पशुओं में टीकाकरण भ्रान्तियाँ एवं आवश्यकता

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ईलाज से परहेज अच्छा’, लोकोक्ति ये हम सभी भली–भांति परिचित हैं। हम सभी एक अन्य लोकोक्ति ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गई खेत’ से भी परिचित हैं। इन लोकोत्यिों से यहां पर यह अभिप्राय है कि ‘समय रहते यदि कोई शुभ कार्य का निपटान कर लिया जाता है तो सबसे अच्छा रहता है’। इन्हीं में से एक है ‘टीकाकरण। टीकाकरण का महत्तव आज हम सभी जानते हैं जिनके उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियों पर काबू पाया जाता है। लेकिन कुछ पशुपालक ऐसे भी हैं जो इसके प्रति बेरूखी अपनाकर अपना और दूसरे पशुपालकों का नुकसान करते हैं। उनके विचार में कुछ मिथक इस प्रकार हैं:

क्या टीकाकरण जरूरी है

आज के वैज्ञानिक युग में बहुत से पशुपालक टीकाकरण से अनभिज्ञ हैं। पशुपालक टीकाकरण के महत्व को नहीं जानते हैं। ‌‌‌पशुपालकों में टीकाकरण के प्रति कई भ्रान्तियाँ देखने को मिलती हैं।

हमारे पशुओं में कभी बीमारी नहीं आई

कई बार देखने में आता है कि कई पशु पालक अपने पशुओं को टीकाकरण नहीं करवाते हैं। इनका तर्क होता है कि हमारे पशुओं में कभी बीमारी नहीं आई इसलिए टीके लगाने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन बीमारी कभी भी कही भी आ सकती है। टीकाकरण एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसके तहत पशुधन को रोग मुक्त रखना एक लक्ष्य व जरूरी है।

दूधारू पशु का दूध कम हो जाएगा

अक्सर यह यह देखने में आया है कि टीकाकरण के बाद दूधारू पशु का दूध कम हो जाता है जिससे पशुपालक अपने दूधारू पशुओं का टीकाकरण नहीं करवाते हैं। वास्तव में टीकाकरण के कारण पशु का दूध कम नहीं होता है दूध टीकाकरण के समय उत्पन्न डर के कारण होता है।

ग्याभिन पशु का गर्भपात हो जाएगा

टीकाकरण से ग्याभिन का गर्भपात नहीं है, यह अन्य कारणों जैसे कि डर से तनाव, ज्यादा गर्मी या सर्दी के कारण या अन्य संक्रमण रोगों के कारण पशु का गर्भपात होता है। इसलिए टीकाकरण ग्याभिन पशुओं को अवश्य लगवाना चाहिए।

हमारे पशुओं का टीकाकरण हुआ था लेकिन रोग गया है

कई बार टीकाकरण होने के बाद भी पशुओं में रोग आ जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि कई बार पशुपालक दूधारू या ग्याभिन पशु का टीकाकरण नहीं करवाता है जिससे वह पशु तो हमेशा बीमार आने की संभावना में रहता ही है उसके साथ उन पशुओं का खतरा भी बढ़ जाता है जिनको टीकाकरण हुआ है। यही संभावना उन परिवारों से भी रहती है जिन्होने अपने पशुधन का टीकाकरण नहीं करवाया।

मुफ्त का टीका है, क्या काम करता होगा

यह बहुत से लोगों में आम धारण है कि फ्री का टीका रोगप्रतिरोधकता उत्पन्न नहीं करता है। यह एक मिथक है। पशुओं में बीमारी आने से केवल उस पशुपालक का ही नुकसान नहीं होता है बल्कि सरकारी राजस्व को भी हानि होती है। हर साल सरकारी राजस्व को अरबों रूपयों का नुकसान पशुओं की बीमारियों से होता है। इसलिए पशुपालक अपने पशुओं का टीकाकरण करवाकर सरकारी राजस्व बढ़ाने में सहभागिता निभाएं।

बारबार टीकाकरण

बार–बार टीकाकरण से पशु बार–बार तनाव में आते हैं जिससे दूधारू पशुओं का दूध उत्पादन भी प्रभावित होता है। इसलिए पशुपालक पशुधन में बार–बार टीकाकरण करवाने में हिचकिचाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए बहुरोग प्रतिरोधक टीके (जैसे कि गलगोटू एवं मुँह–खुर का टीका) अब उपलब्ध हो चुके हैं।

