्चेदानी मे संक्रमण, जननांगो का अन्य अंगों से चिपकना, लकवा मारना तथा मेटाबोलिक विकार आदि पशुपालकों के लिये गंभीर समस्या हैं। इन समस्यओं की जानकारी एवं तात्कालिक उपचार से पशुपालक अधिक लाभ कमा सकते हैं।
जेर का अटकना
सामान्यतः पशु (गाय व भैस) मे ब्याने के 4-6 घंटे के अंदर जेर स्वतः बाहर निकल जाती है, यदि ब्याने के 8-12 घंटें के बाद भी जेर नहीं निकली है, तो उस स्थिति को जेर का अटकना (रिटेंड प्लेसेंटा) कहते है। कठिन प्रसव, गर्भपात, पोषक तत्वों एवं हार्मोंस का असंतुलन तथा संक्रामक रोग (ब्रुसेलोसिस, विब्रियोसिस, केम्पाईलोबेकटेरी ओसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस) आदि मुख्य कारण हैं।
गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा-योनि भ्रंश
गर्भाशय का उल्टा होकर योनि मार्ग से बाहर निकलना गर्भाशय भ्रंश तथा गर्भाशय ग्रीवा एवं योनि का बाहर निकलना गर्भाशय ग्रीवा- योनि भ्रंश कहलाता हैं। कभी – कभी गाय व भैंसों में प्रसव के 4-6 घंटे के अंदर गर्भाशय भ्रंश की समस्या देखने को मिलती हैं। कैल्शियम की कमी, कठिन प्रसव, समय से जेर का न निकलना, बच्चेदानी मे घाव होना तथा पशु की अधिक आयु होना आदि इसके मुख्य कारण हैं। कई बार समय से उपचार न होने से पशु अधिक जोर लगाता रहता है, जिससे गुदा भ्रंश के साथ पेशाब का रुकाव भी हो सकता हैं।
अत्यधिक रक्त स्राव
यह समस्या मुख्यतः कठिन प्रसव के समय बच्चे को निकालने व मजबूत जेर को निकालने के दौरान बच्चेदानी में हुई क्षति के कारण हो सकती हैं।
बच्चेदानी मे संक्रमण (गर्भाशय शोथ)
सामान्यतः प्रसव के लगभग एक सप्ताह या अधिक समय तक गंधहीन हल्के लाल रंग का द्रव्य निकलता रहता हैं, जो कि बच्चेदानी की सफाई मे सहायक होता है। परन्तु ऐसे पशुओं में जिनका बच्चा एवं जेर स्वतः बाहर नहीं निकल पाती हैं उनकी योनि से बदबूदार द्रव्य निकलने के साथ बुखार, चारा न खाने व दुग्ध उत्पादन मे कमी आदि लक्षण देखने को मिलें, तो यह बच्चेदानी मे संक्रमण का प्रमाण हैं।
जननांगो का अन्य अंगों से चिपकना
यह समस्या मुख्यतः टोर्सन व कठिन प्रसव के समय बच्चे को निकालने तथा मजबूत जेर को निकालने के दौरान बच्चेदानी में हुई क्षति के कारण हो सकती है जिसके फलस्वरूप बच्चादानी अपने पास के अन्य अंगों से चिपक जाती हैं , जिसके चलते पशु बाँझ भी हो सकता हैं।
लकवा मारना
यह समस्या ऐसे पशुओं में अधिक होती है जिनमे कठिन प्रसव हुआ हो या कभी- कभी पशु के चिकनी-फिसलन वाली जमीन पर फिसल कर गिर जाने से हो सकती हैं। ऐसा होने से पशु का पिछला हिस्सा अचेत हो जाता है जिसके फलस्वरूप पशु चलने व खड़े होने मे असमर्थ हो जाता हैं।
इसमे दुग्ध ज्वर (मिल्क फीवर) की समस्या सबसे प्रबल होती है, जो कि मादा पशुओं में प्रसव से कुछ दिन पहले या बाद तक हो सकता है। सामान्यतः यह समस्या अधिक उत्पादकता वाले पशुओं में दूसरे या तीसरें ब्यात के दौरान अधिक होती है, जिसका मुख्य कारण पशु मे कैल्शियम खनिज तत्व की कमी हैं। इस बीमारी में पशु के शरीर का तापक्रम सामान्य से 1-3 डिग्री- फारेनहाइट तक कम हो जाता हैं, पशु के कान व त्वचा ठंडे पड़ जाते हैं साथ ही उपचार मे विलम्ब होने से पशु अचेत होकर अपनी छाती के बल लेट जाता है ओर अपनी गर्दन को पेट की तरफ मोड़ लेता हैं। पशु के लम्बे समय तक पड़े रहने से अफरा की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है तथा पेशाब का रुकाव भी देखने को मिल सकता हैं।
निदान
- प्रत्तेक पशु को रोजाना गुणवत्तापरक खनिज मिश्रण एवं कैल्शियम क्रमश: 50 ग्राम एवं 100 मिलीलीटर की दर से देते रहें, परन्तु प्रसव के 5-6 सप्ताह पूर्व से कैल्शियम पिलाना बन्द कर दें।
- प्रसव के तुंरत बाद पशु को 0.5-1 किलो गुड़ व गेहूँ का दलिया खिलने एवं गर्भावस्था के आखरी महीने में हल्का व्यायाम करवाने तथा सेलेनियम और विटामिन E देने से जेर अटकने की समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता हैं।
- लकवा की समस्या होने पर पशु के पिछले हिस्से एवं पैरों की तारपीन के तेल से दिन मे 2-3 बार मालिश करें साथ ही पशु को एक ही अवस्था मे ही पड़ा ना रहने दें तथा पशु को किसी चीज के सहारे खड़े होने का प्रबन्ध करें।
- पशु को हमेशा साफ, हवादार एवं फिसलन रहित छायादार बाड़े मे ही रखें।
- जेर का अटकना, गर्भाशय भ्रंश, गर्भाशय ग्रीवा-योनि भ्रंश, अत्यधिक रक्त स्राव, बच्चेदानी मे संक्रमण, जननांगो का अन्य अंगों से चिपकना, लकवा मारना तथा मेटाबोलिक विकार आदि अत्यंत आकस्मिक समस्याए है, जिनका तात्कालिक एवं उचित उपचार अपने नजदीकी पंजीकृत पशु चिकित्सक से ही करवाये।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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