पशुओं में रोगों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है जैव सुरक्षा

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सार

पशुधन में निम्न जैव सुरक्षा के कारण पशुओं में अपरिहार्य स्वास्थ्य और उत्पादन होता है जिस कारण पशुपालकों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। पशुपालन में सफलता इसके जैव सुरक्षा प्रबंधन पर निर्भर करती है। पशु स्वास्थ्य, उत्पादन और मानव स्वास्थ्य को उचित बनाए रखने के लिए अच्छा जैव सुरक्षा प्रबंधन एक महत्वपूर्ण साधन है जो बेहतर खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी यह एक श्रेष्ठ साधन है। अनुचित जैव सुरक्षा प्रबंधन के कारण पशुधन में कई संक्रमण और बीमारियां होती हैं जैसे कि मुंह-खुर पका रोग, ब्रुसेलोसिस, क्षय रोग, थनैला, अल्पकालिक बुखार, लिस्टरियोसिस, रिंडरपेस्ट, चेचक, टेटनस, कॉफ स्कॉर्ज, दाद इत्यादि रोगों से भारी आर्थिक हानि होती है लेकिन साथ ही बहुत सी बीमारियां पशुओं से मनुष्यों को होती हैं। हालांकि, संगठित और सुस्थापित पशुधन फार्म के पशुपालक इन समस्याओं का ध्यान रखते हैं फिर भी बढ़ते औद्योगिकीकरण, पशु आधारित प्रोटीन की मांग को पूरा करने के साथ-साथ पशुओं और मनुष्यों में बढ़ते संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए जैव सुरक्षा पर बल दिया जाना आवश्यक एवं महत्पूर्ण है।

परिचय

पशुधन फार्म पर रोग फैलने से आर्थिक व्यवहार्ययता के साथ-साथ डेयरी फार्म के पशुओं के स्वास्थ्य व कल्याण पर कुप्रभाव पड़ता है। प्रभावी जैव सुरक्षा रोगजनकों के जोखिम को कम करके रोग फैलने की संभावना और पशु स्वास्थ्य एवं किसी भी फार्म की लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव को भी कम करते हैं। जैव सुरक्षा किसी भी डेयरी फार्म, क्षेत्र, प्रदेश या देश में संक्रामक रोगों के जोखिम को कम करने या रोकने के लिए एक सरल प्रबंधन प्रणाली है। जैव सुरक्षा किसी भी फार्म पर बाहरी स्त्रोतों से आये नये रोगाणुओं के प्रवेश को रोकती है। जब संक्रामक रोगजनक जैव सुरक्षा तोड़कर फार्म के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं तो उनकी गतिविधियों को रोकने के लिए जैव नियंत्रण (बायोकंटेंमेंट) कार्य करता है। इस प्रकार जैव सुरक्षा के साथ-साथ जैव रोकथाम भी किसी भी फार्म पर बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैव सुरक्षा रोगजनकों के प्रवेश को रोकती है तो जैव रोकथाम फार्म में घुसे/फैले रोगजनकों को नियंत्रित करने में सहायता करती है।

पशु स्वास्थ्य त्रिक

सभी संक्रामक रोग, पशु और उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता, रोगजनक व पर्यायवरण के बीच परस्पर क्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के तौर पर पशुपालक टीकाकरण से पशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कुछ बीमारियों को नियंत्रित कर सकते हैं। पशुपालक कुछ रोगजनकों को फार्म में घुसने से रोक कर बीमारियों को कम कर सकते हैं। यदि संक्रामक रोगजनक पहले से ही फार्म पर मौजूद हैं तो पशुपालक इन रोगजनकों का उन्मूलन या नियन्त्रण कर सकते हैं।

जैव सुरक्षा के लाभ

हालाँकि, जैव सुरक्षा के नियम अपनाने से प्रत्यक्ष लागत, अतिरिक्त मानव शक्ति, प्रत्यक्ष लाभ में कमी, दीर्घकालीक योजना बनाने से खर्चे में बढ़ोतरी अवश्य होती है लेकिन इसमें निम्नलिखित संभावित शामिल हैं:

  1. स्वस्थ पशुधन व उच्च उत्पादकता: उचित जैव सुरक्षा रखरखाव से पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा होगा फलस्वरूप अच्छा लाभ होता है। यह फार्म के अंदर एक स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में भी मदद करता है।
  2. नुकसान कम होने से अधिक लाभ: कम रोग, कम कीट-पतंगे और पशु परिसर के अंदर अवांछित परिस्थितियों का बहुत सीमित प्रवेश फार्म में जोखिम को कम करता है।
  3. रोगों का शीघ्र पता लगाना और उनका प्रबंधन करना: यदि पशु परिसर में बीमारी है तो उनका आसानी से समय पर पता लगा कर समय पर उपयुक्त उपचार किया जा सकता है।
  4. लागत कम करना: बीमारियों, कीटों और अवांछित परिस्थितियों के मामले में उनकी प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान और प्रबंधन निश्चित रूप से उनके उन्मूलन के लिए लागत में कटौती करता है और उपचार की अवधि को कम भी करता है।
  5. सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सुरक्षा: मनुष्यों में लगभग 60 प्रतिशत से भी अधिक संक्रामक रोग प्राणीरूजा रोग अर्थात पशुओं से मनुष्यों में रोग का कारक होते हैं। अतः उचित जैव सुरक्षा होने से मनुष्यों में होने वाले संभावित प्राणीरूजा रोगों को कम किया जा सकता है।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रमाणपत्र लेने के लिए जरूरी

जैव सुरक्षा जोखिम कारक

डेयरी फार्मों के लिए सबसे महत्वपूर्ण जैव सुरक्षा जोखिम कारक मूल पशु परिसर से अन्य स्थान और पशुओं की खाद्य सामग्री है। अन्य संभावित जोखिमों में पानी, वाहनों और लोगों द्वारा रोगाणुओं का संचरण हैं।

