फैट अर्थात वसा दूध का अभिन्न हिस्सा होता है और अनेकों फैटी एसिड मिलकर फैट का निर्माण करते हैं, जो की मानव आहार का एक महत्वपूर्ण पोषक तत्त्व मन जाता है। डेरी फार्मिंग में फैटी एसिड प्रोफाइल को कच्चे दूध का एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
किसी भी पशु का दुग्ध उत्पादन और फैट का प्रतिशत उसकी अनुवांशिक यानी जेनेटिक क्षमता पर आश्रित है। पशु की जेनेटिक क्षमता इस बात पर निर्भर करती है की पशु को उत्पन्न करने वाले डैम (मादा) और सायर (नर) की नस्ल वरिष्ठ गुणवत्ता की हो। पशु पालकों को ज्ञात होना चाहिए की पशु अपनी जेनेटिक क्षमता से अधिक दूध का उत्पादन नहीं कर सकता। लेकिन ज्यादातर पशु पालक अपने पशु की पूरी क्षमता का लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं। पशुओं की इस दिक्कत का कारण पौष्टिक आहार की कमी एवम तनाव को माना जाता है।
जब किसान दूध बेचने डेरी जाते हैं तो दूध में पाया जाने वाले फैट यानी वासा की मात्रा ही दूध का मूल्य निर्धारित करती है। फैट एवं सॉलिड नॉट फैट (ऐस.ऐन.ऍफ़) दूध के वो अहम् हिस्से हैं जो पशु पालकों को मुनाफा प्रदान करते है। किसी भी डेरी में बिक्री के समय यदि दूध में फैट की मात्रा अधिक होगी तो किसान को दाम भी अधिक प्राप्त होगा। इसीलिए किसान यदि अपनी आमदनी में लाभ को बढ़ाना चाहतें है तो उन्हें संतुलित फैट युक्त दूध का उत्पादन करने के लिए अपने पशु की हर संभव सेवा करनी चाहिए। ऐसे में पशु पालकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वे पशु को स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से पशु चिकित्सकों से परामर्श लेते रहें।
सालों के अनुसन्धान से ये ज्ञात हुआ है की हर पशु के दूध में फैट की मात्रा विशिष्ट होती है। जैसे गाय के दूध में 3.5 से 5 प्रतिशत इसके विपरीत भैंस के दूध में 7 से 9 प्रतिशत फैट की मात्रा पाई जाती है। इसके साथ-साथ अलग-अलग ब्रीड यानी नस्ल के पशु में फैट की अलग-अलग मात्रा पाई जाती है जैसे बद्री हिल गाय में 4.8%, साहीवाल में 4-4.5% जर्सी गाए में 4.5% आदि। भारत में सबसे ज्यादा पायी जाने वाली मुर्राह भैंस के दूध में 6.5% से लेकर 9% तक फैट पाया जाता है जो की किसानों की आमदनी के लिए बहुत ही लाभदायी है।
गाय की नस्ल |
फैट की मात्रा |
साहीवाल
रेड सिंधी गिर थरपाकर बद्री क्रॉस ब्रेड होल्स्टीन जर्सी |
4.5 %
5.02% 3.25% 4.4 % 4.8 % 3.5-5% 3.45% 4.5% |
भैंस की नस्ल | फैट की मात्रा |
मुर्राह
भदावरी मेहसाना जाफराबादी सुरति |
6.5-9 %
10-14 % 6.8-7.5 % 7.7-9 % 7-7.39% |
पशुओं को दिया जाने वाला आहार दूध के उत्पादन का केंद्र बिंदु है। पशु पालक यदि पशु को आहार प्रदान करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखते हैं तो वे दूध में फैट की मात्रा को संतुलित रूप से बढ़ा सकते हैं।
बाहरी मौसम पशुओं की उत्पादन क्षमता में एक अहम् हिस्सा निभाता है। शोध में ऐसा देखा गया है की अत्यधिक गर्मी के मौसम में पशु तनाव में आ जाते हैं, जिस कारण फैट की मात्रा में कमी हो जाती है जिससे डेरी में दूध की बिक्री के समय मूल्य घाट जाता है और पशु पालक को घाटा हो जाता है।
यदि पशु पालकों को दूध की बिक्री फैट के आधार पर करनी होती है तो वो इस बात का ख़ास खयाल रखें की जब वह किसी दुधारू पशु को खरीदें तो उसके दूध में फैट की मात्रा की जाँच अवश्य करें ताकि भविष्य में उन्हें कोई नुक्सान ना हो।
दूध में फैट की कमी निम्नलिखित कारणों की वजह से हो सकती है
- हरे चारे और शुष्क चारे का सही अनुपात में मिश्रण ना होने से दूध की रचना में बदलाव आ जाता है।
- पशु के आहार में यदि फाइबर अर्थात रेशे की कमी होने पर फैट की मात्रा में कमी आ जाती है।
- दाने और कंसन्ट्रेट राशन का बहुत ज्यादा बारीक होने पर वसा घट जाता है।
- पशु आहार में प्रोटीन युक्त पदार्थ में कमी के कारण पशु के रूमेन में आवश्यक एमिनो एसिड नहीं बन पाते जिससे फैट नहीं बन पाता है।
- कई बार किसान अपने पशुओं को अधिक मात्रा में तैलीय पदार्थ का सेवन करा देते हैं, इससे भी दूध में फैट घट जाता है।
