कुक्कुट पालन- औद्योगीकरण का एक कदम

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भारत में कुक्कुट पालन तेजी से विकसित हो रहा एक ऐसा व्यवसाय है जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों भारतीयों को रोजगार प्रदान कर रहा है। यदि प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत एक अण्डा भी बढ़े तो भी 25000 व्यक्तियों को रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और 50 ग्राम माँस की खपत बढ़ने पर 30000 व्यक्तियों को रोजगार के नये अवसर मिलते हैं। हालांकि, बेसिक एनिमल हसबैंड्री स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति अण्डे की उपलब्धता का अनुमान प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 74 है। लेकिन, राष्ट्रीय पोषण संस्थान की सिफारिश के अनुसार, प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष अण्डे की आवश्यकता 183 अण्डे हैं। भारत में लगभग 3.35 किलोग्राम कुक्कुट माँस प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जबकि अन्य राष्ट्रों में यह 10-11 किलोग्राम है। ब्राजील, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, चीन और इण्डोनेशिया जैसे राष्ट्रों में तो यह क्रमशः 45, 43, 34, 31, 10.5 एवं 6.5 किलोग्राम है। 2015-16 में कुक्कुट पालन के क्षेत्र में लगभग 80000 करोड़ रूपये का व्यवसाय था जो लगातार बढ़ रहा है। 2015 – 16 में भारत में लगभग 83 बिलियन अण्डा उत्पादन था जो 2016 – 17 में बढ़ कर 88 बिलियन हो गया था। अतः यह कहा जा सकता है कि कुक्कुट पालन ग्रामीण आंचल में और अधिक विकसित हो तो ग्रामीण लोगों का जीवन स्तर सुधारने में एक सार्थक कदम साबित हो सकता है।

कुक्कुट पालन- औद्योगीकरण का एक कदम

अण्डों एवं कुक्कुट माँस की उपयोगिता को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि भारत में कुक्कुट पालन का उज्जवल भविष्य है। इस समय आवश्यकता है तो केवल कुशल प्रबंधन एवं तकनीकी जानकारी हासिल करने की। कुक्कुट पालन के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • भारत में व्यवसायिक कुक्कुट पालन ने उद्यमियों के लिए लाभदायक व्यापार अवसर बना दिया है।
  • मुर्गी पालन व्यवसाय नौकरी की तालाश कर रहे लोगों के लिए रोजगार का एक अच्छा स्रोत प्रदान कर सकता है।
  • यह भारत में ऐसा व्यवसाय है जो कभी सूख नहीं सकता है।
  • भारत के अंदर बाजार में सभी प्रकार की मुर्गी के उत्पादों की बड़ी मांग है। और मुर्गी के माँस और अण्डे लेने के बारे में कोई धार्मिक वर्जित नहीं है।
  • वाणिज्यिक उत्पादन के लिए अत्यधिक उत्पादक स्थानीय और विदेशी नस्लें भी उपलब्ध हैं।
  • आवश्यक प्रारंभिक निवेश बहुत अधिक नहीं है।
  • आप छोटे पैमाने पर उत्पादन के साथ शुरू कर सकते हैं और इसे धीरे-धीरे विस्तृत कर सकते हैं।
  • इसके लिए बैंक ऋण पूरे देश में उपलब्ध हैं।
  • कई मुर्गी पालन केंद्र आसानी से उपलब्ध हैं और आप उन स्थापित किसानों से मुर्गी पालन के बारे में आसानी से सीख सकते हैं।

बैकयार्ड (घर आंगन) कुक्कुट पालन

बैकयार्ड कुक्कुट पालन ग्रामीण भारत में एक सदियों पुरानी प्रथा है जिसमें अधिकांश कम उत्पादन वाले देशी कुक्कुटों का पाला जाता है। अण्डा उत्पादन की दृष्टि से देशी कुक्कुटों की क्षमता मुख्य रूप से प्रतिवर्ष 70 से 80 अण्डे प्रति पक्षी है और माँस उत्पादन भी बहुत कम है। हालांकि, बैकयार्ड कुक्कुट आसानी से चिकन की उन्नत किस्मों के साथ पाल कर अच्छा माँस और अण्डा उत्पादन लिया जा सकत है। पारंपरिक किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए, बैकयार्ड कुक्कुट पालन कम लागत के प्रारंभिक निवेश के साथ एक आसान व्यवसाय है, लेकिन गरीब परिवारों में प्रोटीन की कमी में सुधार करने के साथ-साथ इससे अच्छी आय भी अर्जित की जा सकती है।