  1. मूल पशु परिसर से अन्य पशु (ऑफ-प्रिमाइसेस): इसमें वे सभी पशु शामिल हैं जो संबंधित डेयरी फार्म के अलावा अन्य गतिविधियों में रहे हैं जैसे कि बाजार, प्रदर्शनी, खेतों या अन्य फार्मों में अस्थायी आवास और पशु चिकित्सालय में उपचाराधीन। हर बार जब कोई पशु डेयरी के अलावा किसी अन्य परिसर के संपर्क में आता है, तो वह रोगजनकों से संक्रमित हो सकता है।
  2. पशुओं की खाद्य सामग्री: बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण चरागाहें या बहुत से स्थानों पर समाप्त हो गई हैं या उनका आकार छोटा हो गया है जिस कारण पशुओं की अधिकतर खाद्य सामग्री अन्यत्र स्थान से खरीदी जाती है और इसलिए उनके साथ पशु परिसर में संक्रमण भी आ जाते हैं जिनसे पशुओं में बीमारी का जोखिम बना रहता है।
  3. पानी: पानी के संबंध में दो प्रणालियों पर अलग से विचार करने की आवश्यकता है – जल स्रोत और जल वितरण प्रणाली। दोनों रोग पैदा करने वाले कारकों से दूषित हो सकते हैं जैसे कि पानी की छींटों से विषाक्त पदार्थ या मल संदूषण (अन्य पशुधन, वन्यजीव और पक्षी की बिष्टा) से रोगजनकों पशुओं में संक्रामक रोग फैल सकते हैं।
  4. वाहन: कई वाहन एक पशु परिसर से दूसरी परिसर में पशुओं के लिए कई उत्पादों की वितरण प्रणाली (जैसे कि वीर्य स्ट्रा वितरण, तरल नाइट्रोजन, स्वच्छता उत्पाद) और आवश्यक सेवाओं (जैसे कि पशु चिकित्सा, कृत्रिम गर्भाधान) या पशुओं (जैसे कि नकारा पशु, नर पशु एवं मृत पशुओं के शवों) को ले जाने, और दूध को एकत्रित करने के लिए उपयोग किये जाते हैं। ऐसे सभी वाहन रोगाणुओं के संग्राहक और संचरण जोखिम के कारक होते हैं।
  5. कर्मचारी: जिन डेयरी फार्मों ने कर्मियों को काम पर रखा है और डेयरी फार्म से बाहर रहते हैं, उन्हें अन्य पशुओं से रोगजनकों के संपर्क में आने का जोखिम होता है, और ये कर्मी पशुओं में संक्रमण का कारण हो सकते हैं।
  6. आगंतुक: आगंतुकों में पड़ोसी और मित्र शामिल हो सकते हैं जो आकस्मिक यात्रा पर होते हैं या पशु चिकित्सक, पशु खाद्य सामग्री विक्रेता या उपकरण डीलर जो पेशेवर एक फार्म से दूसरे फार्म पर आते-जाते हैं। आगंतुकों के बीच सामान्य कड़ी यह है कि वे अनजाने में हानिकारक रोगाणुओं को एक फार्म से दूसरे फार्म में ला सकते हैं। उन आगंतुकों के साथ जोखिम औा भी अधिक बढ़ जाता है जो नियमित रूप से अपने पेशे के अनुरूप एक फार्म से दूसरे फार्म पर आते-जाते रहते हैं।

जैव नियंत्रण जोखिम

एक से अधिक प्रबंधन तंत्र जैव नियंत्रण जोखिम पैदा कर सकती हैं। मादाओं और उनके बच्चों के बीच रोगजनकों के संचरण के जोखिम पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण होंगे। अधिकांश डेयरी फार्मों में, पशुओं के चार विशिष्ट समूह होते हैं- बच्चे, ओसर बहड़ियां/झोटीयां, दूध देने वाली मादाएं और शुष्क मादाएं। नवजात बच्चों और प्रसवकालिन मादाओं की प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होती है; अतः बीमार होने की संभावना भी अधिक होती है। आमतौर पर प्रबंधन तंत्र से जुड़े कारकों का वर्णन इस प्रकार है:

  1. नवजात बच्चे: डेयरी फार्म पर नवजात बच्चों को पशुओं का सबसे संवेदनशील समूह माना जाता है।
  2. बच्चों को बेकार दूध पिलाना: कई डेयरी फार्मों पर पशुओं के बच्चों को बेकार दूध पिलाया जाता है। बेकार दूध जो मानव उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं होता है, आमतौर वह दूध होता है जो ताजा ब्याई हुई मादाओं और उपचाराधीन मादाओं से प्राप्त होता है। उपचाराधीन मादाओं के दूध में रोगजनक (जैसे कि मायकोप्लाज्मा, स्टैफाइलोकोकस ऑरियस, या साल्मोनेला जीवाणु) और रोगाणुरोधी औषधियां होती हैं।
  3. बच्चों को झूठा चारा खिलाना:
  4. बच्चों का समूहन:

जोखिम मूल्यांकन

किसी भी फार्म पर एक प्रभावी जैव सुरक्षा कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए, एक जोखिम विश्लेषण योजना की आवश्यकता होती है। इसके लिए पशुओं में जैव सुरक्षा मूल्यांकन और आगंतुक जोखिम मूल्यांकन इत्यादि करना अतिआवश्यक होता है।

जैव सुरक्षा मूल्यांकन

स्तर जैव सुरक्षा के स्तर का विवरण
1 विशिष्ट रोगजनक मुक्त फार्म व सभी जैविक साधनों पर कड़ी निगरानी
2 पशुओं का कोई प्रवेश या पुन: प्रवेश नहीं लेकिन मौजूदा पशुओं का दोबारा प्रवेश (जैसे कि प्रदर्शनी के बाद)
3 नये पशुओं का प्रवेश (ज्ञात स्वास्थ्य प्रमाण) और उनको अलग रखना व संगरोध
4 नये पशुओं का प्रवेश (ज्ञात स्वास्थ्य प्रमाण) और उनको अलग नहीं रखना व कोई संगरोध नहीं
5 नये पशुओं का प्रवेश (कोई स्वास्थ्य प्रमाण नहीं) और उनको अलग नहीं रखना

