भारतीय एवं यूरोपियन गायों में तुलनात्मक अंतर

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आज की गाय एक जंगली प्राणी के रूप में मानव निर्माण के करोड़ों वर्ष पूर्व प्रकृति में विकसित हुई है। भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली देशी गाय और यूरोप की जर्सी, हॉलस्टीन इत्यादि, गायों का मूल 1.5 लाख साल पहले एक ही था – बॉस जेनरा (Bos genre)। 1.5 लाख साल पहले पृथ्वी पर अकस्मात् प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटनाएं घटी जिससे वायुमण्डल में तेजी से बदलाव आया और परिणाम स्वरूप बॉस जेनरा के शरीर में भी उसके आनुवंशिक (Genetic) रचना में अन्तगर्त बदलाव आया। परिणाम स्वरूप 3 पशुओं की व्युत्पत्ति हुई:

  1. देशी गाय (Bos indicus),
  2. जर्सी, हॉलस्टीन इत्यादि (Bos taurus), एवं
  3. याक (Yak – Bos grunniens)।

भारतीय गाय की व्युत्पति लगभग 6,10,000 – 8,50,000 वर्ष पहले हुई थी (MacHugh et al. 1997)। उष्णकटिबंधीय देशों में अधिकांश स्वदेशी पशु जेबू प्रजाति के हैं। दक्षिणी तुर्कस्तान में अनान की एक जगह पर पशुओं के पालतूकरण के शुरुआती प्रमाण पाये गये हैं, जहां पर बोस नोमाडिकस (Bos nomadicus) तरह के गौवंश को लगभग 8000 ईसा पूर्व पालतू बनाया गया था (Desai 1978)।

इन तीनों में कभी कोई भी समानता नहीं रही और समय बीतने के साथ-साथ तीनों अलग-अलग प्राणी बन गए हैं। देशी गाय, जेबू (Zebu cattle) परिवार का प्राणी है। ‌‌‌भारतीय उपमहाद्वीप की गाय व यूरोप की गायों में निम्नलिखित अन्तर देखने को मिलते हैं:

  1. आकार (Conformation): भारतीय उपमहाद्वीप की गायों का अगला हिस्सा चौड़ा होता है जबकि यूरोपियन गाय के पुट्ठे चौड़े होते हैं।
  2. सिर ‌‌‌का ऊबार (Poll): भारतीय उपमहाद्वीप की लगभग सभी गायों के सिर के ऊपर सींगों के बीच में सिर पर ऊबार होता है जबकि यूरोपियन गायों में यह समतल होता है।
  3. आँखें (Eyes): भारतीय गायों की आँखें ऊबरी हुई नहीं होती हैं जबकि यूरोपियन गायों की आँखें थोड़ी बाहर निकली हुई होती हैं।
  4. सींग (Horns): भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली गायों के सींग आकार में बड़े व भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जबकि यूरोपियन गायों के सींग छोटे आकार के होते हैं।
  5. कान (Ears): देशी गायों के कान बड़े व लटकते हुए जबकि यूरोपियन गायों के छोटे व गोलाई लिये हुए होते हैं।
  6. गलकम्बल (Dewlap): देशी गायों में गर्दन के नीचे गलकम्बल पूरी तरह विकसित जबकि यूरोपियन गायों में अनुपस्थित या बहुत कम विकसित होता है।
  7. ‌‌‌ढाण्ठ (Hump): देशी गायों में कंधे के ऊपर पूरी तरह विकसित ढाण्ठ होती है जबकि यूरोपियन गायों में अनुपस्थित या बहुत कम विकसित होती है।
  8. सुण्डी (Navel): अधिकतर भारतीय मूल की नस्लों की गायों में पेट के नीचे सुण्डी की चमड़ी ढीली होती है जबकि यूरोपियन गायों में यह अनुपस्थित या बहुत कम विकसित होती है।
  9. ‌‌‌पूँछ (Tail): देशी गायों की पूँछ अपेक्षाकृत लम्बी होती है।
  10. खुर (Hooves): देशी नस्ल की गायों के खुर सीधे एवं नस्लानुसार छोटे से बड़े आकार के होते हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायों में ऐसी कोई भिन्नता दिखायी नहीं देती है।
  11. लेवटी (Udder): भारतीय उपमहाद्वीप की गायों की लेवटी शरीर के साथ कसकर जुड़ी हुई होती है जबकि यूरोपियन नस्ल की गायों की लेवटी शरीर के साथ ढीली सी जुड़ी हुई होती है।
  12. स्वर तन्त्र (Vocal cord): देशी नस्ल की गायों का स्वर तन्त्र यूरोपियन गायों की तुलना में पूरी तरह विकसित होता है।
  13. त्वचा (Skin): देशी गायों की त्वचा यूरोपियन नस्ल की गायों की तुलना में ज्यादा लचीलापन होता है।
  14. शरीर पर बाल (Hairs on skin): देशी नस्ल की गायों के शरीर पर कम सघन एवं पतले रोयेदार बाल होते हैं जबकि यूरोपियन गाय के शरीर पर अपेक्षाकृत ज्यादा बाल होते हैं।
  15. पसीने की ग्रंथियाँ (Sweat glands): देशी गायों की त्वचा में पसीने की ग्रन्थियाँ ज्यादा एवं बड़ी होती हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायों में बहुत कम ग्रन्थियाँ होती हैं (Nay and Hayman 1956)।
  16. ‌‌‌आंतें (Intestine): यूरोपियन नस्ल की गायों की तुलना में भारतीय मूल की गायों की आंतों की लम्बाई ज्यादा होती है।
  17. उष्णीय सहनशीलता (Heat tolerance): भारतीय उपमहाद्वीप की गायें उष्णीय तनाव के प्रति सहनशील हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायों की उष्णीय सहनशीलता अच्छी नहीं है (Bradley et al. 1996, Hansen 2004)।
  18. आर्द्रता के प्रति सहनशील: भारतीय उपमहाद्वीप की गायों में यूरोपियन गायों की तुलना में वातावरण की आर्द्रता के प्रति सहनशीलता बहुत अच्छी देखने को मिलती है (Hansen 2004)।
  19. ‌‌‌चिचड़ी प्रतिरोधकता (Tick resistance): भारतीय नस्ल की गायों में यूरोपियन गायों की तुलना में चिचड़ियों के प्रति अधिक सहनशीलता होती है (Cunningham and Syrstad 1987)।
  20. रोग प्रतिरोधकता (Disease resistance): यूरोपियन गायों की तुलना में भारतीय गायों में विभिन्न प्रकार के रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है।
  21. कृषि कार्य: भारतीय मूल की गायों के नर विभिन्न प्रकार के कृषि कार्यों के अनुकूल हैं जबकि विदेशीमूल की गायों के नरों का उपयोग कम किया जाता है।
  22. जीवन निर्वाह (Life subsistence): देशी नस्ल की गायें कम पौष्टिक चारे पर भी गुजारा कर सकती हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायें कम पौष्टिक चारे पर गुजारा नहीं कर सकती हैं (Cunningham and Syrstad 1987)।
  23. ‌‌‌पानी की आवश्यकता (Water intake): यूरोपियन नस्ल की गायों को भारतीय गायों की तुलना में पीने के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है।
  24. उत्पादक काल (Productive life): भारतीय नस्ल की गायें अपने जीवन काल में 8 – 10 बार बच्चे को जन्म देकर दुग्ध उत्पादन करने में सक्षम हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायें केवल 4 – 6 बार की दुग्ध अवस्था में आती हैं।
  25. दुग्ध केसीन (Milk casein): देशी गायों में पाये जाने वाला केसीन टाइप – 2 का होता है जबकि यूरोपियन गायों में यह टाइप – 1 का होता है (Truswell 2005)।
  26. मातृत्व (Maternity): भारतीय नस्ल की गायें ममतामयी होती हैं इसलिए उनके ‌‌‌बच्चे को उससे अलग करना मुश्किल होता है जबकि यूरोपियन नस्ल की गायों के बच्चे को प्रसव के तुरन्त बाद माँ से अलग कर सकते हैं।
  27. बैठने की जगह: यह भी देखने में आता है कि भारतीय मूल की गायें साफ-सुथरी जगह पर बैठती हैं जबकि यूरोपियन नस्ल की गायें इस बारे में कोई प्रवाह नहीं करती हैं।
और देखें :  कॉन्टेजियस बोवाइन प्लयूरो निमोनिया: (सीं.बी.पी.पी.)

संदर्भ

  1. Bradley D.G., et al., 1996, “Mitochondrial diversity and the origins of African and European cattle,” Proceedings of the National Academy of Sciences; 93(10): 5131-5135.
  2. Cunningham E.P. and Syrstad O., 1987, “Types and breeds of tropical and temperate cattle. Crossbreeding Bos indicus and Bos taurus for milk production in the Tropics,” FOA, Rome. Paper, 68.
  3. Desai M.D., 1978, “Marketing of cattle and buffaloes in Gujarat, Chapter 1: Cattle and Buffaloes,” Thesis Submitted to Sardar Patel University for the Degree of Ph.D. (Commerce).
  4. Hansen P.J., 2004, “Physiological and cellular adaptations of zebu cattle to thermal stress,” Animal reproduction science; 82-83: 349-360.
  5. MacHugh D.E., et al., 1997, “Microsatellite DNA variation and the evolution, domestication and phylogeography of taurine and zebu cattle (Bos taurus and Bos indicus),” Genetics 146(3): 1071-1086.
  6. Nay T. and Hayman R.H., 1956, “Sweat glands in Zebu (Bos indicus L.) and European (B. taurus L.) cattle. I. Size of individual glands, the denseness of their population, and their depth below the skin surface,” Australian Journal of Agricultural Research; 7(5): 482-92.
  7. Truswell A.S., 2005, “The A2 milk case: a critical review,” European journal of clinical nutrition; 59(5): 623-631.
और देखें :  पशुओं में लंगडा बुखार ('ब्लैक क्वार्टर' या Black Quarter या BQ)

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और देखें :  पशुओं में गलघोटू रोग: लक्षण एवं बचाव Haemorrhagic Septicaemia (HS)

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