कुक्कुट पालन- औद्योगीकरण का एक कदम

बैकयार्ड कुक्कुट पालन के लाभ

  1. कम प्रारंभिक निवेश लेकिन अच्छी आमदनी अर्जित करना।
  2. इसे दो कुक्कुटों की इकाई के रूप में भी शुरू किया जा सकता है।
  3. कृषि उप-उत्पादों और बचे हुए फीड और अनाज के बेहतर उपयोग के कारण फीड लागत नगण्य है।
  4. अण्डे और कुक्कुटों को उच्च मूल्य के साथ स्थानीय बाजार में बेचा जा सकता है, क्योंकि स्थानीय चिकन की बढ़ती मांग है।
  5. उपभोक्ता उच्च गुणवत्ता वाले देशी चिकन माँस और अण्डे के लिए अच्छी कीमत देने को तैयार हैं।
  6. इस व्यवसाय को परिवार के ऐसे सदस्य जैसे कि बजुर्ग एवं बच्चे जो अन्य किसी भी कृषि कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, भी करके पारिवारिक आय बढ़ाने में सहयोग दे सकते हैं।
  7. यह व्यवसाय एक तरह से एटीएम के रूप में कार्य करता है क्योंकि परिवार की आवश्यकतानुसार कुक्कुटों और अण्डों को कभी भी नकद राशि के रूप में बेचा जा सकता है।
  8. जैविक पशुपालन के संदर्भ में कुक्कुटों और अण्डों की गुणवत्ता अच्छी होती है क्योंकि कुक्कुटों को कम तनाव वाले वातावरण में प्राकृतिक इनपुट के साथ पाला जाता है।
और देखें :  बैकयार्ड मुर्गी पालन योजना अंतर्गत कुक्कुट पालन हेतु प्रशिक्षण एवं सामग्री उपलब्ध कराई गई

विशेष

यदि आप इस व्यवसाय में नए हैं और कुक्कुट पालन शुरू करना चाहते हैं, तो सबसे पहले व्यवहारिक रूप से कुछ फार्मों में जाने की कोशिश करें और छोटे पैमाने पर व्यवसाय को शुरू करें। कुक्कुट पालन के बारे में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करने के बाद बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन के लिए जाना चाहिए।

खेती के साथ कुक्कुट पालन के फायदे

आज इस आधुनिक दौर में मनुष्य अपने परिवार को चलाने के लिए मंहगाई की मार से परेशान है। दिनों-दिन उसकी दैनिक जरूरतें बढ़ रही हैं लेकिन उसके साधन कम होते जा रहे हैं। पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र मुख्यतः खेती और पशुपालन पर निर्भर है। भूमि से लगातार पानी का गिरता स्तर, बढ़ते परिवार से भूमि का छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाना इत्यादि एक परिवार को उतनी आमदनी नहीं दे पा रहा है, जितनी उस परिवार की जरूरत है। पशुपालन खेती का सह-व्यवसाय है, लेकिन चारे की कमी पशुपालकों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौति है। अधिकतर ग्रामीणों के पास भूमि या तो है नहीं या इतनी कम है कि उस पर अनाज और चारा दोनों इतना पैदा नहीं होता है कि परिवारी के लिए अनाज के साथ-साथ पशु भी पाले जा सकें। ऐसी स्थिति में खेती से जुड़े अन्य व्यवसाय की जरूरत है। आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ आहार की शुद्धता भी बहुत जरूरी है। आज बढ़ते प्रदूषण में खाद्य पदार्थ दूषित हो रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में यदि आमदनी के साधन और गुणवत्ता की बात की जाए तो कुक्कुट पालन को एक अच्छे व्यवसाय के रूप में देखा जा सकता है। यदि किसान खेती के साथ-साथ छोटे स्तर पर कुक्कुट पालन किया जाये तो उसके परिवार का आंशिक रूप से खर्चा निकल सकता है।

प्राचीन काल से ही कुककुट पालन को किसी न किसी रूप में अपनाया जाता रहा है, और आज एक महत्तवपूर्ण व्यवसाय का रूप ले चुका है। अर्थव्यवस्था में कुक्कुट पालन का महत्वपूर्ण स्थान है। यह व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी का अतिरिक्त स्त्रोत एवं जीविकोपार्जन का एक अच्छज्ञ साधन बन सकता है।