आगंतुक जोखिम मूल्यांकन

  कम जोखिम मध्यम जोखिम उच्च जोखिम
प्रतिदिन आगंतुकों की संख्या किसी अन्य फार्म से कोई संपर्क नहीं एक या कभी-कभी एक से ज्यादा नियमित रूप से कई फार्मों के दौरे या पशुओं की नीलामी में जाना
सुरक्षात्मक कपड़े साफ जूते पहनना – एक बाड़े के लिए एक जोड़ा साफ जूते पहनना – एक बाड़े के लिए एक जोड़ा नहीं होना सुरक्षात्मक कपड़े नहीं पहनना।
पशु स्वामित्व पशु नहीं रखना या प्रत्यक्ष स्वयं देखभाल नहीं करना अन्य प्रजातियों की भी देखरेख करना एक जैसी प्रजातियों की विभिन्न श्रेणियों की देखरेख
पशुओं के साथ संपर्क कोई संपर्क नहीं कम-से-कम या कोई सीधा संपर्क नहीं पशुओं से नियमित सीधा संपर्क
जैव सुरक्षा का ज्ञान समझना व उसका डेरी उद्योग के लिए विस्तार करना बुनियादी जैव सूरक्षा के बारे में पता हो लेकिन उसका समर्थन नहीं करता हो जैव सुरक्षा का कम ज्ञान
और देखें :  पशुओं में क्षयरोग (ट्यूबरक्लोसिस) एवं जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं बचाव

जैव सुरक्षा जोखिम प्रबंधन आवश्यक क्यों?

पशुपालक लगातार जोखिम उठाते रहते हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि एक छोटा सा जोखिम बहुत बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। वे सोचते हैं कि नये पशु खरीदने से समस्या नहीं आएगी। ऐसा करने से जोखिम कई गुणा हो सकता है। नये पशु खरीदने से फार्म पर पहले हफ्ते में ही मृत्युदर बढ़ सकती है। दूध के कम होने, पशुओं की मृत्यु होने और चिकित्सा पर होने वाले खर्च से फार्म की समस्या और ज्यादा बढ़ सकती है।

संक्रमण (जैसे कि जॉनी’ज डिजिज) का रोगोद्भवन काल (इनक्यूबेशन पीरियड) लंबा होने से, कई बार नये पशु खरीदने के बाद, समस्या साल-छ: माह तक नहीं आती है। जब साल-छ: माह बीत जाने के बाद समस्या आती है तब तक ऐसी बीमारियाँ फार्म पर अपना जमावड़ा कर लेती हैं। कई बार सही जानकारी न होना भी जैव सुरक्षा को भ्रमित करता है। बहुत से पशुपालक जानते ही नहीं कि कौन सी प्रक्रियाएं उपयोगी व व्यवहारिक हैं।

पशु चिकित्सकों व पशुपालकों में अच्छा तालमेल न होना इस प्रकार की समस्याएं पैदा करता है। बहुत से पशुपालक पशु चिकित्सक से सलाह किये ​बिना ही पशु खरीदते हैं। पशुपालक द्वारा नये पशु खरीदने के बाद जब पशु बीमार होते हैं, पशु चिकित्सक को तब पता चलता है कि उसने फार्म पर पशुओं की संख्या बढ़ा ली है। खास बात यह है कि सभी पशु चिकित्सक इस प्रकार की सलाह देने के लिए भी सक्षम नहीं होते हैं।

जैव सुरक्षा को बढ़ावा देना

कुछ पशुपालकों में जैव सुरक्षा को समझने व अपनाने की ग्रहणशीलता होती है तो कुछ में नहीं। ‘जिस तन लागे सो तन जाने’ यानि कि वे पशुपालक ही इसको ग्रहण करने की शुरूआत करते हैं जिनको काफी नुकसान हो चुका होता है, वे ही जैव सुरक्षा के जोखिमों को समझ सकते हैं व लाभ उठाते हैं। निम्नलिखित योजना जैव सुरक्षा प्रबंधन में पशु चिकित्सको की सहायता सिद्ध हो सकती है।

  1. पशुपालकों व सम्पर्क अधिकारीयों के ग्रुप से बातचीत करनी चाहिए।
  2. जैव सुरक्षा प्रबंधन के लाभ उनको बताये जाने चाहिए।
  3. पशुपालकों की अपने फार्म की जैव सुरक्षा आंकलन करवा चाहिए।
  4. महत्त्वपूर्ण रोग फैलने के तुरन्त बाद जैव सुरक्षा प्रबंधन के बारे में उनको विस्तार से समझाना चाहिए।
  5. संबंधित विभाग को अपर्याप्त जैव सुरक्षा के बारे में विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाषित करना चाहिए।
  6. जैव सुरक्षा के जोखिमों व लाभ को समझने वाले पशुपालकों को पेषकष करनी चाहिए।
  7. पशुपालन से जुड़े ​बिक्री करने वाले व अन्य संबंधित व्यक्तियों के साथ भी सलाह मशवरा करना चाहिए।
  8. पशु हस्पतालों संबंधित दूकानों पर पोस्टर लगवाने चाहिए।

जैव सुरक्षा की श्रेणियां

जैव सुरक्षा को निम्नलिखित तीन प्रमुख श्रेणीयों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. वैचारिक जैव सुरक्षा

वैचारिक जैव सुरक्षा का मतलब है कि आप अपने पशुओं को बचाने के लिए क्या करना चाहते हैं। इसमें भविष्य में पशुओं को रोगमुक्त करने के नये तरीकों पर विचार किया जाता है। इसमें विचार किया जाता है कि पशुशाला किस जगह हो व उस जगह के लिए कैसी परिवहनीय व्यवस्था करनी होगी।

  1. सरंचनात्मक जैव सुरक्षा

सरंचनात्मक जैव सुरक्षा का मतलब है कि कैसे आप अपने विचारों को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचा बनाते हैं। इसमें फार्म का आधुनिकीकरण व भवन निर्माण कार्य आता है। आप एक नया पशु आवास बनाते हैं तो क्या आपने बाहरी पशुओं से बचने के लिए बाड़/चारदीवारी बनायी है या नहीं। इसके अतिरिक्त पशु आवास की उत्तर-पश्चिम दिशा, उसमें वायु प्रवाह और उसमें पशुओं के लिए स्थान पर ध्यान दिया जाता है।

