पशु के ब्याने के पश्चात गर्भाशय का संक्रमण: (प्यूरपेरल मेट्राइटिस)

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पशु के ब्याने के बाद, जेर रुकने के कारण गर्भाशय का संक्रमण अर्थात प्यूरपैरल मेट्राइटिस हो सकती है। पशु के ब्याने के बाद भूरे रंग का बिना बदबूदार स्राव सामान्य रूप से आता है। अतः पशु के ब्याने के पश्चात गर्भाशय का संक्रमण बहुत सामान्य बात है। संक्रमण के कारण दुग्ध उत्पादन एवं पशु के अगली बार समय से गर्भित होने पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है, क्योंकि इससे पुनरावृति प्रजनन/ फिरावट या रिपीट ब्रीडिंग की समस्या होने की अत्याधिक संभावना रहती है।

संक्रमण की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करती है:

  1. गर्भाशय में स्राव की मात्रा की अधिकता।
  2. गर्भाशय और पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता।
  3. जीवाणुओं के पोषण हेतु बचे पदार्थों की मात्रा अर्थात गर्भाशय में रुके हुए जेर आदि की मात्रा।

लक्षण

  1. सामान्यता गर्भाशय का संक्रमण होने पर ब्याने के पश्चात बदबूदार तरल स्राव गर्भाशय से मूत्र मार्ग द्वारा बाहर निकलता है।
  2. गर्भाशय से अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का आना।
  3. दूध का कम होना।
  4. पशु का कम चारा खाना एवं पानी पीने में कमी होना।
  5. गुदा एवं योनि मार्ग द्वारा परीक्षण करने पर पशु को असहनीय दर्द होना।
  6. गर्भाशय का सामान्य आकार से बड़ा होना।
  7. शरीर का तापमान सामान्य से अधिक या कम होना।
  8. पशु में लैमिनाइटिस के कारण लंगड़ापन होना।

व्हाईटसाइड टेस्ट

यह गर्भाशय के संक्रमण की सरल एवं उपयोगी जांच विधि है जिससे संक्रमण एवं उसकी तीव्रता का पता आसानी से लगाया जा सकता है। फील्ड कंडीशन के लिए यह एक उपयुक्त एवं कारगर टेस्ट है।

विधि

  • गर्मी के समय पशु के योनि द्वार से निकले श्रॉव की 3 से 5 मिली मात्रा को 5% सोडियम हाइड्रोक्साइड के घोल में एक परखनली में मिलाकर उसे 80 से 100 डिग्री सेंटीग्रेड के गर्म पानी में रख दें। तत्पश्चात टेस्ट ट्यूब पर साधारण पानी डालकर ठंडा करें।
  • यदि 30 से 40 मिनट बाद या इससे भी कम समय में ही धीरे धीरे घोल का रंग पीला होने लगता है इसका मतलब संक्रमण का होना निश्चित है।
  • अधिक पीला रंग होने पर गंभीर संक्रमण होने की प्रबल संभावना होती है।
  • यदि पीला रंग नहीं आता है तो यह समझना चाहिए कि संक्रमण नहीं है।
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उपचार

किसी योग्य पशु चिकित्सक से ही उपचार कराएं। उपचार का मकसद संक्रमण को रोकना तथा गर्भाशय की अंदरूनी परत यानी एंडोमेट्रियम को वापस सामान्य अवस्था में लाना ताकि सफल गर्भाधान हो सके। मवाद की जीवाणु जांच द्वारा सेंसटिविटी टेस्ट करा लेना चाहिए ताकि उपयुक्त प्रतिजैविक औषधि के प्रयोग से संक्रमण को जल्दी समाप्त किया जा सके।

