कोरोना वैश्विक महामारी काल में पशुओं मे होने वाले रोगों की रोकथाम

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आज पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी की गिरफ्त मे है। हमारा देश भी इस महामारी से अछूता नहीं है। इस बीमारी से बचने के लिए हम सवको घर से कम से कम बाहर निकलना चाहिए इस कड़ी में किसान भाइयो एवं पशु पालको से निवेदन है कि बह अपने एवं अपने परिवार कि सुरक्षा हेतु घर से कम निकले। हमारे पूर्वजो ने भी एक पुरानी कहावत ‘ रोगों के उपचार से उत्तम वचाव है’ कही है। पशुपालक पशुओं मे होने वाले रोगों कि रोकथाम पर अधिक ध्यान दें। दुधारू पशुओं के बीमार होने पर उनका उपचार कराने  से अच्छा है कि उन्हे स्वस्थ रखा जाए। पशुपालक अपने पशुओं में विभिन्न रोगों की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक पद्धतियां अपनाकर पशुओं में होने वाले रोगों से बचाव कर सकते हैं या उनका प्रकोप काफी हद तक कम कर सकते हैं। पशुओं मे रोगों कि रोकथाम के उपाए अपनाने से पशुपालक अनावश्यक घर से बाहर निकलने एवं उपचार मे होने वाले व्यय से भी बच सकते है।  इसलिए पशुपालको और किसानो को पशुओं मे होने वाले रोगों कि रोकथाम के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। निम्नलिखित कुछ वैज्ञानिक सुझाव हैं, जो कि पशुपालकों के अपनाने के लिए काफी व्यवहारिक हैं तथा जिनको पशुपालक काफी आसानी एवं सजगता से अपना सकते हैं:-

पशुशाला का रखरखाव

पशुशाला का उचित प्रबन्धन, रख-रखाव एवं साफ-सफाई पशुओं को स्वस्थ एवं रोग- मुक्त रखनें तथा स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जिसका सीधा सम्बंध पशुपालकों को पशुओं से होने वाले आर्थिक लाभ-हानि से है। पशुशाला की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्रायः देखने मे आता है कि पशु दलदल मे बंधे रहते है जो पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इन पशुओं मे थनेला एवं अन्य संक्रामक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। पशुपालक ध्यान रखे कि पशुशाला कि नियमित साफ-सफाई से भी पशुओं मे होने वाले विभिन्न संक्रामक रोगों से वचाव एवं स्वच्छ दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है।

संतुलित आहार

पशुओं को प्रतिदिन वैज्ञानिक बिधि के आधार पर संतुलित आहार देना चाहिए। उनकी खुराक मे सूखा चारा, हरा चारा, खली-दाना, खनिज मिश्रण (लगभग 30 ग्राम) एवं आयोडीन युक्त नमक (25-30 ग्राम) शामिल करना जरूरी है। यहाँ यह भी ध्यान रखना है कि पशुओं के चारे मे अचानक वदलाव नहीं करना चाहिए बल्कि धीरे-धीरे वदलाव करना चाहिए। इससे पशु स्वस्थ रहता है एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता भी वनी रहती है। संतुलित आहार देने से दुधारू पशुओं मे दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है एवं साथ ही साथ पशु समय पर गर्मी मे आता है जिससे पशु समय पर गर्भ धारण कर लेता है।

संक्रामक रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण

पशुओं में होने वाले विभिन्न संक्रामक रोगों से पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है, इसके साथ-साथ कई संक्रामक रोग मनुष्यों के लिए भी हानिकारक होते हैं। अतः समय से नियमित टीकाकरण कराकर पशुओं को संक्रामक रोगों से मुक्त रखकर इस आर्थिक क्षति से बचा जा सकता है। विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव के लिए रोग के संक्रमण के अनुसार विशेष आयु पर और निश्चित अंतराल पर पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार टीकाकरण करवाना चाहिए। टीकाकरण करने के कम से कम दो सप्ताह पूर्व पशुओं को आवश्यकतानुसार कृमिनाशक औषधि पशु-चिकित्सक की सलाह लेकर अवश्य देनी चाहिए। रोगी एवं दुर्बल पशुओं का टीकाकरण नहीं करवाना चाहिए।

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पेशाव कि थैली मे पथरी से बचाव