  1. परिचालनात्मक जैव सुरक्षा

परिचालनात्मक जैव सुरक्षा का अर्थ है कि आप अपने पशुओं का बीमारियों एवं रोगाणुओं से बचाने के लिए दैनिक पद्धतियाँ बनाते हैं। इसमें साफ-सफाई व कीटाणुशोधन, पशुशाला में जाने से पहले कपड़े व जूते बदलना, पशुओं का टीकाकरण, जैव सुरक्षा से संबंधित रिकॉर्ड इत्यादि शामिल होते हैं। इसकके साथ ही संगरोधन, बीमारी की जाँच, टीकाकरण, पृथक-करण और पशु आवास की स्वच्छता जैसे अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है।

रोग नियन्त्रण के उपाय

‘ईलाज से परहेज अच्छा’ जग विधित है। इसका सीधा सा मतलब है कि हम सावधानी बरतें कि बीमारी न आए ताकि उसके ईलाज की जरूरत ही न पड़े। डेरी फार्म पर प्रबंधन इस प्रकार हो कि पशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम न हो। सम्भावित जैव सुरक्षा के नियमों के टूटने को पहचानना व समझना बुनियादी जैव सुरक्षा प्रबंधन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। बुनियादी जैव सुरक्षा संचालन प्रक्रियाओं में निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए।

1. डेरी स्थल का चुनाव

डेरी के लिए सभी सम्भावित स्थलों व स्थानों का चुनाव करते समय उनका पूरा विवरण प्राप्त करना चाहिए। उन स्थानों का नक्सा, चाहे वह नक्षा हाथ से बनाया हुआ हो, बना लेना चाहिए। उस नक्षे में मौजूदा भवन, सड़कें, नदियाँ, अन्य सम्पत्तियाँ, पानी की निकासी, कुँए, पड़ौसी व अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी दर्शानी चाहिए। डेरी के लिए जगह का चयन करने के लिए अन्य उप्लब्ध स्रोतों को भी तलाशना चाहिए ताकि उस जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त हो सके। इन रेखांकित किये गये स्थानों में से सम्भावित सही जगह का ही चुनाव करना चाहिए। उन सभी स्थलों को छोड़ देना चाहिए जो निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता हों

  • पानी: सारा साल पीने योग्य, साफ-सफाई व अन्य जरूरतों के लिए भरपूर मात्रा में पानी उप्लब्द्ध होना चाहिए। हर रोज एक दूधारू गाय/भैंस को लगभग 150 – 200 लीटर ताजा पानी चाहिए।
  • निकासी: किसी भी प्रकार के पानी की निकासी उस जगह से उचित होनी चाहिए। उस जगह पर भूमि कटाव नहीं होना चाहिए।
  • आवश्यक क्षेत्रफल: आवश्यकतानुसार फार्म की हर गतिविधि के लिए जगह का क्षेत्रफल पूरा होना चाहिए।
  • रिहायसी मकानों से उचित दूरी: डेरी के लिए जगह स्थानीय ​बिल्डिंग कोड व प्रदूषण की आवश्यकताओं को पूरा करती हो। पारीवारिक आवासीय स्थान से उचित दूरी पर हो ताकि उनको शोर व दुर्गन्ध की समस्या न हो।
  • पहुँचायक मार्ग: चयनित स्थान पर विभिन्न गतिविधियों के आवागमन के लिए मार्ग ठीक हो। सड़क की चौड़ाई 12 फीट या इससे ज्यादा होनी चाहिए।
  • बिजली आपूर्ति: फार्म पर विभिन्न गतिविधियाँ चलाने के लिए ​बिजली की आवश्यकता होती है। इसलिए चयनित जगह पर ​बिजली आपूर्ति का होना आवश्यक है।
  • गोबर के लिए जगह: गोबर-पेशाब को संचित करने वाले खड्डे की भूमि की स्तह का पानी का लेवल एक फीट से ज्यादा होना चाहिए। यह खड्डा या जगह एक किलोमीटर से ज्यादा दूर नहीं होनी चाहिए। यह जगह रिहायशी मकानों के नजदीक नहीं होनी चाहिए।
  • सही मिट्टी: चयनित भूमि स्थान रेतीला नहीं होना चाहिए।
  • हवा का नियन्त्रण: चयनित जगह हवा को नियंत्रित करने वाली होनी चाहिए।
  • सुरक्षा: चयनित जगह आग व चोरी से सुरक्षा प्रदान करती हो। इस जगह पर आगंतुक कम आते हों। डेरी शुरू होने के साथ ही मुख्य गेट लगा देना चाहिए व गेट पर सुरक्षित क्षेत्र/वर्जित क्षेत्र/जीवाणु रहित क्षेत्र पट्टी लगानी चाहिए। चयनित जगह के लिए सड़क बनानी चाहिए व यह जगह सार्वजनिक सड़क या रिहायशी ईलाके से भी ​दिखायी देनी चाहिए।

2. पशु समूहों के लिए अलगअलग आवासीय प्रबंधन

अलग-अलग उम्र के पशुओं की बीमारीयाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं व उनमें रोगप्रतिरोधक क्षमता भी भिन्न-भिन्न होती है। उनको नियंत्रित करने के लिए फार्म पर पशुओं को समूहों में रखना उचित होता है।

  • मातृत्व बाड़ा व नवजात बाल पशु प्रबंधन पद्धति को फार्म पर लागू करना चाहिए।
  • बाल पशुओं को दूध छुड़ाने से पहले अन्य सभी पशु समूहों से अलग रखें।
  • प्रत्येक बाल पशु को अलग से एक बाड़े में रखना चाहिए।
  • 4 से 8 महिने की उम्र तक बाल पशुओं को अन्य औसर पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • एक वर्ष तक के पशुओं को प्रजनन योग्य औसर पशुओं से अलग रखना चाहिए।
  • शुष्क पशुओं को दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं से अलग रखें।
  • संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने के लिए फार्म पर पद्धति लागू करनी चाहिए।
  • थनैला रोग से ग्रसित दूधारू पशुओं को अन्य के दुग्ध दोहन के बाद दुहना चाहिए व दुग्ध दोहन के बाद उनके बर्तनों को साफ करना चाहिए।
  • प्रतिस्थापित किये गये औसर पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखे।
  • हर पशु को उसके अनुसार पर्याप्त जगह दी जानी चाहिए।
  • पशुओं को चारा व पानी के लिए भी पर्याप्त जगह उपलब्द्ध करवानी चाहिए।

