बच्चों के सर्वांगीण विकास में माता-पिता का योगदान

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आज के समय में माता-पिता बनना जितना सरल लगता है, उससे कहीं बहुत अधिक कठिन बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है। सर्वांगीण विकास से तात्पर्य बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेदनात्मक विकास उनकी आयु के अनुरूप हो। बच्चों का समुचित पालन पोषण कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि बच्चों को कब क्या और कौन सी बात बुरी लग जाए यह कहा नहीं जा सकता है। इसलिए हर उम्र के बच्चों के साथ साथ, माता-पिता को सतर्क रहना पड़ता है। बच्चों के साथ साथ माता पिता को आपसी व्यवहार आदतों और बातचीत में सतर्क रहना पड़ता है। बच्चे के जन्म से लेकर बड़े होने तक बच्चों के प्रति सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं और माता पिता कुम्हार की तरह सहारा देकर सही आकार में ढालते हैं। माता पिता पर निर्भर करता है कि बच्चों को किस रूप में ढालें। जितनी बच्चों के साथ मेहनत करेंगे बच्चे उतने ही अच्छे विकसित होंगे। माता-पिता बच्चों की जैसी परवरिश करेंगे जैसे संस्कार देंगे बच्चों का भविष्य भी वैसा ही बनेगा।

वर्तमान समय में ग्रामीण व शहरी दोनों परिवेश में धनार्जनका कार्य अधिकतर माता पिता दोनों के द्वारा किया जाता है। इसलिए बच्चों के संतुलित विकास में माता-पिता का योगदान बराबर महत्व रखता है। बच्चों का दिल बहुत ही कोमल होता है। वह किस बात पर रुठ जाएं यह कहना बहुत मुश्किल होता है। बच्चों के दिलों दिमाग में जो बात बैठ जाए वह बड़ी कठिनाई से निकलती है। बच्चों के उचित शारीरिक विकास के लिए संतुलित व पौष्टिक आहार, व्यायाम, स्वच्छता और अच्छी आदतें आवश्यक होती हैं। दोनों को ही यह देखना चाहिए कि बच्चे का विकास उसकी आयु के अनुरूप हो रहा है या नहीं।

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प्रत्येक माता-पिता का यह सपना होता है कि बच्चे अच्छे व योग्य बने, इसके लिए वे अपने जीवन की सारी मेहनत व प्यार बच्चों पर न्योछावर कर देते हैं। न दिन का चैन देखते हैं और न रात की नींद। अपनी सामर्थ्य के अनुसार सभी सुविधाएं देने का प्रयत्न करते हैं। बच्चों के उचित विकास के लिए आवश्यक है कि माता-पिता बच्चों के बचपन से ही विशेष सावधानी बरतें। जिससे आपका बच्चा आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप बने। बच्चे के सबसे पहले गुरु माता पिता ही होते हैं। इन्हीं की आदतों व व्यवहार का अनुकरण बच्चे करते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के सामने अशोभनीय व्यवहार न करें। कभी भी अपने बच्चों की तुलना दोस्तों एवं रिश्तेदारों के बच्चों से न करें। ना ही कभी उनकी बुराई की तुलना बहन भाइयों से करें। बच्चों का दैनिक कार्यक्रम बनाएं लेकिन अपनी रूचि के अनुसार नहीं बल्कि बच्चों की पसंद का भी ध्यान रखें। पढ़ने, खेलने, मनोरंजन और व्यायाम करने में संतुलन रखें। प्रत्येक बच्चे के पढ़ने का कार्य करने का एक अलग तरीका होता है उसको नजरअंदाज न करें। माता पिता घर में ऐसा वातावरण रखें कि बच्चों का मानसिक विकास, सामाजिक विकास और संवेदनात्मक विकास उचित रूप से हो सके। बच्चों के गुणों को विकसित करने का प्रयास करें। बच्चों को अधिक टोकने से वे जिद्दी बन जाते हैं। उन्हें ज्यादा नियमों में न बांधे, नहीं अधिक ढील दे। बच्चा माता-पिता के सामने अपनी बात रख सके ऐसा वातावरण प्रदान करें। सदैव अपने को ही ठीक न समझें बच्चों की भी सुने। परिवार के कार्यों में बच्चों की भी राय अवश्य लें। बच्चों के निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने का प्रयास करें। बच्चे यदि कोई गलत काम करें तो उन्हें डांटे अवश्य लेकिन जगह व समय का ध्यान अवश्य रखें। बच्चे के दोस्तों रिश्तेदारों सहपाठियों या अजनबियों के सामने नहीं डांटे और न हीं सजा दें।

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बच्चों की गलतियों, कमियों तथा बुराइयों आदि का जिक्र हर एक से ना करें। बच्चों की गलतियों पर माता-पिता स्वयं समझाएं। सदैव बच्चों को समझाने का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बच्चे चिड़चिड़े व हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। पढ़ाई लिखाई जीवन के लिए बहुत आवश्यक है पर इसके साथ साथ बच्चों की रचनात्मकता और रुचियों पर भी ध्यान दें। बच्चा जिस क्षेत्र में निपुण है उसी में आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करें। आगे चलकर बच्चे क्या बनें इसका चुनाव उन्हें स्वयं करने दें। लेकिन पढ़ाई के विषय चुनने में उनकी मदद अवश्य करें व कैरियर बनाने में अपना पूर्ण सहयोग दें। बच्चों की पसंद व प्रतिभाओं को निखारने में मदद करें। बच्चों से जो भी वादा माता-पिता करें उसे पूरा अवश्य करें टाले नहीं। इससे बच्चे अच्छे कार्यों को करने के लिए उत्साहित होंगे। बच्चों के दोस्तों से उनके बारे में जांच पड़ताल न करें इससे बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। बच्चों के साथ एक समान व्यवहार करें। प्यार दुलार का दिखावा न करें। घर पर व बाहर जाने पर एक समान व्यवहार करें।

जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता है बच्चे प्यार के भूखे होते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए की प्रतिदिन की व्यस्त जिंदगी में से कुछ समय निकालकर नियमित रूप से बच्चों के साथ बिताएं। परिवार के सभी सदस्य कम से कम एक समय का भोजन एक साथ बैठकर करें। बच्चों को पिकनिक पर ले जाएं। छुट्टियों में परिवार सहित बाहर घूमने जाएं। बच्चों की समस्याओं को प्यार से सुलझाने का प्रयास करें। अपना निर्णय उन पर न थोपें

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उन्हें स्वयं निर्णय लेने के योग्य बनाने का प्रयास करें। गलतियों की कड़ी सजा न दें। बच्चों के सहपाठियों एवं दोस्तों को भी प्यार व सम्मान दें। समय-समय पर माता-पिता को चाहिए कि बच्चे के विद्यालय जाकर उनके शिक्षक से मिलते रहे। जिससे उनकी शैक्षिक गतिविधि की सही जानकारी मिल सके। यदि माता-पिता थोड़ी सावधानी रखें आपस में परिवार के सदस्यों के साथ आस-पड़ोस व रिश्तेदारों के साथ सहज व सरल व्यवहार रखें तो इसका सकारात्मक प्रभाव बच्चों के विकास पर पड़ेगा।

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