भारत वर्ष में बकरी पालन खासकर गरीब तथा सीमान्त पशुपालकों के लिए जीविका के प्रमुख साधन है। इसे लोग ए.टी.एम. की तरह उपयोग करते हैं, अर्थात जब भी किसान बन्धु को पैसे की जरूरत पड़ती है उसे उसी समय बेचकर पैसे प्राप्त कर लेते हैं। किसानों को बकरी बेचने के लिए कोई बाजार की आवश्यकता नहीं होती है। पिछले विगत वर्षों से यह देखा गया है कि ग्रामीण बेरोजगार युवक इस पालन को अपनाकर अच्छी आमदनी कमा करे हैं। बकरी पालन बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार, पशुपालन विभाग लगातार विगत वर्षों से अनुदान दे रही है ताकि इस व्यवसाय को अपनाकर किसान अपनी आमदनी का अच्छा स्रोत बना सके। अतः बहुत से लोग इस व्यवसाय को अपना कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं परन्तु कुछ लोग बकरी पालन का प्रबंधन वैज्ञानिक ढ़ंग से नहीं कर पाने के कारण काफी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ जाता है, जिसमें पी.पी.आर. बीमारी भी एक है। बकरी पालन में दो प्रमुख बातों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है:
1- पशु-पोषण
2- बीमारी की रोकथाम।
किसान भाई बकरी का आहार प्रबंधन तो करीब-करीब अपने स्तर से कर लेते हैं, परन्तु उसकी बीमारी की रोकथाम जानकारी के अभाव में अच्छी तरह नहीं कर पाते हैं। बकरी में कुछ ऐसी बीमारी है जो महामारी के रूप ले लेता है, जिसमें पी.पी.आर. मुख्य है। पी.पी.आर. बीमारी एक संक्रमण बीमारी है इसके प्रकोप से बकरी पालकों में बकरी में मृत्युदर काफी हो जाती है। यह बीमारी विषाणु जनित होता है। इस बीमारी का विषाणु संक्रमण रोगग्रस्त बकरी से स्वस्थ बकरी में तेजी से फैलता है। यह बीमारी पालतु पशु में मुख्यतः बकरियों तथा भेड़ों का रोग है। यह बीमारी सभी आयु वर्ग तथा दोनों लिंगों के पशु इस रोग से प्रभावित होते हैं छोटे बच्चे इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, अतः उनमें मृत्युदर भी अधिक होती है। यह बीमारी, रोगी पशु से स्वस्थ पशु के बीच मुख्यतः सम्पर्क द्वारा विषाणु संचारित होते हैं। रोग उत्पन्न करने में पशुओं के चारे-दाना, भोजन का बर्तन तथा एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने हेतु उपयोग वाहनों द्वारा अप्रत्यक्ष सम्पर्क की भी महत्पूर्ण भूमिका होती है। सामान्यतः इस बीमारी के विषाणु संक्रमित हवा से, खाने से, पानी पीने से बकरी के शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाता है एक परिणामस्वरूप बीमारी के लक्षण पशुओं में दिखाई पड़ने लगते हैं।
पी.पी.आर. महमारी के लक्षण
- बकरी के शरीर का तापमान बढ़ जाता है तथा उसे तेज बुखार (104-105˚ F) हो जाता है।
- बकरी के मुँह, नाक और आँख से लार टपकने लगता है।
- मुँह के अन्दर एवं जीभ में छाले पड़ जाते हैं तथा तेज दस्त (डायरिया) एवं निमोनिया के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।
- इस रोग से ग्रसित पशु अपनी आंखों को हमेशा बन्द करके रखना पसन्द करती है।
- बकरी के मुँह सुंघने से बदबू आने लगती है।
- बकरी के पैखाने में खून भी दिखाई दे सकता है।
- बकरी खाना-पीना बन्द कर देता है तथा अन्त में पशु मरने लगता है।
अगर उपयुक्त लक्षण पशुओं में दिखाई पड़े तो किसान भाई को समझ लेना चाहिए कि यह बकरी की महामारी (पी.पी.आर) के लक्षण है। अतः यथा शीध्र उसके रोकथाम के उपाय करना चाहिए।
पी.पी.आर. महमारी के रोकथाम
- स्वस्थ बकरी को इस बीमारी से बचाव के लिए समय-समय पर पी.पी.आर. की टीकाकरण अवश्य करना चाहिए।
- बीमार बकरी को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग कर दें।
- बाजार से खरीदे बकरियों की देखभाल कम से कम 14-21 दिन तक अलग रख कर करे एवं इसे मुख्य समूह में न डाले।
- बीमार पशुओं को किसी को भी बेचना नहीं चाहिए।
- अधिक जानकारी के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
- बीमार बकरी को चरने के लिए न भेंजे क्योंकि इसके संपर्क से दूसरे बकरी में यह बीमारी ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
- स्वस्थ बकरीयों की देखभाल करने वाले व्यक्ति इस रोग से ग्रसित अन्य बकरीयों की देखभाल न करें।
- बकरी का शेड/रहने वाले जगह की सफाई अच्छी तरीके से करे तथा धुलाई फिनायल से करें।
पी.पी.आर. बीमारी के उपरान्त पशुपालकों के लिए निम्नलिखित सलाह
क्र. सं. |
क्या करें | क्र. सं. |
क्या न करें |
1 |
बीमार पशु के ईलाज हेतु यथा शीध्र पशुपालक नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करें। |
1 |
बीमार पशु को बाजार में नही ले जाय, इससे दूसरे पशु में बीमारी फैलने की संभावना बन सकती है। |
2 |
पी.पी.आर से मरे बकरीयों को जमीन में गाड़ दें। |
2 |
बीमार पशु को स्वस्थ पशु के साथ न रखें। |
3 |
समय-समय पर पशुशाला (बकरी फार्म) की सफाई फिनायल से करें। |
3 |
बीमार पशुओं को चरने के लिए न भेजे। |
4 |
पशुशाला के कर्मी स्नान के बाद ही स्वस्थ बकरियों के संपर्क में आयें। |
4 |
बीमार बकरी की देखभाल करने वाले कर्मी स्वस्थ बकरियों की देख-भाल न करें। |
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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