3. आहार प्रबंधन

आमतौर पर, ग्रामीण आंचल में पशुओं का चारा अपने खेत में ही उगा कर खिलाया जाता है। लेकिन, शहरी क्षेत्रों या बड़े डेयरी फार्मों पर पशुओं का चारा बाजार या पड़ोसी किसानों से खरीदकर पशुओं को खिलाया जाता है। अधिकतर फीड बाजार से ही खरीदा जाता है। पशुओं का चारा और फीड हमेशा प्रतिष्ठित और विश्वसनीय स्रोत से ताजा, स्वच्छ रूप से तैयार फीड, चारा और अन्य खाद्य आहारीय सामग्री खरीदना चाहिए या संतुलित आहार के कुछ चरणों का पालन करके इसे अपने घर या फार्म पर तैयार करना सर्वोत्तम उपाय है।

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पशु को जब भी उसकी जरूरत के अनुसार भरपूर मात्रा में पोषक तत्व प्रदान नहीं किये जाते हैं तो उनमें आहारीय तनाव उत्पन्न होता है। पशु के आवश्यक पोष्क तत्वों में शुष्क पदार्थ, प्रोटीन, ऊर्जा, खनिज तत्व, विटामिन एवं पानी हैं।

कई बार आवश्यक चारे की उपलब्धता की कमी से पशु को शुष्क पदार्थ व आवश्यक पोष्क तत्व नहीं मिलते। ऐसी स्थिती में पूरक चारे का भण्डारण आवश्यक हो जाता है जिससे इन तत्वों की पूर्ति हो सके। कई बार इस पूरक चारे की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है, इसलिए उत्पादन क्षमता को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त अनुपूरक के रूप में अन्य खाद्य पदार्थ भी पशुओं को उपलब्द्ध करवाने चाहिए।

अपर्याप्त प्रोटीन व ऊर्जा से पशुओं की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है व वह तनावपूर्ण स्थिती में भी आ जाता है। यह स्थिती उस कार जैसी होती जिसमें उसको ठण्डा करने लिए ईंधन, जल व व शीतक नहीं डालते व कार खराब होती है। ऐसी स्थिती में पशु की एक या एक से ज्यादा शारीरिक प्रक्रियाएं बन्द या मन्द हो जाती हैं जिनमें से पशु की प्रजनन क्षमता सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। दूधारू पशुओं को दुग्ध उत्पादन के लिए समय पर आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करना बहुत जरूरी है। यह महत्वपूर्ण पोषक तनाव को कम करता है।

4. साफसफाई व कीटाणुशोधन

गोबर रोगाणुओं की विकास-वृ​द्धि का अच्छा स्रोत है। य​दि फार्म पर पशु(ओं) में रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती तो उनको संक्रमण होने का जोखिम रहता है। गोबर के साथ-साथ अन्य प्रकार की गन्दगी भी रोगाणुओं का अच्छा स्रोत है। इसलिए फार्म पर रोगाणुओं को नियंत्रित करने के लिए उचित गोबर प्रबंधन  होना चाहिए। साफ-सफाई रखने से रोगाणु नियंत्रित रहते हैं। फार्म पर रोगाणुओं को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर कीटाणुशोधन भी किया जाना चाहिए।

  • कृषि अपशिष्ट जैसे अनुपयोगी, बासी, कुचला हुआ चारा और फीड, पशु अपशिष्ट जैसे- गोबर, पानी के साथ मूत्र मिश्रित, शव इस श्रेणी में आते हैं। फार्म परिसर के बाहर उचित दूरी पर अलग-अलग ठोस और तरल अपशिष्ट निपटान होना चाहिए।
  • फार्म में बचे गोबर और अन्य जैविक सामग्री को उपयोगिता के अनुसार बायोगैस उत्पादन, खाद और वर्मीकंपोटिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • तरल जैविक कचरे को खेती योग्य कृषि क्षेत्रों में कम से कम प्राथमिक उपचार के बाद सिंचाई के साथ सीधे उपयोग किया जा सकता है।
  • सूर्य की किरणें: सूर्य की किरणें प्राकृतिक तौर पर कीटाणुनाशक का कार्य करती हैं और ही यह शरीर में विटामिन डी संश्लेषण का भी अच्छा स्त्रोत हैं। अतः पशुओं का कुछ देर मंद धूप में भी बांधना आवश्यक है। पशु गृह को साफ पानी के साथ धोने के बाद हवा एवं सूर्य की किरणों से सूखने का प्रावधान उसमें होना चाहिए। इसी तरह चरागाह की जुताई करने के बाद उसे परती छोड़ा जा सकता है, इस अवधि के दौरान रोगजनकों को सूर्य द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।
  • स्नान कराना: पशुओं के शरीर पर लगी धूल-मिट्टी लगी उनके स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालती है, अतः उनको स्वच्छ पानी से नहलाने से यह हट जाती है। इसके साथ ही इस घूल-मिट्टी में छिपे कीटाणु भी हट जाते हैं।

साफ-सफाई करने और स्वच्छ जल से धोने के बाद पशुगृह को सुखाने के लिए छोड़ दें। पशुगृह को सुखाने और कीटाणुशोधन करने के लिए सूर्य की रोशनी अथवा धूप अत्यधिक कारगर है। पशुगृह को बाजार में उपलब्ध कीटाणुनाशकों जैसे कि ब्लीचिंग पाउडर,बोरिक एसिड, कास्टिक सोडा, क्रेसोल्स, चूना, फिनोल, क्वाटरनरी अमोनियम कंपाउंड, साबुन अथवा कपड़े धोने वाला सोडा के घोल से भी साफ करना चाहिए।

5. रोगी पशु(ओं) को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना

अस्वस्थ पशुओं को बीमारी व उसके उपचार के दौरान अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग पशृ-गृह में रखना चाहिए।

6. संगरोध (क्वारेंटाइन)