पेशाव की थैली मे पथरी होने के कारण पशु की पेशाव रूक जाती है जिससे पशु को असहाए पीड़ा होती है और अंत में पेशाव की थैली या नली फट जाती है। यह रोग मुख्यतः जुगाली करने वाले पशुओं जैसे गाय, भैंस एवं बकरियों कि प्रजाति के नर पशुओं मे होता हैं। यह रोग सर्दियों मे ज्यादा होता है क्योंकि हमारे पशुपालक सर्दियों मे पशुओं को पानी कम पिलाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पशुओं को सर्दियों मे भी प्रचुर मात्रा मे पानी देना चाहिए एवं समय-समय पर पशुओं को नौसादर (प्रतिदिन 15 ग्राम सुबह एवं 15 ग्राम शाम) छह से सात दिनो तक देना चाहिए। प्रायः ऐसा देखा गया है कि जिन बकरियों को चोकर की अधिक मात्रा दी जाती है एवं जल्दी ही बधिया करा दिया जाता है उनमे भी पथरी की समस्या अधिक होती है। अतः बकरी पालन व्यवसाय से जुड़े पशुपालको को सलाह दी जाती है कि बह बकरियों को चोकर की मात्रा भी कम दे एवं बकरों को बयस्क होने पर ही बधिया कराए।

थनैला रोग से बचाव

थनैला रोग दुधारू पशुओं का मुख्य रोग है जिससे किसानो को काफी हानि होती है। यह रोग थन मे चोट लगने, एवं संक्रामक जीवाणुओं का थन मे प्रवेश कर जाने से होता है। इस रोग से वचाव के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –

  1. पशुओं को साफ स्थान पर रखें। पशु को गंदे दलदली स्थान पर बांधने के कारण थन में जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं।
  2. दुधारू पशुओं को चुटकी बिधि से दुहना चाहिए। अनियमित रूप से दूध दूहना भी थनैल रोग को निमंत्रण देना है।
  3. थनैला से ग्रसित पशु को सबसे अंत में दुहना चाहिए एवं थनैला से ग्रसित थन को सबसे अंत में दुहना चाहिए। थनैला  से ग्रसित थन से निकले दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
  4. दुहान के तुरंत बाद थन का छेद थोड़ी देर तक खुला रहेता है जिससे संक्रामक जीवाणु प्रवेश कर सकता है। इसको रोकने के लिए दुग्ध दोहन के पश्चात पशु को बैठने न दें तथा थन एवं अयन को पोटेशियम परमैगनेट (1 ग्राम को एक लीटर साफ पानी में) के घोल से साफ कर देना चाहिए। साथ ही साथ चरनी मे कुछ दाना डाल दे जिससे पशु खाने मे व्यस्त रहेगा और बैठेगा नहीं।

अफरा रोग से बचाव

जुंगाली करने वाले पशुओं को हरा एवं रसीला चारा, दल्हनी चारा या अनाज ज्यादा मात्रा मे खिलाने से अफरा रोग होता है। अफरा हो जाने पर पशु के बायी त्रिभुजाकार कोख (पेट) पर दबाव डालकर मालिश केरनी चाहिए। पशु का मुह खुला रखना चाहिए। इसके लिए जीभ को मुख से बाहर निकालकर जबड़ो के बीच कोई साफ एवं चिकनी लकड़ी रखनी चाहिए जिससे पशु जुंगाली करने की कोशिश करता है।

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निमोनिया

पानी में लगातार भींगते रहने या सर्दी के मौसम में खुले स्थान में बांधे जाने वाले मवेशी को निमोनिया रोग हो जाता है। बीमार मवेशी को साफ तथा गर्म स्थान पर रखना चाहिए।प्राथमिक उपचार के लिए उबलते पानी में तारपीन का तेल डालकर या गर्म ईंट को लोहे की बाल्टी मे रखकर उसके ऊपर तारपीन का तेल डालकर उससे उठने वाली भाप पशुओं को सूँघाने से फायदा होता है।

घाव का प्राथमिक उपचार एवं रोकथाम

पशुओं को घाव हो जाना आम बात है। ऐसे सामान्य घाव और सूजन को सहने लायक गर्म पानी में लाल पोटाश मिलाकर घाव की धुलाई करनी चाहिए। अगर घाव में कीड़े हो तो तारपीन के तेल या नीम का तेल में भिंगोई हुई पट्टी बांध देनी चाहिए। मुंह के घाव को, फिटकरी के पानी से धोकर ग्लिसरीन और बोरिक एसिड का घोल लगाने से फायदा होता है। शरीर के घाव पर नारियल के तेल में ¼ भाग तारपीन का तेल और थोड़ा सी कपूर मिलाकर लगाना चाहिए। पुराने एवं बद्वूदार घावों को हाइड्रोजन परऑक्साइड से साफ कर पूतरोधी मलहम या बीटाडीन लगाना चाहिए।