और देखें :  बकरियों को होने वाले मुख्य रोग, उनकी पहचान एवं उपचार कैसे करें

गाँव के मुख्य लोगों की टीकाकरण में रूची होना

आमतौर देखने में आता है कि गाँव के कुछ प्रतिनिधि भी टीकाकरण में सहयोग ही नहीं देते बल्कि अपने पशुओं को भी टीकाकरण नहीं करवाते हैं। गाँव के मुख्य लोगों को चाहिए कि टीकाकरण को सफल बनाने के टीकाकरण करने वाले कर्मचारी का सहयोग दें ताकि टीकाकरण के माध्यम से राजकोषीय राजस्व को बढ़ाया जा सके।

पशु चिकित्सक के साथ दुर्व्यवहार

यह भी देखने में आता है कि जो पशु पालक अपने पशुओं का टीकाकरण नहीं करवाते तो पशु चिकित्सक उनको समझाता है तो पशुओं का टीकाकरण करने वाले चिकित्सक से दुर्व्यवहार भी करते हैं, लड़ने को तैयार हो जाते हैं। ये पशुपालक जब पशुओं का टीकाकरण नहीं करवाना होता है तो अधिकारी को बोल देते हैं कि हमारे पशुओं का टीकाकरण हो चुका है। या कई बार जब पशुओं में समस्या आ जाती है तो कहते हैं कि हमारे गाँव या घर में तो कोई भी टीका लगाने आता ही नहीं है।

‌‌‌पशुपालकों को समझना चाहिए कि पशु स्वास्थ्य देखभाल पशुपालन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। टीकाकरण एक राष्ट्रीय पशु प्रतिरक्षा योजना है जिसके तहत हर पशु को टीकाकरण आवश्यक है। इसलिए सभी पशुपालकों को टीकाकरण करते समय पशु चिकित्सक का सहयोग करना चाहिए ताकि हमारा पशुधन रोगमुक्त रहे।

टीकाकरण में बाधाएं

बेशक, आज हम 21वीं सदी के आधुनिक दौर में हैं, फिर भी पशुओं में टीकाकरण के दौरान निम्नलिखित धारणाएं अभी भी बाधक बनी हुई हैंः

  1. टीकाकरण के बारे में अधिकतर पशुपालकों के ज्ञान में कमी पायी जाती है जिसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकतर पशुपालक स्वयं यह नहीं कहते हैं कि मेरे पशुओं को टीका लगाया जाये और केवल तभी लगाया जाता है जब पशु स्वास्थ्य कर्मी उनके द्वार पर जाकर उनको समझा कर या जबरदस्ती उनके पशुओं को टीका लगाता है।
  2. अधिकतर पशुपालक समझते हैं कि टीका लगने से दूधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन कम होता है लेकिन वह यह नहीं समझते हैं कि यह अस्थायी रूप से 2–4 दिन के लिए ही कम होता है, जो समय रहते धीरे–धीरे पूरा भी हो जाता है।
  3. कुछ पशुपालक समझते हैं कि ग्याभिन पशुओं को टीका लगने से गर्भपात होता है लेकिन सच्चाई यह है कि गर्भपात के अन्य बहुत से कारण हैं न कि टीकाकरण।
  4. कुछ पशुपालक समझते हैं कि टीकाकरण से पशुओं में बांझपन की समस्या होती है जबकि बांझपन के अन्य कारण हैं।
  5. हां, टीकाकरण के बाद कुछ पशुओं में टीका लगाये जाने के स्थान पर सूजन हो जाती है लेकिन यह सूजन रोधी दवा से ठीक हो जाता है और दूसरा यह कि यदि पशुपालक भलीभंाति पशु को नियंत्रित करके टीका लगावाते हैं तो उनके पशुओं में सूजन आती ही नहीं है।
  6. हां, टीकाकरण के बाद कुछ पशुओं को बुखार हो जाता है जो ज्वररोधी दवा देने से ठीक हो जाते हैं।
  7. कुछ पशुओं में टीकाकरण के बावजूद भी रोग आ जाता है जिस के लिए सरकार उच्च स्तरीय गुणवत्ता की उपलब्धता के लिए सदैव कार्य करती रहती है।
  8. कुछ पशुपालक, अपने पशुओं का टीकाकरण न करवाने बचने के लिए कुशल पशु स्वास्थ्य कर्मी न होने की बात कहते हैं लेकिन सच्चाई यह होती है कि टीकाकरण केवल कुशल पशु स्वास्थ्य कर्मी ही करता है।
  9. हां, टीकाकरण केवल स्वस्थ पशुओं का ही किया जाता है लेकिन उसके ठीक होने के बाद पशुपालक उसका टीकाकरण करवाने में सहयोग नहीं देते हैं।
  10. कुछ पशुपालक टीका भण्डारित करने के लिए उपलब्ध बुनियादी ढांचे में कमी बताते हैं जबकि सरकार और पशु स्वास्थ्य कर्मी इस बात का पूर्ण ध्यान रखते हैं।
और देखें :  मध्यप्रदेश के देवास जिले में पशुओं में मुंहपका-खुरपका रोग का टीकाकरण कार्यक्रम प्रारंभ

