बर्ड फ्लूः कुक्कुट उद्योग से जुड़े लोगों के लिए जटिल समस्या

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बर्ड फ्लू एक विषाणु द्वारा होने वाली मुख्यतः पक्षियों की जानलेवा बीमारी है। इसका वाइरस आर्थोमिक्सोविरिडी फैमिली का है तथा इस ग्रुप में तीन मुख्य प्रकार हैं टाइप ए, टाइप बी व टाइप सी। इसमें से टाइप ए जूनोटिक है अर्थात यह मनुष्यों में बीमारी उत्पन्न कर सकता है। विषाणु की संरचना में हीमएग्लूटिनिन व न्यूरामिनिडेज नामक प्रोटीन होते हैं, जिनका इस विषाणु की प्रजाति बदलने में महत्वपूर्ण योगदान है जो मनुष्यों के लिए एक जानलेवा खतरा बन चुकी है।

बर्ड फ्लू

इतिहासः यह बीमारी सन 1918 में सर्वप्रथम स्पेन में पायी गई और स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना गया, सन 1997 में विषाणु की प्रजाति H5N1 से हांगकांग में एक बच्चे की मृत्यु हुई जिसको रे सिंड्रोम से जाना गया। कुक्कुट उद्योग से जुडे़ हुए लोगों के लिए यह बीमारी अभी भी खतरा बनी हुई है। इसके बाद समय समय पर इस बीमारी के पैन्डेमिक (महामारी) होते रहे।

1918H1N1

1957- H2N2

1968H3N3

1997H5N1

फरवरी 2006-अप्रैल 2015H5N1 भारत में कई प्रकोप 

रोग का प्रसार

कुक्कुटों में

  1. दूषित हवा द्वारा।
  2. दूषित जल व खाद्य सामग्री से।

मनुष्यों में

  1. दूषित हवा द्वारा।
  2. संक्रमित कुक्कुटों के मल तथा मुहँ आँख व नाक के स्राव के सम्पर्क में आने द्वारा।
  3. संक्रमित कुक्कुटों व कुक्कुट प्रक्षेत्र में प्रयोग में आने वाली सामग्री व उपकरणों के सम्पर्क में आने से यह रोग फैल सकता है।
  4. मुख्यतः इस कार्य से जुडे मनुष्यों का कुक्कुटों को छूना, मारना, पंख नोचना या कुक्कुटों को खाने के लिए तैयार करना आदि से भी यह बीमारी फैल सकती है।

लक्षण

कुक्कुटों मेंः तेज बुखार आना, आँख व नाक से पानी आना, कलंगी एवं पैरों का बैगनी होना, गर्दन तथा आँखों के निचले हिस्से में सूजन, हरे रंग की बीट का होना, अचानक व अत्यधिक संख्या में कुक्कुटों में मृत्यु होना।

मनुष्यों में: सर्दी जुकाम व खांसी, गले में खराश, माँस पेशियों में दर्द एवं श्वास लेने में परेशानी अन्त में यकृत, गुर्दा एवं फेफड़ो का कार्य करना बन्द कर देना।

और देखें :  जैविक मुर्गी पालन व प्रबंधन

कुक्कुट उद्योग से जुड़े लोगेा के लिए प्रमुख सुझाव

  1. पक्षी फार्म को पक्षी अभ्यारण्य, जलाशय या झील के आसपास न खोलें क्योकि इस रोग का प्रसार करने में जलमुर्गी की प्रमुख भूमिका है।
  2. पक्षी फार्म के आस पास सूकर पालन न करें क्योंकि सूकर इन्फलूयेन्जा विषाणु के लिए मिक्सिग वेसल का कार्य करते हैं और इस वाइरस की नई प्रजाति बनाने की क्षमता रखते हैं जो मनुष्यों के लिए काफी घातक हो सकते है।
  3. नियमित रूप से फार्म का बिछावन बदलते रहें तथा समय समय पर विसंक्रमण की कार्यवाही करते रहें।
  4. फार्म के आसपास सफाई रखे तथा कूड़ा करकट व गन्दगी न इकट्ठा न होने दे।
    मृत पक्षियों का निस्तारण गड्ढे में दबाकर किया जाना चाहिए।
  5. बीमारी की स्थिति में मुर्गियों के सीधे सम्पर्क में न आये। दस्ताने या किसी अन्य सुरक्षा साधन का इस्तेमाल करें।

बीमारी फैलने की स्थिति में क्या करें?

  1. निकटवर्ती पशु चिकित्सक को तुरन्त सूचना दें।
  2. पशु चिकित्सक को कुक्कुटों को मारने में पूर्ण सहयोग दें।
  3. इस बीमारी में पशुचिकित्सक प्रभावित गाँव/फार्म से 3 किलोमीटर की परिधि के अन्दर आने वाले सभी कुक्कुटों को मारते हैं, तथा 3 से 10 किलोमीटर की परिधि तक टीकाकरण का प्रावधान है। यह टीका भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।

बर्ड फ्लू से सम्बन्धित कुछ जटिल समस्यायें

  1. इस बीमारी के विषाणु की बहुत अधिक संख्या में पोषक है। अतः वह इस बीमारी के प्रसार में सहायक है, तथा बीमारी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैलाने में सहायक है।
  2. इस बीमारी का विषाणु उत्परिवर्तन के माध्यम से अपनी संरचना में परिवर्तन करता रहता है। अतः नई प्रजाति के वाइरस बनने की संभावना बनी रहती है, जो मनुष्य के लिए धातक सिद्ध हो सकती है।
  3. क्योकि यह वाइरस अपनी संरचना में लगातार परिवर्तन करता रहता है, इस कारण से इस बीमारी के टीकाकरण में सफलता नहीं मिल पायी है।
  4. इस बीमारी का ऊष्मायन काल (इनक्यूवेशन पीरियड) अत्यधिक कम है। इस कारण से भी बीमारी की रोकथाम कठिन है।
  5. यह बीमारी मुख्यतः उपरी श्वास तंत्र की बीमारी है। जिस कारण से पूर्व में बैज्ञानिकों ने इस बीमारी का टीका बनाने में कोई रूचि नही दिखाई।
और देखें :  कुक्कुट पालन में छह दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ

उपचार

  1. बर्ड फ्लू से पीड़ित व्यक्ति को विशाणु विरोधी दवाओं का प्रयोग करना चाहिये।
  2. यह दवा लक्षण प्रकट होने के दो दिनों के अन्दर देनी चाहिये।
  3. यू.एस.एफ.डी.ए. के अनुसार चिकित्सक की सलाह पर ही टेमीफ्लू (ओसेल्टामिविर), रिलेन्जा (जानामिविर) जैसी विषाणुरोधी दवा का प्रयोग उपचार व रोकथाम के लिये करनी चाहिये।

 रोकथाम

  1. अपने हाथों को अच्छी प्रकार से जीवाणु नासक साबुन जैसे लाईफबॉय आदि से साफ करना चाहिये। तथा आँख, नाक तथा मूहं को छूने से बचना चाहिये।
  2. नींद पूरी लेनी चाहिये।
  3. खूव पानी पीना चाहिये।
  4. अपने शरीर के रोग प्रतिरोधकता (इमयून यंत्र) को विकसित करने के लिये हरी सब्जियां, विटामिन युक्त दाल का अपने आहार में उपयोग करना चाहिये।
  5. किसान व पशुचिकित्सकों का संक्रमित बर्ड को छूते समय मुहँ पर मास्क व हाथ के दस्तानों का प्रयोग करना चाहिये।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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