पशुपालन

पशुओं में उत्पादन वृद्धि के लिए कृत्रिम गर्भाधान

नर प्रजनन कोशिका (शुक्राणु) को कृत्रिम तरीके से मादा पशु के जननांगो मे प्रत्यारोपित करना कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है। >>>

पशुपालन

फसल अवशेष जलाना: मानवता और पर्यावरण के लिए खतरा

फसल अवशेषों को हर रोज जलाया जा रहा है लेकिन वर्ष में दो बार, रब एवं खरीफ की फसल कटाई के बाद यह मुख्य रूप से देखने को मिलता है। दिन हो या रात फसल कटाई के बाद, बचे हुए अवशेषों में आग लगाना सामान्य घटना है। >>>

पशुपालन

बांझ / अनुउर्वर गायों को दूध देने योग्य बनाने की वैज्ञानिक तकनीक

अनेक वैज्ञानिक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि पशुओं के बिना बच्चा दिए उनसे दूध लिया जा सकता है और यह इस समस्या का समाधान हो सकता है। यह उपचार उन गायों में कामयाब है जो कि कम से कम एक बार बच्चा दे चुकी हो जिससे उनका अयन पूरी तरह से विकसित हो। >>>

पशुपालन

भारतीय एवं यूरोपियन गायों में तुलनात्मक अंतर

आज की गाय एक जंगली प्राणी के रूप में मानव निर्माण के करोड़ों वर्ष पूर्व प्रकृति में विकसित हुई है। भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली देशी गाय और यूरोप की जर्सी, हॉलस्टीन इत्यादि, गायों का मूल 1.5 लाख साल पहले एक ही था >>>

पशुओं की बीमारियाँ

पशुपालक भी समझें पशुओं के मौलिक स्वास्थ्य निरीक्षण का महत्व

स्वस्थ पशुधन, पशुपालक की खुशहाली का प्रतीक है। सभी पशुपालक चाहते हैं कि उनका पशुधन स्वस्थ रहे ताकि उनका पशुधन निरोगी रहे और रोगों पर खर्च होने वाले धन को कम किया जा सके। >>>

पशुपालन

पशुओं की देखभाल में बरते जाने वाली विशेष सावधानियां (वर्षा ऋतु में)

बरसात के मौसम में हमें अपने पशुओ का खास/विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस मौसम में एक तरफ जहाँ हमें तथा हमारे पशुओ को गर्मी से राहत मिलती है, वही दूसरी तरफ इस मौसम में पशुओ के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। इस मौसम मे वातावरण में अधिक आर्द्रता तथा तापमान में उतार चढ़ाव के कारण पशुओ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

पशुधन के प्रति अमानवीय व्यवहार, क्रूरता तथा संगरोध हेतु सुरक्षा अधिनियम एवं कानून

कई बार ऐसा होता है कि पशुपालक, पशु की मौलिक आवश्यकता एवं क्षमता को नज़र अंदाज़ करके लगातार उसका उपयोग उत्पादन लेने एवं खेती संबंधी कार्य करने में लगा रहता है। पशु के प्रति ऐसा व्यवहार करने से पशु के उत्पादन एवं उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिसके कारण पशु बीमार रहने लगता है और अंतत: पशु की मृत्यु हो जाती है। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

कोविड-19 के संक्रमण काल के अंतर्गत, पशुपालकों हेतु कोविड-19 से बचाव हेतु महत्वपूर्ण दिशा निर्देश/ सलाह

पशु आवास गृह में आगंतुकों के आवागमन को प्रतिबंधित करें। पशुशाला में कर्मचारियों की संख्या कम रखें। पशुपालकों को पशु आवास गृह में जाने से पूर्व मुंह पर मास्क पहनना चाहिए। >>>

पशुपालन

ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण क्यों और कैसे किया जाए

देश के संपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महिलाओं के सशक्तिकरण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। अनेक अध्ययनों द्वारा भी यह सिद्ध हो चुका है कि महिलाओं की विशेष कर ग्रामीण महिलाओं की देश के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। कुछ वर्षों पूर्व तक महिलाओं के योगदान को काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता रहा है परंतु विगत दिनों के सर्वेक्षणों, अनुसंधानों के परिणामों से यह तथ्य सामने आया है कि कृषि के क्षेत्र जो कि भारत की जीडीपी अर्थात सकल घरेलू उत्पाद मे लगभग 17.2% एवं पशुपालन4.9%योगदान दे रहा है। >>>

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गर्मियों में पशुओं पर शीतलन प्रणाली का प्रभाव

पशु का शारीरिक तापमान, जब उनके सामान्य शारीरिक तापमान से अधिक हो जाता है, तब वे गर्मी अनुभव करते है। गर्मी में उत्पन्न तनाव के दौरान, पशुओं के लिये सामान्य दूध उत्पादन या प्रजनन क्षमता बनाये रखना मुश्किल होता है। गर्मी तनाव के समय पशु अपने शारीरिक समायोजन द्वारा शरीर का तापमान नियमित बनाये रखते हैं। >>>

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गाय/भैंस की खरीदारी में समझदारी

गाय एवं भैंस पालन वर्तमान परिदृश्य में रोजगार का अच्छा साधन है। दूध तथा दूध से बनने वाले सामानों की मांग कभी घटती नहीं है। हमेशा बाजार में इन सभी चीजों की मांग बनी रहती है। गो /भैंस पालन में रोजगार करने से पहले दुधारू गाय भैंस का चयन की जानकारी आवश्यक है। चयन करने के पहले इन बिंदुओं पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। >>>

पशुपालन

हरियाणा राज्य में स्वदेशी गायों का सरंक्षण एवं विकास (गौसंवर्धन)

भारत में हरियाणा का दुग्ध उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2017–18 में 89.75 लाख टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन के साथ, राज्य में प्रति व्यक्ति प्रति दिन की >>>

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पशु के ब्यांत के पश्चात होने वाली मुख्य बिमारी मिल्क फीवर (दुग्ध ज्वर): जानकारी बचाव एवं उपचार

जैसे की मिल्क फीवर-पशुओं का मिल्क फीवर एक उपापचय सम्बन्धित विकार है। यह रोग सामान्यतः गाय एवं भैसों मे व्याने के दो दिन पहले से लेकर तीन दिन बाद तक होता है। >>>

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कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका

महिलाएं कृषि कार्यबल की रीढ़ हैं, लेकिन दुनिया भर में उनकी मेहनत ज्यादातर अवैतनिक रही है। वह कृषि, पशुपालन में सबसे अधिक थकाऊ और बैक-ब्रेकिंग कार्य करता है। कृषि विकास और गरीबी में कमी का एक महत्वपूर्ण इंजन हो सकता है। लेकिन यह क्षेत्र कई देशों में भाग में है, क्योंकि महिलाएं, जो अक्सर कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संसाधन होती हैं, उनकी उत्पादकता को कम करती हैं। >>>