ममीफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा गर्भाशय में बच्चा मर कर सूख जाता है तथा इसे ममीभूत गर्भ कहते हैं। ऐसा प्रायः गायों में अधिक होता है। इसमें बच्चा गर्भावस्था के पूरे समय तक जीवित नहीं रह पाता है और गर्भावस्था के मध्यकाल या आखिरी महीनों में मर जाता है। मरने के बाद बच्चा बाहर नहीं आ पाता है और अंदर ही सूखता रहता है। इस प्रक्रिया में मृत बच्चे के शरीर का तरल पदार्थ वापिस अवशोषित हो जाता है तथा बच्चे की मांसपेशिया सूख जाती हैं। ऐसी स्थिति में कार्पस लुटियम या पीतकाय नहीं सिकुड़ता है। इसलिए इस प्रकार के मामले की पहचान गर्भकाल का समय पूरा होने के बाद भी बच्चा न देने पर होता है। यह दो प्रकार का होता है:
- हीमैटिक प्रकार: इसमें चॉकलेट जैसा रक्त गर्भाशय और प्लेसेंटा के कोरियॉन के बीच जमा हो जाता है। अधिकांश ऐसा गर्भकाल के अंतिम त्रैमास में अधिक होता है। इसमें बच्चा मर जाता है। ऐसे ममीफाइड बच्चे की गर्दन छोटी तथा पैर सीधे अकड़े हुए होते हैं। यह लीथल जीन के कारण होता है तथा अधिकांशत गायों में पाया जाता है।
- पेपीरेयसियस प्रकार: इसमें बच्चा व प्लेसेंटा अर्थात जेर पूरी तरह से सिकुड़ जाते हैं तथा सूखकर चमड़े की तरह हो जाते हैं। तरल पदार्थ अवशोषित हो जाता है। गर्भाशय भी सिकुड़ जाता है। ऐसा घोड़ी, कुत्तिया एवं बिल्ली में अधिक होता है।
कारण
यह एक आनुवंशिक रोग है जो डबल रेसिसिव जीन के कारण होता है इसमें एक जीन मां में होता है दूसरा जीन बच्चे में होता है। मम्मीफिकेशन अधिकांशतः गर्भावस्था के 3 से 8 महीने के बीच होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में प्लेसेंटा व गर्भाशय के बीच काफी रक्त स्राव होता है जिससे प्लेसेंटा अलग हो जाता है और बच्चे व मां का जुड़ाव भी अलग हो जाता है। इस तरह मां व बच्चे का जुड़ाव अलग होने से बच्चे की मृत्यु हो जाती है। इसके बाद बच्चे का तरल पदार्थ अवशोषित होने से रक्त पिघल जाता है जो पिघले हुए चॉकलेट की तरह हो जाता है। गर्भाशय की दीवार अच्छी तरह से बच्चे पर चिपकी रहती है। इसके बाद बच्चा निरंतर सूखता जाता है। सभी प्रकार के ममीफाइड बच्चों में परसिस्टेंट कार्पस लुटियम होता है और गर्भाशय ग्रीवा भी पूरी तरह बंद रहती है।
निदान
गुदा परीक्षण द्वारा। कभी-कभी गुदा परीक्षण द्वारा गर्भ जांच करने पर मम्मीफाइड बच्चे का पता चलता है। जब ब्याने की संभावित तिथि के निकल जाने के पश्चात भी पशु बच्चा नहीं देता है और गुदा परीक्षण करने पर ममीफिकेशन की पहचान होती है। और बच्चा बिल्कुल नजदीक पेल्विक के पास पड़ा मिलता है। सूखे हुए मम्मीफाइड बच्चे पर गर्भाशय की दीवार चिपकी हुई कसी रहती है। बच्चे का आकार बहुत छोटा होता है। सामान्य गर्भावस्था में गर्भाशय में तरल पदार्थ भरा हुआ होता है। गर्भाशय धमनी पतली व छोटी होती है तथा फ्रेमीटस पल्स नहीं मिलती है। अंडाशय पर हमेशा कार्पस लुटियम पाया जाता है। योनि द्वार से परीक्षण करने पर गर्भाशय ग्रीवा का रास्ता बंद होता है। अंदर का बढ़ा हुआ आकार छोटा होता जाता है जो बाद में सूख जाता है।
भविष्य