राष्ट्र में विकास की गति को देखते हुये, समाज के कमजोर वर्ग, निर्धन और भूमिहीन श्रमिकों, छोटे किसानों के लिए कुक्कुट पालन अतिरिक्त आमदनी एवं पौष्टिक आहार का अच्छा और कम लागत वाला व्यवसाय हो सकता है। खेती से फसल पैदा की जाती है, उससे भोजन और कपड़ों संबंधी जरूरतें पूरी होती हैं, लेकिन आमतौर पर आम आदमी को मिलने वाले आहार में प्रोटीन की कमी होती है। हालांकि, प्रोटीन दालों, मूंगफली आदि से मिल जाता है लेकिन कुक्कुटों से प्राप्त अण्डा और मांस अच्छी प्रोटीन के रूप में जाना जाता है। अतः कुक्कुटों से मिलने वाला उच्च गुणवत्ता की प्रोटीन को ध्यान में रखते हुये ग्रामीण क्षेत्रों में कुक्कुट पालन एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में अपनाने की जरूरत है।

और देखें :  पशुधन से समृद्धि

खेती के साथ-साथ छोटे स्तर पर कुक्कुट पालन के निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं:

  1. जैविक खाद: अण्डा देन वाली मुर्गियों की बीट से प्राप्त खाद में 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.08 प्रतिशत फास्फोरस, 1.52 प्रतिशत पोटैशियम, 1.85 प्रतिशत कैल्शियम, 0.62 प्रतिशत मैग्निशियम और 0.85 प्रतिशत सल्फर होता है। ब्रायलर मुर्गियों के बीट में 2.57 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.67 प्रतिशत फास्फोरस, 1.01 प्रतिशत पोटैशियम, 1.62 प्रतिशत कैल्शियम, 0.35 प्रतिशत मैग्निशियम और 0.52 प्रतिशत सल्फर होता है। मुर्गी की ढाई टन बीट की खाद, एक हैक्टेयर गेहूं की फसल के लिए पर्याप्त है। शोधों में हुऐ परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि मुर्गी की खाद खेत में डालने के बाद किसी और खाद की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि यह खाद जीवाणुओं से प्राप्त होती है। अतः किसान द्वारा खाद की जरूरत की पूर्ति मुर्गियों से प्राप्त खाद से की जा सकती है तथा अतिरिक्त आमदनी के लिए बेची भी जा सकती है। इस खाद से भूमि की रसायनिक एवं भौतिक दशा में भी सुधार होता है।
  2. जिन गांवों में मुर्गीपालन मुख्य व्यवसाय नहीं है, वहां मुर्गी का मांस एवं अण्डे शहरी क्षेत्र की तुलना में अधिक कीमत पर बिकते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को थोड़ी मुर्गियों से भी अच्छा लाभ हो सकता है।
  3. कुक्कुटों के लिए आहारः किसान को मुर्गियों के लिए आहार का एक बड़ा हिस्सा मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि उसे अपने ही खेत अथवा गांव से सस्ता मिल जाता है। उसे केवल मिश्रित-दाना को ही शहर से खरीदने की जरूरत होती है। खेती से प्राप्त अनुपयोगी पदार्थों जैसे कि मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीजों से तेल निकालने के बाद उनकी खल एवं छिलके आदि का उपयोग कुक्कुट पालन में किया जा सकता है।
  4. कुक्कुटों के लिए हरा चारा: आमतौर पर अन्य फसल के साथ बरसीम, ल्यूसर्न या अन्य पौष्टिक हरा चारा पशुओं के लिए उगाया जाता है। इस हरे च खाने के काम भी आ सकते हैं, जिससे दाने की 15 – 20 प्रतिशत की बचत भी की जा सकती है। हरा चारा मुर्गियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होता है।
  5. जिन किसानों के पास दूध के उत्पाद जैसे कि दही, लस्सी उपलब्ध है और फालतू हैं, वह भी घर या खेत में पाली मुर्गियों को पिलाये जा सकते हैं। इसलिए आहार की खपत में भी कमी आयेगी, बीमारियों से बचाव होगा व मुर्गियों के विकास में बढ़ोतरी भी अच्छी होती है।
  6. भण्डारण जीवन: साग-सब्जी, दूध इत्यादि सभी आहारीय पदार्थों का भण्डारित करने का अवधि काल होता है। इस सभी को अल्पावधि के लिए ही भण्डारित करके रखा जा सकता है और कुछ समय बाद खराब हो जाते हैं। अतः जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को हर समय, हर स्थान पर नहीं रखा जा सकता है लेकिन अण्डों को हर जगहपर रख जा सकता है। एक विशेष बात और कि अण्डों में मिलावट की संभावना नहीं होती है।