- जब गाय पहली या दुसरे लैक्टेशन में होती है तो अत्यधिक दूध का उत्पादन करती है तो उसके शरीर की ऊर्जा में कमी आने की वजह से भी फैट में कमी आ जाती है।
- ग्रीष्म ऋतु में लू लगने की वजह से पशु हीट स्ट्रेस में आ सकते हैं जिससे दूध के उत्पादन में बदलाव आ जाता है और फैट घट जाता है।
पशु आहार और पशु पालन प्रबंधन का महत्व
- किसान अक्सर अनुभव करते होंगे की पशुओं को संतुलित आहार खिलाने के बावजूद भी दूध का उत्पादन बढ़ता नहीं है। ऐसा इसीलिए होता है क्यूंकि पशु के पेट एवम पाचन नाली में कीड़े पनप रहे होते हैं जो आहार से मिल रहे पोषक तत्त्व का सेवन खुद कर लेते हैं और पशु के शरीर को कमजोर बना देते है। इसीलिए पशु पालन में डीवॉर्मिंग अर्थात कीटनाशन का बहुत महत्व है। किसानों को अपने पशुओं को पशु विशेषज्ञों के परामर्श पर समयानुसार कीटनाशक बोलस का सेवन अवश्य कराना चाहिये।
- दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए दुधारू पशुओं को एक संतुलित आहार की आवश्यकता होती है जिसके लिए किसानो को अपने पशुओं को 60% हरा चारा एवं 40% सूखे चारे का मिश्रण प्रदान करना चाहिए। हरे चारे और सूखे चारे की सही मात्रा यदि सावधानी पूर्वक नहीं मिलाई गई तो इससे पशु की पाचन क्रिया में दुष्प्रभाव पड़ सकता है जिससे दूध उत्पादन में गिरावट आ सकती है। पशु पालकों को पशुओं के आहार में बदलाव हमेशा आहिस्ता-आहिस्ता करना चाहिए ताकि उनके शरीर की प्रणाली अनुकूलित हो सके।
- फाइबर युक्त एवम अच्छे से किण्वनीय (फेर्मेंटेट) होने वाले कार्बोहायड्रेट पशु आहार का अहम् हिस्सा बनते हैं जो की फैट बढ़ाने के लिए बेहद कारगर साबित होते हैं। भूसा, कड़वी, हे, साइलेज, हरा चना, बरसीम और लूसर्न जैसे रेशेदार आहार पशु के लिए सही मात्रा में बेहद आवश्यक होते हैं। खली के प्रकार जैसे बिनोला, सोयाबीन आदि पशु के पाचन तंत्र को संतुलित रखने में सक्षम रहते हैं। पशु विशेषज्ञों के अनुसार चारे का प्रकार, उसमे जो फॉरेज है उसकी बारीकी और फाइबर की मात्रा, फैट की मात्रा को काफी प्रभावित करती है। चारा मध्यम रूप से बारीक होता है तो पशु के रूमेन में अधिक मात्रा में प्रोपिओनेट बनता है जो वसा बढ़ाने में कारगर साबित होता है। हरा चारा जितना मुलायम और ताजा हो उतना बेहतर माना जाता है।
- पशुओं को दिनभर में 22-24 किलो हरा चारा (बरसीम, लूसर्न, सोरघम), 8-10 किलो का सूखा चारा और 3 से 4 किलो का कंसन्ट्रेट फीड जैसे बिनोला खली, मूंगफली की खली, मक्का आदि सही मात्रा में मिला कर देना चाहिए। देसी कपास का बिनोला हमेशा पकाकर खिलाना चाहिये। यदि कंसन्ट्रेट फीड को रात भर भीगा कर अगले दिन खिलाया जाता है तो उसकी पोषक तत्त्व बढ़ जाते है।
- पशुओं को 1 किलो बारीक पिसा हुआ गेहू, आधा किलो सरसों की खली, आधा किलो बिनौले की खली और 500 ग्राम मेथी के दाने पानी में पकाकर दलीया की तरह भी खिलाया जाता है जिससे उनको सही मात्रा में पोषक तत्त्व प्राप्त हो सकें।
- किसान अपने पशुओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए चारे में प्रतिदिन 50 ग्राम खनिज मिश्रण भी मिलाकर खिला सकते हैं। इसके साथ ही 25 से 30 लीटर स्वच्छ पानी का प्रबंध किसानों को अपने दुधारू पशु को प्रतिदिन प्रदान करना चाहिए। लेकिन पशुपालकों को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाइये की उन्हें पशु को पानी दूध दुहने के तुरंत पहले नहीं पिलाना चाहिए ताकि दूध में फैट की मात्रा में कोई कमीं ना आये। इसके साथ ही यदि पशु हाल ही में ब्याया हो तो उसके बछड़े को शुरू का दूध पिलाना चाहिए और दूध दुहते समय अच्छे से थनों से सारा दूध दुह लेना चाहिए क्यूँकि आखिरी के दूध में फैट की मात्रा अधिक पायी जाती है।
पशु पालक यदि पशु खरीदते समय पशु का चयन ध्यानपूर्वक करते हैं और पशु आहार से लेकर पशु प्रबंधन में सावधानी बरतते हैं तो वे दूध के साथ ही साथ फैट की मात्रा का अधिक उत्पादन कर लाभ पा सकतें हैं। इस तरीके से यह सिद्ध किया जा सकता है की दूध में फैट की मात्रा किसानों की आमदनी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
Be the first to comment