पशु जब अगली बार गर्मी में आए तो उस सांड से प्राकृतिक गर्भाधान नहीं कराएं वरना अगली बार भी ममीफिकेशन हो सकता है। जिस पशु में इस दौरान यदि गर्भाशय ग्रीवा खुल जाती है तो बाहर से संक्रमण अंदर जाने से गर्भाशय में संक्रमण हो जाएगा। बाद में बच्चे का सड़न अर्थात मेसीरेशन होने से मवाद पड़ जाता है। बच्चे की हड्डियों के अलावा बाकी का भाग सड़कर मवाद में बदल जाता है। इसमें से कुछ हड्डियां बिखर कर गर्भाशय ग्रीवा के रास्ते टुकड़ों के रूप में बाहर भी आ सकती हैं। कुछ मामलों में अंदर संक्रमण नहीं पहुंचने पर कुछ हड्डियां गर्भाशय की अंदरूनी दीवार में जम सी जाती हैं। जबकि कुछ अन्य मामलों में मरे हुए बच्चे का मैंसीरेशन के स्थान पर एडहिजनस हो जाते हैं। अब तक गर्भाशय ग्रीवा का मुंह नहीं खुलता है तब तक मम्मीफाइड बच्चे के समय गर्भाशय में किसी तरह का संक्रमण नहीं होता है इसलिए ऐसे में किसी भी तरह की प्रतिजैविक औषधि देने की आवश्यकता नहीं होती है।
प्राथमिक उपचार
उपचार का उद्देश्य मम्मीफाइड बच्चे को बाहर निकालना होता है यह दो तरीकों से हो सकता है:
- योनि के रास्ते से बाहर निकालना लेकिन यह तभी संभव है जब गर्भाशय ग्रीवा खुली हुई हो।
- सिजेरियन ऑपरेशन द्वारा।
पशु चिकित्सक के निर्देशानुसार इंजेक्शन सिंथेटिक पीजीएफ टू अल्फा 500 माइक्रोग्राम अंतर पेशी सूची वेध विधि द्वारा दे सकते हैं। इस इंजेक्शन को लगाने के बाद गर्भाशय ग्रीवा खुल जाती है तथा 3 से 4 दिन में मम्मीफाइड बच्चा बाहर आ जाता है। बच्चे को बाहर निकालने के लिए ब्याने जैसी स्थिति बनाकर योनि के रास्ते बच्चे को बाहर निकाला जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले परसिस्टेंट कार्पस लुटियम को सिकुड़ाने के लिए पीजीएफ2 अल्फा का इंजेक्शन देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कार्पस लुटियम सिकुड़ जाएगा और गर्भाशय ग्रीवा रिलैक्स होने से गर्भाशय ग्रीवा का मुख खुल जाता है, और 3 से 4 दिन के अंदर बच्चा बाहर आ जाता है।
दूसरे तरीके में सिजेरियन द्वारा बच्चों को बाहर निकाला जाता है लेकिन इसके बजाय योनि के रास्ते निकालना ज्यादा बेहतर है। कभी-कभी बच्चा गर्भाशय से गर्भाशय ग्रीवा एवं योनि तक आ जाता है। इसलिए योनि का परीक्षण अवश्य करना चाहिए। सभी ममीफाइड बच्चे और गर्भाशय का वातावरण असंक्रमित होता है, इसलिए किसी भी तरह के प्रतिजैविक औषधि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परंतु यदि हाथ डालकर बच्चे को खींच कर निकाला जाता है तो प्रतिजैविक औषधि दे सकते हैं। सपोर्टिव थेरेपी के रूप में विटामिन “ए” फास्फोरस, सेलेनियम आदि भी दे सकते हैं।
संदर्भ
- वेटरनरी ओबसस्टैटिक्स एंड जेनिटल डिसीजेज , द्वारा एस जे रॉबर्ट्स, सेकंड एडिशन 1971
- टेक्स्ट बुक ऑफ वेटरनरी गाइनेकोलॉजी
- आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन ओबसस्टैटिक्स एंड एसिस्टेड रिप्रोडक्शन द्वारा , प्रो० यश के बंदोपाध्याय, प्रो० बी भट्टाचार्य, प्रो० रविंद्र राय चौधरी एवं डॉ सिद्धार्थ बसु सेकंड एडिशन 2007
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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