दुधारू पशुओं के प्रजनन में अल्ट्रासोनोग्राफी (अल्ट्रासाउंड) की उपयोगिता

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हमारे देश की प्रभुता एवं सम्पन्नता में पशुपालन की अहम भूमिका हैं। सफल पशुपालन (डेरी व्यवसाय) का अभिप्राय अधिक से अधिक लाभ कमाना हैं, इसके लिए पशु की प्रजनन समस्याओं की समय पर सटीक जाँच एवं उपचार होना नितांत आवश्यक हैं। इस उद्देश्य को साकार बनाने में अल्ट्रासोनोग्राफी (अल्ट्रासाउंड) काफी विश्वसनीय, सुरक्षित, सर्वमान्य, सहज, सफल तथा प्रभावी तकनीक/मशीन सिद्ध हो रही हैं, जिसकी उपलब्धता लगभग सभी चिकित्सा संस्थानों तथा कुछ जिला पशुचिकित्सालयों पर भी हैं। वर्तमान समय मे छोटे आकार की पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनें भी उपलब्ध है, जिनको बड़ी ही सुगमता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर पशुचिकित्सा एवं अनुर्वरता निवारण शिविरों तथा डेरी फार्मों आदि में भी उपयोग किया जा सकता हैं। इसकी मदद से दर्दरहित, बिना किसी शल्यक्रिया तथा बिना बेहोस किये ही शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों की सामान्य व असामान्य गतिविधियों (विकृतियों) की सटीक जाँच कर उपचार किया जा सकता हैं। इस तकनीक की उपयोगिताओं की जानकारी होना पशुपालकों के लिए काफी लाभप्रद हैं, जो इस प्रकार हैं-

अल्ट्रासोनोग्राफी

इस तकनीक में एक विशेष उपकरण ट्रांसडयूसर (प्रोब) का उपयोग किया जाता है जो उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को छोड़ता हैं और अंगों से टकराकर वापस आने वाली तरंगों को पुनः ग्रहण भी करता हैं, जिसके फलस्वरूप शरीर के अंदर के विभिन्न अंगों तथा उनमें होने वाली गतिविधियों/छवियों  का पता स्क्रीन पर बनी तस्वीर से किया जाता हैं। यह ठोस ऊतकों (जैसे हड्डी), कोमल ऊतकों (जैसे कार्पस लुटीयम) तथा तरल पदार्थों (जैसे फालिकुलर व एमनियोटिक द्रव्य) आदि को क्रमशः सफेद, स्लेटी (ग्रे) तथा काले रंग में प्रदर्शित करती हैं। पशुओं में प्रजनन समस्याओं की जाँच के लिए मुख्यता दो प्रकार के प्रोब उपयोग किये जाते हैं:

  1. गुदाभेदी (ट्रांस-रेक्टल) प्रोब
  2. पेट के ऊपर (ट्रांस-एब्डोमिनल) प्रोब

ट्रांस-एब्डोमिनल प्रोब की तुलना में ट्रांस-रेक्टल प्रोब अत्यन्त प्रभावी होता है, जिसका उपयोग गुदा परीक्षण की भांति ही प्रोब को हाँथ से पकड़ कर गुदा मे डालकर किया जाता हैं। अल्ट्रासाउंड मशीन में ए, बी, एम तथा डोपलर (कलर डोपलर) आदि कई प्रकार के मोड होते हैं। वर्तमान समय में बी एवं डोपलर (कलर डोपलर) मोड सबसे ज्यादा प्रचलित व उपयोगी है जो स्क्रीन पर क्रमशः दो-आयामी एवं दो-आयामी रंगीन चित्र बनातें हैं, जिससे शरीर के आंतरिक अंगों की गतिविधियों का सटीक आकलन और भी सुगमता एवं सरलता से किया जा सकता हैं।

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पशु प्रजनन में अल्ट्रासोनोग्राफी की उपयोगिता

