पशुओं के प्रति क्रूरता पर जल्द ही कठोर दंड का प्राविधान

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शुक्रवार को राज्य सभा सांसद श्री राजीव चन्द्रशेखर द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए, मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्री गिरिराज सिंह ने लिखित जवाब में कहा, “सरकार द्वारा और अधिक कठोर दंड शुरू करके, पीसीए, 1960 में संशोधन की आवश्यकता को मान्यता दी गई है। तैयार किये गए संशोधन में दंड और सजा के प्राविधान को बढ़ाना शामिल है।”

श्री राजीव चन्द्रशेखर ने मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्री से सवाल पुछा था कि “क्या सरकार विशेषकर साइलेंट वैली जंगल में एक हाथी द्वारा शक्तिशाली पटाखों से से भरे हुए अनानास को खाए जाते समय, उसके मुंह में विस्फोट हो जाने की कथित घटना को ध्यान में रखते हुए, पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम,1960 संशोधन करने और पशुओं को अनावश्यक रूप से पीड़ित अथवा परेशान किये जाने से बचाने के लिए इस कानून को और अधिक कड़ा बनाने पर विचार कर रही है?”

पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम,1960

पशु क्रूरता से निपटने के उद्देश्य से पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 का निर्माण भारत की संसद द्वारा किया गया था। इस अधिनियम के माध्यम से पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरता को रोकने के संपूर्ण प्रयास किए गए हैं। इस अधिनियम के अनुसार प्रथम अपराध की दशा में, जुर्माने से, जो दस रुपए से कम नहीं होगा किन्तु जो पचास रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में, जो पिछले अपराध के किए जाने के तीन वर्ष की अवधि के भीतर किया जाता है, जुर्माने से, जो पच्चीस रुपए से कम नहीं होगा किन्तु जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, अथवा दोनों से, दण्डित किया जा सकता है।

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दंड को और कठोर किये जाने की मांग उठती रही है

लम्बे समय से पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया सहित कई संगठनों द्वारा इस 60 साल पुराने क़ानून में बदलाव कर मामूली से जुर्माने और दंड को कठोर किये जाने की मांग उठती रही है। इस क़ानून की वजह से पशुओं पर क्रूरता के अपराध को अंजाम देने वाले लोग मात्र 50 रुपये का जुर्माना देकर छूट जाते रहे हैं। इसलिए मौजूदा परिस्थितियों में पशु क्रूरता रोकने के लिए न केवल सजा को बढ़ाया जाना महत्वपूर्ण है, बल्कि जन जागरूकता, और संवैधानिक संस्थाओं को सशक्त बनाकर इसका प्रभावी क्रियान्वयन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

अब जानवरों के खिलाफ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए, सरकार ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत 60 साल पुरानी क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन का मसौदा तैयार किया है, जिसमें 75,000 रुपये का जुर्माना या पशु की लागत का 5 गुना या जेल में 5 साल तक की सजा का प्रस्ताव है। यदि किसी व्यक्ति या संगठन के किसी कार्य से किसी पशु की मृत्यु हो जाती है, तो 75,000 रुपये और पांच साल तक की जेल, व्यक्ति या संगठन पर लगाई जाएगी। संशोधन में अपराधों की तीन श्रेणियां प्रस्तावित की गई हैं जिसमें मामूली चोट, बड़ी चोट स्थायी विकलांगता और पशु की मृत्यु क्रूरता के कारण शामिल है। अधिनियम में प्रस्तावित संसोधनों को शीघ्र ही पब्लिक डोमेन पर डाल दिया जाएगा, जिस पर विशेषज्ञों तथा जनता से सुझाव आमंत्रित किये जायेंगे।

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वर्तमान में देश की अदालतों में लंबित हैं 316 मामले

सरकार ने एक अन्य सवाल के जवाब में संसद को बताया कि पशुओं से क्रूरता से जुड़े 316 मामले देश भर की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। 64 ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट में जबकि 38 दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित हैं। इसी तरह से अन्य राज्यों में सबसे अधिक तमिलनाडु में 52, महाराष्ट्र में 43, केरल में 15, कर्नाटक में 14, तेलंगाना में 13 तथा राजस्थान में 12 मामले लंबित हैं। तथा कुल 316 मामलों में से 199 मामले ऐसे हैं जो 5 से भी अधिक वर्षों से लंबित हैं।

बॉम्बे सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रूएल्टी टू एनिमल्स द्वारा पांच सालों में एकत्र किए गए डाटा के अनुसार मुंबई में 2011 से 2016 के दरम्यान पशु हिंसा के 19,028 मामले दर्ज किए गए। इनमें से एक भी मामले में किसी भी व्यक्ति की न तो गिरफ्तारी हुई और न ही उसे सजा दी गई। इस वजह से न केवल पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960 में किये जा रहे संसोधन का स्वागत किया जाना चाहिए, बल्कि जन जागरूकता, और संवैधानिक संस्थाओं को सशक्त बनाकर इस क़ानून का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना भी हम सब की नैतिक जिम्मेदारी बनती है।

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