माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या अर्थात भूमि मेरी माता है ओर मै उसका पुत्र हूँ, ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य के जीवन मे तीन माताए होती है; धरती माता, गाय माता और स्वयं की माता (जन्मदात्री)। अब अपनी माता को अगर कोई गम्भीर बीमारी होती है तो हम एड़ी चोटी का जोर लगाते है और इलाज कराते है उदाहरणार्थ कैंसर होने पर सारा व्यवसाय छोड़कर महीनों हम मुम्बई में रहते है। ठीक वैसे ही गाय माता के लिए भी श्रद्धा रखते है जितना बन पड़ता है सेवा कर लेते है परंतु सबसे महत्वपूर्ण हमारी धरती माता जिसके ऊपर उगे अन्न से हमारी माता, हमारा स्वयम का और संसार के सारे जीवित प्राणियों का भरण पोषण होता है वह गम्भीर रूप से बीमार हो चुकी हैं ओर ऐसा कहते है कि हमारी धरती माता वेंटिलेटर पर पड़ी है। हमारे पूर्वज कहा करते थे की प्रकृति से उतना ही लेना चाहिए जितना हमारी जरूरत है परंतु हमने अधिक उत्पादन के चक्कर मे खूब केमिकल्स का छिड़काव किया और उसकी सेहत की ऐसी कम तैसी कर दी l भारत सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे कुल भौगोलिक क्षेत्र की 30% भूमि अवनत है।
गत 200 वर्ष के कार्यकाल में भूमि के प्रति दृष्टिकोण में ना भूतो ना भविष्यति बदलाव आया है। सामान्य स्तर पर यह धारणा बनाई गई है कि भूमि एक आर्थिक स्त्रोत है जिससे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन निकालना है। परिणामत: भूमि माता का शोषण प्रारंभ हुआ। वर्तमान में हमारी भूमि चिंताजनक स्थिति में है। राष्ट्रीय स्तर पर 96.40 दशलक्ष हेक्टेयर भूमि अवनत हो चुकि है, जो हमारे कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 30% है। मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण की वार्षिक गति 15.35 टन प्रति हेक्टेयर है। अभी उचित समय है कि हम भारतीय कृषि चिंतन को एवं भूमि सुपोषण संकल्पना को यथोचित रूप में पुनः स्वीकार करें। हमें निर्धारित करना है कि वर्तमान में चल रहा भूमि का शोषण मात्र रोकना ही नहीं बदलना है। भूमि सुपोषण यह हमारे राष्ट्र के सभी नागरिकों का कर्तव्य इस विषय पर ध्यान देने कि अवश्यकता है।
क्या है भूमि सुपोषण ?
एक होता है पोषण जिसमे हम कुछ भी खाने योग्य वस्तुये खाकर जिंदा रह सकते है अगर भूमि के संदर्भ मे बात करे तो जैसे रसायनिक खादों का उपयोग करके भी हम भूमि को पोषित कर सकते है परंतु सुपोषण का अर्थ थोड़ा अलग हटकर है “सुपोषण” यानि भूमि को अच्छा-अच्छा खिलाना जैसे की जैविक खाद, हरित खाद, केचुआ खाद ओर भी अन्य अन्य पोषक तत्व जो जैविक रूप से बने हो।
प्राचीन काल खंड मे खेती का स्वरूप
प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान का चक्र (Ecological तंत्र) निरन्तर चलता रहता था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होते थे। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में भगवान कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्यधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था। परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम होता गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग होने लगा जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता चला गया , और वातावरण प्रदूषित होकर मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इन जहरीले पदार्थो ने हमारी भूमि की उर्वरक शक्ति को अत्यंत कम कर दिया है।
भूमि सुपोषण की प्राकृतिक व्यवस्था
पौधों के पोषण हेतु आवश्यक सभी 16 तत्व प्रकृति में उपलब्ध रहते हैं। उन्हें पौधे के भोजन रूप में बदलने का कार्य मिट्टी में पाए जाने वाले करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु करते हैं। इस पद्धति में पौधों को भोजन न देकर भोजन बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणु की उपलब्धता पर जोर दिया जाता है। प्रकृति में इन सूक्ष्म जीवाणुओ की उपलब्धता की विशिष्ट व्यवस्था है। पौधों के पोषण की प्रकृति में चक्रीय व्यवस्था है। पौधा अपने पोषण के लिए मिट्टी से सभी तत्व लेता है। तथा फसल के पकने के बाद काष्ठ पदार्थ के रूप में मिट्टी में मिलकर, अपघटित होकर मिट्टी को उर्वरा शक्ति के रूप मे पुन: लोटाता है।
देशी गाय का कृषि में महत्व: गौ-संवर्धन
गौ-संवर्धन करने हेतु हमारे देश मे हजारो की संख्या मे गोशालाये खोली जा चुकी है परंतु फिर भी गाय को बड़ी ही आसानी से सड़क पर आवारा पशु के रूप मे देखा जा सकता है l गाय का आर्थिक पक्ष अगर दूध को मानकर पालते रहे तो गौ-संवर्धन हमारे लिए बिलकुल भी संभव नहीं है गौ-संवर्धन हेतु हमे गाय के उपउत्पाद को ही मुख्य उत्पाद के रूप मे लेना होगा l इसमे मुख्य रूप से गाय का गोबर ओर मूत्र है ओर यही वो उत्पाद है जो हमारी गाय माता ओर धरती माता दोनों को बचाने मे एक रामबाण का कार्य करेंगे, क्यूकी भूमि को सुपोषित करना है तो उसे गोबर खाद देना अत्यंत आवश्यक है ओर जेसा की हम जानते है पशुओ की कमी होने के कारण इतनी बड़ी मात्रा मे हमारे पास गोबर खाद नहीं है इसलिए गौ-संवर्धन आज के समय की नितांत अवश्यकता है l इसी प्रकार हमे हस्त चलित ओर पशु चलित यंत्रो का कृषि मे उपयोग बड़ाना होगा जिससे कि गों पालन को ओर भी महत्तव मिलेगा। ऐसा कहा जाता है कि देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ लाभप्रद सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। गाय के गोबर में गुड़ एवं अन्य पदार्थ डालकर किन्वन से सूक्ष्म जीवाणुओ की संख्या को बढ़ाकर तैयार किया जीवामृत, घनजीवामृत जब खेत में डाला जाता है, तो करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु भूमि में उपलब्ध तत्वों से पौधों के लिए भोजन निर्माण करते हैं। ओर यही सूक्ष्म जीवाणुओ की विभिन्न क्रियाओ से धरती पोषित होती है ओर सारे पोषक तत्व पोधों को उपलब्ध हो पाते है।
हमारी आगे आने वाली पीढ़ी को अच्छा अन्न प्रदान करना हमारा नैतिक ज़िम्मेदारी हे इस हेतु जितना बन पढ़ता है उतना हमे जैविक खेती ओर भूमि सुपोषण को अभियान के रूप मे चलाना है ओर जेसा कि मुझे समाचारो के माध्यम से पता चला कि अक्षय कृषि परिवार इस भूमि सुपोषण को 13 अप्रेल से सम्पूर्ण भारत देश मे चलाने हेतु योजना बना रहा है साथियो ऐसे जन जागरण के अभियान मे अपना भी सूक्ष्म सहयोग देना अत्यंत आवश्यक है।
Be the first to comment