  7. प्रोटीन: यदि कोई भी किसान अपने घर या खेत में मुर्गीपालन करता है तो उसके परिवार को भी अण्डे और मांस स्वयं सेवन के लिये उपलब्ध हो सकता है, जिससे उसका व उसके परिवार का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
  8. समय का सद्दुपयोग: जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसान को पूरे वर्ष कार्य नहीं मिल पाता है, इसलिए मुर्गी पालन से छोटी जोत वाले किसानों को वर्ष भर कार्य करने को मिल सकता है। वर्ष के उन दिनों जब किसान के पास कार्य नहीं होता है तो मुर्गी पालन करने से वह समय का सद्दुपयोग कर सकता है और इसके साथ ही घर पर रहने वाले अन्य सदस्य भी मुर्गियों की देखरेख कर सकते हैं।
  9. पारिवारिक स्वरोजगारोन्मुखी व्यवसाय: कुक्कुट पालन एक स्वरोजगारोन्मुखी व्यवसाय है जिसे शिक्षित बेरोजगारों एवं परिवार में स्त्रियों द्वारा भी आसानी से किया जा सकता है। इस प्रकार परिवार के सभी सदस्य इस से जुड़कर किसी भी परिवार के लिए स्वरोजगार सृजित कर सकते हैं।
  10. भूमि का सद्दुपयोग: कुक्कुट पालन को कम भूमि पर भी किया जा सकता है। बंजर और अनुपयोगी भूमि पर कुक्कुट पालन का व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। घर के आस-पास पड़ी जगह को भी इस व्यवसाय के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
  11. कम समय में आमदनी: अन्य व्यवसाय की तुलना में कुक्कुट पालन से, कम समय में आमदनी मिलने लगती है। यदि मांस के लिए ब्रायलर पाले जाते हैं तो दो माह में और यदि अण्डों के लिए कुक्कुट पालन किया जाता है तो चार माह से आमदनी शुरू हो जाती है, जो अन्य व्यवसायों की तुलना में काफी कम समय है।
  12. कम आरंभिक लागत: कुक्कुट पालन के व्यवसाय को जितनी पूंजी अपने पास हो, उसी के अनुरूप किया जा सकता है। धीरे-धीरे आमदनी अर्जित करके व्यवसाय को और बढ़ाया जा सकता है। ऐसे बहुत से कुक्कुट पालक हैं जिन्होने कभी 50 – 100 मुर्गियों से इस व्यवसाय को शुरू किया था, आज उनके पास एक लाख मुर्गियों के फार्म हैं।
  13. अल्पावधि प्रशिक्षण: किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए उसका प्रशिक्षण प्राप्त करना बहुत जरूरी होता है। कुक्कुट पालन को चलाने के लिए अल्पावधि के प्रशिक्षण आसानी से मिल जाते हैं। अच्छी जीवन जीने के लिए पढ़ा-लिखा होना बहुत आवश्यक है लेकिन इस व्यवसाय के लिए बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा होने की भी आवश्यकता नहीं है।
  14. वित्तिय सहायता: कुक्कुट पालन एक स्वरोजगारोंमुखी व्यवसाय है जिसे बढ़ाने के लिए सरकार भी हर संभव मदद कर रही है। राज्य के सभी जिलों में अल्पावधि के प्रशिक्षण की व्यवस्था प्रदान करने के साथ-साथ कुक्कुट आवास के निर्माण के लिए तकनीकी ज्ञान, कुक्कुटों की आहार व्यवस्था इत्यादि का जानकारी भी दी जाती है।
  15. बायोगैस: आमतौर पर बायोगैस बनाने के लिए गोबर का उपयोग किया जाता है लेकिन घर में पाली जाने वाली मुर्गियों की बीट को भी बायोगैस प्लांट में उपयोग किया जा सकता है।
  16. घरेलु पशुओं में चिचड़ियों का नियंत्रण: बड़े पशुओं में चिचड़ियों की एक बहुत गंभीर समस्या के रूप में देखी जाती रही है जिनसे उनमें घातक रोग भी फैलते हैं। मुर्गियां कीड़े-मकौड़ों सहित चिचड़ियों को भी खाती हैं। इसलिए चिचड़ियों को नियंत्रित करने के लिए भी मुर्गी पालन करने का फायदा है।
और देखें :  कड़कनाथ मुर्गा यानि "काला मासी"

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