टीकाकरण की आवश्यकता

टीकाकरण के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है कि भार सरकार पोलियो उन्मूलन अभियान के अंतर्गत चलाये गये टीकाकरण से भारत में बच्चों में पोलियों होने की दर पर लगभग विजय प्राप्त कर ली गई है। आज कोरोना काल में हर व्यक्ति वैक्सिन अर्थात टीके बात कर रहा है कि कब कोरोना का टीका आयेगा और इस विश्व व्यापी महामारी से निजात मिलेगी। और पोलियो उन्मूलन अभियान के अंतर्गत कहा भी जाता है कि एक भी बच्चा छूटा तो सूरक्षा चक्र टूटा। टीकाकरण के उपरांत रोग होने की संभावना न के बराबर होती है।

भारतवर्ष में प्रति वर्ष खरबों रूपये का नुकसान असामयिक पशु मृत्यु से प्रत्यक्ष रूप में हो जाता है। इसके अतिरिक्त, पशुओं में अलाक्षणिक रोग होने की स्थिति में पशुओं का अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित होने से देश को राजकोषीय धनहानि होती है जिसका सीधा असर विकास में बाधा होने पर आम जनता को होता है। स्मरण रहेः

  • पशुओं में गलगोटू रोग के कारण प्रति वर्ष 5255 करोड़ रूपये की धनहानि होती है (Singh et al. 2014)।
  • मुँहखुर रोग से भारत में हर वर्ष लगभग 12000–14000 हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड़ता है (Singh et al. 2013)। यह रोग मनुष्यों को भी हो सकता है।
  • भारतीय पशुधन में, पशुओं में ब्रुसेलोसिस के कारण प्रति वर्ष 20400 करोड़ रुपये की औसत हानि होती है (Singh et al. 2015) जबकि 62.75 करोड़ रूपये की हानि मनुष्यों में होने के कारण जाती है (Singh et al. 2018)।
  • वैश्विक स्तर पर रेबीज के कारण लगभग 61000 मनुष्यों की मृत्यु हो जाती है (WHO 2013) जिन में से एक–तिहाई संख्या भारत की है। इसके अतिरिक्त रेबीज के कारण प्रति वर्ष लगभग 8.6 अरब रूपये की हानि विश्व में होती है। हालांकि, पशुओं में रेबीज से होने वाली मौतों का आंकड़ा तो नहीं है लेकिन लक्षणोपरांत इसका कोई भी उपचार नहीं है और पशुपालकों को पशुधन हानि का सामना करना पड़ता है।

इनके अतिरिक्त अन्य बहुत से संक्रामक रोग हैं जिन से राष्ट्र को प्रतिवर्ष खरबों की हानि होती है।

कुछ रोगों में पशुओं की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है तो अधिकतर में उनकी मृत्यु ही होती है। इसलिए टीकारकण इन रोगों की रोकथाम सबसे कारगर नियंत्रण है। सभी पशु पालकों को पशु रोगों के प्रति जागरूकता दिखाने की आवश्यकता है तभी इन रोगों की रोकथाम संभव है।

