अफारा
अफारा का अर्थ रूमेन रोमांथिका में अत्यधिक मात्रा में गैस का इकट्ठा होना है। रूमन में सामान्य तौर पर हल्की गैस बनती रहती है। गैस के एकत्रित होने का कारण गैस के निकलने में कोई कठिनाई अथवा गैस का अधिक मात्रा में बनना हो सकता है। यह गैस सिर्फ हवा की तरह या फिर झाग की तरह एकत्रित होती है। पशु के रोमांथिका में जब गैस के छोटे-छोटे बुलबुले उठने लगते हैं और गैस इनसे बाहर नहीं निकल पाती तो यह फेना अफारा होता है।
कारण
बहुत ज्यादा रस या पानी वाले चारे या आमतौर पर सारे मुलायम हरे चारे या ओस या भीगी घास के खाने से यह रोग होता है। गेहूँ का आटा, चोकर दाने, सूखी रोटी इत्यादि अधिक खाने से भी यह रोग होता है। व्यायाम या कार्य के बाद एकदम ठण्डा पानी पिलाना खाने में एकाएक परिवर्तन तथा एक ही करवट या अवस्था में अघिक समय तक लेटे रहना आदि भी इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जब भी कोई पशु बैठक ले लेता है, उसमें अफारा उत्पन्न हो जाता है। कुछ खाद्य पदार्थ जैसे गोभी, मूली के पत्ते आदि अधिक मात्रा में खिलाने पर अफारा हो सकता है। षादी आदि जैसे अवसरों पर बचा हुआ चावल, आटा व अन्य जूठन आदि अधिक मात्रा में देना भी इसका एक प्रकार का अवरोध उत्पन्न होने पर जैसे आलू, शलजम, आम आदि का गले में फंस जाने से रूमन से गैस नही निकल पाती जिससे अफारा उत्पन्न होता है।
लक्षण
इस रोग में रोगी पशु का बायाँ पेट हवा से भरे गुब्बारे की तरह फूल जाता है। जानवर वेचैन हो जाता है तथा उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। वह सिर बाहर की ओर तानकर रखता है। मुहँ खुला और जीभ निकली रहती है और नथुने फैल जाते है। पशु मुहँ से सांस लेन लगतार उठता बैठता रहता है तथा अपने पेट पर लात मारता रहता है। बायें पेट पर उंगलियों से ठोककर परीक्षण करने पर ढोल की तरह गूंजता सा शब्द सुनाई पड़ता है। जिन पशुओं में अफारा गंभीर होता है उकी मृत्यु 3-6 घंटे में ही हो जाती है। मृत्यु का कारण अधिक गैस के कारण फेफड़ों एवं हृदय पर भारी दबाव पड़ना है। गंभीर स्थिति में रूमन के अन्दर का दबाव छः गुना अधिक हो जाता है। रूमन का आकार काफी बढ़ जाता है। सांस की गति काफी बढ़ जाती है, फेंफड़े पिचक से जाते हैं। सांस सामान्य नहीं होने से षरीर के विभिन्न भागों को आक्सीजन मिलना बहुत कम हो जाता है और इस प्रकार सांस लेने के कारण मौत हो जाती है। रूमन के दबाव पड़ने से दिल की स्थिति भी बदल जाती है और उसके कार्य करने में बाधा आती है।
उपचार
यदि पशु चिकित्सक तुरन्त उपलब्ध न हो तो गैस निकालने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
- मुहँ के अन्दर लकड़ी बाँध कर मुख को खुला चाहिए जैसे कि घोड़े की लगाम लगाते हैं।
- पशु को खुले मैदान में चलाना चाहिए।
- यदि मीठा सोडा उपलब्ध हो तो जीभ के पिछले भाग पर रखकर खिलाना चाहिए।
- जानवर को खनिज तेल या वनस्पति तेल 500-600 मिली0 पिलाना चाहिए। वनस्पति तेल जैसे अलसी का तेल, मूँगफली का तेल या सोयाबीन का तेल को 250-500 मिली0 तक भी दिया जा सकता है। तेल को अत्यधिक सावधानी के साथ पिलाना चाहिए। यदि हींग उपलब्ध हो तो 10-12 ग्राम हींग को खनिज तेल में मिला कर दिया जा सकता है। निम्नलिखित पदार्थ को भी दिया जाता है।
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- तारपीन का तेल 24 मिली0
हींग का पाउडर 6 ग्राम
अलसी का तेल 640 मिली0
तीनों को मिलाकर पिलाएं। - फारमेलीन 15 मिली0
बबूल का गोंद 560 मिली0
अलसी का तेल 1 ली0
तीनों को मिलाकर पिलाएं।
- तारपीन का तेल 24 मिली0
- चारा तथा पानी देना तुरन्त बन्द कर देना चाहिए।
- पशुओं को बायीं कोख की मालिश करनी चाहिए।
- तीव्र अफारे में जब पशु की स्थिति गंभीर हो तब बायीं कोख को किसी भी नुकीली वस्तु से चीर कर गैस निकाल देनी चाहिए एवं पशु की जान बचायी जा सके। इसके बाद शीग्र ही पशुचिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
- बाजार में अफारा के उपचार हेतु अनेक दवाईयां उपलब्ध हैं जिनके सेवन से पशु को तुरन्त लाभ होता है। परन्तु ये सभी दवाइयां किसी पशु चिकित्सक की सलाह पर ही जानवर को देनी चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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