मस्से या गठलिया या पैपिलोमा रोग पशु की त्वचा के ऊपर पाई जाने वाली सरल रसोलियाँ होती है। यह पशुओें के शरीर के ऊपर धीरे-धीरे बढ़ने लगती है तथा बाद में पकने लगती है।
रोग का कारण
यह रोग पैपोवायरस के कारण होता है। यह विषाणु पशुओं की त्वचा में घुसकर मस्से उत्पन्न करता है।
![](https://i0.wp.com/epashupalan.com/hi/wp-content/uploads/2021/06/Bovine_warts.jpg?resize=451%2C505&ssl=1)
रोग के लक्षण
यह सभी प्रकार के पशुओं को प्रभावित करने वाला रोग होता है। यह रोग बछ़ड़ों, बछियो तथा अन्य अल्प वयस्क पशुओं में सिर, गर्दन एवं कन्धों के आस पास पाया जाता है। इस रोग के लक्षण प्रभावित पशुओं के शरीर के अन्य भाग पर जैसे सांडों के प्रिपुस के ऊपर, गायों के थन तथा भग पर पाये जाते हैं। यह पशुओं के मुख, आँख, कान, गर्दन और कन्धों पर भी हो सकता है। यह मटर के दाने के बराबर से लेकर सुपारी के बराबर या कभी-कभी इससे बड़े भी हो सकते हैं। यह अकेले अथवा गुच्छों में पाये जाते हैं। यह छोटे, पतले तथा लम्बे हो सकते हैं।
रोग का उपचार
- छुटपुट अकेले मस्से से प्रभावित पशुओं के मस्से की जड़ को पतले नायलान के धागे से बांध देने पर मस्से में रक्त का परिसंचरण बन्द होने के कारण, सूख कर गिर जाते है। इसके बाद इसके ऊपर एंटीसेप्टिक क्रीम जैसे- सोफ्रामाइसीन तथा हीमैक्स लगाने से मस्से साफ हो जाता है।
- गुच्छेदार मस्सो से प्रभावित पशुओं में ऐन्थियोंमाइलीन की 20 मिलीलीटर मात्रा की सूई मांस में सप्ताह में दो बार 6-8 सूई लगाने से मस्से या तो अपने आप या हाथ लगाने पर टूटकर गिरने लगते है।
- लूगाल्स आयोडीन की 20 मिली लीटर मात्रा को शिरा में सप्ताह में दो बार लगाने से लाभ मिलता है।
- पशुओं को मिल्क आयोडीन की 10 मिली लीटर मात्रा की सूई लगाने से पशु लाभान्वित होता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
यह लेख कितना उपयोगी था?
इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!
औसत रेटिंग 4.8 ⭐ (44 Review)
अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।
हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!
कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!
हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?
Authors
-
पशु चिकित्साधिकारी, राजकीय पशु चिकित्सालय, देवरनियाँ बरेली, उत्तर प्रदेश
-
सहायक प्राध्यापक, पशुधन उत्पाद, प्रौद्योगिकी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, गोविंद बल्लभ पन्तनगर कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पन्तनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड
Be the first to comment