  • पोवीडीन आयोडीन, 5% घोल को 50ml आसुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालें।
  • अथवा ऑक्सीटेटरासाइक्लिन आई यू 60ml गर्भाशय में डालें।
  • अथवा 4 ग्राम लिकसेन आई यू 60ml आसुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालें।
  • अथवा 3 ग्राम ऑक्सीटेटरासाइक्लिन बोलस 50-100 मिली मैट्रोनिडाज़ोल मैं घोलकर गर्भाशय में 3 से 5 दिन तक डालें।
  • जहां गर्भाशय का आकार बढ़ गया हो, पायोमेट्रा की स्थिति हो ऐसे में पी जी एफ टू अलफा, देना चाहिए तथा इसके साथ प्रतिजैविक औषधि भी देनी चाहिए।
  • गर्भाशय शोथ के उपचार के लिए एंडोमेट्रियम को उत्तेजित करना भी आवश्यक है ताकि गर्भाशय की सक्रियता बढ़ सके। इसमें लूगोलस आयोडीन के 5% घोल का 5ml 100 मिलीलीटर शुद्ध आशुत जल में मिलाकर गर्भाशय में डालना चाहिए।
  • प्रतिजैविक औषधियां यदि सिस्टमिक रूट से दें तो अधिक फायदेमंद हो सकता है।
  • साथ-साथ सहयोग के लिए निम्न औषधियां भी अवश्य दें इंजेक्शन विटामिन ए 600000 आई यू एक दिन छोड़कर कम से कम 5 बार दें।
  • इंजेक्शन विटामिन ई सेलेनियम 150 एमजी जिंक सल्फेट 5 एमजी मुंह द्वारा दें (यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्तेजित करती है) मेट्राइटिस/ गर्भाशय शोथ, की स्थिति में उपरोक्त प्रतिजैविक औषधियों का प्रयोग करें।
  • उपरोक्त प्रतिजैविक औषधियों से उपचार के बाद अगली बार पशु के गर्मी में आने पर शराव देखने पर उपचार के असर का पता चल जाएगा।
  • यदि गर्भाशय सामान्य हो जाता है अर्थात संक्रमण समाप्त हो जाता है तो शराव में मवाद नहीं दिखेगी और यदि गर्मी के समय शराव में मवाद मिली हुई है तो वापस इसी प्रतिजैविक थेरेपी को सिस्टमिक तरीके से देने की आवश्यकता होती है।
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बचाव

  • वास्तव में गर्भाशय में संक्रमण पशु घर की साफ सफाई की कमी के कारण अधिक होता है।
  • ब्याने के समय व बाद में पशु घर व पशु की अच्छी सफाई रखें।
  • ब्याने के समय हाथों की मदद से बछड़ा खींचकर निकालने , कठिन प्रसव, जेर को हाथ से निकालने आदि के बाद कम से कम 3 दिन तक इंट्रायूटराइन प्रतिजैविक औषधि का अवश्य उपयोग करें।
  • यदि पशु ब्रूसेलोसिस कैंपाइलोबैक्टीरियोसिस या ट्राइकोंमोनीएसिस, से ग्रस्त है तो उसका उपचार अवश्य करें।
  • यदि पशु योनि के रास्ते हवा खींचती है (न्यूमोवेजाइना) तो योनि द्वार के ऊपरी हिस्से पर टांके लगाएं तथा इसके लिए कैसलिकस ऑपरेशन किया जाता है।
  • कठिन प्रशव एवं जेर के रुकने के बाद अक्सर मेट्राइटिस हो जाती है इसलिए इसके बाद, सिस्टमिक रूट से प्रतिजैविक औषधि का प्रयोग अवश्य करें।
  • मेट्राइटिस के उपचार के लिए जब भी पोवीडीन घोल, ऑक्सीटेटरासाइक्लिन या नाइट्रोफुराजोन को गर्भाशय में डाला जाता है तो गायों में मद चक्र छोटा हो सकता है। कई तरह के घोल से एंडोमेट्रियम उत्तेजित हो जाती है जिससे उर्वरता कम हो जाती है। जैसे लुगोलस घोल, के डालने के उपरांत संक्रमण रुकने के बाद वापिस गर्भधारण होने मैं थोड़ा अधिक समय लगता है। इसीलिए गर्भाशय में स्ट्रांग घोल नहीं डालने चाहिए जिससे गर्भाशय की अंदरूनी परत एंडोमेट्रियम प्रभावित हो। प्रयोग में लिए जाने वाले घोल जैसे पोवीडीन, लियूगोल, आदि को वांछित तनुकरण के बाद ही डालना चाहिए। उसको जल्दी ठीक करने के उद्देश्य से कई लोग स्ट्रांग पॉवीडीन, पोटेशियम परमैंगनेट या लुगालस, आदि का प्रयोग करते हैं जो गर्भाशय के लिए अत्यंत घातक होता है इसके बुरे नतीजे अचानक तो सामने नजर नहीं आते परंतु बाद में गर्भधारण में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।

संदर्भ

  1. वेटनरी ऑब्सटेट्रिक्स एंड जेना़इटल डिसीजंस द्वारा एस जे रॉबर्टस
  2. द मर्क वेटरनरी मैनुअल
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  कोविड 19 वैश्विक महामारी में पशु चिकित्सक का महत्वपूर्ण योगदान

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