  • गर्भ परीक्षण (गर्भ जाँच): सामान्य गुदा परीक्षण से लगभग 2-2.5 माह के भूर्ण का पता लगाया जा सकता हैं जबकि अल्ट्रासाउंड (ट्रांस-रेक्टल प्रोब) मशीन से लगभग 1 माह के भूर्ण तथा लगभग 20 दिनों के गर्भकाल पर भूर्ण की थैली की पुष्टि बड़ी ही आसानी से की जा सकती हैं। इस मशीन के द्वारा गर्भावस्था का समय, बच्चें की दिल की धडकन, बच्चें के विकास की दर तथा जुड़वाँ बच्चों का पता भी लगाया जा सकता हैं। इस मशीन से मादा पशु तथा भूर्ण को किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं होता हैं। गर्भधारण में असफल (खाली) पशुओं की कम समय मे पुष्टि के तदोपरांत उचित उपचार एवं प्रबंधन से दुबारा गर्भाधान करवाया जा सकता हैं, जिससे पशु पर 1–1.5 माह मे होने वाले अतिरिक्त खर्चों (खानपान तथा रखरखाव आदि) से बचा जा सकता हैं।
  • भ्रूण लिंग निर्धारण: सामान्य गुदा परीक्षण एवं अन्य किसी भी बाह्य लक्षण से भूर्ण के लिंग का पता नहीं लगाया जा सकता हैं, जबकि इस मशीन के द्वारा लगभग 2 माह के भूर्ण के लिंग का पता लगाया जा सकता हैं। यदि गर्भ में मादा भूर्ण की पुष्टि होती हैं तो पशु की कीमत और भी बढ़ जाती हैं जिससे पशुपालकों को अधिक लाभार्जन हो सकता हैं।
  • ऋतुचक्र की अवस्थाओं तथा मद (गर्मी) का आंकलन: इस तकनीक से अंडाशय की विभिन्न संरचनाओं जैसे पुटिकाओं (फालिकल), पीत-पिण्ड (कार्पस लुटीयम) के आकार (व्यास) के आधार पर पशुओं के ऋतुचक्र की अवस्थाओं, मद (गर्मी) तथा डिम्बक्षरण (ओव्यूलेशन) आदि का सटीक आंकलन किया जा सकता हैं। ऐसे पशु जिनमें गर्मी के बाह्य लक्षण स्पष्ट ना होते हो, ओव्यूलेशन जल्दी या विलम्ब से हो उनका भी कृतिम गर्भाधान उपयुक्त समय पर किया जा सकता हैं।
  • भ्रूण स्थानान्तरण – यह उच्च प्रजनन क्षमता एवं उत्पादकता वाले पशुओं की उत्पत्ति के लिए अत्यन्त प्रभावी तकनीक हैं, जिसमे अंडदान करने तथा भूर्ण ग्रहण करने वाली मादा पशुओं का ऋतुचक्र की अवस्थाओं, मद (गर्मी) तथा डिम्बक्षरण आदि की पुष्टि हेतु  अल्ट्रासोनोग्राफी सबसे महत्वपूर्ण एवं उपयोगी तकनीक हैं।   
  • गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं की जाँच: इस मशीन के द्वारा गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं जैसे भूर्ण विकृति, मृत बच्चें, सूखे हुए बच्चें आदि का पता भी लगाया जा सकता हैं। इन समस्त समस्याओं की उचित समय पर सटीक जाँच होने से सफल उपचार के पश्चात् गर्भपात एवं प्रबंधन से पशु को जल्द ही फिर से गर्भधारण के लिए तैयार किया जा सकता हैं जो कि आर्थिक दृष्टीकोण से अत्यंत उपयोगी हैं।
  • अनुर्वरता एवं रिपीट ब्रीडिंग निदान: पशुपालन की उन्नति में यह समस्याएं सबसे बड़ी बाधक हैं जिनके मुख्य कारण पशु का गर्मी मे ना आना, गर्भ का ना ठहरना, पशु का जल्दी- जल्दी गर्मी मे आना, डिम्बक्षरण का ना होना, गर्भाशय संक्रमण, गर्भाशय शोध, आनुवंशिक विकार, जननांगों का परिपक्व ना होना, जननांगों का अन्य अंगों से चिपकना, सही समय पर गर्भाधान का ना होना आदि हैं। इन समस्त समस्याओं की सफल परीक्षण हेतु अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक अत्यन्त कारगर हैं। इससे पशुओं को सटीक उपचार दिया जा सकता हैं और इन समस्याओं से निजात पाया जा सकती हैं।          
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अल्ट्रासोनोग्राफी की सीमाए

  • इस मशीन की कीमत काफी ज्यादा होती हैं और टूटफाट का खतरा भी रहता हैं।
  • इस मशीन की उपलब्धता बहुत ही सीमित स्थानों पर हैं।
  • इस मशीन के उपयोग एवं सटीक आंकलन हेतु अत्यन्त कुशल एवं प्रशिक्षित पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती हैं।

निष्कर्ष

वास्तविक रुप से अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक सफल डेरी व्यवसाय के लिए एक वरदान हैं क्योकि इसके द्वारा बिना किसी जोखिम के लगभग समस्त प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं की सफल एवं सटीक जाँच कर उचित उपचार एवं प्रबंधन दिया जा सकता हैं जिससे पशुपालक निश्चित रुप से लाभान्वित होगे।

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