फार्म पर नये पशुओं का खरीदकर लाना या प्रदर्शनी से वापस लौटे पशु फार्म ज्यादा जोखिम को बढ़ाते हैं। आगन्तुक फार्म पर नई बीमारियों के संवाहक का कार्य करते हैं या फार्म पर मौजूदा संक्रमण को ज्यादा फैलाने में सहायक होते हैं। इसलिए फार्म पर जब भी नये पशु खरीदकर लाये जाते हैं या प्रदर्शनी से वापस लौटे पशुओं को फार्म के अन्य पशुओं से अलग संगरोध गृह में कुछ ​दिनों के लिए रखना चाहिए।

  • रहने, चारा खाने व प्रसुति के लिए अलग-अलग आवास आदर्श होते हैं।
  • रहने व चारा खाने के लिए अलग-अलग आवास स्वीकार्य होते हैं।
  • अन्य पशुओं से सम्पर्क रोकना (न्यूनतम स्वीकार्य)
  • संगरोध क्षेत्र से अन्य पशुओं के क्षेत्र में गोबर की आवाजाही नहीं होनी चाहिए।
  • 21 से 30 ​दिन की अवधि आदर्श रहती है।
  • जल्दी रोग का पता लगाने के लिए निरीक्षण व जाँच करनी चाहिए।
  • संगरोधित दूधारू पशुओं का दुग्ध दोहन अन्य दूधारू पशुओं के बाद करना चाहिए।
  • नये खरीदे गये पशुओं को अन्य पशुओं के साथ मिलाने पहले रोग के लिए परीक्षण करना चाहिए।

7. अपने ही पशुओं को रखना (मेन्टेन ए क्लोजड हर्ड)

पशुओं में रोग को कम करने का पहला तरीका तो यही है कि अपने ही फार्म के पशुओं को प्रतिस्थापित किया जाए। ऐसे फार्म बहुत कम ही कम होते हैं जो अपने ही पशुओं को फार्म पर प्रतिस्थापित करते हैं। पशुपालकों को निम्नलिखित जरूरतों के लिए पालना करनी चाहिए।

  • पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए अपने ही पशुओं को प्रतिस्थापित करना चाहिए।
  • एक समूह के पशुओं को दूसरे समूह के पशुओं से सम्पर्क रोकना चाहिए।
  • कृत्रिम गर्भाधान ही पशुओं में करना चाहिए।
  • परदर्शनी में पशुओं को नहीं ले कर जाना चाहिए।
  • आगंतुकों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए।

8. पशुओं की खरीद के स्रोत का पता लगाना व प्रयोगशाला परीक्षणों की सहायता लेना

पशु खरीदते समय बहुत से पशुपालक सावधानियाँ बरतते हैं। वे पशुओं में कम से कम रोग के लिए या रोग रहित पशु रखने के लिए प्रयोगशाला परीक्षण करवाते हैं। पशु खरीदते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • थनैला रोग को कम करने लिए गर्भित या औसर पशु खरीदने चाहिए।
  • खरीदने वाले पशुओं के टीकाकरण के बारे में रिकॉर्ड जरूर देखने चाहिए।
  • ज्ञात स्वास्थ्य प्रमाणित स्रोत से ही पशु खरीदने चाहिए।

9. नये पशु खरीदना

फार्म पर नये पशु खरीदने से पहले सम्भावित खतरों को समझना व उनको कम करने के लिए अच्छी योजना पर विचार करना चाहिए। सबसे पहले संभावित रोग जैसे कि मुँह-खुर रोग, जोह्नीज रोग, थनैला, श्वसन व अन्य रोगों की पहचान के बारे में पता होना चाहिए। पशु खरीदने से पहले इन रोगों से संबंधित कुछ प्रारम्भिक परीक्षण अवश्य करने चाहिए। यह पता होना चाहिए कि फार्म पर नये पशु आने के बाद क्या करना चाहिए। आपके फार्म पर नये पशु आने से पहले आपके फार्म के पशुओं का टीकाकरण अवश्य पूर्ण होना चाहिए। पशुओं को खरीदने के मानक दण्ड जरूर अपनाने चाहिए। नये पशु खरीदते समय निम्नलिखित जैव सुरक्षा संबंधित सावधानियाँ ध्यान में रखनी चाहिए:

  • नये व मौजूदा पशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आपके पशुओं का टीकाकरण होना चाहिए, उनको उत्कृष्ठ पोशण खिलाना चाहिए, उनके कुछ प्रारम्भिक परीक्षण जरूर करने चाहिए।
  • यदि संभव हो तो नये पशुओं का थनैला व वायरल दस्त, चमड़ी के रोग, जोह्नीज रोगों के लिए परीक्षण जरूर होना चाहिए।
  • यदि प्रारम्भिक परीक्षण करने में असमर्थ है तो खरीदे गये नये पशुओं को अलग रखें व उनका दुग्ध दोहन अन्य दूधारू पशुओं के बाद करें व उनके दूध की प्रयोगशाला में जाँच करवानी चाहिए।

10. टीकाकरण

आज के आधुनिक युग में य​दि हम देखें तो एक बात जरूर सामने आती है कि ‘ईलाज से टीकाकरण जरूरी‘। टीकाकरण भी परहेज का एक सत्य सिद्ध उदाहरण है। टीकाकरण वर्ष में कब-कब होना चाहिए। इसका जवाब मुश्किल है क्योंकि प्रबंधन, रोग का प्रसार, जलवायु और पशु-पोषण हर क्षेत्र में भिन्न है। इसलिए टीकाकरण के लिए अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से मिलकर ही पशु का सही टीकाकरण संभव है। कार्यरत पशु चिकित्सक ही एक सही टीकाकरण कार्यक्रम उस एरीया के लिए तैयार कर सकता है। आप अपने पशुधन का टीकाकरण करवा कर उसको विभिन्न जानलेवा बीमारियों से बचा सकते हैं। कुछ घातक बीमारीयाँ जैसे कि गलगोटू, मुँह-खुर का रोग जिनसे आप भली-भांति परिचित है। जिससे न केवल पशु की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है बल्कि कई बार खर्च करने के उपरान्त पशु की जान भी चली जाती है।