स्मरणार्थ विचार

  • पशु पालक अपने सभी पशुओं (चार महीने की उम्र से ऊपर) को यह टीका अवश्य लगवाएं। यह टीका 6 माह के अंतराल पर वर्ष में दो बार लगाया जाता है।
  • हर पशु को 6 महीने में एक बार पेट के कीड़ों की दवाई पशु चिकित्सक की सलाहानुसार अवश्य देनी चाहिए।
  • नये खरीदे गये पशुओं को कम–से–कम दो सप्ताह तक अलग बांध रखना चाहिए और उनके खाने–पीने का प्रबंधन भी अलग ही रखना चाहिए।
  • पशुओं को पूर्ण आहार देना चाहिए जिसमें खनिज मिश्रण एवं विटामिन की मात्रा पूर्ण रूप से दी जानी चाहिए।

 

 

अपने दूधारू एवं ग्याभिन पशुओं में भी टीकाकरण अवश्य करवाएं। यदि टीकाकरण के बाद गर्दन में सूजन आ जाती है तो टीकाकरण वाले स्थान पर बर्फ के टुकड़े से मालिश करें।

पशुओं में पहले रोग नहीं आया
ये आपका सौभाग्य है,

लेकिन वहम् न पालें कि रोग नहीं आया तो
टीकाकरण क्यों करवाएं अपने पशुओं का।

याद रखिये एक भी पशु छूटा तो सुरक्षा चक्र टूटा,
आपका तो नुकसान होगा ही लेकिन

दूसरों के नुकसान के भी भागीदार आप बनेंगें।

प्रचलित मिथक

और देखें :  वन हेल्थ कार्यक्रम के अंतर्गत पशुजन्य (Zoonotic) रोगों के नियंत्रण में पशु चिकित्साविदो का योगदान

हरियाणा राज्य में प्रतिवर्ष अप्रैल एवं अक्तुबर माह में रोमंथी पशुओं खासतौर पर गाय एवं भैसों को मुँह–खुर पका एवं गलगोटू रोग से बचाने के लिए टीकाकरण किया जाता है और अप्रैल माह में ग्रीष्म ऋतु होने के कारण वातावरण का तापमान भी बढ़ने लगता है। इसी समय गेहूँ की फसल कटाई भी शुरू हो जाती है। गेहूँ की सूखी फसल को जलने से बचाने के लिए ग्रामीण आँचल में बिजली की आपूर्ति भी कम हो जाती है जिस कारण खेत में खड़ी चारे की फसल खासतौर पर बरसीम को भरपूर मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण उसमें विषाक्तता बढ़ने लगती है। अतः यह वह समय है जब पशुओं में टीकाकरण किया जाता है और चारे के खेतों में पानी की कमी हो जाती है। पशुओं में बरसीम विषाक्तता होने की परिस्थिति में आमतौर पर पशु स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा लगाये टीके का नाम हो जाता है जबकि अक्तुबर माह में लगाये जाने वाले इसी टीके के दौरान पशुओं में बरसीम जैसी विषाक्तता के लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं। अतः पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि टीकाकरण अभियान को इस विषाक्तता से जोड़कर न देखें और अपने पशुओं को घातक रोगों से बचाने के लिए पशु स्वास्थ्य कर्मियों का सहयोग करें।

संदर्भ

  1. Singh, B., Prasad, S., Verma, M.R. and Sinha, D.K., 2014. Estimation of economic losses due to haemorrhagic septicaemia in cattle and buffaloes in India. Agricultural Economics Research Review, 27(347–2016–17135), pp.271–279.
  2. Singh, B., Prasad, S., Sinha, D.K. and Verma, M.R., 2013. Estimation of economic losses due to foot and mouth disease in India. Indian J. Anim. Sci, 83(9), pp.964–970.
  3. Singh, B.B., Dhand, N.K. and Gill, J.P., 2015. Economic losses occurring due to brucellosis in Indian livestock populations. Prev Vet Med, 119(3–4), 211–5.
  4. Singh, B.B., Khatkar, M.S., Aulakh, R.S., Gill, J.P.S. and Dhand, N.K., 2018. Estimation of the health and economic burden of human brucellosis in India. Prev Vet Med, 154, 148–155.
  5. WHO, 2013. World Health Organization Expert Consultation on Rabies. Second report: Technical Report Series 982. Geneva, Switzerland. Pp. 8–67.

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