जहां पशु का बच्चा पैदा करवाया जाना है वह जगह स्वच्छ, सूखी व अच्छी बिछावन वाली हो अर्थात उस स्थान का हाइजीनिक होना नितांत आवश्यक है। इस बात का ध्यान रखें की प्लेसेंटा/जेर पूरी तरह से बाहर आ गया या नहीं। पशु अधिक बेचैन नहीं हो योनि या गर्भाशय ग्रीवा एवं गर्भाशय का प्रोलेप्स/ बेली/ फूल ना हो तथा योनि से अधिक रक्तस्राव भी न हो। गिरी हुई जेर, को दूर गड्ढे में गाड़ दें।
गाय भैंस बकरी के ब्याने के पश्चात पीछे का भाग पैर अयन इत्यादि को पूरी तरह साबुन पानी से धोकर साफ करें। इसी के साथ साथ नवजात बच्चे को मां का पहला दूध अर्थात कोलोस्ट्रम पीने के लिए मदद करें।
अधिक दूध देने वाली गाय भैंसों मैं दिन में दो से तीन बार दूध निकालने ताकि अयन से तनाव कम हो। मां को अधिक मात्रा में स्वच्छ पानी पिलाएं तथा गुड़ व पका हुआ दलिया खिलाएं।
पशु के ब्याने के पश्चात ऑक्सीटॉसिन 10 इंटरनेशनल यूनिट का इंजेक्शन लगा दें जिससे गर्भाशय के संकुचन होने से रक्त स्राव भी रुक जाएगा व जेर भी आसानी से बाहर आ सके। यदि हाथों की मदद से बच्चा बाहर निकाला हो तो गर्भाशय में टेटरासाइक्लिन 6 बोलस या पाउडर का घोल एवं 2 बोलस फ्यूरिया, क्रमशः 5 से 3 दिन के लिए अवश्य रखें अन्यथा गर्भाशय सोथ होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसी स्थिति में दूध की मात्रा भी कम हो जाती है।
यदि जेर का कुछ भाग बाहर लटक रहा हो और बाकी अंदर हो तो यह ध्यान रखें कि लटके हुए भाग पर मिट्टी नहीं लगे। मां के बार-बार नीचे बैठने से मिट्टी लगने के, कारण गर्भाशय में संक्रमण पहुंचने की संभावना बहुत अधिक होती है। जेर को तुरंत बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिए। यदि औषधियों के प्रयोग से जेर नहीं गिरे तो उसे हाथ से निकालने का प्रयास करना चाहिए।
यदि बच्चा देते समय पशु की योनि, योनि द्वार आदि में खिंचाव से कोई कष्ट या घाव हो तो उसका समुचित उपचार करें, योनि द्वार को साफ रखें अन्यथा मक्खी बैठने पर कीड़े पड़ने की संभावना अधिक होती है।
जो मादा पशु पहली बार बच्चा दे रहा है अर्थात ओसर में पहली बार बच्चा देने पर अयन में एडिमा होने से तनाव आ जाता है और दूध नहीं उतरता है। इस स्थिति में एक बार ऑक्सीटॉसिन का इंजेक्शन दे देना चाहिए। यदि कठिन प्रसव के कारण बच्चा खींचकर बाहर निकाला गया हो तो गर्भाशय अथवा योनि में बच्चे के खुर , यंत्र ,नाखून आदि से रक्त वाहिनियों के फटने या घाव होने की संभावना बनी रहती है। यदि योनि में घाव हो तो टॉके लगा देना चाहिए। गर्भाशय से रक्त स्राव हो रहा हो तो ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन लगाएं।
ब्याने के आधे घंटे बाद कोशिश करनी चाहिए कि पशु खड़ा हो जाए, यदि खुद ही खड़ा हो जाए तो बेहतर है अन्यथा पूंछ पकड़कर मदद से खड़ा करना चाहिए। कमजोर पशु तथा कैल्शियम की कमी के कारण ऐसा अक्सर होता है। यदि दुग्ध ज्वर अर्थात हाइपोर्कैल्सीमिया हो, तो 500 से 1000 एम एल कैल्शियम इंट्रावेनस तथा सबक्यूटटेनियस विधि से देना चाहिए। परंतु यह हमेशा ध्यान रखें की आवश्यकता से अधिक कैल्शियम नहीं दें अन्यथा यह रक्त में कैल्शियम फास्फोरस का अनुपात बिगाड़ कर नई मुश्किलें पैदा कर सकता है।
जो पशु बच्चा देने के बाद खड़े नहीं हो पाते हैं उनके नीचे नरम बिछावन बिछानी आनी चाहिए तथा पशु की कम से कम दिन में 3 से 4 बार करवट बदलनी चाहिए। बच्चा देने के बाद मां को पौष्टिक एवं आसानी से पचने वाला आहार देना चाहिए। कई लोगों की यह गलत धारणा है कि पशु को हरा चारा नहीं देना चाहिए। पशु को हरा व सूखा चारा मिला कर दें। ब्याने के बाद हरा चारा देने से नुकसान के बजाए लाभ होता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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Authors
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पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश, पूर्व सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत
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सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश
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सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं गो-अनुसन्धान संस्थान (दुवासु) मथुरा, उत्तर प्रदेश
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सहायक आचार्य, मादा पशु रोग विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं गो-अनुसन्धान संस्थान (दुवासु), मथुरा, उत्तर प्रदेश
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आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं गो-अनुसन्धान संस्थान, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश
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