11. परजीवी नियन्त्रण

अन्त:परजीवी पशु की अन्तड़ीयों, फेफड़े, जीगर व शरीर के अन्य भागों में रहते हैं। ये परजीवी जिन्दा रहने के लिए हमारे भोजन का मुख्य भाग खाते हैं जिससे शरीर में आवष्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसलिए परजीवीयों से बचाव के लिए समय-समय पर पशुओं को दवाई देनी चाहिए।

पशुपालकों में एक धारणा है कि यदि कॉफ 20-25 ​दिनों के उपरान्त चारा खाने लग जाता है तो पशुपालक यह समझ लेते हैं कि अब ये परजीवी खत्म हो गये हैं। इसलिए जूणों की दवाई की जरूरत नहीं है। इस प्रकार की धारणा गलत है। शरीर में परजीवी कभी भी पैदा हो सकते हैं। इसलिए इन परजीवीयों को समाप्त करने के लिए दवाई अवश्य देनी चाहिए।

इसी प्रकार बाह्यपरजीवी जैसे कि चीचड़ीयाँ, जूएँ, मक्खी, मच्छर व घुनीय कीट इत्या​दि को नियंत्रित करने के लिए पशुओं को पशु चिकित्सक की सलाहनुसार दवाई का इस्तेमाल करना चाहिए। यदि समयानुसार इन परजीवीयों से पशुओं को बचाएंगें तो इनके द्वारा फैलने वाले घातक रोगों से पशुधन को बचाया जा सकता है।

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12. व्याययाम

नियमित व्यायाम का अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाने के साथ-साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में सहयोग करता है। अतः पशुओं को खुले बाड़े में छोड़ना उनके स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

13. मौसम के कुप्रभाव से बचाव

पशुओं में होने वाले संक्रमणों में मौसम का विशेष प्रभाव होता है। वर्ष के बदलते मौसमों में खासतौर से अत्यधिक गर्मी, सर्दी से बचाने का विशेष प्रबंध किया जाना चाहिए।

14. तनाव से बचाना

तनाव एक विशिष्ठ प्रतिक्रिया है जिसमें तनाव पैदा करने वाले कारक शरीर में सामान्य सन्तुलन में बाधा पैदा करते हैं। इससे पशुओं की सामान्य शारीरिक कार्यप्रणाली में बदलाव आता है ताकि पशु तनाव से लड़कर स्वस्थ रह सके। यदि तनाव ज्यादा होगा तो पशु इसके अन्‍​र्तगत बीमार हो जाएगा। ग्याभिन पशुओं का गर्भपात हो जाता है। उनकी विकास वृ​द्धि अवरूध हो जाती है। अत: किसी भी तरह के तनाव जैसे कि पर्यावरणीय तनाव (उष्मीय तनाव एवं शीतकीय तनाव), आहारीय तनाव, हैंडलिंग (डर) तनाव, परिवहनीय या विपणनीय तनाव से पशु को मुक्त रखना चाहिए।

उष्मीय तनाव से बचाव

  • पर्याप्त में पीने के लिए ताजा, ठण्डा पानी उपलब्द्ध करवाएं
  • पर्याप्त में छाया उपलब्द्ध करवाएं
  • पशु गृह में पर्याप्त मात्रा में ताजी हवा का परिसंचरण व आवागमन होना चाहिए।
  • पशु गृह में पशुओं की ज्यादा भीड़ नहीं होनी चाहिए।
    • फव्वारों का इस्तेमाल भी पशु आवास में करना चाहिए।

शीतकीय तनाव से बचाव

  • सर्दीयों में इष्टतम तापमान पशु आवास में होना चाहिए।
  • बाल पशुओं को थोड़ा ज्यादा तापमान चाहिए।
  • वातावरण के अनुसार पशुओं को ठण्डी हवाओं से बचाव करना चाहिए।
  • जरूरत अनुसार पशु आवास को उष्मा प्रदान की जा सकती है।

15. मृत पशुओं का निष्तांतरण

मृत पशु का शव लोगों व अन्य पशुओं के लिए खतरा हो सकता है। ये मिट्टी, पानी व हवा को दूषित करते हैं और इनसे प्रथम प्राथ्मिकता के आधार पर निपटने की आवश्यकता होती है। संदूषण (कंटेमिनेशन) व रोग प्रसार के खतरे को कम करने के लिए

  • मृत्यु के 48 घण्टे के अन्दर-अन्दर पशु शव सहित उसके बिछावन, दूध, चारे व गोबर का निष्तांतरण कर देना चाहिए।
  • शव को उठाते समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनने चाहिए।
  • शव उठाने के बाद मृत पशु की जगह को साफ व कीटाणुरहित करना चाहिए।

16. वन्यजीव जैव सुरक्षा

यह फीड व फीड भण्डारण, जल स्रोत व पशुगृह से संबंधित हैं जिसमें इनको वन्यजीवों के संपर्क से बचाने की आवश्यकता होती है।

17. लोगों व पालतू पशुओं का नियन्त्रण

लोगों के जूते, हाथ, कपड़े सीधेतौर पर संदूषण फैलाते हैं। संदूषण को कम करने के लिए सुरक्षा प्रबन्ध इस प्रकार होने चाहिए

  • फार्म पर कार्य करने वाले लोगों, आगंतुकों व ड्राईवरों को सुरक्षा नियमों के बारे में अवगत करवाएं व उनको इन नियमों बारे सहयोग देने लिए प्रेरित करें।
  • आगंतुकों को पशु आवास व चारा क्षेत्र में जाने में जाने की मनाही होनी चाहिए।
  • मुख्य गेट व पशुशाला पर मोटे अक्षरों में ‘वर्जित क्षेत्र’ लिखा होना चाहिए व उसके साथ आपका सम्पर्क सूत्र भी लिखा होना चाहिए।
  • आगंतुकों को पशुओं को छूने की मनाही होनी चाहिए।
  • पशुओं से आगंतुकों के सम्पर्क को कम करने के लिए आगंतुक एरीया होना चाहिए।
  • आगंतुकों को फार्म प्रवेश व छोड़ने के समय अपने जूते धोने के लिए प्रेरित करें।
  • आगंतुकों के लिए फार्म पर प्लास्टिक या एक बार के उपयोग हेतू जूते होने चाहिए।
  • फार्म के अन्दर प्रवेश स्थल पर कीटाणुनाशक घोल का फुट-बाथ होना चाहिए।
  • दुग्ध दोहने व बीमार पशुओं को हाथ लगाने के बाद फार्म पर कार्य करने वालों को कीटाणुनाशक से हाथ धोने के लिए प्रेरित करें।
  • प्रसवकालिन पशुओं की देखरेख करते समय फार्म पर कार्य करने वालों को सुरक्षात्मक कपड़े पहनने के लिए उत्साहित करना चाहिए।
  • फार्म पर कुत्ते-बिल्लियों के आवगमान को नियंत्रित करना चाहिए।
  • फार्म पर मौजूद कुत्ते-बिल्लियों का आपके एरीया के अनुसार रेबीज व अन्य बीमारियों से संबंधित टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • फार्म पर उपयोग होने वाले कपड़ों को डिटर्जेंट या कीटाणुनाशक के साथ धोना चाहिए।