वाहय तथा अंत: परजीवी जनित रोग

पशुओं के शरीर पर वाहय परजीवी जैसे कि जुएं,पिस्सु या किलनी पशुओं का खून चूसते हैं जिससे उनमें खून की कमी हो जाती है तथा वे कमज़ोर हो जाते हैं| इन पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता घट जाती है।  इसके अलावा कुछ बाहय परजीबी पशुओं में बिभिन्न प्रकार की बीमारियां जैसे थिलेरियोसिस, बोबेसियोसिस (चिचड़ी बुखार), अनापलासमोसिस, ट्रिपेनोसोमोसिस (सर्रा) तथा लकवा (टिक पैरालिसिस) अदि रोग भी फैलाते हैं, जो की काफी घातक रोग हैं एवं पशुओं के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। पशुओं के बाहय परजीबी नियंत्रण हेतु समय समय पर पशुओ की आयु, गर्भबस्था और प्रजाति को ध्यान में रखते हुए पशु चिकित्सक के परामर्श अनुसार उचित मात्रा में वं उचुत तरीके से सबधानी पुर्बक कीटनाशक दवाई का प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशक लगाने से पहले पशुओं को इच्छा अनुसार पानी पिलाना चाहिए ताकि वे उपचार के बाद शरीर को न चाटें। पशुओ के शरीर पर कीटनाशक दवाई का प्रयोग करने के साथ साथ इनका पशुशालाओं में भी छिड़काव अत्यंत आबश्यक हैं, अन्यथा पशुओं के बाहय परजीबियो का पूरी तरह नियंत्रण नहीं हो पाता हैं।

पशुओं में अंत:परजीवी पाचन तंत्र में पाए जाते हैं ये पशु के पेट, आंतों, यकृत उसके खून व खुराक पर निर्वाह करते हैं जिससे पहु कमज़ोर हो जाता है तथा वह अन्य बहुत सी बीमारियों का शिकार हो जाता है| इससे पशु की उत्पादन क्षमता में भी कमी आ जाती है| पशुओं को उचित आहार देने के बावजूद यदि वे कमजोर दिखायी दें एवं गोवर मे बदबू आ रही हो तो यह समझ जाना चाहिए की पशु अंत:परजीवी से ग्रसित हो गया है। पशुओं के अंत:परजीवी नियंत्रण हेतु समय समय पर पशुओ की आयु, गर्भबस्था और प्रजाति को ध्यान में रखते हुए पशु चिकित्सक के परामर्श अनुसार परजीवी नाशक  दवाई का प्रयोग करना चाहिए। सामान्यत: सभी कीटनाशक ओषधियां बिषैली होती हैं, अत: इन्हे पशुओं एवं बच्चों की पहुंच से दूर व सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए।

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अन्य सावधानियाँ

  1. अगर पड़ोस के गाँव मे संक्रामक बीमारियों का प्रकोप है तो उस गाँव से पशुओं का आवागमन तत्काल बंद केर दें एवं पशुपालक भी आवागमन के उपरांत साबधानी बरते।
  2. सार्वनिक तालावों मे पशुओं को पानी पिलाना बंद कर दें। तालाब का पानी पीने से पशुओं मे अंत: परजीवी जनित रोग हो जाते है। गंदे तालाबों मे नहाने वाले महिष बंश के पशुओं मे कान वहने (कान से मबाद आना) की समस्या ज्यादा देखी गई है।
  3. नवजात शिशुओं मे रोग प्रतिरोधक क्षमता अविकसित होने के कारण संक्रामक रोग जल्दी होते हैं अतः नवजात शिशुओं कि ज्यादा देखवाल करें।
  4. पशुशाला कि नियमित सफाई करें जिससे बहा फिसलन न हो। फिसलन वाली जगह पर जानबरो  को रखने से उनमे हड्डी टूटने या जोड़ उतरने कि संभावना बड़ जाती है।
  5. पशु के चारे मे खनिज मिश्रण (लगभग 30 ग्राम) एवं आयोडीन युक्त नमक (25-30 ग्राम) शामिल करना जरूरी है।

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