18. यातायात पर नियन्त्रण

वाहनों के टायर व उनके नीचे लगी दूषित सामग्री फार्म पर फैलाते हैं। वाहनों के द्वारा संदूषण को रोकने के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिए:

  • दुग्ध वाहन के लिए अलग से रास्ता होना चाहिए।
  • फीड के रास्ते साफ होने चाहिए।
  • पशुओं के लिए से रास्ता होना चाहिए व पशु दुग्ध वाहन के रास्ते में नहीं आने चाहिए।
  • पड़ोसियों के साथ खाद के उपकरण न बदलें।
  • पड़ोसी से लिए गये उपकरणों को साफ व जीवाणुरहित करना चाहिए।

आमतौर फार्म पर फीड या फीड का एरीया गोबर/खाद में उपयोग होने वाले उपकरणों से दूषित होती है। इस प्रकार के जोखिम को करने के लिए

  • खाद में उपयोग होने वाले उपकरणों को फीड में उपयोग न करें।
  • फीड व खाद के क्षे़त्र को चिन्हित करना चाहिए।
  • पशुशाला इस प्रकार से तैयार की होनी चाहिए कि पशु खुरलियों को पार न कर सकें।

19. आहार व आहार के उपकरण

फार्म की जैव सुरक्षा निर्धारित करते समय आहार व आहार में उपयुक्त होने वाले उपकरणों के संदूषण पर ध्यान देना चाहिए। आहारीय जैव सुरक्षा में निम्नलिखित शामिल किया जाना चाहिए।

  • गुणवत्तीय उपकरण ही खरीदने चाहिए।
  • आहार को संदूषण से बचाने के लिए उचित रसायनों का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • आहार को खाद के संदूषण से बचाना चाहिए।
  • पशुओं की अलग-अलग श्रेणीयों के लिए अलग-अलग आहार का भण्डारण किया जाना चाहिए।
  • आहार को उचित नमी पर काटकर उनका भण्डारण किया जाना चाहिए।
  • पानी की गुणवत्ता पर निगरानी रखनी चाहिए व उचित साफ पानी व्यवस्था

20. उपकरणों की साफसफाई

रोग एक पशु से दूसरे पशुओं या एक फार्म से दूसरे फार्म पर परोक्ष रूप से फार्म पर उपयोग होने वाले उपकरणों से फैलता है। इस प्रकार रोग फैलने को नियंत्रित किया जा सकता है।

  • वाहनों को पशुओं के क्षेत्र में न जाने दें।
  • वाहनों को अन्दर व बाहर व उसके टायरों को अच्छी तरह से कीटाणुनाशक से धोना चाहिए।
  • रोगी पशु का ईलाज करते समय हर बार नई सूई का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
  • सींगरहित व खुरों के औजारों को उपयोग के बाद कीटाणुनाशक से साफ करना चाहिए।
  • किसी से उधार लेने के बजाय अपने ही उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।
  • बाल पशुओं को दूध पिलाने के बाद स्तनपान बोतलों को भली प्रकार साफ करना चाहिए।
  • पानी पीने वाली नालियों, बर्तनों खुरलीयों को भी अच्छी प्रकार साफ करना चाहिए।
  • मृत पशुओं के उपयोग में किये गये उपकरणों को जीवाणुनाशक से साफ करना चाहिए।

21. गर्भाधान

प्राकृतिक रूप से सांड द्वारा गर्भाधान करवाने से रोगी मादाओं से सांड के माध्यम से रोग दूसरे स्वस्थ पशुओं में फैलता है। कृत्रिम गर्भाधान के उपयोग से यौन संचारित रोगों का जोखिम कम होता है। कृत्रिम गर्भाधान केवल सरकार द्वारा प्रमाणीकृत सांडों के वीर्य से ही करवाना चाहिए। स्मरण रहे कि भारत के सभी राजकीय पशु चिकित्सालयों और औषधालयों में प्रमाणीकृत सांडों के वीर्य से ही कृत्रिम गर्भाधन किया जाता है जिनका समय-समय पर विभिन्न संक्रामक रोगों के लिए टेस्ट किया जाता है। इसलिए पशुओं में प्राकृतिक गर्भाधान के बजाय राजकीय चिकित्सा संस्थान से ही पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।

सारांश

यह सर्वविधित है कि ‘उपचार से बेहतर रोकथाम है’, इसी तरह जैव सुरक्षा भी एक प्रकार का निवारक प्रबंधन है जिसका फार्म अर्थात पशु परिसर में ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि संक्रामक रोग और अन्य बीमारियों से होने वाले नुकसान से पहले ही जोखिम से बचा जा सके। विफलताओं और बिना के देरी जैव सुरक्षा रखरखाव का कड़ाई से पालन किया जाना निश्चित रूप से स्वास्थ्य, उत्पादन और वित्तीय नुकसान को तो कम करता ही है लेकिन साथ ही इससे प्राणीरूजा संक्रामक रोगों के नियंत्रण की भी संभावना बढ़ जाती है। इन छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदमों के माध्यम से बचत निश्चित रूप से लाभप्रद डेयरी सहित पशुपालन व्यवसाय को गति और बढ़ावा देने और प्राणीरूजा रोगों से बचाने में सक्षम है।

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